संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad
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राज्यवार रिपोर्टें

सुनिये क़रीब आती बदलाव की आहट…

श्रमिक के चुनिंदा शेरउम्र की तीन चौथाई सदी पार कर चुके शायर कमल किशोर ‘श्रमिक’ कानपुर में ही पैदा हुए, यहीं पले-बढ़े और यहीं से कानपुर के बाहर दूर-दूर तक जाने गये। वामपंथी आंदोलनों में सक्रिय रहे श्रमिक जी किदवई नगर स्थित श्रमिक बस्ती में रहते हैं- गोया बिन कहे कहते हैं कि मैं जिनके बीच रहता हूं और जिनकी तरह जीता हूं, मैं उन्हीं की बात रखता हूं। पेश…
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पेंच व्यवर्तन परियोजना: संघर्ष जारी और जरुरी हैं – मेधा पाटकर

छिंडवाड़ा जिले में पेंच नदी पर 41 मीटर का बड़ा बांध केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ जी के चुनाव क्षेत्र में राज्य और…

जितना ऊंचा विकास का पहाड़, उतनी गहरी बदहाली की खाई

इस व्योपारी को प्यास बहुत हैगिर्दा उत्तरांचल में हुए तमाम जन आंदोलनों की सांस्कृतिक आवाज़ थे- चाहे वह नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन रहा हो या फिर अलग उत्तराखंड राज्य का आंदोलन। वे एक साथ बहुत कुछ थे- नाटककार, संगीतकार, गायक, लोक परंपराओं के विशेषज्ञ, जन कवि... और सबसे पहले एक बेहतर इंसान। कोई दो साल पहले उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा और अपने पीछे पूरे…
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पदयात्रा : जनद्रोही क़ानूनों और राज्य दमन के ख़िलाफ़, पोटका से राँची राजभवन

पदयात्रा का कार्यक्रम 02 नवम्बर 2012 : पोटका से आरम्भ रोलाडीह, हाता चौक में जन सभा गीतिलता- कुदादा वन…

पेंच व्यपवर्तन विरोधी आंदोलन: आंदोलनकारियों पर कसा जिला प्रशासन का शिकंजा

देश के नागरिकों से अपील डॉ. सुनीलम को जेल भेजने के बाद जिला प्रशासन ने पुरे छिंदवाडा क्षेत्र में धारा 144 लागू कर…

लूट के महायज्ञ में प्राकृतिक संसाधनों और आदिवासियों की बलि

हरियाली के आखेटक इलाहाबाद की ग़रीब बस्तियों के वाशिंदों के बीच अंशु मालवीय उनके संघर्षों के जुझारू साथी के तौर पर जाने जाते हैं लेकिन हिंदीभाषी इलाक़ों में उनकी पहचान जन पक्षधर युवा कवि की है। वे अपनी रचनाओं में वंचित और उत्पीड़ित जनता की आहों और उसकी मुक्ति की चाहतों की धड़कती तसवीर खींचते हैं। गुजरात में मुसलमानों पर हुई राज्य प्रायोजित बर्बर हिंसा…
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दयामनी बारला: 3 अगस्त 2011 को भूमि अधिग्रहण के विरोध में जंतर मंतर पर पर दिया गया…

यह विडियो सामाजिक कार्यकर्ता दयामनी बारला के भाषण का है जो (गुज़री 16 अक्टूबर से न्यायिक हिरासत में रांची जेल…

विकास का नहीं, विनाश का राज्योत्सव

शहीद शंकर गुहा नियोगी संघर्ष और निर्माण के महान रचनाकार थे। उन्होंने ‘नवा भारत बर नवा छत्तीसगढ़’ का सूत्र वाक्य गढ़ते हुए यह नारा दिया था कि ‘हम बनाबो नवा पहिचान, राज करही मजदूर किसान।‘ मेहनतकश जनता पर जारी जोर-जुलुम के इस बर्बर और वीभत्स दौर में यह नारा आज भी बेहतरी की चाहत रखनेवालों के लिए प्रकाश स्तंभ सरीखा है। भिलाई में 28 अगस्त 1991 को आयोजित जन…
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