गुजरात : लॉकडाउन में आदिवासियों की ज़मीन लेने पहुंचा प्रशासन; आदिवासी अपनी जान बचाए या जमीन
गुजरात में केवड़िया के आदिवासियों पर एक बार फिर संकट खड़ा हो गया है। सरदार पटेल की विशाल प्रतिमा के लिए ज़मीन अधिग्रहण और प्रतिमा अनावरण के बाद 2019 में नर्मदा जिले के पांच गांवों के आदिवासियों की आजीविका की रक्षा के लिए लगायी गयी एक जनहित याचिका बीती 1 मई को गुजरात हाइकोर्ट ने खारिज कर दी थी। उसके नो दिन बाद आज पुलिस उस इलाके में एक ज़मीन अधिग्रहण के लिए पहुंची तो अच्छा खासा बवाल हो गया।
भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के नेता और विधायक छोटूभाई वसावा ने अपने फेसबुक पर ज़मीन अधिग्रहण के लिए आयी पुलिस और आदिवासियों द्वारा किये गये उसके विरोध की वीडियो और तस्वीरें साझा की हैं। ये तस्वीरें केवड़िया में तनावपूर्ण स्थिति को बयां करती हैं।
झारखण्ड के आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता ग्लैडसन डुंगडुंग ने इस मसले पर लिखा हैः
आदिवासी अपनी जान बचाए या जमीन? कोरोना वायरस उनकी जान लेना चाहता है और गुजरात की बीजेपी सरकार उनकी जमीन। स्टेच्यू ऑफ यूनिटी बनाने के बाद अब गुजरात सरकार फिर से उसी के आसपास के 6 गांवों का जमीन अधिग्रहण करने के लिए सर्वे करवा रही है। आदिवासी विरोध कर रहे हैं तो वहां पुलिस भरा जा रहा है। कोरोना संकट के समय गुजरात के भाजपा सरकार के द्वारा किए जा रहे भूमि अधिग्रहण की कोशिश का पुरजोर विरोध और भर्त्सना किया जाना चाहिए। गुजरात सरकार मुर्दाबाद! आदिवासी विरोधी भाजपा मुर्दाबाद! आदिवासियों को न्याय दो!
नर्मदा जिले में जहां सरदार पटेल की प्रतिमा लगी है, वहां के चार गांवों केवड़िया, वागड़िया, नवागांव, लिमड़ी और गोरा के आदिवासियों की आजीविका की रक्षा के लिए कुछ कार्यकर्ताओं ने जुलाई 2019 में गुजरात हाइकोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ताओं महेश पंड्या, आनंद मजगांवकर, अशाेक नाइक और जतिन सेठ ने याचिका में कहा था कि राज्य सरकार ने चूंकि 1960, 1961 और 1962 में इन पांच गांवों में ज़मीनें अधिग्रहित की थीं और आदिवासी उन्हीं ज़मीनों पर लगातार खेती करते रहे थे, इसलिए कानून की धारा 24(2) के अंतर्गत पांच वर्ष तक कब्ज़ा न किये जाने के कारण अधिग्रहित भूमि को रद्द हो जाना चाहिए था।
इसके जवाब में गुजरात हाइकोर्ट ने 1 मई को अंतिम सुनवाई करते हुए कहा कि इन गांवों के प्रत्येक निवासी को निजी रूप से उन ज़मीनों पर अपना दावा दाखिल करना होगा। कोर्ट ने कहा कि कुल 1800 व्यक्तियों (295 परिवारों) की ओर से दाखिल किये गये पीआइएल को मंजूर नहीं किया जा सकता। यह कहते हुए अदालत ने पीआइएल को खारिज कर दिया।
पीआइएल खारिज किये जाने के बाद से गांव वालों को आशंका थी कि एक बार फिर से प्रशासन ज़मीन अधिग्रहण की कोशिश करेगा, लेकिन लॉकडाउन के चलते एक उम्मीद भी थी। रविवार को जब गांवों में पुलिस पहुंची तो अच्छा खासा तनाव हो गया।
साभार : https://junputh.com/