कमर्शियल कोल माइनिंग और एमडीओ कॉर्पोरेट लूट का नया रास्ता : कोयला खदानों के आवंटन की प्रक्रिया में हो रही लूट का खुलासा
सरकारी कंपनियों की मिलीभगत से कोयला खदानों का पूरा विकास एवं संचालन पिछले दरवाज़े से मोदी सरकार के करीबी कॉरपोरेट घरानों को सौंपने का तरीका
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन से प्रियांशु और आलोक शुक्ला ने गहन अध्यन करके “कमर्शियल कोल माइनिंग और एमडी़ओ कार्पोरेट लूट का नया रास्ता” नाम से एक पुस्तिका प्रकाशित की है.जिसमें कोयला खदानों के आवंटन की प्रक्रिया में हो रही लूट को सिस्टमेटिक तरीके से समझाया गया हैं. छत्तीसगढ़ के संदर्भ में कोयला खदानों के आवंटन और लूट का विस्तार से लिखा गया हैं, कि कैसे केन्द्र की मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के ठीक विपरीत नीतियां बनाकर देश के पूरे कोयले को अपने चहते कारपोरेट अदानी को सोंपने का षड्यंत्र रचा हैं.
हमारी कोशिश है कि किश्तों में विषय बार सामग्री आप तक पहुचाई जावे ताकि फील्ड में काम कर रहे कार्यकर्ताओं को कोयला घोटाले और गैर संवैधानिक कार्यकलापों की जानकारी मिल सके. तो इसका पहला अंक हैं “घोटाले का नया प्रारूप – लूट का एमडीओ माँडल”
खदानों की नीलामी मात्र एक छलावा है और ज्यादातर खदानों का आबंटन गैर प्रतिस्पर्धात्मक अलोटमेंट प्रक्रिया से विभिन्न सार्वजनिक कंपनियों को किया गया । अगर इन आवंटित खदानों के क्रियान्वयन प्रयासों से जुड़े तथ्यों पर नजर डालें , तो ऐसा प्रतीत होता है की अलोटमेंट प्रक्रिया से मानो सरकार ने एक पिछली दरवाज़ा खोल दिया है । जिससे चुनिंदा निजी कंपनियां बिना नीलामी प्रक्रिया में फंसे भरपूर निजी लाभ उठा सके ।
इस बार सरकार ने एक नए कानूनी प्रक्रिया का निजाद किया है जिसे एम . डी . ओ . ( MD0 ) अर्थात माइन डेवलपर कम ऑपरेटर कहा जाता है । इस रास्ते से सरकारी कंपनियों की मिलीभगत से कोयला खदानों को पूरा विकास एवं संचालन पिछले दरवाज़े से सरकार के करीबी कॉरपोरेट घरानों को सौंपा जा रहा है और पारदर्शी नीलामी प्रक्रिया की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं ।
ऐसे में अदानी जैसी कंपनियां , जिन्हें 2015की नीलामी प्रक्रिया में कुछ खास सफलता नहीं मिली थी , वह भी देश में सबसे बड़े कोयला खदानों के मालिक बनने का सपना देखने लगी हैं और इस दिशा में तेजी से अग्रसर हैं । इसी रास्ते से छत्तीसगढ़ की अधिकाँश कोयला खदानें विभिन्न भाजपा शासित राज्य सरकारों की मिलीभगत से अदानी की गोद में दे दी गई हैं जिसमें केंद्र की मोदी सरकार और छत्तीसगढ़ राज्य की रमन सरकार की भूमिका संदेहास्पद हैं ।
निजी कंपनियों का MD0 के ज़रिये पिछले दरवाज़े से प्रवेश :
