पी.सी. तिवारी का हरीश रावत को जेल से खुला पत्र
”यदि वक्त मिला और आपके संरक्षण में पल रहे जिंदल और उसके गुण्डों से मैं और मेरा परिवार सुरक्षित रहा तो जरूर मैं जनता के समक्ष आपसे खुली बहस करने को तैयार हूँ और आप मेरे इस निमंत्रण को स्वीकारें, ताकि आपके विचार और अनुभवों से उत्तराखण्ड की जनता और मैं कुछ सीख सकें। बुरा न मानें, यह लोकतंत्र हैं। आपके लाख जुल्म हों, मैं तो अपनी बात कहूंगा।” जनपथ से साभार पी.सी. तिवारी का हरीश रावत को जेल से खुला पत्र;
सेवा में,
माननीय मुख्यमंत्री हरीश रावत जी
उत्तराखण्ड सरकार,
देहरादून
माननीय मुख्यमंत्री जी,
एक स्थानीय चैनल ईटीवी पर कल रात व आज सुबह पुनः नानीसार पर आपका विस्तृत पक्ष सुनने का मौका मिला। आपकी इस मामले में चुप्पी टूटने ये यह साबित हुआ कि उत्तराखण्ड में संघर्षरत जनता की आवाज आपकी पार्टी की सियासी सेहत को नुकसान पहुंचाने लगी है।
लेकिन आपका वक्तव्य ध्यान से सुनने और मनन करने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि आपके वक्तव्य में सच्चाई का नितांत अभाव था और एक बार फिर अपनी गरदन बचाने के लिए आप नानीसार के ग्रामीणों की दुहाई देकर पूरे उत्तराखण्ड व देश को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं। जनता इस बात को कितना समझती है, इसके लिए थोड़ा वक्त का इंतजार करना पड़ेगा पर आपको अपने छात्र व सामाजिक जीवन से मैंने जितना जाना समझा है, उसके आधार पर मैं कह सकता हूॅं कि इतने बड़े संवैधानिक व जिम्मेदारी वाले पद पर पहुंचने के बाद भी आपकी फितरत नहीं बदली। इसे मैं उत्तराखण्ड का दुर्भाग्य ही कहूंगा। आप भी कहें न कहें इस सच्चाई को मन ही मन आप भी जरूर स्वीकारेंगे।
रावत जी, आपने अपने पत्र में जिस वैचारिक भिन्नता बात कही है , वह सही है। आप यह भी जानते हैं कि आपका विचार हमसे अकसर मेल नहीं खाता है तो भी हम अपने विचारों और संकल्पों पर दृढ़ता से कायम रहने वाले लोग हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो आपके फेंके चारे को खाकर कुछ लोगों की भांति हम भी गरीब, भूमिहीन, दलित को अपने पक्ष में गुमराह करने का माध्यम बने होते और आपकी कृपा व इशारे से जिंदल ग्रुप के गुण्डो द्वारा खुद मारपीट और जानलेवा हमला कर अनुसूचित जाति जनजाति के लगाए गए झूठे मुकदमे में जेल में नहीं होते।
रावत जी, आपको मैं याद दिलाना चाहूंगा कि कुमाऊॅं विश्वविद्यालय के अल्मोड़ा परिसर का छात्रसंघ अध्यक्ष रहते हुए हमने अपने संस्थान के एक सफाईकर्मी श्री नन्हे लाल वाल्मीकि से 1978 के छात्रसंघ समारोह का उद्घाटन कराया था। लेकिन इससे आपको क्या, आपके लिए तो दलित और आदिवासी मात्र वोट बैंक हैं और उसे पाने लिए आप हर स्तर पर तिकड़म करते हैं। शराब, पैसा बांटकर लोकतंत्र का हनन करते हैं। क्या मैं कुछ अधिक कड़वी सच्चाई कह गया? लेकिन उत्तराखण्ड आंदोलन को दलित विरोधी करार देने वाले आपके दलित नेता आज उन दलित भूमिहीनों को भूल गए हैं जिनके पक्ष की आवाज हम आज भी लगातार उठाए हुए हैं। ऐसे नेता प्रदेश में आपदा प्रभावित, दलितों, भूमिहीनों के हक जमीन को जिंदल व अन्य पूंजीपतियों को कौड़ियों के भाव अवैध ढंग से देने के मामले में आज भी मौन हैं।
माननीय मुख्यमंत्री जी, नानीसार का लेकर स्थानीय चैनल ईटीवी पर आपने जो कहा वह तथ्यात्मक रूप से भी गलत है। आज जानते हैं या नहीं, अपनी आदत के अनुसार आप जानबूझ कर अनजान बने रहना चाहते हैं। आप जानते हैं कि यह सच है कि स्थानीय डीडा गांव के लोग उनके नानीसार तोक की जमीन जिंदल को दिए जाने के खिलाफ 25 सितम्बर 2015 से ही आक्रोशित हैं। आपकी शह पर वहां तभी से भारी मशीनें, अवैध कटान का उपयोग कर जिंदल के गुण्डों ने कब्जा कर दिया था। जिस ग्राम प्रधान की सहमति का आप टीवी में जिक्र कर रहे थे उसके इस कृत्य के लिए ग्रामीण उसका ग्राम सभा में बहिष्कार कर चुके हैं। इस बाबत ग्रामीणों ने सूचना अधिकार से प्रक्रिया को जानना चाहा तो उन्हें ज्ञात हुआ कि ग्राम प्रधान ने गलत ढंग से ग्रामीणों को गुमराह किया। इस बाबत ग्रामीण जिलाधिकारी को अनेकों बार ज्ञापन भी दे चुके है तथा तभी से लगातार आंदोलन कर इस पूरे मामले की जांच की मांग करते आ रहे हैं। लेकिन शासन-प्रशासन ने इसे संज्ञान में नहीं लिया। अब यह मामला अदालत में है। लोकतंत्र में क्या आप इसे ग्रामीणों की सहमति कहेंगे? डीडा के ग्रामीण राज्य स्थापना दिवस से मेरे जेल जाने तक क्रमिक धरना और भूख हड़ताल कर रहे थे। क्या यही जिंदल को जमीन देने की सहमति हैं। 