परमाणु सुरक्षा के मसले पर लीपापोती बंद करे सरकार
रावतभाटा में आईएईए की टीम रिएक्टर संख्या 4 और 5 का ही निरीक्षण कर रही है जबकि जून में रिएक्टर 5 में दुर्घटना हुई थी जिसमें 34 ठेका-श्रमिकों को घातक ट्रीशियम रिसाव के शिकार हुए थे.
परमाणु संयंत्र में काम करने वाले ठेका श्रमिक, जिन्हें कोई स्वास्थ्य सुविधा हासिल नहीं है, पूरे परमाणु उद्योग का सबसे बेबस हिस्सा हैं. परमाणु ऊर्जा कार्पोरेशन के सीनियर इन्हें रिएक्टर के असुरक्षित हिस्सों में काम करवाते हैं और विकिरण लगने पर उसे छुपाने के लिए दबाव डालते हैं, यह तथा कई स्वतंत्र स्रोतों से उजागर होता रहा है.
रावतभाटा में हमें पता चला है की इन ठेका-श्रमिकों को आईएईए की टीम का दौरा खत्म होने तक छुट्टी पर जाने या सिर्फ रात की शिफ्ट में काम करने पर बाध्य किया गया है. रावतभाटा के ये ठेका-श्रमिक लंबे अरसे से उचित मजदूरी, स्वास्थय सुविधाओं और रेडियेशन की स्वतंत्र जांच के लिए संघर्ष कर रहे हैं.
सौम्य दत्ता ने बताया कि डॉ. सुरेन्द्र गाडेकर तथा डॉ. संघमित्रा गाडेकर द्वारा रावतभाटा संयत्र के निकटवर्ती गांवों में किए गए स्वास्थय सर्वे में इस पूरे इलाके में कैंसर, ल्यूकीमिया, अपाहिजपन जैसी घातक बीमारियाँ बहुतायत में पाई गईं. लेकिन इस अध्ययन पर परमाणु ऊर्जा कारपोरेशन और सरकार ने निर्मम चुप्पी साध रखी है.
भारत सरकार ने जापान की फुकुशिमा दुर्घटना के बाद अन्य देशों की तरह कोई अपने देश के रिएक्टरों में सघन व स्वतंत्र सुरक्षा जांच नहीं करवाई. इन संयंत्रों को चलाने वाले परमाणु ऊर्जा कारपोरेशन ने खुद ही जल्दीबाजी में समितियां गठित कर अपने संयंत्रों को सुरक्षित घोषित कर दिया. भारत में परमाणु सुरक्षा की निगरानी के लिए जिम्मेदार परमाणु सुरक्षा नियमन बोर्ड ने भी महज खानापूर्ति की और बहुत ही सामान्य किस्म के सुझाव दे दिए. हम आपसे अनुरोध करते हैं की भारत सरकार पर परमाणु बिजलीघरों की सुरक्षा की स्वतंत्र जांच कराने के की मांग करें.
पी के सुन्दरम ने कहा कि हम आईएईए टीम से यह भी मांग करते हैं कि वह भारत में ऐसी विश्वसनीय सुरक्षा जांच के पूरा होने तक कूडनकुलम(तमिलनाडु), जैतापुर(महाराष्ट्र), मीठी विर्डी(गुजरात), चुटका(मध्य प्रदेश), फतेहाबाद(हरियाणा) और कोवाडा (आन्ध्र प्रदेश) जैसी जगहों पर आम लोगों की मर्जी के खिलाफ लगाए जा रहे नए संयंत्रों पर रोक लगाने की अनुशंसा करे.
भारत का परमाणु ऊर्जा विभाग अपने संयंत्रों से उत्सर्जित विकिरण की मात्रा पर कोई सूचना सार्वजनिक नहीं करता, न ही यह अणु-बिजलीघरों के आस-पास की जनसंख्या पर होने वाले प्रभावों का कोई अध्ययन करवाता है. उदाहरण के लिए, हैदराबाद स्थित परमाणु ईंधन प्रकल्प के नजदीक अशोक नगर कालोनी में सरकारी तौर पर जमीन का पानी पीने की मनाही है, वह इतना प्रदूषित हो चुका है. लेकिन फिर भी पूरा अणु ऊर्जा विभाग इन तथ्यों को छुपाने और इनसे अनजान बने रहने की हरसंभव कोशिश करता है, जिससे आम लोगों का जीवन खतरे में पड़ा हुआ है.
फुकुशिमा दुर्घटना के बाद दुनिया भर में परमाणु ऊर्जा को लेकर गंभीर सवाल उठे हैं और ज़्यादातर देशों की सरकारों ने स्वतंत्र जांच करवाई है जिसके फलस्वरूप कई जगहों पर परमाणु रिएक्टर बंद किये जा चुके हैं. इस पूरे परिदृश्य में हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रावतभाटा में आईएईए की टीम की यह जांच भारत में परमाणु संयंत्रों की सुरक्षा पर महज लीपापोती की एक कारवाई बनाकर न रह जाए.