संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

खण्डधार पहाड़ियों-झरनों को कॉरपोरेट से बचाने की लड़ाई तेज

बीती 26 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब दिल्‍ली से समूचे देश को गणतंत्र का पाठ पढा रहे थे, ठीक उसी वक्‍त करीब 1500 किलोमीटर दूर इस तंत्र से खुद को बचाने के लिए कुछ लोग सत्‍याग्रह पर बैठने को मजबूर थे। ओडिशा के सुदंरगढ़ जिले में स्थित खंडाधार जलप्रपात व खंडाधार की पहाडि़यों को खनन के लिए कॉरपोरेट घरानों के हाथों नीलाम करने की भारत सरकार की कोशिशों के विरोध में यहां एक ऐसा मोर्चा आकार ले रहा था, जिसमें हालिया अतीत के कुछ कामयाब जनांदोलनों के नायक भी मौजूद थे। जगतसिंहपुर से पोस्‍को और नियमगिरि से वेदांता को भगाने वाले तमाम जुझारू चेहरे 26 जनवरी को खंडाधार जलप्रपात के नीचे एक तम्‍बू में इस संकल्‍प के साथ इकट्ठा हुए थे कि जल, जंगल और ज़मीन की लूट अब और नहीं सही जाएगी। दो दिन बाद 28 जनवरी को दिन में 12 बजे जब इलाके के आंदोलनों के परिचित नायक व स्‍थानीय विधायक (स्‍वतंत्र) जॉर्ज तिर्की ने सैकड़ों ग्रामीणों की मौजूदगी में सत्‍याग्रह पर बैठे आंदोलनकारी प्रफुल्‍ल सामंत रे को संतरे का जूस पिलाकर अनशन तुड़वाने की औपचारिकता पूरी की, तब इस सुदूर आदिवासी अंचल में चमकते टीवी कैमरों ने गवाही दे डाली कि आने वाले वक्‍त में जल, जंगल और ज़मीन की जंग का राष्‍ट्रीय केंद्र खंडाधार बनने वाला है। क्‍या है खंडाधार की लड़ाई, यहां क्‍या, किसका और कैसे दांव पर है, इसे जानने के लिए पढ़ें यह विस्‍तृत रिपोर्ट।  

ओडीशा सरकार ने 2005 में दक्षिण कोरिया के एक स्टील कंपनी, पॉस्को के साथ एक अनुबंध किया था जिसमें उसने पॉस्को को सुंदरगढ़ जिले में खण्डधार पहाड़ियों में स्थित लौह अयस्क के खदान आवंटित कर दिए थे। तभी से इस क्षेत्र के पौडीभूयन समेत सभी आदिवासी खण्डधार में खनन का विरोध कर रहे हैं। अब केंद्र सरकार ने पॉस्को के लिए खनन निरस्त कर दिया और उसे नए एमएमडीआर अधिनियम के तहत नीलामी के लिए रख दिया है। अब यह क्षेत्र लीज़ पर सभी खनन कंपनियों के लिए खुला है। आदिवासी, दलित तथा अन्य वनवासी इस पारिस्थितिक तौर पर संवेदनशील क्षेत्र में खनन का विरोध कर रहे हैं। आदिवासी मामलों के केंद्रीय मंत्री जुअल ओरम ने अपनी बात को फिर दुहराते हुए कहा कि क्षेत्र के पर्यावरण तथा पारिस्थितिक की सुरक्षा के लिए खण्डधार पहाड़ियों में और उसके चारों तरफ लौह अयस्क के खनन को मंजूरी नहीं दी जानी चाहिए। किंतु वर्तमान भाजपा नीत राजग सरकार इस क्षेत्र को बिना ग्राम सभाओं की सहमति लिए कंपनियों के समक्ष नीलामी के लिए रख रही है।

खण्डधार पौडीभुयन और अन्य आदिवासियों, दलितों का है। यह झरना ब्राह्मनी नदी को पानी देता है। वन भूमि पर समुदाय के दावे के साथ-साथ अन्य व्यक्तिगत दावों को वन अधिकार अधिनियम 2006 में मान्यता नहीं दी गई। अब वक्त आ गया है कि सरकार से खण्डधार को खनन मुक्त क्षेत्र घोषित करने की मांग की हमारी जनवादी लड़ाई को पूरे देश के जनसंगठनों एवं जन संघर्षों से एकजुटता प्राप्त हो। कंडधार में होने वाला खनन, खण्डधार के हजारों आदिवासियों का जीवन और आजीविका नष्ट कर देगा।

