आदिवसियों को जंगलों से उजाड़े जाने का प्रतिरोध करें : देशव्यापी विरोध प्रदर्शन में 22 जुलाई 2019 को शामिल हों
13 फरवरी 2019 को आदिवासियों को उनके जंगलों से उजाड़े जाने के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर भले ही सर्वोच्च न्यायालय ने खुद ही स्टे लगा दिया हो फिर भी वन विभाग अभी लोगों को उनकी जमीनों से उजाड़ रहा है। इस प्रक्रिया के दौरान कई स्थानों पर आदिवासियों के साथ हिंसक झड़पें भी हुई हैं। दिल्ली में 1 और 2 जुलाई, 2019 को आयोजित भूमि और वन अधिकार आंदोलनों के दो-दिवसीय राष्ट्रीय विचार-विमर्श सभा ने निर्णय लिया कि कानून में संसोधन और सरकार के कृत्यों की निंदा करते हुए 22 जुलाई को गांव, ब्लॉक, जिला और राज्य स्तर पर कार्यक्रम और विरोध प्रदर्शन आयोजित किए जाएंगे। इस निर्णय के तहत 22 जुलाई 2019 को दिल्ली के जंतर मंतर पर भूमि अधिकार आंदोलन तथा अन्य संगठनों ने एक जन प्रदर्शन का आह्ववान किया है। पढ़िए भूमि अधिकार आंदोलन का आह्वान तथा इस प्रर्दशन में शामिल हो इस जन विरोधी फैसले का विरोध करें;
जंतर मंतर, नई दिल्ली | 22 जुलाई, 2019 को 11.30 बजे से
सर्वोच्च न्यायालय के 13 फरवरी, 2019 के फैसले के कारण लाखों आदिवासियों और अन्य पारंपरिक वनवासी समुदायों पर जंगलों से उजाड़े जाने का खतरा मंडरा रहा है. यदि वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) के तहत दावों को खारिज कर दिया जाता है, तो राज्यों को आदिवासियों और पारंपरिक वनवासियों को जंगलों से उजाड़ने का निर्देश दिया गया है.
देशव्यापी विरोध प्रदर्शन के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में संशोधन किया और इसे 10 जुलाई, 2019 तक रोक दिया. जबकि 28 फरवरी 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने आदिवासियों को हटाने के अपने पहले के आदेश पर स्टे लगा दिया, लेकिन वन विभाग अभी भी लोगों को उनकी जमीनों से भगा रहा है और उनके खेत बर्बाद कर रहा है.
इस तरह के कई मामले विभिन्न राज्यों में 13 फरवरी 2019 के बाद से सामने आए हैं. सर्वोच्च न्यायालय 24 जुलाई, 2019 को विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करने वाला है. भाजपा सरकार कार्पोरेट लूट का रास्ता साफ करने के लिए और आदिवासी लोगों का शोषण करने के लिए भारतीय वन अधिनियम, 1927 में दमनकारी संशोधन का भी प्रस्ताव ला रही है.
दिल्ली में 1 और 2 जुलाई, 2019 को आयोजित भूमि और वन अधिकार आंदोलनों के दो-दिवसीय राष्ट्रीय विचार-विमर्श सभा ने निर्णय लिया कि कानून में संसोधन और सरकार के कृत्यों की निंदा करते हुए 22 जुलाई को गांव, ब्लॉक, जिला और राज्य स्तर पर कार्यक्रम और विरोध प्रदर्शन आयोजित किए जाएंगे. देश के विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों को सुप्रीम कोर्ट में वन अधिकार अधिनियम और आदिवासियों के पक्ष में हस्तक्षेप करने के लिए पत्र लिखा गया है.