झारखण्ड : जेलों में दम तोड़ती प्राकृतिक संसाधनों से वंचित जिंदगियां
-स्टेन स्वामी
अधिकार समूह एमनेस्टी इंटरनेशनल (Amnesty International) ने जुलाई 2017 की रिपोर्ट में कहा था कि उनके परीक्षणों के दौरान लगभग 2,80,000 भारतीय जेल में हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि कई वर्षों से जेलों में कई लोग लापरवाही कर रहे हैं, कुछ अपराध या अपराधों की अधिकतम सजा से अधिक लंबे समय तक हैं।
अधिकार समूह ने कहा कि इन कैदियों को “अंडर-ट्रायल” के नाम से जाना जाता है, जो भारत की जेलों में से तीन लोगों में से दो [66%] के लिए जिम्मेदार है, जो दुनिया भर के अन्य लोकतंत्रों की तुलना में कहीं अधिक है।
झारखण्ड में 2001 से 2018 तक 7,799 ‘नक्सली’ गिरफ़्तार किये गए [प्रभात खबर 15-11-2018 का परिशिष्ट]. बगइचा द्वारा 2015 -16 में किया गया एक नमूना अध्ययन [sample study] से पता चला कि सभी कैदियों में से (1) 70% समाज के गरीब वर्गों से थे; (2) 77% अंडर-परीक्षण [under-trial] कैदी परीक्षण की प्रतीक्षा कर रहे थे; (3) उनमें से 70% आदिवासी थे; (4) 63% छोटे किसान पांच एकड़ से कम जमीन के मालिक थे; (5) केवल तीन प्रतिशत ने स्वीकारा कि उन्हें गिरफ्तार किए जाने से पहले चरमपंथियों के साथ कोई रिश्ता था; इसका मतलब है कि उनमें से 97% को झूठा आरोप लगाया गया है (6) कई परिवार निराशा में डूबे थे क्योंकि परिवार के एकमात्र ब्रेडविनर [sole bread-winner] जेल में हैं, उनकी छोटी संपत्तियां बेची गई हैं / गिरवी हुई हैं, उनके बहुत छोटे बच्चे पैतृक प्रेम और देखभाल के बिना बढ़ रहे हैं।
अभी इस बात का खुलासा चाहिए कि इन 7,799 ‘नक्सल’ कथित कैदियों में से (१) कितने अब तक जेल में हैं, (२) उनमें कितने आदिवासी, कितने दलित, कितने OBC, कितने general हैं; (३) कितनों को दोषी [convicted] ठहराया गया है, (४) कितने बरी हो गए हैं, (५) कितने जमानत [bail] पाए हैं, (६) और कितने गरीबी के कारण जमानत पा नहीं सके और जेलों में सड़ रहे हैं. यह विवरण सिर्फ सरकार से मिल सकता है. इसे मांगने पर भी उपलब्ध नहीं किया जा रहा है. संभवतः कानूनी कार्रवाई से ही मिल सकता है. इसके लिए मैंने झारखण्ड HC में एक PIL पेश किया हूँ. इसका परिणाम आने में समय तो लगेगा. इस प्रयास में आप सबों का समर्थन एवं सहयोग का उम्मीद कर रहा हूँ.