करछना से इलाहाबाद तक किसानों का पदल मार्च
जिलाधिकारी को ज्ञापन देते किसान |
भूमि अधिग्रहण के विरोध में करछना इलाहाबाद (उ0प्र0) में पुनर्वास किसान कल्याण सहायता समिति, बिहान, मजदूर किसान यूनियन के सयुक्त आह्वान पर आज 21 नवम्बर 2012 को कचहरी, करछना से इलाहबाद तक पदल मार्च निकला गया. जिलाधिकारी के माध्यम से प्रदेश के मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन दिया गया. किसानों ने केन्द्र एवं प्रदेश सरकार की तरफ से हो रही किसानों की उपेक्षा की घोर निन्दा की और सरकार को चेतावनी देते कहा की तीन माह मे यदि किसानों की मांगों को नहीं माना तो इलाहबाद से 50 हजार किसान विधानसभा को घेरने के लिये कूच करेगें. इलाहाबाद के जिलाधिकारी ने भवन के मुख्या द्वार पर आकार प्रदर्शनारत किसानों से ज्ञापन लिया, जिसे उनकी उपस्थिति में पढकर सबके सामने सुनाया गया.पेश है रविन्द्र की यह रिपोर्ट;
करछना में जेपी पांवर प्रोजेक्ट के लिए 2007 में करछना के कचरी, देवरीकलां, कचरा, भिटार, गढ़वा कला, देहली भगेसर, मेड़रा आदि गांवो की जमीन अधिग्रहण की गयी थी. शुरू से ही पुनर्वास किसान कल्याण समिति अधिग्रहण के विरोध लगातार आन्दोलन कर रही है।
करछना पावर प्लांट के लिए कुल 1920 काश्तकारों से जमीन ली गई थी लेकिन मुआवजा 1850 काश्तकारों को दिया गया जबकि शेष 70 काश्तकारों ने मुआवजा लेने से इनकार कर दिया। पावर प्लांट के विरोध में करछना में कई बार बवाल हुआ। अंत में मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा और 13 अप्रैल 2012 को हाईकोर्ट ने अधिग्रहण को रद्द कर दिया। अब प्रशासन किसानों से पूछा रहा है कि वो अपनी जमीन वापस लेना चाहते हैं तो मुआवजे की रकम वापस कर दें और अगर जमीन नहीं लेना चाहते हैं तो मुआवजे की रकम अपने पास रख लें।
इधर किसानों का दावा है कि प्रति बीघा जमीन पर खेती कर वह साल भर में तकरीबन एक लाख रुपये कमा लेते थे। चार साल तक खेती न होने के कारण उन्हें चार लाख रुपये का नुकसान हुआ जबकि सरकार ने जमीन अधिग्रहण के लिए किसानों को तीन लाख रुपये प्रति बीघा की दर से मुआवजा दिया था। ऐसे में किसानों को प्रति बीघा एक लाख रुपये का नुकसान उठाना पड़ा। इसके अलावा करछना पावर प्लांट को लेकर पूर्व में जो भी आंदोलन हुए, उसके मद्देनजर जिला प्रशासन ने किसानों पर ढेरों मुकदमे लाद दिए। अब तक मुकदमे वापस नहीं लिए गए हैं।