जिन भी सरकारी कंपनियों को कोयला खदानें आवंटित की गयी है . लगभग सभी ने या तो । निजी कंपनियों की एम . डी . ओ . (MD0) के रूप में नियुक्ति कर दी हैं या फिर वो इस प्रक्रिया में हैं । ( MDO ) यानि माइन डेवलपर कम ऑपरेटर कोयला खदान के विकास एवं संचालन के लिए ज़िम्मेदार होता है , जिसमें सभी पर्यावरणीय स्वीकृतियां लेना , भूमि अधिग्रहण करना , माइन के संचालन के लिए अन्य कांट्रेक्टर की नियुक्तियां , कोयला परिवहन , इत्यादि सभी खनन सम्बंधित गतिविधियाँ शामिल हैं ।
अतः , इस रास्ते से कोयला खदान का पूरा नियंत्रण निजी कंपनियों के पास पहुँच जाता है , जबकि दस्तावेजों में जिम्मेदारियां सरकारी कंपनी के पास रह जाती हैं । कहने को यह ( MDO ) केवल एक ठेकेदार है लेकिन इस ठेके के मूल स्वरूप ( जिसमें लम्बी अवधि तक बाध्य उपबंध , कार्यों – जिम्मेदारियों का बंटवारा , वित्तीय अधिकार , इत्यादि ) से पूरी खदान का वास्तविक नियंत्रण ही ( MDO ) के पास चला जाता हैं । यह मॉडल ना केवल प्रतिस्पर्धी नीलामी से बचाकर निजी कंपनियों को कोयला खदानें आवंटित करने का पिछले दरवाज़े का रास्ता है , बल्कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के कोलगेट केस में 2014 के निर्णय की मूल भावना की भी घोर अवमानना है । सितम्बर 2014 को अपने ऐतिहासिक निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने उस प्रक्रिया पर भारी सवाल उठाते हुए , गैरकानूनी करार दिया था , जिस प्रक्रिया से सरकारी माइनिंग कंपनियां निजी कंपनियों के साथ जॉइंट वेंचर ( संयुक्त उपक्रम ) बना लेते थे .
जिससे माइनिंग का लाभ निजी कंपनियों के पास चला जाता था । सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा था । की ऐसी प्रक्रिया पिछले दरवाजे से निजी कंपनियों को लाभ दिलाने का काम कर रही है और इस जरिये सरकार मनमाने रुप से चुनिंदा कंपनियों को लाभ पहुंचा रही है । एम . डी . ओ . मॉडल पूरी प्रतिस्पर्धी नीलामी प्रक्रिया का भी मजाक उड़ा देता है और उसकी प्रभावशीलता को ही खत्म कर देता है क्यूकि कंपनियों को अब नीलामी प्रक्रिया के बिना ही मनमानी दानें आवंटित की जा सकती हैं ।
सोचने की बात है कि जिन निजी कंपनियों ने खदानों की नीलामी प्रक्रिया में भाग नहीं । लिया , वो अब MD0 के ठेके लेने में इतने उत्साहित क्यूं हैं । इसका जवाब शायद आबंटन MD0 प्रक्रिया के अधिकतम लाभ और जोखिम की रूपरेखा में ही है । MD0 प्रक्रिया में निजी कंपनियों को नीलामी प्रक्रिया के मुकाबले कई लाभ है :
1 . कम दामों पर खदानों का आवंटन –
इस रास्ते से निजी कंपनियां राज्य सरकार की कम्पनियों से लाभ बंटवारे के सौदे कर सकते हैं , जोकि नीलामी से मिली खदानों से मिले लाभ से कहीं अधिक फायदेमंद होते हैं । यह इसलिए संभव है क्यूंकि अलोटमेंट रूट से मिली खदानों पर सरकारी कंपनी को मात्र 100 रुपये प्रति टन की रोयल्टी देनी पड़ती है जबकि प्रतिस्पर्धी नीलामी में यह रोयल्टी की दर 3500 रूपये प्रति टन तक भी जा सकती है । ऐसे में मुनाफे का महत्वपूर्ण हिस्सा निजी कंपनियों के पास चला जाता है ।