22 अक्टूबर को जब बिना लीज पट्टा निर्गत किए आप भाजपा सांसद मनोज तिवारी को विशिष्ट अतिथि बनाकर वहां अपने होनहार पुत्र के साथ कथित इंटरनेशनल स्कूल का उद्घाटन करने पहुंचे, तो भी ग्रामीणों को प्रबल विरोध आपको नहीं दिखा। तब भी आपकी पुलिस के हाथों पिटती ग्रामीण महिलाएं और क्षेत्र के लोग क्या जिंदल को जमीन देने के समर्थन में थे?
रावत जी, मुझे आश्चर्य होता है कि, एक जिम्मेदार पद पर विराजमान होते हुए आप इतने भोले कैसे बन जाते हैं। यहां मैं आपको याद दिला दूूं कि आपने 28 नवम्बर को मीडिया को सार्वजनिक बयान देकर कहा था कि यदि ग्रामीण चाहेंगे तो जमीन सरकार वापस ले लेगी लेकिन दो महीने से अधिक समय बीत जाने के बाद भी आपने इस दिशा में कोई निर्णय नहीं लिया। अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस 10 दिसम्बर को नैनीसार बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले डीडा के ग्रामीणों ने हर परिवार के व्यक्ति के हस्ताक्षरों से एक ज्ञापन जिलाधिकारी के द्वारा आपको भेजा जिसमें इस भूमि आवंटन को खत्म करने की मांग थी। लोकतंत्र में इसे भी क्या लोगों की सहमति कहेंगे? आपकी शह पर बिना लीज पट्टा निर्गत किए वहां चल रहे निर्माण कार्य व नियम विरूद्ध भारी तार बाड़, ग्रामीणों के रास्ते, पानी पर कब्जा, वहां बुरांस, काफल के पेड़ों का दोहन देखकर हर उत्तराखण्डी को आक्रोश आएगा। वहां सिविल जज अल्मोड़ा सीनियर डिविजन के स्थगन आदेश के बाद भी आपकी सरकार उस अवैध निर्माण को नहीं रोक पा रही है। ऐसे में आप मुझ जैसे निरीह उत्तराखण्डी पर, जिसे आपकी शह और इशारे पर जिंदल के अज्ञात गुण्डों व कथित अंगरक्षकों द्वारा मारपीट कर अपमानित किया जा रहा है और आरोप है कि मैं अपने विचारों का आप पर थोप रहा हूूॅं। क्या मेरी ऐसी हैसियत है?
जब 26 जनवरी को नानीसार में आपके प्रशासन के अनेक स्थानों पर रोकने के बाद भी वहां पहुंची 400 के आसपास जनता के समक्ष वहां एक स्चतंत्रता संग्राम सेनानी द्वारा राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया, तो आपके सिपहसालारों और जिंदल के दबंगों ने उस झण्डे को वहां से उतारकर फेंक दिया। रावत जी क्या आप चाहते हैं कि नानीसार को लेकर जिस तरह पूरे प्रदेश व देश में सामाजिक कार्यकर्ता व राजनीतिक कार्यकर्ता संघर्ष में उतरकर उसका विरोध कर रहे हैं, उन सब पर आपकी कोई समझ नहीं है, कृपया इसे स्पष्ट करने की कृपा करें।
मुख्यमंत्री जी, जो कुछ आप टीवी पर बोंल रहे थे, स्थिति उसके विपरीत है। आपने भूमि की जांच हेतु स्वयं वरिष्ठतम अधिकारी राधा रतूड़ी व शैले श बगौली की कमेटी तीन नवम्बर 2015 को गैरसैंण में घोषित की थी।यदि आप अपने निर्णय पर दृढ़ थे तो फिर दिखाने के लिए वह कमेटी क्यों बनाई,?और इस कमेटी ने अब तक क्या किया? यदि सब कुछ ठीक है तो आपकी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष इस मामले में जाॅंच कमेटी क्यों घोषित कर रहे हैं? रावत जी, सुना तो यह भी जा रहा है कि आपने पता नहीं किन कारणों से भूमि आवंटन की यह विवादास्पद पत्रावली अपने वरिष्ठतम सहयोगी राजस्व मंत्री श्री यशपाल आर्य को भी नहीं भेजी। तब अपने विचारों व निर्णयों को आप थोप रहे हैं या सच्चाई यह है कि सत्ता का दुरूपयोग करे हुए आप अपनी मनमानी पर उतर आए हैं और राज्य के हितों से खिलवाड़ कर रहे हैं, यह जानते हुए कि इसका खामियाजा हमारी आने वाली पीढ़ियों को भुगतना पड़ेगा।
जहां तक आपके द्वारा वैकल्पिक विकास माॅडल के सुझावों का मामला है, तो क्या आपने इसके लिए कभी रायशुमारी की? क्या आपकी सरकार ने उत्तराखण्ड राज्य की लड़ाई में शामिल हम जैसे सिपाहियों से इस मामले में संवाद शुरू किया? जबकि आप जानते हैं कि पिछले 4 दशकों से हम लोग इस राज्य में तमाम मुददों पर लड़ रहे हैं फिर ऐसे तोहमत आप हमपर कैसे लगा सकते हैं?
