झारखण्ड : पांचवी अनुसूची, सीएनटी एक्ट तथा एसपीटी एक्ट पर हो रहे हमलों के खिलाफ जन संगठन एकजूट
राँची, झारखण्ड | 28 जुलाई 2018 | थियोलॉजिकल हॉल रांची में जनांदलनों का सयुक्त मोर्चा, झारखण्ड के नेतृत्व में चल रहा दो दिवसीय जनसंघर्षों का राज्य सम्मेलन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। प्रदेश के 11 जिलों से आए 350 से भी ज्यादा जनसंघर्षों के प्रतिनिधियों ने सम्मिलित स्वर में जबरन भूमि अधिग्रहण, कॉर्पोरेट लूट और सीएनटी-एसपीटी, भूमि अधिग्रहण संशोधन अधिनियम के खिलाफ निर्णायक जंग का ऐलान किया। पेश है जनांदलनों का सयुक्त मोर्चा, झारखण्ड का वक्तव्य;
झारखण्ड की रघुवर सरकार ने सत्ता में आते ही आदिवासी,मूलवासीए किसानए मजदूरए मेहनतकशों के परंपरागत संवैधानिक अधिकारों पर हमला करते हुए छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908, संताल परगना काश्तकारी अधिनियम 1949 में संशोधन अध्यादेश लाया। जब विरोध के स्वर उठने लगे तब संशोधन अध्यादेश के स्थान पर संशोधन विधेयक 2016 लाया गया।
सीएनटीए एसपीटीए एक्ट राज्य के किसान तथा आदिवासी,मूलवासी समुदाय का सूरक्षा कवच है। जो आदिवासी समुदाय के जल,जंगल,जमीन को गैर कानूनी ढंग से साथ ही बाहरी व्यत्कि को जमीन हस्तांत्रित करने की इजाजत नहीं देता है। इस कानून के धारा 71, 49ए 21, तथा एसपीटी एक्ट के 13 में संशोधन कर इस सुरक्षा कवच को तोड़ने का प्रयास किया गया।
सीएनटीए एसपीटीए एक्ट में संशोधन के साथ ही सरकार ने परंपरागत गांवोंए बसाहतों के सीमा के भीतर जो गैर मजरूआ आमए गैर मजरूआ खासए जंगल,झाडीए नदी,नालाए सरनाए मसनाए चरागाहए खेल मैदानए मंदिर जैसे समुदायिक धरोहर है,को भूमि बैंक में शामिल करए इस भूमि को कॉरपोरेट घरानों को सिंगल वींडी सिस्टम से एक सप्ताह के भी हस्तंत्रित करने की योजना बनायी है। जो झारखण्ड को पूरी तरह कंपनियों के हवाले करने की साजिश है। रघुवर के इस योजना से आने वाले समय में आदिवासीए मूलवासीए किसान सहित प्रकृति के साथ जीन वाला सभी समुदाय पूरी तरह खत्म हो जाऐगें।
सीएनटीए एसपीटी एक्ट के संशोधन से तथा भूमि बैंक के तहत गैर मजरूआ आमए खास सहित समुदाय के तमाम समुदायिक धरोहर की लूट की नीति ने ग्रामीण के लिए बने वनअधिकार कानून को भी समाप्त कर दिया।
झारखण्ड राज्य पांचवी अनुसूचि के अंतर्गत आता है। संविधान में इस इलाके के आदिवासी,किसान समुदाय को जो अधिकार दिया है,उसे भी इन दोनों कानूनों में संशोधन ने समाप्त करने की दिषा में आगे बढ़ रहा है। राज्य के गरीब परिवारों को गैर मजरूआ आख जमीन का छोटा टुकड़ा भूदान में सरकार ने 30,40 साल पहले बंदोबस्त कर दिया है। इस भूखंड को भी सरकार खाली कराने के अबैध करार देते हुए बंदोस्ती खारिज करने की योजना बना ली है। ताकि खाली कराया जा रहा भूमि भूमि बैंक के तहत कॉरपोरट घरानों को हस्तंत्रित किया जा सके।