देशी विदेशी 120 कंपनियों के ऑफर को नकारते हुए दक्षिण कोरिया की पोहांग स्टील कंपनी (पोस्को) के साथ ओडिशा सरकार ने जून 2005 में जिस मेमोरेण्डम ऑफ अण्डरस्टैडिंग पर हस्ताक्षर किये हैं, उस प्रोजेक्ट में 51000 करोड़ रूपये का निवेश पोस्को कंपनी करेगी। भारत में अभी तक का यह सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश होगा। इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत 4004 एकड़ में स्टील प्लांट, 2000 एकड़ में टाउनशिप, 13000 एकड़ में माइनिंग, भुवनेश्वर शहर में 25 एकड़ में कंपनी का कार्यालय, महानदी नदी से लगभग 15000 करोड़ लीटर पानी लेने की व्यवस्था, कैपटिव कोल माइंस (मात्रा अज्ञात), पारादीप बंदरगाह प्रस्तावित है। रेलवे, रोड आदि में भी हज़ारों एकड़ ज़मीन उपयोग में लायी जायेगी।

कंपनी के पक्ष में माहौल बनाने के लिए सरकार एवं कंपनी का दावा है कि पोस्को कंपनी के इस प्रोजेक्ट से लगभग 13000 लोगों को सीधे तौर पर और 35000 लोगों को अन्य तरीकों से रोज़गार मिलेगा। इस तरह के पिछले दौर के दावों की असलियत से लोग अच्छी तरह से वाकिफ हैं।

इस प्रोजेक्ट के केवल स्टील प्लांट से तीन पंचायतों धिंकिया, नुआगांव एवं गोविंदपुर के 11 गांव विस्थापित होंगे, जिससे सीधे तौर पर लगभग 4000 परिवारों की 30000 आबादी चपेट में आयेगी। जटाधारी पर प्रस्तावित पोर्ट से लगभग 20,000 लोग विस्थापित होंगे।

सुंदरगढ़ एवं क्योंझर की सीमा पर स्थित 8 पंचायतों के लगभग 50 गांवों जो खण्डधार पहाड़ियों के 10 किमी की सीमा में स्थित हैं इस प्रोजेक्ट की माइनिंग जो 6000 हेक्टेयर में होगी से प्रभावित होंगे। जिसमें तालबहाली, कुलीफोस, फुलजर, हलदी कुदाई, सेसकेकला, भोतुडा, खुटेंगा और कोइडा पंचायतें शामिल हैं। कटक के जोबरा महानदी बैराज से कंपनी पानी लेगी जिससे पीने के पानी के संकट से जूझ रहे कटक तथा भुवनेश्वर शहरों में पानी का संकट और गहरायेगा साथ ही साथ जगतसिंहपुर, केन्द्रपाड़ा, जसपुर, पुरी जिलों में सिंचाई के पानी का अभाव हो जायेगा। जटाधारी मुहाने पर प्रस्तावित पोर्ट से नदी का प्रवाह बाधित होगा, नदी में सिल्ट इकट्ठा होगा, जल जमाव होगा, बाढ़ के खतरे बढ़ जायेंगे, तटीय क्षेत्रों के वन नष्ट हो जायेंगे जिससे समुद्री साइक्लोन के खतरे बढ़ जायेंगे, पारादीप स्थित पोर्ट नष्ट हो जायेगा।

पोस्को विरोधी आंदोलन की शुरूआत एम.ओ.यू. पर हस्ताक्षर होने (22 जून 2005) के बाद जगतसिंहपुर जिले की कुजंग ब्लाक की तीन पंचायतों ढिंकिया, नुवागाँव तथा गढ़कुजंग जो पोस्को कंपनी के प्लांट की वजह से प्रभावित होने जा रहे थे के निवासियों की तरफ से ‘पोस्को क्षतिग्रस्त संघर्ष समिति’( पी.के.एस.एस.) नामक समिति बनाकर आरंभ हुआ।

पोस्को कंपनी की योजना के विरोध में आंदोलन पर विचार विमर्श के लिए वामपंथी दलों, सामाजिक संगठनों, पर्यावरणविदों, वैज्ञानिकों, पत्रकारों, अध्यापकों, मज़दूर संगठनों, अन्य राजनीतिक दलों जिसमें सी.पी.आई. महासचिव का. ए.बी. बर्द्धन तथा सी.पी.एम. महासचिव का. प्रकाश करात भी मौजूद थे, एक सम्मेलन का आयोजन किया गया। पोस्को प्रतिरोध संग्राम समिति (पी.पी.एस.एस.) का गठन किया गया। सीपीआई राज्य कमेटी के सदस्य का. अभय साहू जो ढिंकिया के पास के ही निवासी हैं ने इस संग्राम समिति की अगुवाई स्वीकार की।

