किसानों को आत्महत्या करने पर मजबूर करेगा इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020; बिल के खिलाफ संघर्ष का ऐलान
जब पूरा देश लॉक डाउन में अपने घरों में कैद था उसी समय मोदी सरकार ने इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट ) बिल 2020 का मसौदा 17 अप्रैल को जारी किया . बिल को लेकर गरीब, मजदूर, किसान और बिजली कर्मचारियों में खासा आक्रोश है. नर्मदा बचाओ आन्दोलन द्वारा प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल, 2020 को वापस लेने की मांग की गई है यदि मोदी सरकार इस जनविरोधी बिल को वापस नहीं लेती है तो इस के खिलाफ कड़ा संघर्ष किया जायेगा. फिलहाल इसके विरोध में देशभर के लगभग 15 लाख बिजली कर्मचारी 1 जून को काली पट्टी बांधकर विरोध प्रदर्शन करेंगे.
28 मई 2020 नयी दिल्ली. हाल ही में जब पूरा देश कोरोना महामारी के संकट से लड़ रहा है तब अचानक केंद्र सरकार ने इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट ) बिल 2020 का मसौदा 17 अप्रैल को जारी किया है और केंद्र सरकार इसे संसद के मानसून सत्र में जुलाई में पारित करना चाहती है. यह बिल यदि पास होता है तो किसानों व् गरीबों की बिजली के दाम कई गुना बढ़ने से न सिर्फ किसान आत्महत्या के लिये मजबूर होगा वरन करोड़ों गरीबों के घर में अँधेरा छा जायेगा. भारत की खाद्यान आत्मनिर्भरता ख़त्म होगी. केंद्र सरकार द्वारा देश के संघीय ढांचे को तोड़कर बिजली क्षेत्र पर सम्पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर लिया जायेगा. नर्मदा बचाओ आन्दोलन के आलोक अग्रवाल द्वारा आज प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर इस जन विरोधी बिल को तत्काल वापस लेने की मांग की गयी है साथ ही मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री से मांग की गयी है कि वह प्रदेश की जनता के हित में केंद्र के समक्ष अपना विरोध दर्ज कराएँ.
क्या है इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल, 2020 ?
केंद्र सरकार द्वारा 17 अप्रैल को इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 जारी किया गया है. इस बिल द्वारा इलेक्ट्रिसिटी एक्ट, 2003 में व्यापक बदलाव लाये जायेंगे. लाये जा रहे कुछ प्रमुख बदलाव निम्न हैं-
· सब्सिडी व् क्रास सब्सिडी समाप्त करना
· डिस्ट्रीब्यूशन सब लाइसेंसी और फ्रेंचाइजी नियुक्त करना
· इलेक्ट्रिसिटी कॉन्ट्रैक्ट एनफोर्समेन्ट अथॉरिटी का गठन
· विद्युत नियामक आयोग की नियुक्ति में केंद्र सरकार का सीधा नियंत्रण
इन बदलावों का दुष्प्रभाव निम्न रूप से देखा जा सकता है.
किसानों को आत्महत्या करने पर मजबूर करेगा यह बदलाव : खाद्यान की आत्मनिर्भरता ख़त्म होगी
नए क़ानून के अनुसार बिजली दरों में मिलने वाली सब्सिडी पूरी तरह समाप्त हो जाएगी और किसानों सहित सभी घरेलू उपभोक्ताओं को बिजली की पूरी लागत देनी होगी. उल्लेखनीय है कि किसानों को खेती घाटे में न जाये इसलिये अभी किसानों को कम दरों पर बिजली मिलती है. यदि किसानों की सब्सिडी ख़त्म कर दी गयी तो बिजली के दाम कई गुना बढ़ने से खेती भीषण घाटे में चली जायेगी और इससे न सिर्फ किसान बर्बाद होगा और आत्महत्या करने पर मजबूर होगा वरन हमारे देश की खाद्यान में आत्मनिर्भरता ख़त्म हो जायेगी.
इस बिल में कहा गया है कि किसान पहले पूरा बिल भर दे फिर बाद में सरकार चाहे तो बिजली की सब्सिडी की धनराशि किसान के बैंक खाते में डाल सकती है. राज्य सरकार सब्सिडी की राशि को डालने में कई महीने लगा सकती है. पर इस व्यवस्था में पहले किसान को भारी राशि जमा करनी होगी और यदि वह यह राशि जमा नहीं कर पाया तो उसकी बिजली काट दी जायेगी. ऐसे में किसान की बिजली कटने पर उसकी पूरी फसल बर्बाद हो जायेगी.
प्रधानमंत्री जी ने “आत्मनिर्भर भारत” का नारा दिया है, परन्तु इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल, 2020 देश की जनता के लिये सबसे जरुरी “खाद्यान आत्मनिर्भरता” को ही ख़त्म कर देगा.
करोड़ों गरीबों के घर में लायेगा अँधेरा
अत्यंत गरीब लोगों को आज सस्ते दरों पर दी जाने वाली घरेलु बिजली के दामों की सब्सिडी भी हटा दी जायेगी. यह सब्सिडी हटते ही, बिजली के दामों में भयावह वृद्धि होने के कारण विवश होकर इन गरीब परिवारों को अपनी बिजली कटवानी पड़ेगी. परिणामतः देश के करोड़ो परिवारों के घरों में अँधेरा हो जायेगा.