2 . खदान विकास के जोखिम और अग्रिम भुगतान की ज़िम्मेदारी का स्थानांतरण –
इस रास्ते में खदान विकास संबंधित सभी जोखिम राज्य सरकार की आवंटी कंपनियों को उठाने पड़ते हैं जबकि नुक्सान के समय निजी कंपनी परियोजना से बचकर निकल सकता है । साथ ही खदान के आबंटन के समय अग्रिम भुगतान , जिसमें खदान के कार्यकाल में होने वाले मुनाफे के 10 प्रतिशत हिस्से को कोयला ब्लॉक धारक राज्य सरकार को देनी होती है , की ज़िम्मेदारी भी सार्वजनिक कंपनी की ही होती है । ऐसे में कई करोड़ो के अग्रिम भुगतान से MDO कंपनी बच सकती हैं ।
3 . पर्यावरणीय स्वीकृतियाँ , ग्राम सभाओं की सहमती और अन्य स्वीकृतियों की प्रक्रिया में राज्य सरकारों को फंसाना –
खदानें राज्य सरकार की कंपनी को आवंटित होती हैं जिसके लिए ये कंपनियां बड़ी रकम का निवेश करती हैं , इन परियोजनाओं के लिए ज़रूरी सभी स्वीकृति प्रक्रियाओं में ( जिनमें वैसे भी राज्य सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है ) राज्य सरकार पूरे प्रशासनिक बल का इस्तेमाल करती हैं । जिससे ऐसे में निजी MDO को स्वीकृतियाँ मिलना आसान हो जाता है ।
मनमानी खदानों का आवंटन –
बिना प्रतिस्पर्धा के निजी कंपनियां अपनी मनचाही खदानों पर नियंत्रण पा सकती है जबकि नीलामी प्रक्रिया में ऐसा करना थोड़ा मुश्किल रहेगा । साथ ही इस रास्ते से निजी कंपनियों को बड़ी खदानों का भी संचालन मिल जाता है जोकि सामान्यतः केवल सरकारी कंपनियों के लिए ही सुरक्षित रखी गई हैं । ।
एमडीओ कंपनियों को बाज़ारदर से अधिक की राशि का भुगतान –
इस प्रक्रिया में ( MD0 ) धारक निजी कंपनी को उत्खनित कोयले का एक निश्चित तैयार खरीददार भी स्वतः मिल जाता है । यह भी देखा गया है कि ( MD0 ) बाजार से अधिक दामों पर कोयला राज्य सरकार की बिजली कंपनियों को बेच देता है । मार्च 2018 में दी कारवां मैगज़ीन में छपे लेख के अनुसार केवल एक खदान परसा ईस्ट केले बासेन से ही । इसका MDO धारक अदानी बाजार से अधिक दामों पर कोयला वेचकर 6000 करोड़ रूपये का अवैध लाभ उठा रहा है ।
6 . नीलामी की पारदर्शी प्रक्रिया से बचना
( MDO ) उपबंध एक विकेन्द्रित प्रक्रिया है जिसकी पारदर्शिता नीलामी के मुकाबले काफी कम रहती हैं । आवंटी कंपनियां मनमाने रूप से ( MDO ) टेंडर की शर्ते निर्धारित कर सकते हैं । एक सूचना के अधिकार के अंतर्गत दायर आवेदन से पता चला है कि कोयला मंत्रालय ( MD0 ) साथ ही इस धारकों से किये उपबंध की शर्ते तो दूर उनके नाम तक नहीं पूछता । साथ ही इस ( MD0 ) दस्तावेज़ और उसकी शर्तो को पूर्णतया गोपनीय रखा जा रहा है । ।
एमडीओ मॉडल से छत्तीसगढ़ में खनिज साधन की लूट
