ब्रिक्स के प्रतिरोध में पीपल्स फोरम ऑन ब्रिक्स के दो दिवसीय सम्मेलन की शुरुआत
गोआ, 13 अक्टूबर 2016 : आज गोआ के जेवियर्स सेंटर ऑफ हिस्टॉरिकल रिसर्च में पीपल्स फोरम ऑन ब्रिक्स के बैनर तले दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन सत्र मशहूर महिला अधिवक्ता तथा पर्यावरण विद् नॉर्मा एलवेयर्स की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। यह दो दिवसीय सम्मेलन 15-16 अक्टूबर 2016 को गोआ में आयोजित हो रहे ब्रिक्स के आठवें सम्मिट के प्रतिरोधस्वरूप आयोजित किया गया है जिसमें 10 देशों तथा 25 राज्यों से लगभग 500 से ज्यादा लोगों ने भागीदारी की।
सम्मेलन में आए वक्ताओं ने इस बात पर जोर दिया कि ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका द्वारा मिल कर गठित किए ब्रिक्स का गठन दुनिया भर में विश्व बैंक तथा अन्य साम्राज्यवादी संस्थाओं की प्रभुत्वता को चुनौती के स्वरूप किया गया था। दुनिया की आधी आबादी वाले पांच देशों के संयुक्त गठबंधन से बने ब्रिक्स के गठन का मूल उद्देश्य इन पांच देशों में सामाजिक समानता को स्थापित करना तथा हर प्रकार की गैर-बराबरी को समाप्त करना था। किंतु अपने 7 सम्मिट कर चुकने के बाद भी ब्रिक्स अपने मूल उद्देश्य के विपरीत दुनिया भर की साम्राज्यवादी शक्तियों के साथ मोल-भाव करता ही नजर आता है।
सम्मेलन का प्रथम सत्र “हमारे सामने मौजूद संकटः ब्रिक्स का जवाब” पर आधारित था। इस सत्र की प्रथम वक्ता जनसंघर्षों का राष्ट्रीय समन्वय से मेधा पाटकर ने कहा कि भारत में ब्रिक्स एक ऐसा फोरम नहीं बन पाया जो साम्राज्यवादी देशों के प्रभुत्व को चुनौती दे सके। इन देशों के सशक्त कॉर्पोरेट्स जनता के संसाधनों पर कब्जा कर रहे हैं और जनतंत्र को नष्ट कर रहे हैं। किंतु यह फोरम इन कॉर्पोरेट्स पर नियंत्रण कर स्थाई विकास और सामाजिक समानता स्थापित करने वाला फोरम नहीं बन पाया। मेधा ने कहा कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के बावजूद जनता को अपने हर हक-अधिकार के लिए संघर्ष ही करना पड़ता है फिर वह चाहे प्राकृतिक संसाधनों पर अपने कब्जे की लड़ाई हो या फिर अपने पहचान के संकट की लड़ाई।
देश में आज विकास की परियोजनाएं बनाते समय जनता को इस प्रक्रिया से पूरी तरह से बाहर कर दिया जाता है। किसी भी अनुबंध पर हस्ताक्षर करते समय या फिर विकास की योजना बनाते समय पंचायत या ग्राम सभा की अनुमति नहीं ली जाती है। किंतु इसका असर आम जनता पर ही पड़ता है जो जमीन और आजिवीका के साधन खो देती है। उन्होंने ब्रिक्स में शामिल देशों के बारे में कठोर शब्दों में बोलते हुए कहा कि ब्रिक्स साम्राज्यवादी देशों की प्रभुता को चुनौती देने के नाम पर उनके साथ मोल-भाव ही करता नजर आता है। उन्होंने कहा यह फोरम ब्रिक्स से बिल्कुल अलग है। हमारा कार्यक्रम ब्रिक्स के समानांनतर नहीं हो सकता।
