लोअर सुकतेल: बर्बर दमन, बहादुराना प्रतिरोध और व्यापक समर्थन
दिल्ली के उड़ीसा भवन पर आज सामाजिक संगठनों, कार्यकर्त्ताओं और छात्र-नौजवानों ने बलांगीर जिले के मगुरबेडा गांव में शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे ग्रामीणों पर चल रहे बर्बर पुलिसिया दमन और किसानों की जबरन भूमि कब्जाने की सरकारी नीति के विरोध में प्रदर्शन किया. इस विरोध प्रदर्शन में ममता दास ने कहा कि उड़ीसा पुलिस द्वारा 29 अप्रैल, 2013 को लोअर सुकतेल का विरोध कर रहे स्थानीय लोगों पर हमला बोल दिया गया. इस कतिलाना हमले में कई महिला-बच्चें-बुजर्ग घायल हुए हैं. विजय प्रताप, मिनती दास, आदि वक्तओं ने बर्बर पुलिसिया दमन का विरोध करते हुए मांग कि, की दोषी अधिकारियों के विरोध में कठोर कार्यवाही हो, गिरफ्तार किसानों को तत्काल रिहा किया जाय. साथ ही, किसानों की जबरन कब्जा कि जा रही ज़मीन पर रोक लगाई जाये.उड़ीसा भवन के सामने ग्रामीणों को प्रताडित करने और आदिवासी भूमि पर जबरन कब्जा करने के खिलाफ नारे लगाए और उड़ीसा के अतिरिक्त स्थानिक आयुक्त (Assistant Resident Commissioner) ने भवन के मुख्या द्वार पर आकार प्रदर्शनकारियों से ज्ञापन लिया, जिसे उनकी उपस्थिति में पढकर सबके सामने सुनाया गया.
इस बात का कभी भी समर्थन नहीं किया जा सकता है क्योंकि पुलिस की इस बरबरतापूर्ण कार्यवाही के लिए राज्य ही पूरी तरह जिम्मेदार हैं। उड़ीसा सरकार को जवाब देना पड़ेगा कि लोअर सुकतेल क्षेत्र को एक युद्ध क्षेत्र में क्यों तबदील कर दिया गया ? जबकि वहां लोग एकजुट होकर शांतिपूर्वक आपनी मांगों के समर्थन में प्रदर्शन कर रहे थे।
प्रदर्शन कर रहे लोगों का कुसूर इतना ही था कि वे शांतिपूर्वक एकजुट होकर केवल अपनी आवाज को जबरदस्ती किए जा रहे निर्माण कार्य के खिलाफ बुलंद कर रहे थे। वे उस प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे थे जिसे विशेषज्ञों द्वारा अन्यायापूर्ण घोषित किया जा चुका है।
मिनती दास ने कहा कि पत्रकार एवं फिल्मकार अमिताभ पात्रा ने जब इस पुलिसिया कार्यवाही को अपने कैमरे में कैद करना चाहा तो उनको निशाना बनाकर 8-10 पुलिसवालों ने हमला किया और उनकी बुरी तरह से पिटाई की गई जिसमें उनके चेहरे और सर पर चोटे लगी। पुलिस ने पात्रा के दोनों कैमरों को अपने कब्जे में ले लिया और उन्हे तोड़ दिया । जबकि पात्रा कई घंटो तक बेहोश पड़े रहे। यहां यह प्रश्न उठता है कि उड़ीसा पुलिस को क्या हक है कि वह किसी फिल्मकार को फिल्म बनाने से रोके। उड़ीसा पुलिस को किस कानून के तहत यह अधिकार मिल गया कि वह फिल्मकार के साथ बरबर्तापूर्ण व्यवहार करे और उनके सर को इस तरह चोट पहुंचाए, जबकि पात्रा केवल इस कार्यवाही के एक गवाह थे और प्रदर्शन में शामिल भी नहीं थे। वह तो केवल वही शूट कर रहे थे जो वहां हो रहा था।
करीब 16 लोगों (जिनमें 9 महिलाएं भी शामिल हैं) को घटना स्थल से गिरफ्तार कर लिया गया जिनमें उड़ीसा के सम्मानित एवं प्रसिद्ध कवि और ओडिया जनरल के संपादक निशान और स्वयं अमिताभ पात्रा भी शामिल हैं।
पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प पिछले बीस दिनों से लगातार हो रही थी। लगभग हर दिन पुलिस शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर लाठीचार्ज कर रही थी। प्रदर्शनकारियों से गाली गलौज और शारीरिक तौर पर उनको नुकसान पहुंचाना पुलिस की आदत बन चुकी थी। पिछले 3-4 हफ्तों के दौरान 100 से भी अधिक लोग पुलिस की लाठी का शिकार बन चुके थे और राज्य पुलिस द्वारा पीटे जा चुके थे। प्रदर्शनकारी शांतिपूर्वक तरीके से पिछले दस सालों से लोअर सुकतेल प्रोजेक्ट के विरोध में आंदोलन कर रहे हैं जो अपनी रोजी रोटी के साधन छीने जाने और विस्थापन के विरोध में हैं। इस प्रोजेक्ट के तहत 56 गांव से भी अधिक गांवों को शामिल किया गया है। यहां पीड़ितों को विास्थापन की समस्या का सामना करना पड़ रहा है और अपने कीमती भविष्य से हाथ धो बैठने की समस्या का खतारा उनके सामने बना हुआ है।
ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे इस प्रेाजेक्ट को राज्य द्वारा लंबे समय से छोड़ा हुआ था क्योंकि यह 1979 में मूल रूप से सामने आया था जिसकी जड़े गंधमारदन हिल्स के बालको के खनन से जुड़ती नजर आती हैं। लोअर सुकतेल का पानी खनन कंपनी को दिया जा रहा है। इस प्रोजेक्ट की अनेक रिसर्च संगठनों और मानवाधिकार संगठनों के द्वारा आलोचना होती रही है। इनमें यूएनडीपी की अनिता अग्निहोत्री द्वारा किया गया अध्ययन-2008 गौर करने योग्य है। प्रोजेक्ट को अवैध घोषित करने के लिए लाभ की तुलना में इसका न्यायोचित न होना यह टिप्पणी ही काफी है और यह सुझाव दिया गया है कि इस महंगे प्रोजेक्ट का विकल्प पर ध्यान दिया जाना चाहिए। और सरकार की द्वेषपूर्ण प्रतिक्रिया जो उसने डीपीआर प्रोजेक्ट-डिटेल पब्लिक रिपोर्ट को बनाने से मना करने में दी।
वर्तमान में प्रोजेक्ट को लेकर निर्माण में की जा रही जल्दबाजी का संबंध गंधमारदन हिल्स की विभिन्न खनन कंपनियों से जुड़ता है। इस नवीन रुचि के पीछे वोट की राजनीति भी गतिशील है क्योंकि 2014 में चुनाव होने वाले हैं।
प्रजातांत्रिक राज्य में शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे आंदोलनकारियों के अधिकारों का हनन नहीं होने दिया जा सकता है। उड़ीसा सरकार को कुछ प्रश्नों का उत्तर देना ही होगा। इसे क्या कहा जाएगा जब लोग नारों और एकजुटता के साथ शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे हों और पुलिस बरबर्ता दिखाए? मागुरबेडा में आम नागरिक और आंदोलनकारियों को क्यों निशाना बनाय गया?
राज्य सरकार को हमेशा यह याद रखने की जरूरत है कि लोगों को विरोध करने का और अपनी समस्याओं को रखने का संवैधानिक अधिकार है। कोई भी राज्य सरकार या केंद्र सरकार नागरिकों के यह अधिकार नहीं छीन सकती है। समय आ गया है कि राज्य और पुलिस को इस अन्यायपूर्ण कार्यवाही की जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
हम मांग करते हैं कि:
- जिन लोगों को 29 अप्रैल को गिरफ्तार कर उनके खिलाफ मामले बनाए गए हैं उन्हें तुरंत वापस लिया जाए और गिरफ्तार किए गए लोगों को बिना शर्त और तुरंत रिहा किया जाए।
- प्रशासन को ईमानदारी के साथ विस्थापित होने वाले गांवों के साथ बातचीत करनी चाहिए और घायलों के लिए इलाज की पूरी व्यवस्था करनी चाहिए।
- बलांगीर के एसपी को 29 अप्रैल की घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए तुरंत इस्तीफा देना चाहिए।
- लोअर सुकतेल क्षेत्र से पुलिस को तुरंत हटाया जाना चाहिए।
- उड़ीसा सरकार और पुलिस को 29 अप्रैल को घायल हुए और गिरफ्तार हुए प्रदर्शनकारियों से माफी मांगनी चाहिए।
- लोअर सुकतेल क्षेत्र के निवासियों पर 2005 से लेकर अब तक लगाए गए सभी मामले वापस लिए जाने चाहिए।