छत्तीसगढ़ में लगभग 96 प्रतिशत कोयला संसाधन इसी गैर – प्रतिस्पर्धात्मक अलोटमेंट रुट की प्रक्रिया से विभिन्न भाजपा शासित राज्यों की सार्वजनिक कंपनियों को आवंटित कर दिया । गया है । इनमें से लगभग सभी ने या तो पहले से ही ( MDO ) नियुक्त कर दिए हैं या फिर इनकी नियुक्ति की प्रक्रिया में अग्रसर हैं । अकसर यह कंपनियां टेंडर में ऐसी शर्ते डालते हैं । जिससे ये ठेके मनमाने ढंग से चुनिन्दा कंपनियों को ही दिए जा सकें । छत्तीसगढ़ में इस प्रक्रिया से आवंटित एक भी खदान को कोई सरकारी कंपनी स्वयं चलाने का प्रयास भी नहीं कर रही । ऐसे में यह बिलकुल आश्चर्यजनक नहीं है की अदानी जैसी कंपनियां , जिन्हें 2015 की नीलामी प्रक्रिया में कछ खास सफलता नहीं मिली थे , वह 2015 से ही देश में सबसे बड़े कोयला खदानों के मालिक बनने का सपना देखने लगे थे । 2016 से ही अपने कॉर्परिट प्रेजेंटेशन में ।
अदानी ने 150 मिलियन टन प्रतिवर्ष कोयला उत्खनन का लक्ष्य रखा था जबकि इससे पहले । उसे उत्खनन का कोई खास अनुभव नहीं था और नीलामी में भी उसने विशेष रुचि नहीं दिखाई दी । छत्तीसगढ़ में अधिकाँश MD0 अदानी को ही मिले हैं । और प्रदेश की रमन सरकार इसी MDO को सारी स्वीकृतियाँ उपलब्ध कराने और सारी गड़बड़ियों को नज़रंदाज़ कराने में पूरी शासन – व्यवस्था का ज़ोर लगा रही हैं ।
निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाने की इस अद्भुत स्कीम
इसे छुपाये रखने के लिए सभी राज्य सरकार की सार्वजनिक कंपनियां इस MDO दस्तावेज़ और उसकी शतों को पूर्णतया गोपनीय रखती हैं और लगातार MDO अनुबंध की कॉपी की माँग को केवल यह कह कर खारिज कर देती हैं की यह केवल एक कमर्शियल अंरेजमेंट है जिसका जनहित से कोई लेना – देना नहीं है । आबंटन के आंकड़ों पर नज़र डालें तो ऐसा प्रतीत होता है । कि यह पूरी प्रक्रिया ही एक सोची समझी चाल के तहत एक मात्र कॉर्परिट समूह की । महत्वकांक्षाओं की पूर्ती के लिए ही बनाई गई हैं ।
इसी सन्दर्भ में मार्च 2018 में कारवां मैगज़ीन ने एक बड़ी कवर स्टोरी प्रकाशित की जिसका शीर्षक / कोलगेट 2 . 0 था और जिसमें परसा ईस्ट केते बासेन कोयला खदान में कोयले के बड़े घोटाले का आरोप लगाया था । दी कारवां मैगज़ीन को मिली जानकारी के अनुसार केवल एक खदान परसा ईस्ट केते बासेन से ही अनी बाजार से अधिक दामों पर कोयला बेचकर 6000 करोड़ रूपये का अवैध लाभ उठा । रहा है । इसी को अगर छत्तीसगढ़ में आवंटित बाकी खदानों की परिदृष्टि में देखें तो यह पूरा अवैध लाभ का प्रकरण कहीं बहा सिद्ध होगा । लेकिन इन आरोपों पर कोई जवाब देने की जगह और उस प्रक्रिया में घोटाले की तहकीकात करने के बजाय , सरकार ने यह क्रम आगे बढ़ा दिया । है और अन्य खदानों के MD0 करने के लिए टेंडर निकाल दिए हैं ।
2015 के बाद से आवंटित खदानों का विवरण