झारखण्ड अलग राज्य की लड़ाई यहां के आदिवासी,मूलवासीए किसानों के इतिहासए भाषा,संस्कृतिए जल,जंगल,जमीनए पर्यावरण के विकास के लिए लड़ी गयी थी। भाजपा सरकार ने बिरसा मुंडा के जन्म दिन 15 नवम्बर 2000 को अगल राज्य का पर्नगठन की घोषणा की,कि यह आदिवासी राज्य है। लेकिन भाजपानीत सरकार ने न सिर्फ राज्य के आदिवासी,मूलवासी किसान समाज को धोखा दियाए परंतु प्रकृति के साथ जुडे सभी समुदाय को धोखा दिया।
यह धोखा फरवरी 2016 में आदिवासी मूलवासी विरोधी स्थानीयता नीति के रूप यहां के आम लोगों के उपर थोपा गया। जो पूरी तरह से अपने समप्रादयिकतावादी राजनीतिक ताकत को मजबूती देने के लिए आधार तैयार किया।
झारखण्ड राज्य संविधान के विशेष क्षेत्र पांचवी अनुसूचि के अंतर्गत आता है। जिसके तहत आदिवासी,मूलवासीए किसानों को अपने जल,जंगल,जमीन पर अपना परंपरागत अधिकार मिला हुआ है। इसके तहत किसी तरह का जमीन अधिग्रण की योजना होए तो गांव सभा,के सहमति के बिनाए कोई को जमीन अधिग्रहण की इजाजत नहीं है। लेकिन रघुवर सरकार ने पांचवी अनुसूचि के अधिकारों को भी खारिज करते हुए राज्य के हजारीबागए गोडा आदि जिलों में किसानों की कृर्षि जबरन अडाणी और एनटीपीसी के लिए किया जा रहा है। जिसका किसान विरोध कर रहें और सरकार किसानों को फरजी मुकदमों में फसा कर जेल में डाल रही है।
विकास के नाम पर अपना जंगल,जमीन देने वाले राज्य के करीब एक करोड आबादी आज तक विस्थापित हो चुकी है। इसमें से मात्र 4,5 प्रतिषत को ही किसी तरह से पूनर्वासित किया गया है। इन विस्थापित की स्थिति नारकीय हैए न तो रहने के लिए घर हैए न नौकर हीए न तो इनके लिए षिक्षा और स्वस्थ्य लाभ की व्यवस्था है। तब विकास का मतलब,इन पूर्व में हुए विस्थापितों को जब तक पूर्ण पुनस्थापित नहीं किया जाएगाए नया विस्थापन किसी भी कीमत में स्वीकार नहीं होगा। इसकी लड़ाई लंबे समय से लड़ी जा रही है।
रघुवर सरकार ने ग्रामीणों के आर्थिक रीढ को तोड़ने के लिए कई हथकंडा अपना रही है। राज्य की 98 प्रतिषत ग्रामीण आबादी जंगल,झाड़ए पेड़,पैधों के उत्पाद पर निर्भर करती है। महुआ इसमें से एक बड़ा आर्थिक आधार है। सरकार महुआ नीति 2017 के तहत ग्रामीणों के इस आर्थिक आधार को ही समाप्त करने का प्रयास किया है।
साथ ही ग्रामीणों के पशुधन रखनेए बेचने पर भी प्रतिबंध लगा दी है। जो पूरी तरह ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर हमला ही है। यह खाने,पीने का मामला केवल नहीं हैए यह ग्रामीण इलाकों में पशुबाजारों को भी बंद कर दिया गया है। इसके परंपरागत कृर्षि व्यवस्था पर भी प्रतिकूल असर पड़ रहा है। जो आने वाले समय में कृर्षि पर भी कंपनियां कब्जा करेगें।
मावेषियों के खरीद,बिक्री के नाम लातेहार में दो लोगों की हत्या कर पेड़ पर लटका दिया गया। रमनोमी त्यौहार के दिन सरकार के विधायक के सामने संप्रदायिक विवाद को उकसा कर मजहबी विद्वेष उत्पन्न करनाए धर्म के नाम पर समाज को बांटने की सरकार की मानसा को उजागर करता है। इसका दूसरा उदाहरण,सोनारी में बच्चा चोरी के नाम पर रचा गया साजिष को दिया गया अंजामए जिसमें छह लोगों की हत्या की कर दी गयी। यह आरएसएस और भाजपा का जाति,धर्म के नाम पर लड़ाने का ही परिणाम है।
