झारखण्ड : ईस्टर्न कोल फिल्डस राजमहल परियोजना में आदिवासियों की जमीन का जबरन अधिग्रहण
झारखण्ड के गोड्डा जिले के बोआरीजोर प्रखंड के बसडीहा मौजा के निवासियों ने 8 जनवरी 2020 को आदिवासी भू विस्थापित संघर्ष समिति के बैनर तले ईसीएल प्रबंधन के खिलाफ आंदोलन तेज कर दिया है। आंदोलनकारी आदिवासियों का कहना है कि कम्पनी बेहतर पुनर्वास की व्यवस्था देने के पहले ही ईसीएल प्रबंधन उनकी जमीन का अधिग्रहण करने में जुटा है। ईस्टर्न कोल फिल्ड्स लिमिटिड (ईसीएल) द्वारा कानून को ताक पर रख कर यहां कोयला खदान का विस्तार किया जा रहा है। रैयतों का कहना है कि ईसीएल की राजमहल कोयला परियोजना के विस्तार के लिए उनसे जबरन जमीन अधिग्रहण किया जा रहा है। ईस्टर्न कोल फिल्डस की राजमहल परियोजना ने रैयतों से सहमति लिए बिना ही जबरन उनकी जमीन पर खुदाई कर कोयला निकलने का काम शुरू किया है।
कोल खदान के विस्तार के लिए बसडीहा के रैयतों के साथ राजमहल परियोजना प्रबंधन को बैठक कर जमीन अधिग्रहण किया जाना था। सभी रैयतों को पुनर्वास के लिए भी बेहतर व्यवस्था देने की बात कही गई थी। लेकिन इस संबंध में अभी तक रैयतों से किसी प्रकार की सामूहिक वार्ता भी नहीं की गई है। इसके बावजूद भी परियोजना के द्वारा दलालों के माध्यम से कुछ रैयतों को लालच देकर जमीन अधिग्रहण कराया जा रहा है।
कोयला खदान अब बसडीहा गांव से सट गई है। गांव में हैवी ब्लास्टिग से घरों में दरार आ रही है। गांव में मूलभूत समस्याओं से ग्रामीण जूझ रहे हैं। गांव में पीने के पानी का कोई स्त्रोत नही बचा है। ग्रामीणों ने बताया कि खदान में दिन रात ब्लास्टिग की जाती है। कई रैयतों को घर गिरने का खतरा भी बना रहता है। कोयला खदान में इस भयानक विस्फोट से कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। ब्लास्टिग होने से रात को सोने में भी छत व दीवार के गिरने का डर हमेशा बना रहता है जिससे ग्रामीण चिता में रहते हैं। रैयतों ने कहा कोयला खदान के बसडीहा गांव के करीब पहुंच जाने के बाद भी भूदाताओं को पुर्नवासित करने के लिए कोई उचित व्यवस्था नहीं की गई है। रैयतों ने ईसीएल प्रबंधन से जमीन अधिग्रहण करने के मामले में श्वेत पत्र जारी करने की मांग की है। ईसीएल प्रबंधन द्वारा जमीन अधिग्रहित करने में ग्राम सभा के निर्णय को प्राथमिकता नहीं दिया जा रहा है।
ज्ञात हो कि पांचवी अनुसूची क्षेत्र में आदिवासियों की जमीन का अधिग्रहण बिना ग्राम सभा के नही किया जा सकता। पांचवी अनुसूची क्षेत्र में ऐसा प्रावधान है। यह संविधान के विधि व्यवस्था का मामला है। जब तक वहां के रैयतों का 80 प्रतिशत ग्राम सभा में सहमति नहीं देते हैं, तब तक उनकी जमीन का अधिग्रहण नही किया जा सकता है। बिना ग्राम सभा किये ईसीएल प्रबंधन रैयतों की जमीन को अधिग्रहित नहीं कर सकता है। बहरहाल रैयतों की जमीन पर ईसीएल द्वारा कोयला खदान को विस्तार के लिए आगे जमीन काटने का काम बदस्तूर चल रहा है। रैयतों को न तो जमीन का मुआवजा के बारे में और न ही विस्थापन के बारे में कोई जानकारी है फिर भी परियोजना द्वारा जमीन पर मशीन चलाई जा रही है। राजमहल परियोजना किस तरह आदिवासियों को कानूनी जानकारी के अभाव से किस तरह रैयतों को गुमराह कर जमीन अधिग्रहण का काम एक-एक रैयतों से करया जा रहे हैं। इससे साफ जाहिर हो रहा है कि परियोजना रैयतों को गुमराह कर कानून को ताक में रखकर ललमटिया कोयला खदान को संचालित किया जा रहा है।