यदि आंकड़ों पर एक नज़र डालें तो छत्तीसगढ़ में अभी तक अडाने को 5 कोयला ब्लॉकों के MDO मिल चुके हैं जिनमें परसा ईस्ट , केते बासेन , परसा , केते एक्सटेंशन , और गारे पेलमा – 3 शामिल हैं । गारे पेलमा – 2 की MD0 प्रक्रिया पिछले साल शुरू हुई थी और यहाँ भी स्थानीय लोगों की सूचना के अनुसार अदानीको ही MDO का ठेका मिलने की संभावना है । हालांकि अब तक इसकी सार्वजनिक घोषणा हुई है । इसके अलावा अदानी को उड़ीसा में तालाबिरा – I और III खदान का भी MDO मिल चुका है । कुल मिलाकर अदानीको अब तक77 . 1 मी . टी . पी . ए . ( MTPA ) की खदानों के MD0 ठेके मिल चुके हैं जो कि पूरे देश भर में नीलामी प्रक्रिया से आवंटित खदानों की क्षमता से बहुत अधिक है।
इसके साथ ही अभी छत्तीसगढ़ में गिधमुड़ी , पतुरिया एवं मदनपुर साउथ के MD0 प्रक्रिया जारी है जहां अदानी जार शोर से स्थानीय कायों को आगे बढ़ाता दिख रहा है । यदि छत्तीसगढ़ में बाकी बची खदाना के MDO ठेके भी अदानी को मिल जाते हैं तो वह लगभग 112 मी . टी . पी . ए . ( MTPA ) की खदानों का मालिक बन जाएगा और जल्द ही एस ई सी एल . ( SECL ) ( जिसकी अपनी क्षमता । पर पहुँचने में कई दशक लग चुके हैं ) को भी पीछे छोड़ देगा ।
छत्तीसगढ़ राज्य के सम्बन्ध में एम . डी . ओ . के परिणाम
रॉयल्टी भुगतान राज्य सरकार को मिलने वाले खनिज राजस्व का प्रमुख हिस्सा होता है । ऐसे में । खनिज आबंटन के लिए अलोटमेंट रूट को चुनना खनिज राजस्व की क्षमता को बहुत कम कर देता है जबकि इसका कुछ फायदा उस राज्य सरकार को मिलता है जिसे यह खुदान आवंटित हुई । है । देखा जाए तो इस पूरी प्रक्रिया का सबसे बड़ा नुकसान छत्तीसगढ़ राज्य पर ही पड़ा है जहाँ राज्य में स्थित कोल ब्लॉकों का एक बड़ा हिस्सा अन्य राज्यों को आवंटित किया गया है ।
हालांकि राज्य में स्थित 5 कोयला खदानों को नीलामी के माध्यम से दिया गया , ये सभी खदानें बहुत छोटी थी जिनकी कुल क्षमता मात्र 5.4 मिलियन टन प्रतिवर्ष है और इनमें कुल माइन रिज़र्व 244 मिलियन टन ही हैं । लेकिन इन खदानों की नीलामी से यह तो सिद्ध हो गया की छत्तीसगढ़ राज्य में कोयला की रॉयल्टी की दर औसतन 2400 रूपये प्रति टन है । इस महत्वपूर्ण खनिज राजस्व की क्षमता के बावजूद , राज्य के अधिकाँश बड़ी खदानों को कौड़ियों के भाव पर विभिन्न राज्य सरकारों को दे दिया गया । जैसा की राजस्थान सरकारी की कंपनी को आवंटित तथा अदानी द्वारा संचालित ‘ परसा ईस्ट केते बासेन खदान ‘ ही अपने आप में पूरी नीलामी हुए 5 खदानों से अधिक क्षमता की है – 15 मिलियन टन का प्रतिवर्ष उत्पादन तथा 450 मिलियन टन के कोयला रिज़र्व । इसी तरह गुजरात राज्य की सरकारी कंपनी को आवंटित गारे पेलमा सेक्टर – 1 खादान की वार्षिक उत्पादन क्षमता 21 मिलियन टन है और कुल रिज़र्व 900 मिलियन टन से भी अधिक हैं ।
