कूडनकुलम सम्मेलन : परमाणु विरोधी आंदोलन की आवाज़ बुलंद
तमिलनाडु के कूडनकुलम में 4-5 जनवरी 2014 को देश भर के परमाणु संयंत्र विरोधी कार्यकर्ता ओर लोकतांत्रिक समाजकर्मी इकठ्ठा हुए और उन्होंने विदेशी कॉर्पोरेट के लिए देश के साधारण ग्रामीणों और मछुआरों की ज़िन्दगी से खिलवाड़ बंद करने की मांग की. इस राष्ट्रीय सम्मेलन में परमाणु विरोधी आंदोलनों को तेज करने का आह्वान किया गया. पेश है कूडनकुलम सम्मेलन द्वारा पारित यह घोषणापत्र;
देश में जहां कहीं भी परमाणु पावर प्लांट लगे हुए हैं या प्रस्तावित हैं, वहां स्थानीय समुदाय द्वारा स्वभाविक रूप से इसके खतरों को देखते हुए परमाणु पावर प्लांट का तीव्र विरोध किया जा रहा है। लोग न केवल परमाणु पावर प्लांट लगाए जाने का विरोध इसके खतरों को देखते हुए कर रहे हैं बल्कि जिस प्रकार से यह परमाणु पावर प्लांट लोगों पर जबरन थोपे जा रहे हैं इसका गुस्सा भी लोगों में खुले विरोध के तैार पर सामने आ रहा हैं। यह प्रोजेक्ट जिन्हें विकास के इंजन के तौर पर प्रचारित किया जा रहा है जबरदस्त विरोध के बावजूद भी राज्य द्वारा बर्बर दमन के तहत इन्हे लगाया जा रहा हैं। विकास की इस अंधी दौड़ में लोकतंत्र पीड़ित होकर रह गया है। इसी संदर्भ में देखें तो जर्मनी जैसे देश में परमाणु पावर प्लांट स्थानीय समूदाय की सहमति के बिना नहीं लगाए जा सकते हैं। जबकि देश के प्रधानमंत्री एनपीसीएल के 700 मेगावाट परमाणु पावर प्लांट के लिए गोरखपुर, हरियाणा में जबरदस्त विरोध के बावजूद परमाणु पावर प्लांट की नीव रखने के जा रहे हैं।