- पश्चिम बंगाल में गंगा नदी के किनारे स्थित गांव कई वर्षों से नदी के द्वारा कटाई की परेशानी का सामना कर रहे हैं। इस कटाई में नदी गांव की सीमा में प्रवेश कर जाती है अपने साथ घर और खेतों को बहा ले जाती है।
- कई स्थानीय विशेषज्ञ नदी की बढ़ती कटाई के लिए फरक्का बैराज के निर्माण को जिम्मेदार मानते हैं। उनका मानना है कि नदी की राह में यह बैराज बाधा बन गया और पानी आसपास के गांव तक पहुंचने लगा।
- इस कटाव से बचने के लिए विशेषज्ञ स्थायी रणनीति बनाने पर बल देते हैं। आने वाले दिनों में जलवायु परिवर्तन की वजह से बाढ़ और कटाव की समस्या बढ़ेगी। ऐसे में ठोस रणनीति का होना जरूरी हो जाता है।
मुर्शिदाबाद जिले के धनघरा गांव के लोग पिछले साल आधी रात आए सैलाब को चाहकर भी भूल नहीं पा रहे हैं। गांव वालों पर गंगा का रौद्र रूप कहर बनकर बरपा और देखते-देखते ही कई घर नदी में समा गए। इसकी शुरुआत इलाके के सीमा सुरक्षा बल के कैंप से हुई, कहते हैं तोराब अली जिनकी उम्र 75-वर्ष के करीब है। कैंप के बहने के बाद गांव के लोग सकते में थे। अगले कुछ दिन में नदी का बहाव तेज हुआ और इनके गांव के 395 घर उसमें समा गए।
“पिछले कई वर्षों में ऐसा तबाही हमने कभी नहीं देखी थी। कई साल पहले मेरे बचपन के दिनों में हीरानंदपुर गांव पूरा डूब गया था। यह बात 61 साल पुरानी होगी। कुछ इसी तरह पिछले वर्ष जो नुकसान हुआ, अचानक हुआ। ग्रामीणों को सामान बचाने का भी समय नहीं मिला,” तोराब अली कहते हैं।
धनघरा के अलावा नातुन शिबपुर गांव में भी पिछले साल कुछ ऐसी ही तबाही देखने को मिली। आधी रात को आम और लीची के बगान सहित सैकड़ों खेत नदी में मिल गए।
“रोजाना नदी दो से पांच घरों को अपने अंदर समाहित कर रही थी। हम लोगों ने स्कूल में शरण लिया था,” 64 वर्षीय बुजुर्ग मधु मंडल का कहना है।
ये ग्रामीण जिस आपदा के बारे में बात कर रहे हैं उसके मूल में हैं नदी की कटाई। बाढ़ में आमतौर पर पानी गांव में घुसता है। पर कटाई के दौरान नदी अपने साल सब कुछ बहा ले जाती है और देखते-देखते रिहायशी इलाके नदी के प्रवाह का हिस्सा बन जाते हैं। पश्चिम बंगाल में नदी का कटाव हर साल की कहानी बनती जा रही है।
वर्ष 2020-21 में आए बाढ़ का असर मुर्शिदाबाद के समसेरगंज ब्लॉक के 65,000 घरों पर हुआ। कहीं पानी भर आया तो कोई घर नदी में ही समा गया।
गंगा कटाव रोधी कार्य के कार्यकारी अभियंता प्रदीप चक्रवर्ती ने बताया कि पिछला कटाव धरघरा, धुसारीपुरा और नतुन शिबपुर में हुआ। यहां गंगा से सटा 2.7 किलोमीटर इलाका 50 दिन के भीतर गंगा का हिस्सा बन गया।
इससे पहले इस इलाके में कब और कितना कटाव हुआ था इसका कोई आंकड़ा विभाग के पास नहीं है, कहते हैं श्यामल कुमार मंडल, जांगीपुर सिंचाई विभाग के उपकेंद्र अधिकारी। उन्होंने बताया कि पिछले 60 वर्ष में यहां ऐसी कोई घटना नहीं हुई थी।