ब्रिक्स का उद्देश्य जाति-वर्ग-गरीबी-और वंचितिकरण को समाप्त करना नहीं है। लैंगिक समानता का प्रश्न कभी भी उनकी प्राथमिकता में नहीं आ सकता है। भले ही वह सम्मिट में हमारी ही भाषा में बात करें किंतु अपने देशों में लौटने पर वह कभी भी जनता से जुड़े मुद्दों को संबोधित नहीं करते हैं। ब्रिक्स भौगोलिक आधार पर दक्षिण गोलार्ध के देशों के सत्ता के केंद्रों का एक समूह है। यह जनता के लिए नहीं है।
हमें ब्रिक्स का हिस्सा न बनकर अपनी पांतों को मजबूत करके ब्रिक्स को पुनपर्रिभाषित करना होगा। हमे खुद अपना एजेण्डा तय करना होगा जो कत्तई उनका विकल्प नहीं होगा। हमारा एजेण्डा उनके उपभोक्तावादी संस्कृति, विनाशकारी तकनीक से आगे जाएगा।
ब्राजील नेटवर्क फॉर पीपल्स इंटिग्रेशन की समन्वयक तथा नारीवादी कार्यकर्ता मारिया लूसिया बेलो ने कहा कि पिछले कई दिनों से लोकतंत्र शब्द बहुत ज्यादा सुनने में आ रहा है। परंतु यह लोकतंत्र आज पूरी दुनिया में ही खतरे में है। ब्राजील में भी लोकतंत्र खतरे में है। पिछले दिनों ब्राजील के लोकतंत्र पर साम्राज्यवादी ताकतों द्वारा हमला किया गया था। जब देश की सरकार को जनता के हक में आर्थिक फैसले लेने थे उसी समय सरकार का तख्ता पलट कर एक कठपुतली सरकार का गठन कर दिया गया। इस नई सरकार ने आते ही जनता के खिलाफ कदम उठाने शुरु कर दिए हैं। ब्राजील के नारीवादी संगठन की तरफ से अपील करते हुए उन्होंने कहा कि हमें ऐसे समाज की स्थापना करनी होगी जहां पर पितृसत्ता का राज न हो। उन्होंने कहा कि नेटवर्क्स और जनसंघर्षों को मिलाकर हमें अपने संघर्षों को मजबूती प्रदान करनी होगी तभी हम इन साम्राज्यवादी ताकतों का मुकाबला कर पाएंगे।
दक्षिण अफ्रीका के मजदूर आंदोलन के राजनीतिक विशेषज्ञ और बुद्जीवी ट्रैवर नवाने ने ब्रिक्स पर सवाल उठाते हुए कहा कि दक्षिण अफ्रीका ब्रिक्स से क्यों जुड़ा हुआ है, मुझे नहीं पता और यह सवाल इसलिए उठता है क्योंकि आज भी दक्षिण अफ्रीका में बेताहाशा गरीबी तथा बेरोजगारी है। 1994 से लेकर आज तक हमारे देश में कोई बदलाव नहीं आया है। साम्राज्यवादी ताकतें आज भी कायम है। आज देश के बड़े पूंजीपतियों ने अपने आप को कॉर्पोरेट्स के साथ जोड़ लिया है तथा संसाधनों की लूट जारी है। दक्षिण अफ्रीका में हाल ही में एक छात्र आंदोलन खड़ा हुआ जिसकी मुफ्त शिक्षा की मांग थी लेकिन सरकार ने उसे पुलिस के दम पर कुचल दिया। ब्रिक्स इन सवालों को कभी भी हल नहीं कर सकता है। हमें इन समस्याओं की जड़ में जाना होगा जो पूंजीवाद के रूप में हैं। उन्हें उखाड़ने के लिए संगठित रूप से संघर्ष करना होगा तभी हम पूंजीवाद से पूर्ण मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं।