मास्टर प्लान,राज्य के कई जिलों में मास्टर प्लान बना कर औधोगिक शहर बसाने की योजना बनायी गयी है। इसके लिए शिडयूल एरिया को ननषिडयूल एरिया में बदला जा रहा है। इसके तहत सभी जमीन जेनेरल कर दिया जा रहा है। जो आदिवासी,मूलवासी किसान विरोधी नीति है। जो आदिवासी किसान समुदाय को उजाड़ फेंकने के लिए रास्ता साफ कर दे रहा है।
पिछले वर्ष रघुवर सरकार ने रांची में मोंमेंन्टम झारखण्ड को आयोजन किया। जिसमें विकास के प्रगतिषिता के नाम पर हाथी उडाया। इस दौरान रघुवर दास ने पूंजिपतियों से वादा किया,कि जमीन की कमी नहीं है,हमारे पास 23 लाख एकड़ जमीन भूमि बैंक में है,जब आप को चाहिएए सप्ताह भर में जमीन देदेगें। इस ग्लोबल इंवेस्टर समिट में 210 कंपनियों के साथ एमओयू किया। इसमें 121 एमओयू सिर्फ उद्वोगों के लिए है और कृर्षि के लिए सिर्फ एक एमओयू किया गया है। यह सिद्व करता है,कि सरकार और कंपनियां यहां के कृष और कसानों को पूरी तरह समाप्त करने की तैयारी कर रहे है।
वर्तमान सरकार द्वारा लाये गये स्थानीयता नीति में प्रावधान कानून के लागू होने से,एक ओर दूसरे राज्यों से आयी आबादी सहित बड़े बड़े पूजिंपतियों को राज्य में आबाद करने एवं विकसित होने का बड़ा अवसर दे रहा है। दूसरी ओर राज्य के आदिवासी,मूलवासियों को अपने परंपरागत बसाहाटए धरोहर से उजाड़ने के लिए बड़ा हथियार के रूप में भूमि बैक को इस्तेमाल करने जा रहा है।
जन सम्मेलन भूमि बैंक एवं स्थानीयता नीति के प्रावधान लागू होने से आदिवासी,मूलवासी समुदाय के परंपरागत एवं संवैधानिक अधिकारो पर निम्नलिखित खतरा पड़ेगा-
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- राज्य का पर्यावरणीय परंपरागत जंगल,झाडए नदी,झील,झरनों के ताना,बाना के साथ जिंदा हैए वो पूरी तरह नष्ट हो जाएगा।
- भूमि बैंक के लागू होने से सीएनटी एक्ट एवं एसपीटी एक्ट पर हमला होगा।
- भूमि बैंक के लागू होने से पांचवी अनुसूचित के प्रावधान अधिकार खत्म हो जाएगा।
- भूमि बैंक के लागू होने से खूटकटी अधिकार एवं विलकिंषन रूलए मांझी,परगना व्यवस्था खत्म हो जाएगा।
- परंपारिक आदिवासी, मूलवासी गांवों का परंपरागत स्वाशासन गांव व्यवस्था तहस,नहस हो जाएगा।
- आदिवासी, मूलवासी किसानों के गांवों की भौगोलिक तथा जियोलोजिकल या भूमिंतत्वीयए भूगर्भीय अवस्था जो यहां के पारम्परिक कृर्षिए पर्यावरणीय ताना,बानाए पूरी तरह नष्ट हो जाएगा।
- परंपारिक आदिवासी इलाके में भारी संख्या में बाहरी आबादी के प्रवेश से आदिवासी परंपरागत सामाजिक मूल्यए सामूहिकता पूरी तरह बिखर जाएगा।
- जंगल, जमीन, जलस्त्रोंतोंए जंगली, झाड़, भूमिं पर आधारित परंपरागत अर्थव्यस्था पूरी तरह नष्ट हो जाएगें।
