छत्तीसगढ़ : आदिवासियों पर बढ़ते अत्याचार के खिलाफ तीन दिवसीय सम्मेलन शुरू
रायपुर- छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के गोंडवाना भवन टिकरापारा में 02 फरवरी 2018 से 04 फरवरी 2018 तक आदिवासी भारत महासभा (ए.बी.एम) का अखिल भारतीय सम्मेलन के प्रथम दिन 02 फरवरी को गोंडवाना भवन से रैली निकाली गई जो टिकरापारा, कालीबाडी होते हुए बुढ़ातालाब धरना स्थल पर आमसभा में परिवर्तित हुई। इस रैली में देश भर से आए 300 से ज्यादा सदस्यों ने भाग लिया और रैली को सफल बनाया।
इस अवसर पर आमसभा को संबोधित करते हुए आदिवासी एकता परिशद से आए राजू काषीनाथ दादोडे ने कहा कि भारत की आबादी में आदिवासियों या अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत आने वाली जनता की आबादी 12.5करोड़ से ज्यादा है। दलित, या अनुसूचित जाति के साथ-साथ,ये समाज के सबसे उत्पीड़ित व आक्रोशित तबके हैं। 1857के महान विद्रोह के ठीक पहले संथाल विद्रोह फूट पड़ा था। केरल से लेकर राजस्थान, मध्य-भारत, ओड़िसा-झारखण्ड और उत्तर-पूर्व तक, आदिवासियों ने ब्रिटिश उपनिवेशवादियों और उनके अनुचरों के खिलाफ अविराम संघर्ष किया था।1881-1895 के दौरान कोल और संथाल विद्रोह के निर्मम दमन के बाद, रांची और सिंहभूम इलाके के संथालों एवं अन्य आदिवासियों ने एक बार फिर बिरसा मुण्डा के नेतृत्व में विद्रोह का बिगुल फूंक दिया था। लेकिन वर्तमान समय में ऐसे विद्रोहों की कमी के चलते आदिवासियों की उपेक्षा और शोषण निरंतर बढता जा रहा है। वाड वन बंदरगाह, बुलेट ट्रेन,आर्थिक औद्योगिक कॉरिडोर एवं पॉवरग्रिड के खिलाफ पालघर महाराष्ट्र में संघर्ष जारी है।
राजस्थान मजदूर किसान यूनियन के साथी विरेन लोबो ने कहा कि आदिवासियों के हितों को ध्यान में रखकर बनाए गये ब्छज्। सी.एन.टी.ए कानून एवं च्ज्। एस.पी.टी.ए कानून में बदलाव करने और खत्म करने पर तुली हुई है। इससे स्पष्ट है कि सरकार को शोषित व पीडित जनता की जरा भी चिंता नही है और वह जनता को सरकार के रहमो-करम पर जीने को मजबूर करना चाहती है। वनीकरण मुआवजा, जंगलों व जमीन को हडपने की साजिष है जो विकास परियोजनाओं की आड में कार्पोरेटों के निहित स्वार्थ की पूर्ति करेगा। जनजीवन व पर्यावरण पर इसके प्रभाव तथा वन अधिकार कानून को अनदेखा करते हुए काम्पा एक्ट2011 को पारित किया गया। इस जन-विरोधी कानून को तत्काल वापस लिया जाना चाहिए। उन्होंने आव्हान् किया कि जन अधिकारों को कुचलने के सभी प्रयास सरकार बंद करे एवं जन समुदायों के पारंपरागत अधिकारों की रक्षा एवं सम्मान करे।
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माक्र्सवादी-लेनिनवादी) रेड स्टार के महासचिव कॉमरेड के.एन.रामचन्द्रन ने कहा कि मूलवासियों के विश्वव्यापी आन्दोलन के चलते संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा ‘‘मूलवासी जनता’’के लिए विशेष प्रावधान किये गये 9 अगस्त को विष्व आदिवासी दिवस घोशित किया गया। किन्तु भारतीय राजसत्ता ने आदिवासियों के पक्ष में केवल सांकेतिक कानून ही बनाये हैं, जैसे कि आदिवासी भूमि संरक्षण कानून 1970,वन अधिकार कानून, आदि। आदिवासी जनता का भौतिक और सांस्कृतिक जीवन दोनो दिन-ब-दिन तबाह होता जा रहा है। आदिवासियों के विषाल बहुमत को जमीन, आवास, शिक्षा और रोजगार से वंचित रखा गया है । भा.क.पा (मा-ले) रेड स्टार के महासचिव ने ए.बी.एम के संघर्शों को पूर्ण रुप से समर्थन देने की बात कही।
एन.डी.पी.एफ के साथी रामदेव गुप्ता ने कहा कि आदिवासी जनता के लिए जमीन क्रय-विक्रय की वस्तु नहीं है, किन्तु मुद्रा प्रचलन के साथ-साथ निजी सम्पत्ति और जमीन के निजी मालिकाना के कारण हर क्षेत्र में आदिवासियों की अवस्था बदतर होती जा रही है। संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत आदिवासियों की जमीन को दिये गये संरक्षण का कोई परिणाम नहीं निकला है, क्योंकि सत्तासीन बड़े पूंजीपतियों और भूस्वामियों का गठजोड़ कानूनों की खामियों का इस्तेमाल कर इसकी अवहेलना करता है। नौकरशाहों, वन विभाग के अधिकारियों और राजनेताओं की मिलीभगत से बेनामी हस्तांतरण, बोगस करारनामे, इत्यादि के जरिए आदिवासियों को उनकी जमीन से बड़े पैमाने पर अलग किया जा रहा है। इसका प्रतिरोध करना है और आदिवासियों से ली गयी सम्पूर्ण जमीन उन्हें वापस किया जाना चाहिए।
छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष जनकलाल ठाकुर ने कहा कि आदिवासियों की समस्या महज आदिवासी पहचान का प्रष्न नहीं है, आदिवासी जनता की पहचान, संस्कृति, भाषा जैसे खास पहलुओं पर जोर देते समय भी इस तथ्य को ध्यान में रखना चाहिए कि इनका विशाल बहुमत अद्र्ध-सर्वहारा है, जिसमें भूमिहीन-गरीब किसान, खेत मजदूर, बंधुआ मजदूर “शामिल हैं। इसके साथ-साथ,आदिवासी जनता का गैर-आदिवासी मेहनतकश जनता के साथ भाईचारा सुदृढ़ करना चाहिए।
आदिवासी भारत महासभा के छत्तीसगढ संयोजक भोजलाल नेताम ने कहा कि प्रथम अखिल भारतीय सम्मेलन ऐसे समय में होने जा रहा है जहां तथाकथित विकास के नाम पर बड़े उद्योगपतियों, कॉरपोरेट घरानों के हित में जल, जंगल,जमीन, खनिज संपदा और पर्यावरण की बेतहाषा लूट मची है। कथित विकास परियोजनाओं के नाम पर, अभ्यारण्य व रिजर्व फॉरेस्ट, टाईगर प्रोजेक्ट, तथा माओवादियों का खत्मा करने के नाम पर सदियों से जंगल क्षेत्र में रह रहे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन जाति, पिछड़े वर्गों को उनके जमीन एवं गांवों से ही बेदखल किया जा रहा है, निर्दोश आदिवासियों की निमर्म हत्या की जा रही है, महिलाओं पर दमन, बलात्कार व फर्जी मामले बनाकर उन्हें जेलों में डाला जा रहा है। जमीन,जीविका, पर्यावरण और आदिवासियों के जीवन की रक्षा आज के दौर में गंभीर चुनौती है और ये सब चुनौतियां द्वारा ऊपर के कुछ अमीर लोंगों की विकास और सम्पन्नता के मद्देनजर पैदा किया गया है। छत्तीसगढ़ सरकार भू-राजस्व संहिता में संषोधन कर आदिवासियों से उनकी जमीन छीनने के लिए यह कानून लेकर आई है, जिसे जनता के विरोध के चलते भाजपा की रमन सरकार ने फिलहाल वापस लेने की बात कही है लेकिन इसे अब तक कानूनसम्मत तरीके से वापस नहीं लिया गया है। इसके खिलाफ प्रदेश की आदिवासी जनता व जनवादी ताकतें लगातार विरोध कर रहे हैं।
भा.क.पा (मा-ले) रेड स्टार के छत्तीसगढ़ राज्य सचिव एवं ए.बी.एम के समन्वयक कॉमरेड सौरा यादव ने कहा कि छ.ग. के पूरे भूगोल का 44 प्रतिषत क्षेत्र वन से आच्छादित है,आदिवासी समाज की आबादी प्रदेश में लगभग 32 प्रतिषत है। 11 हजार से अधिक गांव जो वनों से पांच किलोमीटर की परिधि मे एवं नौ हजार गांव वनों के भीतर बसे हुए हैं जिनकी आजिविका व निस्तार पूर्णतः वनों पर आश्रित है। प्रदेश मे अभी तक वन अधिकार मान्यता कानून 2006 का सही ढंग से क्रियान्वयन नहीं हो रहा है और न ही इस कानून का राज्य सरकार द्वारा सही ढंग से प्रचार प्रसार किया जा रहा है बल्कि कानून की क्रियान्वयन की प्रक्रिया को ही बंद करने की कोशिश किया जा रहा है। वन अधिकार मान्यता कानून की धारा (4) उपधारा (5) तथा केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के 30 जुलाई 2009 के आदेश के अनुसार किसी भी वन भूमि का डायर्वसन तब तक नहीं किया जा सकता जब तक वन अधिकार मान्यता की प्रक्रिया समाप्त नहीं हो जाती है। लेकिन राज्य सरकार बड़े पैमाने पर उद्योगपतियों तथा कॉरपोरेट घरानों को फायदा पहुंचाने के लिए झूठे व डरा धमका कर ग्राम सभा आयोजित कर आदिवासियों का जमीन छीनने का घिनौना खेल जारी है।
रैली में आए हुए अन्य वक्ताओं में मध्य प्रदेश के कॉमरेड विजय कुमार, झारखंड से कॉमरेड वषिश्ठ तिवारी एवं हेमंत दास,तेलंगान से कॉमरेड सायदुलु, ओड़िसा से कामरेड बिबेक रंजन, विजेन्द्र तिवारी, नरोत्तम “शर्मा, एवं अन्य साथियों ने अपने विचार रखे। कार्यक्रम का संचालन कॉमरेड तेजराम विद्रोही ने किया।