नीलामी से मिले रोयल्टी और अलोटमेंट से मिलने वाले राजस्व में भारी कमी को देखते हए , छत्तीसगढ़ सरकार को कोशिश करनी चाहिए थी की या तो राज्य में स्थित इन सभी खदानों की प्रतिस्पर्धी नीलामी की जाए या फिर इनका आबंटन छत्तीसगढ़ राज्य की कंपनी की | ही किया जाए । लेकिन इसके बावजूद केवल 4 छोटी खदानों का , जिनमें कुल 600 मिलियन टन रिजर्व है , का ही आबंटन छत्तीसगढ़ मिनरल डेवलपमेंट कारपोरेशन ( CMDC ) को किया कि यह पूरी । गया है ।* कहने को तो राज्य सरकार इस प्रक्रिया में अपना पल्ला झाड़ सकती है आवंटन प्रक्रिया केंद्र सरकार द्वारा ही संचालित की गयी हैं ।
लेकिन विशेष बात यह है की सुप्रीम कोर्ट ने अपने 2014 के आदेश में यह भी स्पष्ट किया था की कोयला खदानों में आबंटन प्रक्रिया का संचालन राज्य सरकार की ही ज़िम्मेदारी है क्यूंकि पानिज संसाधन राज्य सरकार को ही संपदा है । इसके साथ यह भी देखना महत्वपूर्ण है की छत्तीसगढ़ में स्थित कुछ कोल ब्लाक अन्य राज्यों को केवल कमर्शियल माइनिंग के लिए आवंटित किये गए हैं जिनमें अंत – उपयोग को बिलकुल नज़रअंदाज किया गया है , जैसा की मदनपुर साउथ खदान आंध्र प्रदेश की सरकार को कमर्शियल माइनिंग के लिए दी गयी है ।
ऐसे में यह आश्चर्यजनक है की छत्तीसगढ़ सरकार ने इसका कुछ विरोध नहीं किया और अन्य राज्य सरकार , जोकि अपने आप में अमीर प्रदेश है , को अपने संसाधन से राजस्व लाभ लेने दिए । ऐसे में यह भी देखना आवश्यक है की छत्तीसगढ़ में स्थित अधिकाँश कोयला ब्लॉक पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील , जैव विविधता से परिपूर्ण , पूर्व आदिवासी बाहल क्षेत्रों में स्थित हैं । ऐसे में इनसे उत्पन्न पर्यावरणीय एवं सामजिक दुष्प्रभाव एवं लागत छत्तीसगढ़ राज्य सरकार की ही ज़िम्मेदारी है , जबकि खनिज सम्बंधित लाभ अन्य सरकारों को , और MD0 के माध्यम से निजी कंपनियों को मिल रहे हैं .
साफ है कि छत्तीसगढ़ में कोयला खदानों की पारदर्शी 1 = * ॥ r = 1 1 । खदानों की प्रतिस्पर्धी नीलामी की जाए या फिर इनका आबंटन छत्तीसगढ़ राज्य की कंपनी की | ही किया जाए । लेकिन इसके बावजूद केवल 4 छोटी खदानों का , जिनमें कुल 600 मिलियन टन रिजर्व है , का ही आबंटन छत्तीसगढ़ मिनरल डेवलपमेंट कारपोरेशन ( CMDC ) को किया कि यह पूरी । गया है । कहने को तो राज्य सरकार इस प्रक्रिया में अपना पल्ला झाड़ सकती है आधटन प्रक्रिया केंद्र सरकार द्वारा ही संचालित की गयी हैं ।
लेकिन विशेष बात यह है की सुप्रीम कोर्ट ने अपने 2014 के आदेश में यह भी स्पष्ट किया था की कोयला खदानों में आबंटन प्रक्रिया का संचालन राज्य सरकार की ही ज़िम्मेदारी है क्यूंकि खनिज संसाधन राज्य सरकार को ही संपदा है । इसके साथ यह भी देखना महत्वपूर्ण है की छत्तीसगढ़ में स्थित कुछ कोल ब्लाक अन्य राज्यों को केवल कमर्शियल माइनिंग के लिए आवंटित किये गए हैं जिनमें अंत – उपयोग को बिलकुल नज़रअंदाज किया गया है , जैसा की मदनपुर