- स्थानीय आदिवासी,मूलवासी समुदाय पर बाहर से आने वाली जनसंख्या पूरी तरह हावी हो जाएगीए तथा आदिवासी जनसंख्या तेजी से विलोपित हो जाएगा।
- सामाजिकए आर्थिक आधार के नष्ट होने से भारी संख्या में आदिवासी,मूलवासी समुदाय दूसरे राज्यों में पलायन के लिए विवश होगी।
- आदिवासी, मूलवासी समूदाय की सामूहिक एकता को विखंडित किया जा रहा है।
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अभी प्रदेश के लोग इन परिवर्तनों के खिलाफ संघर्ष कर ही रहे थे की जून 2018 में भारत के राष्ट्रपति ने ‘>kरखंड भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक (भूमि अर्जनए पुनर्वासन एवं पुनव्र्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार कानून 2013) 2017’ को मंजूरी दे दी। अब यह विधेयक कानून का रूप लेगा। इसे 1 जनवरी 2014 से लागू माना जायेगा। इसमें खास क्या है-
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- 2013 में भूमि अर्जनए पुनर्वासन एवं पुनव्र्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार कानून 2013द्ध बनाया गया कानून हैए जिसमें रघुवर सरकार ने संशोधन किया है। नये संशोधन में सामाजिक प्रभाव का निर्धारण अर्थात सोशल इम्पैक्ट असेसमेंट को पूरी तरह समाप्त कर दिया गया है। किसी भी प्रोजेक्ट के लिए जमीन लेने से पहले सामाजिक प्रभाव यानी उसके कारण अगल,बगल में प्रभाव को समझना होता है। जमीन अधिग्रहण से क्या प्रभाव पडेगाघ् इस कानून में इसे खत्म कर दिया गया है।
- पुराने भूमि अधिग्रहण कानून 2013 में 70 प्रतिशत रैयतों की मंजूरी का जिक्र है। पर इस कानून में अब यह नहीं है। संशोधन में सामाजिक प्रभाव के चैप्टर दो एवं चैप्टर 3 में फूड सिक्यूरिटी की बात हैए जिसमें खेती के लिए कृषि योग्य भूमि की बात हैए इसे भी हटा दिया गया है।
- नये कानून के लागू होंने के बाद खेती की भूमि के अधिग्रहण से राज्य के लोगों के समक्ष भूखे मरने की नौबत आ सकती है। इसे कृषि मंत्रालय भारत सरकार ने भी माना है।
- सरकार ने बहुत चालाकी से कहा है कि इस संशोधन को 1 जनवरी 2014 से लागू माना जायेगा। 2017 के संशोधन में यह स्पष्ट है कि जब ये राष्ट्रापति के पास से लौटेगा तो 1 जनवरी 2014 से लागू हो जायेगा। रघुवर सरकार अपने निवेशकों को संरक्षित करने के साथ,साथ पहले के निवेशकों को भी लाभ पहुंचाने में लगी है। क्योंकि इस अधिनियम में जो पुराने प्रोजेक्ट लटक गये हैं उनको भी फायदा मिलेगा।
- इस संशोधन में भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के चैप्टर 2 और चैप्टर 3 को हटाने के बाद चैप्टर 3 ष्एष् ला रहे हैं। चैप्टर 3 कृषि योग्य जमीन को बचाने के लिए है। इस कानून को हटाकर 3 ष्एष् लाया जा रहा है। जिन लोगों ने इस कानून की ड्राफ्टिंग की हैए उससे लगता है कि उन्होने कितनी लापरवाही बरती है। चैप्टर 3 ष्एष् में सरकारी स्कूलए कॉलेजए पंचायतए आंगनबाड़ी सेंटर का जिक्र किया गया है। अभी तक के इतिहास में कभी इन सब के लिए जमीन को लेकर पेरशानी नहीं हुई।
