गुजरात : स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के आसपास के 14 आदिवासी गांवों की जमीन पर जबरन कब्ज़ा करने की कोशिश
लॉकडाउन के बीच गुजरात सरकार स्टैच्यू आफ यूनिटी के आसपास के 14 गांवों के आदिवासियों जबरन कर रही है गांवों से बाहर, आंदोलनरत आदिवासियों को पुलिस ने किया गिरफ्तार और नर्मदा जिले को कर दिया गया है सील…
गुजरात से दत्तेश भावसार की रिपोर्ट
गुजरात में नर्मदा जिले में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के आसपास की केवड़िया कॉलोनी विस्तार में विकास के नाम पर 14 गांव को जबरन खाली करा बाड़ लगाने पहुंची सरकारी टीमों और पुलिस वालों का आदिवासी समुदाय के लोगों ने विरोध किया। इस विरोध के चलते लगभग 100 आदिवासी नेताओं और आंदोलनकारियों को पुलिस ने शनिवार 30 मई 2020 को अपनी हिरासत में ले लिया। इनमें कांग्रेस के 8 विधायक शामिल हैं। आदिवासी राज्य सरकार द्वारा यहां बाड़ लगाए जाने का विरोध कर रहे हैं।
इस मामले में जनज्वार ने विधायक अनंत पटेल से बात की तो उन्होंने बताया कि आदिवासी समन्वय मंच और अन्य स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से आदिवासियों की जमीन छीनने के विरोध में जन आंदोलन खड़ा हुआ है। सरकार के निर्णय का विरोध करने पर नर्मदा जिले में और अन्य कई आदिवासी विधायकों को पुलिस ने धर दबोचा है, इनमें अनिल जोशियारा, पीडी वासव, चंद्रिकाबेन बारिया, पुनाभाई गमित, अमरसिंह भाई चौधरी, आनंद पटेल जैसे कई नेताओं को गिरफ्तार किया गया है। इस पूरी मुहिम के चलते नर्मदा जिले को भी सील कर दिया गया है, ताकि आंदोलनकारियों की मदद के लिए नर्मदा जिले तक कोई न पहुंच पाए और उनकी खबर भी जनता तक न पहुंच पाए।
यह गतिविधियां पिछले कई दिनों से चल रही हैं और आदिवासियों को अपने जल और जमीन से बेदखल किया जा रहा है। इस मामले में आदिवासी विधायक अनंत पटेल से जब जनज्वार ने बात की तो वो कहते हैं, गुजरात सरकार की आदिवासियों के खिलाफ नीतियों का वह पुरजोर विरोध करते हैं। हालांकि अभी विधानसभा का सत्र चालू ना होने की वजह से वह सदन में अपनी बात नहीं रख पा रहे, लेकिन विविध संस्थाओं और जागृत लोगों के माध्यम से सरकार के बहरे कानों में आवाज पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है। सोशल मीडिया के माध्यम से भी आंदोलन तेज किया जा रहा है, जिसमें “जेल भरो केवडिया बचाओ” आंदोलन भी है। यह आंदोलन इसलिए चलाया गया है ताकि गुजरात सरकार जो कि आदिवासी विरोधी सरकार है, उनके बहरे शासकों-प्रशासकों के कानों तक आदिवासियों की आवाज पहुंचे।
इस मामले में जनज्वार ने राज वसावा से बात की और आंदोलनकारियों का पक्ष उनसे जाना। उन्होंने कहा केवड़िया कॉलोनी में हाल में 14 गांवों के लोगों को जल और जमीन से बेदखल किया जा रहा है। उन 14 गांव में 22 से 24 हजार लोग रहते हैं और इस इलाके में 10280 हेक्टेयर जमीन कब्जाने की कोशिश की जा रही है। इस इलाके में रहने वाले आदिवासियों को यहां से जबरन निकाला जा रहा है। यह आंदोलन शुरू होते ही नर्मदा जिले को सील कर दिया गया है और वहां पर अन्य 4 जिले की पुलिस को भी उतार दिया गया है।
राज वसावा बताते हैं, लॉकडाउन के समय में सरकार को सबसे पहले लोगों की स्वास्थ्य सुविधायें उपलब्ध करायी जानी चाहिए। माननीय गुजरात हाईकोर्ट ने भी गुजरात सरकार की बखिया उधेड़ी है, मगर सरकार को आदिवासियों को उजाड़ने में और पूंजीपतियों को अमूल्य जमीन देने की ज्यादा जल्दी है।
