विकास के बोझ से डूबती नर्मदा नदी की कहानी
नर्मदा की वर्तमान स्थिति का आकलन
नर्मदा नदी की कुल लम्बाई 1312 कि.मि. है जिसमें 1079 कि.मि.की यात्रा मध्यप्रदेश में पुरा करती है। नर्मदा बेसिन का कुल जलग्रहण क्षेत्र 98 हजार 796 वर्ग किलोमीटर है। इसका करीबी 86 फीसदी मध्यप्रदेश, 11 फीसदी गुजरात, 2 फीसदी महाराष्ट्र और करीब एक फीसदी छत्तीसगढ़ में आता है। नर्मदा बेसिन में सम्मिलित जिलों की आबादी सन् 1901 में लगभग 78 लाख थी जो 2001 में 3.31 करोड़ हो गई। अनुमान है कि 2026 आते- आते आबादी 4.81 करोड़ हो जाएगा तब नर्मदा घाटी के प्राकृतिक संसाधनों पर भारी दबाव होगा।
नर्मदा को प्रदुषित करते शहर
नर्मदा किनारे छोटे- बङे शहरों का मलमुत्र नर्मदा में गिरता है। बरगी से भेङाघाट के बीच करीब 60 नालों की गंदगी हर दिन नर्मदा में मिल रहा है। इन नालों से 30 लाख लीटर प्रति घंटा गंदा पानी नर्मदा में मिल रहा है । जबकि 4.5 लाख प्रति घंटा नगर निगम के वाटर ट्रिटमेंट की क्षमता है अर्थात 25.5 लाख लीटर प्रति घंटा पानी बीना ट्रिटमेंट के नदी में मिलता है। जबलपुर में नर्मदा नदी को प्रदूषित करने में शहर के आस-पास करीब 100-150 डेयरियां है, जहां से निकलने वाला मवेशियों का मलमुत्र नर्मदा की सहायक नदी परियट और गौर में गिरता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट 2015 के अनुसार मंडला से भेङाघाट के बीच 160 कि.मि., सेठानी घाट से नेमावर के बीच 80 कि.मि. और गुजरात में गरूरेशवर से भरूच के बीच नर्मदा प्रदुषित है। आश्चर्य की बात है कि जिस आबादी का मलमुत्र ढोने के लिए नर्मदा अभिशप्त है। वे सभी शहर पेयजल के लिए नर्मदा पर ही निर्भर है।
बूँद- बूँद नर्मदा जल का दोहन
राजस्थान में बाड़मेर से लेकर गुजरात के सौराष्ट्र और मध्यप्रदेश के 35 शहरों और उद्योगों की प्यास बुझाने की जिम्मा नर्मदा पर है।इंदौर, भोपाल समेत मध्यप्रदेश के 18 शहरों को नर्मदा का पानी दिया जा रहा है। नर्मदा के पानी को क्षिप्रा, गंभीर, पार्वती, ताप्ती नदी सहित मालवा, विंध्य और बुंदेलखंड तक पानी पहुंचाने की योजना बनी है।
गंगा-यमुना की तरह नर्मदा ग्लेशियर से निकलने वाली नदी नहीं है। यह मुख्य रूप से वर्षा और सहायक नदियों के पानी पर निर्भर है।नर्मदा की कुल 41 सहायक नदियां है। सहायक नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में जंगलों की बेतहाशा कटाई के चलते ये नदियाँ अब नर्मदा में मिलने की बजाय बीच रास्ते में सुख रही है। केंद्रीय जल आयोग द्वारा गरूडेश्वर स्टेशन से जुटाये गये वार्षिक जल प्रवाह के आंकड़ों से नर्मदा में पानी की कमी के संकेत मिलते हैं।
खनन से खोखली होती नर्मदा
नर्मदा घाटी में बाक्साइट जैसे खनिजों की मौजूदगी भी नर्मदा के लिए संकटों की वज़ह बनी है। नर्मदा के उदगम वाले क्षेत्रों में 1975 में बाक्साइट का खनन शुरू हुआ था।जिसके कारण वनों की अंधाधुंध कटाई हुईं। जहां बालको कम्पनी ने 920 हैक्टर क्षेत्र में खुदाई कर डाली है वहीं हिंडालको ने 106 एकड़ क्षेत्र में खनन किया था। अब खनन कार्य पर रोक लगा दी गई है परन्तु तबतक पर्यावरण को काफी क्षति पहुंच चुकी थी। दिसंबर 2016 में डिंडोरी जिले में बाक्साइट के बङे भंडार का पता चला था। इसका पता लगते ही भौमिकी एवं खनकर्म विभाग ने जिले के दो तहसीलों में बाक्साइट की खोज अभियान शुरू कर दिया था। इस खनन का विरोध होने के कारण मामला शांत है। अपर नर्मदा बेसिन के डिंडोरी और मंडला जिले में वनस्पति और जानवरों का जीवाश्म बहुतायत में पाये जाते हैं।