स्थानीय लोग और विशेषज्ञ इस आपदा का जिम्मेदार गंगा के प्राकृतिक बहाव में अवरोध को मानते हैं। उनका मानना है कि यह अवरोध फरक्का बैराज के निर्माण की वजह से आया है।
धुसरीपारा के स्थानीय निवासी प्रभात सरकार गंगा के इस रौद्र रूप से काफी चकित हुए। वह कहते हैं, “हमें समझ नहीं आ रहा कि गंगा ने ऐसा रूप क्यों दिखाया। फरक्का बैराज की वजह से हम कई वर्षों से तकलीफ में थे। इसबार पता चला कि बैराज का एक बड़ा हिस्सा खोला गया था। पानी का बहाव बाईं तरफ बढ़ने की वजह से गांव के एक बड़ा हिस्सा नदी में समा गया,” वह कहते हैं।
“कुछ दिन पहले धुलियान शवगृह के पास एक बड़ी दीवार भी बनाई गई थी ताकि उसे बहने से रोका जा सके। इसकी वजह से गंगा का प्राकृतिक बहाव प्रभावित हुआ और नए सिरे से कटाव की शुरुआत हुई,” उन्होंने कहा।
मुर्शिदाबाद अंग्रेजों के आने से पहले बंगाल की राजधानी हुआ करती थी। इस शहर को भागीरथी नदी दो समान भाग से बांटती हुई बहती थी। फरक्का बैराज के बनने के पीछे की वजह गंगा नदी से पानी की पर्याप्त मात्रा भागीरथी-हुगली नदी में प्रवाहित करना था। एक 38.38 किलोमीटर लंबे नहर के माध्यम से कोलकाता पोर्ट पर भी पानी की आपूर्ति होती है। इस बैराज का मकसद कलकत्ता में मीठे पानी की आपूर्ति करना भी है।
स्कूल ऑफ ओशनोग्राफिक स्टडीज, जाधवपुर विश्वविद्यालय, कोलकाता के पूर्व निदेशक प्रोफेसर सुजाता हाजरा के मुताबिक मुर्शिदाबाद का नदी कटाव वाला इलाका बैराज के डाउनस्ट्रीम में आता है। बीते कुछ समय में बैराज की पानी संग्रहण क्षमता में कमी देखी गई है। तेज बारिश की वजह से बैराज से पानी छोड़ना पड़ा, जिससे कटाई की समस्या हुई, उन्होंने कहा।
आलिया विश्वविद्यालय, कोलकाता के भू-आकृति विज्ञानी और भूगोल विभाग के प्रमुख अजनारुल इस्लाम कहते हैं कि फरक्का बैराज के निर्माण के बाद कटाव के मामले दिखे हैं।
“मालदा और मुर्शिदाबाद जिले में गंगा के किनारे कटाव की समस्या देखी जा रही है,” वह कहते हैं।
स्थानीय प्रशासन बांस और रेत की मदद से कटाव रोकने की कोशिश करता है। पर स्थानीय लोग इस उपाय को कारगर नहीं मानते हैं। हाजरा कहते हैं कि नदी को तीन से पांच किलोमीटर का इलाका हमेशा चाहिए होता है। वह अपना रास्ता बदलती रहती है। लोगों को समझना होगा कि नदी कभी गांव से भी बहना शुरू कर सकती है।
“इस इलाके की मिट्टी रेतीली है और संभव है कि भीतर ही भीतर नदी उसे खोखला कर दे और एकाएक बड़ा इलाका इसकी चपेट में आ जाए। ऐसे में बांस और रेत के बोरे इसे रोक नहीं सकते,” हाजरा कहते हैं।
इन सभी लोगों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन को देखते हुए इस इलाके में एक बड़ी योजना बनाकर लोगों को बताना होगा।
“सिंचाई विभाग अकेले इस समस्या से निपटने में सक्षम नहीं है। हमें एक नीति के तहत खतरे वाले इलाके को चिन्हिंत कर वहां के लोगों को सचेत करना होगा, ताकि नुकसान कम से कम हो,” उन्होंने बताया।
सभी तस्वीरें- तन्मय भादुरी
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