आगे चलकर जब पोस्को क्षतिग्रस्त संघर्ष समिति के कुछ सदस्य कंपनी के पक्ष में कुछ बातें करने तथा प्रचार करने लगे तो पोस्को प्रतिरोध संघर्ष समिति ने आंदोलन की बागडोर अपने हाथ में ली। पोस्को विरोधी संघर्ष पी.पी.एस.एस. की अगुआई में आज भी मुस्तैदी से जारी है तथा तमाम तरह के षड्यंत्रों, हमलों का सामना करता हुआ आगे बढ़ रहा है। इस आंदोलन की अगुआई सी पी आई के हाथों में है परंतु कांग्रेस का एक खेमा तथा बी.जे.डी. के कुछ लोग भी इस आंदोलन के साथ डटे हैं। हालाँकि कांग्रेस, बी.जे.डी. का नेतृत्व तथा बहुमत कंपनी के ही साथ है। यहां पर माओवादी नहीं हैं।

पटना, महाड़व तथा ढिंकिया में जनता द्वारा कायम ‘चेक गेट‘, जटाधारी मुहाने पर जमा मिट्टी को जन सहयोग से हटाकर जल जमाव समाप्त करना, पुलिस फोर्स को इलाके से बाहर करवाना, स्कूलों को फोर्स से खाली करवाना, आंदोलन को एकजुट रखना, ओडिशा के लगभग सभी जन संघर्षों का समर्थन मिलना तथा धीरे धीरे क्षेत्र में कंपनी समर्थकों की तादाद कम करना जैसी कामयाबियाँ इस आंदोलन के साथ हैं।
तमाम कातिलाना हमलों, दलालों के षड्यंत्रों तथा आंदोलन के नेता का. अभय साहू की कई बार की गिरफ्तारी के बाद भी यह संघर्ष जारी है।


यह आंदोलन प्रमुखतया 4 स्थानों पर जारी है –

  • प्लांट के खिलाफ: ढिंकिया, नुवागांव, गढ़कुजंग पंचायतों के 8 गांवों में पी.पी.एस.एस. की अगुआई में।
  • खण्डधार माइन्स (माइनिंग के खिलाफ): यहां पर बी.जे.पी. तथा सी.पी.आई. ज़्यादा हैं अभियान असंगठित है। बी.जे.पी. से जुड़े सरपंचों को कंपनी ने खरीद लिया है। यह पूरा पहाड़ जिसमें झरने हैं, पर्यटन स्थल हैं, 40 आदिवासी गाँव हैं उसे कंपनी को माइनिंग के लिए सरकार देने जा रही है। पी.पी.एस.एस. यहां तीसरा ग्रुप खड़ा करके आंदोलन को संगठित करने के प्रयास में लगा है।
  • जोबरा महानदी बैराज से कंपनी को पानी देने के खिलाफ संघर्ष (पानी के कब्ज़े के खिलाफ): इससे कटक, जगतसिंहपुर, केन्द्रपाड़ा, जसपुर, पुरी तथा भुवनेश्वर प्रभावित होंगे। कटक में जल सुरक्षा समिति का गठन जिसमें सी.पी.आई., सोशलिस्ट शामिल हैं। परंतु अन्य जिलों में अभी इस तरह की समितियाँ नहीं बन पायी हैं। अभी इन जिलों के किसानों को संगठित  करना है।
  • जटाधारी बचाओ (पोर्ट के खिलाफ) : यहां पर भी आंदोलन में सी.पी.आई. अगुआई में है- कांग्रेस के लोग भी हैं। पोर्ट बनने से समुद्र का मुहाना बंद होगा। तीस हज़ार मछुआरे तथा किसान प्रभावित होंगे। 30 गांवों में कमेटियाँ बन गयी हैं। धरना प्रदर्शन जारी है परंतु बहुत सक्रिय प्रतिरोध-विरोध नहीं हो पा रहा है।

असलियत यह है कि लोग अभी भी इस संयंत्र का जोरदार विरोध कर रहे हैं। भारी दमन के बावजूद  आंदोलन जारी है।

अब सरकार तथा पोस्को द्वारा स्टील प्लांट की क्षमता को 12 एमटी से 8 एमटी कर देना इसके लिए 4004 एकड़ भूमि की जरूरत को घटा कर 2700 एकड़ करना, इसी कड़ी में ताजा कदम है। सरकार कह रही है कि वह पोस्को के लिए निजी भूमि का अधिग्रहण नहीं करेगी। प्लांट के साइज को कम करना तथा निजी भूमि का अधिग्रहण न करना, इसका कोई मतलब नहीं रह जाता। क्योंकि इसमें अभी भी बड़ी मात्रा में सरकारी जमीन का हथियाया जाना शामिल है। जिस पर गांव  वालों का वनाधिकार कानून 2006 के तहत कानूनी अधिकार है। स्थानीय लोग सरकार तथा पोस्को की इस चतुरता को अच्छी तरह से जानते हैं कि वह उपजाऊ कृषि भूमि को धीरे-धीरे हथियाकर आत्मनिर्भरता तथा टिकाऊ अर्थव्यवस्था को नष्ट कर देंगे। प्रशासन बीते सालों में एक एकड़ भूमि का अधिग्रहण भी नहीं कर पाया है और ना ही कर पायेगा।

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