- सरकार को बताना चाहिये कि 2014 के बाद इन सब के लिए जमीन लेने में कहां परेशानी हुईघ् पुराने स्कूल को ही सरकार संभाल नहीं पा रही है। सरकारी स्कूल विलय किये जा रहे हैं। हाउसिंग के लिए सरकार घर बनाने के लिए जमीन की बात कही गई है। बरियातू और हरमू में जमीन ली गई। कहा गया था कि आमलोगों के लिए एलआईजी यानी लो इनकम ग्रुप फ्लैटए एमआईजी यानी मिडिल इनकल ग्रुप फ्लैट बनेंगे। लेकिन वहां बड़े लोगए आईएएस और धोनी जैसे सेलिब्रिटी रहते हैं और अब जमीन देने वाले लोग कहां चले गयेए उसका पता नहीं। इन सभी संशोधनों से सरकार को भूमि अधिग्रहण कर जमीन निजी पूंजीपतियों को सौपने में असानी होगी।
भारतीय संविधान में हम नागरिकों को अभिव्यत्कि का अधिकार दिया है। हर व्यत्कि अपनी बातों को अपनी तरह से प्रकट कर सकता है। चाहे रैली के माध्यम सेए सभा के माध्यम सेए धरना,प्रदर्शन के माध्यम से। लेकिन आज लोकतंत्र की हत्या की जा रही है,कि हम अपनी बातों को बोलने के लिए धरना,प्रदर्शनए रैली,सभा में शामिल नहीं पर भी रोक लगायी जा रही है तथा आन्दोलनकारियों को फर्जी मुकदमों में फसाया जा रहा है।
उपरोक्त तमाम खतरों एवं बिंन्दुओं को आप के ध्यान में लाते हुए,हम जनांदोलनों का संयुक्त मोर्चाए झारखण्ड निम्नलिखित मांग रखता हैं-
- सीएनटी एक्ट एसपीटी एक्ट को कडाई से लागू किया जाए।
- गैर मजरूआ आमए गैर मजरूआ खासए जंगल,झाडीए सरना,मसनाए अखड़ा ए हडगड़ीए नदी,नालाए पाईन,झरनाए चरागाहए परंपारिक,खेत जैसे भूत खेताए पहनाईए डाली कतारीए चरागाहए जतरा टांडए इंद,टांडए मांडा,,टांड सहित सभी तरह के सामुदायिक जमीन को भूमिं बैंक में शमिल किया गया हैए को उसे भूमिं बैंक से मुक्त किया जाए तथा किसी भी बाहरी पूजिं,पतियों को हस्तंत्रित नही किया जाए
- भूमिं सुधार कानून के तहत जिन किसानों को गैर मजरूआ खास जमीन का हिस्सा बंदोबस्त कर दिया गया है,उसे रदद नहीं किया जाए
- भूमि अधिग्रहण कानून 2013 को लागू किया जाए
- वन अधिकार कानून 2006 का अक्षरशः लागू करनाण्
- किसी तरह का भी जमीन अधिग्रहण के पहले ग्रांव सभा के इजाजत के बिना जमीन अधिग्रहण किसी भी कीमत में नहीं किया जाए।
- 5वीं अनुसूचि को कडाई्र से लागू किया जाए।
- 9किसानों का लोन माफ किया जाए
- ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन रोकने के लिए मनरेगा मजदूरों का मजदूरी दर 159 रू से बढ़ा कर 500 रू किया जाए
- आदिवासी,मूलवासी विरोधी वर्तमान स्थानीयता नीति को खारिज किया जाए तथा सदियों से जल,जंगल,जमीन के साथ रचे,बसे आदिवासी,मूलवासियों के सामाजिक मूल्योंए संस्कृतिक मूल्योंए भाषा,संस्कृति इनके इतिहास को आधार बना कर 1932 के खतियान को आधार बना कर स्थानीय नीति को पूर्नभाषित करके स्थानीय नीति बनाया जाए।
- पंचायत मुख्यालयोंए प्रखंड मुख्यलयोंए स्कूलोंए अस्पतालोंए जिला मुख्यलयों में स्थानीय बेरोजगार युवाओं को सभी तरह के नौकरियों में बहाली की जाए।
- सरना कोड़ लागू किया जाए।