राज वसावा आगे कहते हैं, अहमदाबाद सिविल अस्पताल की हालत सरकार से संभल नहीं रही, ऐसे में कोरोना महामारी स्थिति में आदिवासियों पर दमन किया जा रहा है। नर्मदा जिले के आदिवासियों को अलग-थलग करके आंदोलन को दबाने का प्रयास किया जा रहा है, जबकि यह आंदोलन गुजरात के सभी जिलों में छोटे या बड़े स्तर पर चालू हो चुका है। कोरोना से हुए लॉकडाउन को दखते हुए ना ही कोई बड़ा प्रदर्शन होगा और ना ही कोई रैली या धरना होगा। गुजरात सरकार जब दमन करने पर उतारू होती है तब वह लोगों की नहीं सुनती और पुलिस को आगे करके अत्याचार करना शुरू कर देती है।
आम जनता को भी सही जानकारी ना देकर गुमराह किया जाता है, हालांकि इस मामले में एक एनजीओ ने गुजरात हाईकोर्ट में पीआईएल फाइल की थी, परंतु थर्ड पार्टी होने के कारण पीआईएल को निकाल दिया गया था, जिसका दुरुपयोग गुजरात सरकार आदिवासियों के खिलाफ कर रही है। अभी लॉडाउन के चलते हाईकोर्ट ने पीआईएल दाखिल करना उचित नहीं वह और कोर्ट में भी सिर्फ अति महत्वपूर्ण केसों की सुनवाई हो रही है, जिसका दुरुपयोग गुजरात सरकार आदिवासियों के खिलाफ कर रही है। आदिवासियों का जल और जंगल छीनने की यह गुजरात सरकार की नीति है, जिसका पूरे गुजरात में आदिवासी समुदाय विरोध कर रहे हैं। इस पूरी मुहिम में आदिवासी एकता परिषद, भील स्थानीय टाइगर सेना, भारतीय ट्राईबल पार्टी जैसे सामाजिक और राजकीय संगठन साथ मिलकर लड़ रहे हैं।
गुजरात सरकार ने स्टेचू ऑफ यूनिटी एरिया डेवलपमेंट एंड टूरिज्म गवर्नेंस एक्ट 2019 के माध्यम से लोगों को वहां से हटाने का काम किया है, परंतु इन 14 गांव के लोगों की और ग्रामसभा की सहमति लेना उचित नहीं समझा। जबकि जो वहां रहने वाले लोग हैं, उनकी सहमति प्रशासन के लिए जरूरी है।
धारा 372 के तहत संविधान में आदिवासियों को विशेष अधिकार मिला हुआ है, जिसका खात्मा सरकार की तरफ से किया जा रहा है। फिलहाल 14 गांवों की 10280 हेक्टेयर जमीन पर सरकार की नजर है, परंतु आने वाले दिनों में ऐसे 72 गांव को टारगेट किया जाएगा जिसमें कई तालुके शामिल हैं। गरुड़ेश्वर, तिलकवाड़ा, नसवाडी, हेदी पाड़ा, साग बार जैसी तहसीलों को इसमें शामिल किया गया है। यह मामला अब सिर्फ 14 गांव तक सीमित नहीं रह गया है। अनमोल प्राकृतिक संपदा से भरी जो जमीनें हैं उन जमीनों को हड़पने का गुजरात सरकार लगातार प्रयास कर रही है।
गांवों को जबरन खाली करवाने पहुंची पुलिस का विरोध करने वाले लगभग 80 से 100 आदिवासी नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को गुजरात पुलिस ने गिरफ्तार किया है। जिस तरह लोगों की इतने बड़े पैमाने पर पुलिस ने गिरफ्तारियां की हैं, उससे इस आंदोलन को शुरू होते ही दबाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। आदिवासी समुदाय और अन्य संगठन के लोग इस मामले में ढील देने को तैयार नहीं हैं और बहुत ही उग्र आंदोलन करने के मूड में दिख रहे हैं।
पूर्व में भी कई ऐसे मामले सामने आये, जिसमें सरकार की नीतियों पर सवालिया निशान खड़े हुए हैं। सरदार सरोवर नर्मदा निगम में भी बांध की ऊंचाई बढ़ने से डूब में गए हुए गांव आज तक नहीं बस पाए हैं, इसलिए इन आदिवासी गांव को अन्य जगह बसाना और बड़ी-बड़ी बातें करना आदिवासी लोगों के गले से नहीं उतर रहा है।
आंदोलनकारियों का कहना है कि इसी तरह आदिवासियों का दमन जारी रहा तो वो आने वाले दिनों में और भी बड़ा और उग्र आंदोलन करेंगे।
साभार : जनज्वार