डिमना बांध : हम तो लड़ेंगे साथी, हम न डरेंगे !
पेश हैं झारखण्ड मुक्ति वाहिनी की प्रेस विज्ञप्ति;
- टाटा कंपनी अतिक्रमित 102 एकड़ जमीन की क्षतिपूर्ति दी जाये।
- डिमना बांध में अन-अधिग्रहित मौजा पुनसा के 3.84 एकड़ और लायलम के 1.99 एकड़ जमीन के फसल के नुकसान की क्षतिपूर्ति दे।
- डिमना बांध के विस्थापितों को बकाया मुआवजा, नौकरी और पुनर्वास की व्यवस्था की जाय।
- टाटा कंपनी के द्वारा विस्थापित परिवारों को डिमना के पानी के उपयोगिता मूल्य या लाभ का आधा हिस्सा दिया जाए।
- डिमना बांध में नौकाचालन और मत्स्य पालन का अधिकार विस्थापितों के समूह को दिया जाये।
- टाटा स्टील के कर्मचारियों की तरह विस्थापित परिवारों को भी नौकरी, चिकित्सा और शिक्षा की सुविधायें दी जायें।
- डिमना बांध के किनारे अमरी पौधे की झाड़ियो को नियमित रूप से साफ किया जाये।
- डिमना बांध के किनारे-किनारे लिफ्ट-इरिगेशन द्वारा सिंचाई की व्यवस्था की जाये।
- कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व के तहत विस्थापित इलाको में ग्राम सभा की सहमति से विकास कार्य किया जाय।
विस्थापित मुआवजा एवं समुचित पुनर्वास के साथ-साथ इस क्षेत्र में एक हाईस्कूल एवं डिस्पेन्सरी खोलने की मांग कर रहे हैं। मछली, नौका परिचालन पर विस्थापितों का हक कायम हो, कारपोरेट सामाजिक दायित्व को लगू किया जाए और टाटा स्टील की नौकरी एवं अप्रेन्टिस में प्राथमिकता दी जाए।
जल सत्याग्रह के दुसरे दिन यानिकी 1 अक्टूबर, 2013 को लगातार दिन भर आकाश में बादल छाये रहने, तेज बारिश और बूंदाबांदी के सिलसिले के बीच भी जल सत्याग्रहियों का जमे रहना उनकी जुझारू संघर्षशीलता को जाहिर कर रहा था। विगत रात जल सत्याग्रह के समर्थकों के बैठने और इंतजाम की सामग्रियों को रखने वाले दोनों टेंट गिर गये थे, फिर भी व्यवधान नहीं आने दिया गया। आज तो कल की अपेक्षा ज्यादा संख्या में जल सत्याग्रही पानी में उतरे, अथक खड़े रहे। आज महिला सत्याग्रहियों की भी संख्या ज्यादा रही। विस्थापित आंदोलनकारी गिरफ्ताररी देने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।
उल्लेखनीय है कि जल सत्याग्रह वैसे वक्त में हो रहा है, जब डिमना बांध में पुनसा और सायलम की 5.89 एकड़ जमीन गैर-अधिग्रहित जमीन डूबी हुई है। लगभग 79 सालों से हर साल बरसात में लगभग इतनी जमीन डूबती है, फिर भी टाटा कंपनी क्षतिपूर्ति नहीं देती और न प्रशासन ही टिसको पर कोई कार्रवाई करता है। डिमना बांध टाटा घराने की बेईमानी और अनैतिकता तथा प्रशासन की संवेदनशून्यता और निकम्मेपन का साक्ष्य बन चुका है। पिछले पांच-छः वर्षों से झारखंड मुक्ति वाहिनी इस अनैतिकता और संवेदनशून्यता के खिलाफ संघर्ष करती आ रही है। यह आंदोलन इन मांगों की बुनियाद पर विकसित हो रहा है- बांध में नौकापालन और मत्स्यपालन का अधिकार विस्थापितों को मिले। टाटा स्टील के र्मचारियों की तरह विस्थापित परिवारों को नौकरी, शिक्षा ओर चिकित्सा की सुविधा मिले। विस्थापितों के बकाया मुआवजा मिले। 102 एकड़ जमीन अधिग्रहित करने के अपराध के लिए टिसको को दंडित किया जाय और क्षतिपूर्ति वसूली जाय। लिफ्ट सिंचाई के जरिये बांध किनारे के खेतों को सिंचाई की सुविधा दी जाये। विस्थापितों को पानी की उपयोगिता मूल्य और लाभ का हिस्सा दिया जाय।
आंदोलन के समर्थन में चांडिल बांध के विस्थापित नेता श्यामला मार्डी, विस्थापन विरोधी मंच के अग्रणी नेता कुमार चन्द्र मार्डी, डा. सोमाय, अरविन्द अंजुम, कपूर बागी, घनश्याम, नारायण गोप ने भी सभा को संबोधित किया।
2 अक्टूबर 2013 को डिमना विस्थापितों ने डिमना डैम स्थित जुस्को-टिसको कार्यालय पर धरना और गिरफ्तारी दी. सत्याग्रह स्थल पर गांवों से भारी संख्या में महिला-पुरुष, नौजवान जुटे। 1 बजे से गाजे-बाजे और नारों के साथ रैली की शक्ल में विस्थापितों का सत्याग्रह डिमना लेक स्थित टिस्को-जुस्को कार्यालय की ओर रवाना हुआ। कार्यालय के पास जुलूस को रोका गया, तब जुलूस घेराव में बदल गया। घेराव के दौरान गिरफ्तारी देने वालों का नाम मांगा गया। उपस्थित तमाम लोगों ने गिरफ्तारी देने के लिए अपना हाथ उठाया। जुलूस में लगभग हजार लोग शामिल थे। घंटों यह घेराव जारी रहा। अन्ततः पुलिस-प्रशासन ने 125 लोगों को गिरफ्तारी के लिए नामजद किया और गिरफ्तार करने के बाद लोगों को छोड़ दिया। घेराव के दौरान हुई बैठक में अगले कार्यक्रमों का फैसला लिया और उसकी घोषणा की गयी। प्रशासन की ओर से 3 अक्टूबर 2013 को आयोजित विस्थापित और टिस्को के वार्तालाप में जाने की घोषणा हुई। ग्रामीण स्तर पर डैम में मछली मारने और नौका चालन का सत्याग्रह करने तथा मुंबई में आनेवाले दिनों में टाटा घराने के मुख्यालय पर सत्याग्रह करने का निर्णय लिया गया है।
03 अक्टूबर 2013 को जल सत्याग्रह समाप्त होने के दूसरे ही दिन लम्बित समस्याओं के समाधान के लिए अनुमंडल पदाधिकारी प्रेम रंजन की अध्यक्षता में 19वें दौर की वार्ता सम्पन्न हुई। वार्ता में टाटा स्टील की ओर से अजय सहाय एवं देवदूत महंती तथा विस्थापित कपूर बागी, कुमार दिलीप, दिलीप कुमार तथा बोड़ाम प्रखंड के प्रखंड विकास पदाधिकारी दीपू कुमार शामिल थे। विस्थापितों से सभी समस्याओं पर वार्ता हुई। अनुमंडल अधिकारी प्रेम रंजन ने कहा कि वार्ता का निष्कर्ष दुर्गा पूजा के तुरंत बाद बतायेंगे।
विस्थापितों के प्रतिनिधिमंडल में बबलू मुर्मु, गणेश शर्मा, सोम, मोहन सोरेन, भानु सिंह, यादव सिंह, सुकदेव मुंडा, ललित मुंडा, राजेश, रवि सिंह आदि शामिल थे।