छत्तीसगढ़ के आदिवासियों ने सम्मेलन कर सरकार को चेताया : बहुत हुआ विनम्र निवेदन अब सिर्फ दनादन
रायपुर 19 फ़रवरी 2018 – जल, जंगल, जमीन की लड़ाई, संवैधानिक अधिकारों के हनन, अनुसूचित क्षेत्रो में बढ़ते संवैधानिक प्रावधानों की अवहेलना सरकारी आतंक , पांचवी अनुसूची,पेसा कानून और 21 सूत्रीय मांगों को लेकर भारी जनसँख्या के बीच राजधानी में हुए आदिवासी सम्मेलन को सरकार पोषित मीडिया ने राजनीतिक स्वार्थ का सम्मेलन करार दे दिया?
मुख्यधारा की टीवी मीडिया ने इसे राजनैतिक स्टंट और समाज के नाम पर राजनैतिक गतिविधियों करने का आरोप-प्रत्यारोप लगाकर घंटो टीवी डिबेट चला दिया। समाज की संवैधानिक अधिकार जल,जंगल,जमीन की मांग को डस्टबिन में डाल दिया गया, एक सामाजिक सम्मलेन को सुनियोजित तरीके से राजनैतिक रंग चढ़ा दिया गया। ख्याल रहे आगामी वर्षो में चुनावी सीजन है यह सम्मेलन सरकार पर भारी पड़ने वाली है। जिसका एहसास आदिवासी ने सम्मेलन कर दिखा दिया है ।
50 हजार से भी ज्यादा की संख्या में राजधानी रायपुर में एसटी,ओबीसी,एससी आदिवासी समाज और सम्पूर्ण मूल समाज सम्मेलन कर सरकार को चेतावनी देते अपनी बात रखी । जो पूर्णतः एक सामाजिक सम्मेलन है, और सामाजिक भागीदारी में पूर्ण हुआ, हालांकि समाज का प्रतिनिधित्व कर रहे चाहे वो बीजेपी से हो या कांग्रेस से या कोई और अन्य राजनैतिक दल से ताल्लुक रखता हो सारे प्रतिनिधियों को समाज ने आमंत्रण देकर सम्मेलन में बुलाया था, जिसमे 46 आदिवासी विधायक आते है जिनमे से सिर्फ कांग्रेस के विधायक शामिल हुए इसके अलावा भारी मात्रा में महिलाएं, विद्यार्थी, आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता अन्य राजनैतिक पार्टी के कार्यकर्ता शामिल हुए , लेकिन बीजेपी विधायकों ने सम्मेलन से दूरी बनाए रखी जबकि कार्यकर्ता सम्मलेन में उनकी जगह सिर्फ समाज के एक कार्यकर्ता के रूप में थे न कि कोई राजनीतिक पार्टी के रुप मे। शामिल पार्टी के विधायक व पदाधिकारियों ने सरकार की संवैधानिक उलंघन व शोषण को ही लेकर गरजे हालांकि आदिवासियों और सर्व समाज के संवैधानिक अधिकार जल, जंगल,जमीन की लड़ाई को मीडिया ने नजरअंदाज कर एक राजनैतिक स्टंट के रूप में परोस दिया। ये पहला दफा है जब हजारों की संख्या में आदिवासी, ओबीसी, दलित सभी मूल समुदाय के लोग एकजुट होकर राजधानी रायपुर में सम्मेलन आयोजित किया गया है , जिसके मायने सिर्फ शोषित वर्ग का लगातर हक अधिकार हनन के चलते सरकार खिलाफ एक तीव्र आक्रोश है । बस्तर की ही बात करे तो लगातार सरकारी हिंसा का तांडव आदिवासियों ने देखा है। मूल समुदाय का 70% प्रतिनिधित्व होने के बावजूद आज छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़िया हासिये पर है । सरकार द्वारा शीतकालीन सत्र में भूराजस्व संहिता संशोधन विधयेक पारित करने के बाद सरकार के खिलाफ पैदा हुई रोष रायपुर में हजारों की तादात में एक सम्मेलन का रूप ले कर आगे उग्र आंदोलन का रास्ता अख्तियार करने वाली है । महासभा ने सरकार को एक महीने का समय दिया है उसके बाद भी यही रुख रहा तो दो अनुसूचित सम्भाग सरगुजा व बस्तर में विशाल सभा कर चुनौती दी है।
सम्मेलन में सरकार को खुलेआम चेताया गया है कि आदिवासी अब आवेदन, निवेदन बहुत कर चुके अब सिर्फ दनादन होगा । अर्थात आदिवासी अब सरकार से आर-पार की लड़ाई के मुड़ में है ।
आदिवासी नेत्री सोनी सोढ़ी ने सम्मेलन में कहा कि बस्तर में बहनों के साथ अत्याचार हो रहा है. पुलिस आदिवासी महिलाओं को टॉर्चर कर रही है. आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन को छीनने की कोशिश सरकार कर रही है. उन्होंने कहा कि लेकिन आदिवासी समाज ऐसा होने नहीं देगा, बल्कि बस्तर को आज़ाद कराना है. उन्होंने कहा कि हम कमज़ोर नहीं हो सकते, बल्कि अत्याचार हमें और मज़बूत करती है.
सर्व आदिवासी समाज के संरक्षक सोहन पोटाई ने कहा कि समाज के दम में गए समाज का प्रतिनिधित्व कर रहे विधायक, सांसद बीजेपी का पेटिकन्ट्रक्टर बन गए है ।