फुकुशिमा परमाणु दुर्घटना के 10 वर्ष : सबक और सीख
जापान में 11 मार्च 2011 को आए भूकंप के बाद उठी विनाशकारी सुनामी लहरों की चपेट में फुकुशिमा परमाणु उर्जा संयत्र आ गया था। इसके बाद फुकुशिमा दायची परमाणु बिजली संयंत्र में रेडियोधर्म रिसाव हो गया था। इस हादसे में करीब 20 हजार लोगों की मौत हो गई थी। इससे फैले विकिरण से आस – पास के 20 किलोमीटर के इलाके प्रभावित है।लगभग 30 किलोमीटर इलाके को खाली करा कर 3.54 लाख लोगों को अस्थाई घरों में भेजा गया था।
3 करोड टन रेडियोएक्टिव कचरा जमा हो गया था, जिसे हटाने में 94 हजार करोङ रूपया खर्च किया जा चुका है। लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि विकिरण को पुरी तरह साफ होने में 30 वर्ष लगेगें।परमाणु दुर्घटना की जांच के लिए गठित समिति द्वारा पेश रिपोर्ट में कहा गया है कि “यह संकट प्राकृतिक कारणों से शुरू हुआ। लेकिन जो परमाणु बिजली संयंत्र, उसे प्राकृतिक आपदा नहीं कहा जा सकता है।यह पुरी तरह से मानव निर्मित था। अनुमान लगा कर रोका जा सकता था और रोका जाना चाहिए था।” जापान जैसा विकसित एवं तकनीकी मामले में सक्षम देश इस घटना को रोक नहीं पाया तो भारत में क्या होगा? इसका सहज अनुमान लगाना कठिन नहीं है।
फुकुशिमा के पहले दुनिया की 73 फीसदी परमाणु बिजली केवल 6 देशों (फ्रांस, जर्मनी,अमेरिका,रूस, दक्षिण कोरिया और जापान) में पैदा होती थी। इनमें से जापान और जर्मनी ने परमाणु बिजलीघर बंद करने का फैसला किया है। इटली ने चेर्नोबिल की दुर्घटना के बाद ही अपने कार्यक्रम को बंद कर दिया था। कजाकिस्तान ने 1999 और लिथुआनिया 2009 में अपने एक मात्र रिएक्टर को बंद कर दिया है। इसलिए अमेरिका, फ्रांस और रूस आदि की कम्पनिया भारत में ठेके आर्डर पाने के लिए बेचैन है।
भारत की विभिन्न सरकारें परमाणु उर्जा सबंधित परियोजनाओं को भी तमाम कानूनो और प्रावधानों को ताक पर रखकर मंजूरी दे रही है। भारत की ऊर्जा जरूरतों के लिए परमाणु उर्जा की अनिवार्यता का दावा एक छलावा है।बङे पैमाने पर परमाणु परियोजनाओं को लागु किये जाने के पीछे असल में भारत सरकार द्वारा अमेरिका और अन्य देशों के किये गए उन वायदों को पुरा करना है जो भारत- अमेरिका परमाणु करार आपूर्तिकर्ता समूह के नियमों से छूट के बदले किए गए थे। इस विस्तार से उन घरेलू और अंतरराष्ट्रीय औधौगिक लाॅबियों को मुनाफा होगा जो इन परियोजनाओ में उपकरण और ठेके मुहैय्या कराएंगी। परमाणु परियोजनाएं अत्यधिक महंगी तथा स्थानिय खतरों,नियमन की कमीयों एवं परमाणु तकनीक में निहित खतरों की वजह से विनाश का कारण बन सकती है। हमारी असल प्राथमिकताएं पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ और बंटबारे के लिहाज से न्यायसंगत उर्जा व्यवस्था को कायम करना है।