अब वक्त आ गया है कि किसानों को उजाड़ने वाली मध्य प्रदेश सरकार को किसान उखाड़ फेंके : भूमि अधिकार आंदोलन
भूमि अधिकार आंदोलन के बैनर तले मध्य प्रदेश में जारी जन आंदोलनों का राज्य सम्मेलन 23 अक्टूबर को शाक़िर सदन, भोपाल में आयोजित किया गया। बैठक में मध्यप्रदेश के विभिन्न किसान संगठनों, भूमि संबंधी मुद्दों, जल-जंगल एवं पर्यावरण से जुड़े जन आंदोलनों तथा मध्यप्रदेश के नागरिकों ने आगामी विधानसभा चुनावों में निर्णायक भूमिका निभाने तथा जनता एवं किसान विरोधी नीतियों के विरूद्ध अपना असंतोष मुखर रुप से व्यक्त करने का आह्वान किया है।
भूमि अधिकार आंदोलन के बैनर तले एकजुट हुए यह संगठन प्रदेश के किसानों एवं ग्रामीण आबादी के समक्ष खड़े संकटों को दर्ज करते हुए उन नीतियों और कारगुजारियों की भर्त्सना करते है, जिन्होंने प्रदेश के किसानों को लगभग पूरी तरह तबाह करके रख दिया है। इनमें से कुछ इस प्रकार सूत्रबद्ध की जा सकती है।
- किसानों को उनकी फसल के लाभकारी दाम तो दूर की बात रही उन्हें घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य तक प्राप्त नहीं हो रहा है
- भावांतर के नाम पर ठगी और झांसा देने का तथा एक अपवित्र गंठजोड़ द्वारा इसके नाम पर भ्रष्टाचार किए जाने का काम किया जा रहा है।
- समर्थन मूल्य की मांग करने एवं किसानों की लूट बंद किए जाने का मुद्दा उठाए जाने पर मंदसौर जैसे निर्मम गोलीकांड किए जा रह है।
- कर्ज के फंदे में फंसकर आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या के मामले में मध्यप्रदेश पांचवे स्थान से तीसरे स्थान पर आ गया है।
- नर्मदा विस्थापन के डूब प्रभावितों, बीना परियोजना प्रभावित किसानो सहित प्रदेश के अनेक जिलों में विस्थापन प्रभावितों के साथ हर तरह के अन्याय का सिलसिला जारी है। मौजूदा सरकार अपने राजनीतिक आकाओं को प्रसन्न कर अपनी कुर्सी बचाने के लिए मध्यप्रदेश के जल, जन और जमीन की बर्बादी सुनिश्चित कर रही है। भूमि अधिग्रहण कानून के 24 (2) में दिए गए प्रावधानों के अनुसार अडानी पेंच पावर प्रोजेक्ट का निर्माण न होने के बावजूद किसानों को जमीन वापस नही लौटाई जा रही है ।
- कारपोरेट कंपनियों के हित साधने के लिए लाखों एकड़ भूमि-ज्यादातर उपजाऊ भूमि- कंपनियों को दी जा रही है। ग्राम सभाओं की अनुमति तथा पूर्ण पुनर्वास जैसी बाध्यकारी शर्तों को दरकिनार किया जा रहा है।
- वनाधिकार कानून के अमल में जानबूझकर शिथिलता दिखाई जा रही है ताकि लोगों के अधिकार की जमीन का कारपोरेट एवं अन्य धनपशुओं के लिए इस्तेमाल किया जा सके तथा वन क्षेत्रों की प्रशासनिक व्यवस्था को लोकतांत्रिक किया जा सके ।
- मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी कानून) राजनेताओं व प्रशासनिक अधिकारियों के भ्रष्टाचार का माध्यम बनकर रह गया है। काम मिल नहीं रहे, किए गए कामों की मजदूरी के भुगतान नहीं किए जा रहे।
- ग्रामीण विकास पूरी तरह ठप पड़ा हुआ है। बुनियादी सुविधाओं से भी जनता का बड़ा हिस्सा वंचित है।
सरकार ऊर्जा सुधार के नाम पर निजी विद्युत कंपनियों से महंगी दरों पर प्रदेश के उपभोक्ताओं को महंगी बिजली खरीद कर रही है जबकि शासकीय योजना की सस्ती बिजली उपलब्ध है अतः निजी कंपनियों के साथ विद्युत खरीदी अनुबंध रद्द किया जाए।
ये सारी परिस्थितियां प्रदेश के भ्रष्टाचार में पूरी तरह डूबे होने, जिसकी एक बानगी व्यापमं है, के अलावा है सार्वजनिक वितरण प्रणाली ध्वस्त हो चुकी है। रोजगार के मामले में वृद्धि दर नकारात्मक हो चुकी है। सार्वजनिक शिक्षा व स्वास्थ्य प्रणाली के पूरी तरह ठप्प हो जाने के चलते प्रदेश की मृत्यु दर-हर तरह की मृत्यु दर चिंताजनक स्तर पर पहुंच गई है। मध्यप्रदेश मृत्यु प्रदेश ही नहीं बना बल्कि भूख की वैश्विक राजधानी बन गया है।
ऐसी स्थिति में भूमि अधिकार आंदोलन म.प्र. की जागरुक जनता से अपील करता है कि किसान, आदिवासी विरोधी नीतियों का साथ न दें। प्रदेश की खुशहाली और बेहतरी के लिए साम्प्रदायिक शक्तियों को हराये और किसान, आदिवासी, खेत मजदूरों की आवाज उठाने वाले प्रतिनिधियों को विधानसभा में पहुंचाए।
इस बैठक में आंदोलन की राज्य स्तरीय संयोजन समिति का भी चुनाव किया गया जो इस प्रकार है- मध्यप्रदेश भूमि अधिकार आंदोलन की नवगठित राज्य संयोजन समिति
आराधना भार्गव, किसान संघर्ष समिति, राजकुमार सिन्हा, बरगी बांध एवं प्रभावित संघ, विजय भाई, भारत ज़न आंदोलन,
गजानन भाई, आदिवासी मुक्ति संगठन, बादल सरोज, अखिल भारतीय किसान सभा( केनिंग लेन), प्रह्लाद बैरागी, अखिल भारतीय किसान सभा ( अजय भवन), मुकेश भगोरिया, नर्मदा बचाओ आंदोलन नाहर सिंह भाई, आदिवासी एकता संगठन, बेर सिंह डाबर, मोर्चा संगठन देवास, विनोद पटेरिया, आदिवासी दलित मोर्चा, वीरेंद्र दुबे, बुंदेलखंड मजदूर किसान शक्ति संगठन, जगदीश यादव, हमारा ग्राम अधिकार अभियान, मुकेश भाई, पटेल संसद, बड़वानी, राहुल श्रीवास्तव, भू अधिकार अभियान, समाधान पाटिल, जन पहल
राजेश कन्नौजे, आदिवासी छात्र संगठन, सत्यम पाण्डेय, शहरी गरीब आवास अधिकार अभियान, उमेश तिवारी, रोको टोको ठोको आंदोलन, नवरतन दुबे, दादुलाल कुडापे, चुटका परमाणु विरोधी संघर्ष समिति