वनाधिकार कानून के प्रभावी क्रियान्वयन की मांग को लेकर छत्तीसगढ़ के आदिवासी 23 अगस्त से अनिश्चितकालीन क्रमिक अऩशन पर
आदिवासियों के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय की भूल सुधार के रूप में बने वनाधिकार कानून का प्रत्यक्ष उल्लंघन अगर कहीं दिख रहा है तो वह आदिवासी क्षेत्रों में ही दिख रहा है। जिन संसाधनों पर आदिवासी समुदाय का कब्जा होना चाहिए था उन्हें बड़ी ही बेशर्मी के साथ अडानी और अंबानी जैसे उद्योपतियों के हवाले किया जा रहा है। वनाधिकार कानून के प्रभावी क्रियान्यवयन के लिए छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग के आदिवासी 23 अगस्त से अऩिश्चितकालीन क्रमिक अनशन पर बैठे हैं। पढ़िए आलोक शुक्ला की यह टिप्पणी;
छत्तीसगढ़ वन अधिकार मंच के द्वारा सरगुजा संभाग में वनाधिकार मान्यता कानून सही और प्रभावी क्रियान्वयन की मांग पर अनिश्चित कालीन क्रमिक भूख हड़ताल 23 अगस्त 2018 से जारी हैं। आज आंदोलन को समर्थन देने छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के साथी शामिल हुए। वनाधिकार मान्यता कानून एक महत्वपूर्ण कानून हैं जिसके प्रस्तावना में यह लिखा हैं कि ”आदिवासियों के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय की भूल को सुधारते हुए यह कानून बनाया गया हैं ” परंतु छत्तीसगढ़ में इस क़ानून का पालन तो दूर की बात हैं इसके प्रावधानों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। सरगुजा एक ऐसा जिला हैं जहां अडानी कंपनी के कोयला खदान को बचाने कानून के विपरीत जाकर सामुदायिक अधिकार को ही निरस्त कर दिया गया।
सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ में लगभग 59 प्रतिशत व्यक्तिगत वनाधिकार के दावों को निरस्त कर दिया गया। सामुदायिक वन संसाधन के अधिकारों को मान्यता ही नही दी गई। इस कानून का मूल उद्देश्य था कि वन संसाधनों को समुदाय के हाथों में सौंपकर वन व्यवस्था का लोकतंत्रीकरण किया जाए परंतु राज्य सरकार की उदासीनता व कारपोरेट परस्ती में जंगलो को समुदाय को देने के बजाए अदानी, बालकों , जिंदल जैसी कंपनी को सोंपा जा रहा हैं वह भी ग्रामसभाओं के विरोध को दरकिनार करते हैं।