डिस्ट्रीब्यूशन सब लाइसेंसी और फ्रेंचाइजी नियुक्त करना : जनता के पैसे पर निजी कंपनियों का कब्ज़ा
इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 के अनुसार विद्युत वितरण कंपनी “डिस्ट्रीब्यूशन सब लाइसेंसी” की नियुक्ति करेगी और डिस्ट्रीब्यूशन सब लाइसेंसी आपूर्ति के लिए “फ्रेंचाइजी” की नियुक्ति करेगा. इस प्रकार डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क सब लाइसेंसी के पास चला जाएगा और आपूर्ति फ्रेंचाइजी के पास. इससे साफ़ है कि जनता के अरबों खरबों रुपए खर्च कर बनाया गया विद्युत वितरण का नेटवर्क मुफ्त में निजी कंपनियों की डिस्ट्रीब्यूशन सब लाइसेंसी और फ्रेंचाइजी को मुनाफा कमाने के लिए सौंप दिया जाएगा.
विद्युत वितरण में निजी क्षेत्र के फ्रेंचाइजीकरण का प्रयोग भारत में कोई नया नहीं है. यह प्रयोग सबसे पहले महाराष्ट्र में भिवंडी से शुरू हुआ था. महाराष्ट्र में ही औरंगाबाद, नागपुर, जलगांव, मध्यप्रदेश में उज्जैन, ग्वालियर, सागर, बिहार में गया, मुजफ्फरपुर, भागलपुर में निजी कंपनियों को दिए गए फ्रेंचाइजी करार उनकी अक्षमता के कारण निरस्त किये जा चुके हैं. उत्तर प्रदेश में आगरा में फ्रेंचाइजी के घोटाले को लेकर सीएजी की रिपोर्ट में बड़ा खुलासा किया जा चुका हैं. देश में सबसे पहले उड़ीसा में वितरण का निजीकरण हुआ था जो पूरी तरह विफल रहा और 2015 में निरस्त किया जा चुका है.
अतः स्पष्ट रूप से एक विफल रहे अनुभव को दोहराना पुनः विफलता को आमंत्रित कर निजी कंपनियों के हित साधने के लिये आम जनता के पैसे की बर्बादी लायेगा.
केंद्र सरकार का संघीय ढांचे को तोड़कर सम्पूर्ण नियंत्रण का प्रयास : राज्य विद्युत नियामक आयोग की नियुक्ति में केंद्र सरकार का सीधा नियंत्रण
किसी भी राज्य बिजली व्यवस्था का सम्पूर्ण नियंत्रण राज्य विद्युत नियामक आयोग द्वारा किया जाता है. इस आयोग का गठन राज्य सरकार द्वारा किया जाता है. इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 के अनुसार अब केंद्र सरकार की चुनाव समिति सभी राज्यों के राज्य विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष व् सदस्यों को नियुक्त करेगी. इस समिति में उक्त राज्य का कोई प्रतिनिधि शामिल नहीं होगा. बिजली का विषय भारतीय संविधान की समवर्ती सूचि (concurrent list) में आता है अर्थात यह विषय केंद्र व् राज्य दोनों के आधीन है. परन्तु इस प्रकार केंद्र सम्पूर्ण निर्णय शक्तियां अपने हाथ में लेकर देश के संघीय ढांचे को तोड़कर सम्पूर्ण नियंत्रण अपने हाथ में ले लेगी.
इलेक्ट्रिसिटी कॉन्ट्रैक्ट एनफोर्समेन्ट अथॉरिटी का गठन : संघीय ढांचे को तोड़ने का एक और प्रयास
इलेक्ट्रिसिटी (अमेंडमेंट) बिल 2020 के द्वारा एक नयी “इलेक्ट्रिसिटी कॉन्ट्रैक्ट एनफोर्समेन्ट अथॉरिटी” का गठन होगा, जिसका काम विद्युत वितरण कंपनी और निजी क्षेत्र की बिजली उत्पादन कंपनियों के बीच बिजली करार का पालन सुनिश्चित कराना होगा. आज किसी भी समझौते को लागू करने के लिए राज्य विद्युत नियामक आयोग के पास और भारतीय कॉन्ट्रैक्ट एक्ट में पर्याप्त व्यवस्था है. इस प्रकार “इलेक्ट्रिसिटी कॉन्ट्रैक्ट एनफोर्समेन्ट अथॉरिटी” बनाकर अनावश्यक केन्द्रीय नियंत्रण किया जायेगा जो भी भारत की संघीय व्यवस्था में दिए गए राज्यों के अधिकारों के प्रति गहरा कुठाराघात होगा.
बिल तत्काल वापस लें : कड़ा संघर्ष किया जायेगा
नर्मदा बचाओ आन्दोलन के आलोक अग्रवाल ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर मांग की है कि इस जन विरोधी बिल को तत्काल वापस लिया जाये. साथ ही आन्दोलन ने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री से मांग की है कि वह प्रदेश की जनता के हित में केंद्र के समक्ष अपना विरोध दर्ज कराएँ और इस बिल को वापस लेने की मांग करें.
आन्दोलन चेतावनी देता है कि यदि यह जन विरोधी बिल वापस नहीं लिया गया तो हर किसान, मजदूर, आम व्यक्ति के बीच इसके भयावह परिणामों को ले जाया जायेगा और इसे कानून बनने से रोकने के लिये कड़ा संघर्ष किया जायेगा.
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