जानकार बताते हैं कि दोनों ज़िले अंतराष्ट्रीय महत्व के स्थल हैं। यहां जीवाश्म सबंधि कई महत्वपूर्ण खोज हुई है और बहुत सा शोध कार्य होना बाकी है। इसके अलावा ये जिले कान्हा नेशनल पार्क और अचानकमार- अमरकंटक वायोसफियर रिजर्व को जोङता है।बाक्साइट खनन जैसे भावी खतरों के अलावा यहां मुरम और लाल पीली पाया जाना भी पहाड़ के नंगे होते जाने का कारण है। रेत खनन जैसे मौजूदा हमले नर्मदा बेसिन को खोखला बना रहा है। बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय के सरोवर विज्ञान ने नर्मदा के तटीय क्षेत्रों पर किए गए अध्ययन में बताया है कि नर्मदा के तटीय क्षेत्र जो कभी 500 से1000 मीटर तक हुआ करते थे वे अब सिमटकर बिलकुल किनारे तक आ गए हैं।
राख से खाक करने की तैयारी
सौंदर्य की नदी नर्मदा में जितना भी सौंदर्य बचा है, वह भी यात्रा वृत्तांत के पन्नों में सिमटने वाला है। नर्मदा नदी के किनारे प्रस्तावित 18 थर्मल एवं परमाणु बिजली परियोजना कि स्थापित क्षमता 25 हजार 260 मेगावाट है। 22 हजार 460 मेगावाट की थर्मल पावर प्लांट में से झाबुआ घंसौर (सिवनी),बीएलए गाडरवारा (नरसिंहपुर),एनटीपीसी गागाडरवारा (नरसिंहपुर),सिंगाजी(खंडवा) और एनटीपीसी खरगोन की 6 हजार 900 मेगावाट क्षमता वाली थर्मल पावर प्लांट शुरू हो चुका है। 1 मेगावाट बिजली बनाने हेतु प्रति घंटा लगभग 3 हजार 238 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। प्रस्तावित थर्मल बिजली परियोजना लगने पर नर्मदा से प्रति घंटा 7 करोड़ 27लाख 25 हजार 480 लीटर प्रती घंटा पानी निकाला जाएगा। 1 मेगावाट बिजली उत्पादन करने के लिये 0.7 टन कोयला के हिसाब से 15 हजार 722 टन कोयला प्रति घंटा जलेगा तो 40 प्रतिशत राख निकलेगा। अर्थात 6 हजार 289 टन राख प्रति घंटा निकलने पर इसका निपटारा करना सरल नहीं होगा। सारणी सतपुड़ा थर्मल पावर प्लांट के अनुभव से पता चलता है कि इस पवार प्लांट से निकलने वाली राखङ तवा नदी में बहाने से पानी दुधिया हो जाता है और मछलियाँ मर जाती है। स्थानिय लोग बताते हैं कि नदी में नहाने से चमड़ी बहुत जलती है और त्वचा तथा फेफड़ों से जुड़ी कई तरह की बीमारियां हो जाती है।
बरगी बांध के विस्थापित गांव चुटका में प्रस्तावित 2 हजार 800 मेगावाट की परमाणु उर्जा परियोजना की अलग ही कहानी है। चुटका परियोजना में भारी मात्रा में गर्मी लगभग 3 हजार 400 डिग्री सेंटीग्रेड पैदा होगा जिसे ठंडा करने के लिए 7 करोड़ 88 लाख 40 हजार घन मीटर पानी प्रति वर्ष लगेगा। यह पानी काफ़ी मात्रा में भाप बनकर खत्म हो जाएगा तथा जो पानी बचेगा वो विकिरण युक्त युक्त होकर नर्मदा नदी को प्रदूषित करेगा।विकिरण युक्त इस जल का दुष्प्रभाव जबलपुर, नरसिंहपुर, होशंगाबाद, बडवानी सहित नदी किनारे बसे अनेक शहर और ग्राम वासियो पर पङेगा क्योंकि वहां की जलापूर्ति नर्मदा नदी से होता है। रेडियो धर्मी पानी से जलाशय की मछलियाँ और वनस्पति प्रदूषित होगी तथा उन्हे खाने वाले लोगों को कैंसर, विकलांगता और अन्य बिमारियों का खतरा रहेगा।
जैसे- जैसे बिजली परियोजना का जाल फैलेगा उनके पीछे- पीछे उनसे भी घना उद्योगों का जाल फैलेगा।
शायद ही दुनिया में ऐसी कोई दूसरी नदी होगी जो जल बंटवारे, जंगलों के विनाश, बङे बांधों के निर्माण, लाखों लोगों के विस्थापन और पुनर्वास को लेकर दशको तक जन आंदोलनों और विवादों में घिरी रही है। इनमें से कई संकट गहराते जा रहे हैं तो कई नए खतरे पैदा हो गए हैं।