चीन के आर्थिक पक्षों की विशेषज्ञ डोरोथी गुएरो ने कहा कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सौ साल पूरे होने वाले है इसीलिए आजकल हर दस्तावेज में चीन की अर्थव्यवस्था में आए सुधार का गुणगान दिखता है। इसमें बहुत सी चीजें सकारात्मक है लेकिन उसके साथ-साथ उतने ही नकारात्मक पक्ष भी हैं। चीन में शहरी और ग्रामीण अर्थभेद किया जा रहा है। ग्रामीण कामगारों को शहरों की तरफ आने से रोका जा रहा है जिसने मजदूरों के बीच खाई बना दी है। उन्होंने कहा कि चीन का हर प्रांत खुद को सशक्त बनाने के लिए प्राकृतिक संसाधनों को ज्यादा कॉर्पोरेट्स को सौंप रहा है जिसकी वजह से उनकी लूट मची हुई है। उन्होंने बताया कि जिस तरह से दक्षिण अफ्रीका एक समय में प्रतिरोध के केंद्र के रूप में उभरा था उसी तरह चीन में भी अब सरकार के खिलाफ भारी पैमाने पर विरोध हो रहा है। इन विरोधों में किसान विरोध सबसे महत्वपूर्ण है। किंतु चीन की सरकार इन विरोधों को कभी भी दुनिया के सामने नहीं आने देती।
उद्घाटन सत्र के आखिरी चरण में गोआ के विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा नारीवादी संगठनों के प्रतिनिधियों ने गोआ की मौजूदा परिस्थिति पर बात-चीत की। गोआ के संबंध में थाइमन फरेरा, फविता दास, मेवरिक, कैरोलिन कोलेस्सो तथा सबीना मार्टिस ने बात रखी। वक्ताओं ने कहा कि गोआ की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से पर्यटन पर आधारित है। इस पर्यटन का सबसे बड़ा हिस्सा इसमें काम करने वाले स्थानीय तथा छोटे भागीदारों का है। किंतु सरकार लगातार इन छोटे भागीदारों की आजीविका पर हमला कर उसे बड़े उद्योगपतियों तथा कॉर्पोरेट्स के हाथों में सौंपने की तैयारी कर रही है। स्थानीय टैक्सी चालकों तथा छोटे होटल मालिकों को तबाह कर इन क्षेत्रों में बड़े खिलाड़ियों को उतारने की तैयारी चल रही है। यह बड़े उद्यमी तथा कॉर्पोरेट न सिर्फ पर्यटन पर कब्जा कर रहे हैं बल्कि गोआ के पर्यावरण को भी मुनाफे की होड़ में नष्ट कर रहे हैं। वक्ताओं ने बताया कि देश के अन्य भागों की तरह ही गोआ में भी दलितों-आदिवासियों के अधिकारों पर लगातार हमले हो रहे हैं। उंची जाति के लोग निचली जातियों के लोगों को मंदिरों से तो बाहर कर रही रहे हैं उन्हें प्राकृतिक संसाधनों से भी बेदखल कर रहे हैं। गोआ से भारी मात्रा में लौह अयस्क का खनन कर उसका निर्यात किया जा रहा है किंतु इससे मिलने वाले लाभ का 60 प्रतिशत हिस्सा निजी हाथों में जाता है जबकि सरकार को उसका सिर्फ मात्र 35 प्रतिशत मिलता है।
उद्घाटन सत्र की शुरुआत राइजिंग सन तथा रेला सांस्कृतिक समूहों द्वारा प्रस्तुत किए गए सांस्कृतिक कार्यक्रमों से हुई।
उद्घाटन सत्र के बाद आठ समानान्तर कार्यशालाओं का आयोजन किया गया। यह कार्यशालाएं ब्रिक्स बैंकः “अपनी जनता तथा पर्यावरण के लिए बैंक”; “खाद्य सुरक्षा/संप्रभुता, कृषि के प्रति अन्यमनस्कताः ब्रिक्स देशों से स्थानीय समुदायों की आवाज”; “फिलिस्तीनः ब्रिक्स देशों की तरफ से सहभागिता कैसे तैयार की जाए”; “ब्रिक्स देशों में न्यूक्लियर शक्ति की होड़ः जनांदोलनों का दृष्टिकोण, ब्रिक्स देशों में आईएफआई के लिए संसदीय नजरिया”; “राज्य की शक्तिः ऊर्जा, लोकतंत्र और मजदूर दृष्टिकोण”; “सभ्यता का संकट, प्राकृतिक संसाधनों कि कॉर्पोरेट लूट तथा जनप्रतिरोध”; “स्मार्ट सिटी तथा शहरीकरण की चुनौतियां”s विषयों पर आयोजित हुईँ।