साउथ खदान आंध्र प्रदेश की सरकार को कमर्शियल माइनिंग के लिए दी गयी है । ऐसे में यह आश्चर्यजनक है की छत्तीसगढ़ सरकार ने इसका कुछ विरोध नहीं किया और अन्य राज्य सरकार , जोकि अपने आप में अमीर प्रदेश है , को अपने संसाधन से राजस्व लाभ लेने दिए । ऐसे में यह भी देखना आवश्यक है की छत्तीसगढ़ में स्थित अधिकाँश कोयला ब्लॉक पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील , जैव विविधता से परिपूर्ण , पूर्व आदिवासी बाहल क्षेत्रों में स्थित हैं । ऐसे में इनसे उत्पन्न पर्यावरणीय एवं सामजिक दुष्प्रभाव एवं लागत छत्तीसगढ़ राज्य सरकार की ही ज़िम्मेदारी है , जबकि खनिज सम्बंधित लाभ अन्य सरकारों को , और MD0 के माध्यम से निजी कंपनियों को मिल रहे हैं
साफ है कि छत्तीसगढ़ में कोयला खदानों की पारदर्शी नीलामी ती दूर एक ही कंपनी को सब कोयला सौंपा जा रहा है जिसमें राज्य सरकार की भूमिका संदेहयुक्त है । क्यूं रमन सरकार राज्य को हुई आर्थिक हानि पर चुमी साधे है और क्यूं छत्तीसगढ़ में कोयला आबंटन के लिए नीलामी प्रक्रिया का पालन करने के लिए केंद्र को पत्र नहीं लिखती ?
खदानों के अलोटमेंट प्रक्रिया से आबंटन और MD0 नियुक्ति प्रक्रिया का विश्लेषण :
इस अध्याय में प्रस्तुत आंकड़ों और चर्चा से साफ़ है की इस रास्ते से पक्षपात एवं क्रोनी कैपिटलिज्म को भी बढ़ावा मिलता है जिसके कई उदाहरण हमने कोलगेट घोटाले में देखे । हैं । कोयला खदानों के अलोटमेट रूट से आबंटन और उसके पश्चात निजी कंपनियों की MDO नियुक्ति की इस प्रक्रिया से कई गंभीर सवाल खड़े होते हैं । क्या इस प्रक्रिया से विवेकाधीन और मनमाने रूप से चुनिंदा कॉरपोरेट घरानों को बहुमूल्य राष्ट्रीय सम्पदा को कौड़ियों के भाव नहीं सौंपा जा रहा है ? और क्या इससे सुप्रीम कोर्ट के 2014 के आदेश और उसमें उठाये गए । निष्पक्षता और पारदर्शिता के मुद्दों का मज़ाक भर नहीं बन गया है ?
जब सरकार ने 2015 में दावा किया था की उसने एक अत्यंत सफल कोयला नीलामी प्रक्रिया की शुरुआत की है , तो फिर क्यूँ उससे अब मुंह मोड़ लिया ? और जब यह स्पष्ट है की प्रतिस्पर्धी नीलामी के रास्ते 31नीलामी ती दूर एक ही कंपनी को सब कोयला सौंपा जा रहा है जिसमें राज्य सरकार की भूमिका संदेहयुक्त है । क्यूं रमन सरकार राज्य को हुई आर्थिक हानि पर चुमी साधे है और क्यूं छत्तीसगढ़ में कोयला आबंटन के लिए नीलामी प्रक्रिया का पालन करने के लिए केंद्र को पत्र नहीं लिखती ? खदानों के अलोटमेंट प्रक्रिया से आबंटन और MD0 नियुक्ति प्रक्रिया का विश्लेषण : | इस अध्याय में प्रस्तुत आंकड़ों और चर्चा से साफ़ है की इस रास्ते से पक्षपात एवं क्रोनी कैपिटलिज्म को भी बढ़ावा मिलता है जिसके कई उदाहरण हमने कोलगेट घोटाले में देखे हैं ।