मुख्यमंत्री जी यदि आपको राज्य में शिक्षा और स्वास्थ्य की इतनी ही चिंता है तो इसे व्यापार क्यों बना रहे हैं? सरकार की जिम्मेदारी क्या है? फिर क्यों स्वास्थ्य व शिक्षा के कारण राज्य में पलायन बढ़ रहा है? सरकारी चिकित्सालयों व स्कूलों की दुर्दशा आप जानते हैं। आप इसमें सरकार की जिम्मेदारी क्यों नहीं तय करते? सरकार का काम है कि हर नागरिक को समान और गुणवत्तापूर्वक शिक्षा व स्वास्थ्य दे । हम स्वयं इस कार्य में आपका हर स्तर पर सहयोग करने को तैयार है, लेकिन आप हैं कि लगातार बड़े-बड़े मुनाफाखोर निजी स्कूलों के उद्घाटन समारोहों में ही नजर आ रहे हैं।
मुख्यमंत्री जी, सोशल मीडिया में आपको जमीनी नेता के स्थान पर जमीन का नेता कह कर स्वयं आपके अपने व्यंग्य करने लगे हैं पर आपकी कार्यप्रणाली को देखकर ऐसा लगता है कि आप राज्य की सवा करोड़ जनता की भावना, सोच, विचार से नहीं वरन अपनी सोच और विवेक पर ही भरोसा करते हैं। ऐसे में तमाम संस्थाओं का क्या महत्व है? इसके बावजूद नानीसार को लेकर मैं आपको एक सुझाव दे सकता हूँ। यदि आप उचित समझें तो जेएनयू की तर्ज पर जो आवासीय विश्वविद्यालय आप अपने जन्मदिन पर हर जिले में खोलने की घोषणा कर चुके हैं, उसे नानीसार में खोलने की घोषणा करें। लेकिन जिंदल के हितों के सामने शायद आपको मेरा यह सुझाव पसंद न आए।
रावत जी, आप बार-बार इस कथित अंतरराष्ट्रीय स्कूल से रोजगार देने की बात कर रहे हैं। अभी तक हमें सूचना अधिकार से मिले सरकारी दस्तावेजों में इसके बारे में कोई प्रमाण नहीं मिला। स्पष्ट है यह सब जुबानी जमा खर्च है। यदि आप इस पर सोच रहे हैं तो यह जनता का दबाव नहीं है जिसमें आप अपने तरकश में कोई भी तीर रख सकते हैं। आप बता सकते हैं कि केवल पांच माह में आपकी सरकार ने जमीन आवंटन करने का जो शासनादेष जारी किया उसमें रोजगार भर्ती की क्या व्यवस्था है, गांव के किसानों के बच्चों की पढ़ाई की क्या व्यवस्था है। यदि नहीं, तो मैं समझता हूँ कि मुख्यमंत्री जैसे गरिमापूर्ण पद पर बैठे व्यक्ति को सदैव जिम्मेदारी से सच बोलना चाहिए। अन्यथा इस पद का भी अवमूल्यन होने लगता है।
खैर, शायद मेरा पत्र लंबा होने लगा है। यदि वक्त मिला और आपके संरक्षण में पल रहे जिंदल और उसके गुण्डों से मैं और मेरा परिवार सुरक्षित रहा तो जरूर मैं जनता के समक्ष आपसे खुली बहस करने को तैयार हूँ और आप मेरे इस निमंत्रण को स्वीकारें, ताकि आपके विचार और अनुभवों से उत्तराखण्ड की जनता और मैं कुछ सीख सकें।
बुरा न मानें, यह लोकतंत्र हैं। आपके लाख जुल्म हों, मैं तो अपनी बात कहूंगा।
पी.सी. तिवारी
केंद्रीय अध्यक्ष, उत्तराखण्ड परिवर्तन पार्टी
जिला कारागार अल्मोड़ा
29 जनवरी, 2016
संपर्क- 9412092159