कोयला खदानों के अलोटमेट रूट से आबंटन और उसके पश्चात निजी कंपनियों की MDO नियुक्ति की इस प्रक्रिया से कई गंभीर सवाल खड़े होते हैं । क्या इस प्रक्रिया से विवेकाधीन और मनमाने रूप से चुनिंदा कॉरपोरेट घरानों को बहुमूल्य राष्ट्रीय सम्पदा को कौड़ियों के भाव नहीं सौंपा जा रहा है ? और क्या इससे सुप्रीम कोर्ट के 2014 के आदेश और उसमें उठाये गए । निष्पक्षता और पारदर्शिता के मुद्दों का मज़ाक भर नहीं बन गया है ? जब सरकार ने 2015 में दावा किया था की उसने एक अत्यंत सफल कोयला नीलामी प्रक्रिया की शुरुआत की है , तो फिर क्यूँ उससे अब मुंह मोड़ लिया ? और जब यह स्पष्ट है की प्रतिस्पर्धी नीलामी के रास्ते अधिक रोयल्टी मिलती है तो क्यूँ बहमुल्य राजस्व को व्यर्थ गंवाया जा रहा है ? और यह पिछला दरवाजा खोलने से क्या सरकार ने नीलामी का प्रमुख दरवाज़ा ही बंद नहीं कर दिया है । क्यूंकि जब आसानी से MD0 के माध्यम से खदान का नियंत्रण एवं संचालन मिल जाए , तो फिर कौन सी निजी कंपनी नीलामी में जोखिम उठाने की कोशिश करेगी ? क्यू पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण खदानों की नीलामी में नहीं उतारा जाता और उनका अलाटमेट रुट से आबंटन कर दिया जाता है ? क्या इसमें निजी कंपनियों को स्वीकृति ना मिलने से जोखिम के बचाने की साजिश तो ना समझा जाए ? और कोयला उत्पादन बढ़ाने की ऐसी क्या जल्दी है की उसमें अंत – उपयोग को भी ना देखा जाए और कमर्शियल माइनिंग के माध्यम से चाँद मुनाफे के लिए । वामूल्य संपदा का दोहन और पर्यावरण का विनाश कर दिया जाए ?
ऐसे में सवाल तो सरकार की पूरी कोयला आबंटन नीति और कोल माइंस ( विशेष उपबंध ) अधिनियम पर भी खड़े होते हैं । क्या यह नीति वाकई देश की ऊर्जा सुरक्षा के लिए बनाई गई है जैसा सरकार के शासकीय उपक्रम ने दावा किया था ? या फिर इससे मिलते राज्य सरकारों के खनिज राजस्व में कुछ इजाफे के मकसद से इस नीति को बनाया गया है ? या फिर कहीं इसका असल मकसद राज्य सरकार के हितों या पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभावों की अनदेखी कर केवल कुछ चुनिंदा कॉरपोरेट घरानों को मुनाफा पहुँचाना ही तो नहीं है ? .
स्पष्ट है की यह MD0 के जरिये छत्तीसगढ़ के कोयला संसाधनों की लूट में राज्य सरकार एक मूकदर्शी नहीं बल्कि सहयोगी या फिर सह – भोगी की भूमिका निभा रही हैं । क्यूँ सरकार इन MD0 अनुबंधों और उनकी वित्तीय शतों क सार्वजनिक नहीं करती ? MDO की । टेंडर प्रक्रियाओं में ऐसे कैसे प्रावधान हैं जोकि कॉर्परिट प्रतिस्पर्धा को कम कर केवल एक ही कंपनी को सारे टेंडर आवंटित करती रहती है ? इस पूरे प्रकरण से राज्य को होने वाली आर्थिक हानि पर क्यूं राज्य सरकार चुप्पी साधे है ? इस पूरे प्रकरण से लगता है की मनमाने रूप से चुनिंदा कॉरपोरेट घरानों को आबंटन में फायदा पहुंचाने का दौर फिर से वापस आ गया है ।
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