यूरेनियम खनन की सनक : देश के दूसरे सबसे बड़े टाइगर रिज़र्व की बलि देने की तैयारी
वन्यजीव संरक्षण के समर्थक इमरान सिद्दीकी कहते हैं “टाइगर रिज़र्व के अंदर खनन करना आसान है क्योंकि पशु विरोध नहीं कर सकते हैं।”
भारत में 50 टाइगर रिज़र्व हैं और इसका क्षेत्र भारत के कुल क्षेत्र का 2% है। इन रिज़र्व में बाघों की संख्या 2,226 है। बाघों की संख्या में ये वृद्धि तब हुई जब सरकार ने राष्ट्रीय पशु के लिए संरक्षित स्थानों को चिह्नित करने के लिए क़दम उठाया। वर्ष 2006 में अवैध शिकार के कारण इनकी आबादी 1,411 हो गई थी।
इनमें से कई फॉरेस्ट रिज़र्व के नीचे विशाल खनिज भंडार हैं जिन पर सरकारी विभागों और कॉरपोरेट्स दोनों की नज़र टिकी हुई है। हमारे महत्वाकांक्षी परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम की पूर्ति के लिए घरेलू यूरेनियम की भारी कमी को देखते हुए परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) उच्च श्रेणी का यूरेनियम हासिल करने के लिए देश का कोना कोना तलाश रहा है।
भारत में 22 परमाणु ऊर्जा रिएक्टर हैं और घरेलू यूरेनियम का इस्तेमाल परमाणु संयंत्रों में किया जाता है जो अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा पर नजर रखने वाली संस्था अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) के अधीन नहीं हैं।
यूरेनियम ईंधन के बिना इन रिएक्टर को पूरा ईंधन नहीं मिल पा रहा है जिससे ये कम बिजली का उत्पादन कर रहे हैं जबकि नए संयंत्रों की शुरुआत में भी देरी हुई है।
डीएई के अधिकारियों ने वर्ष 2018 में एक संसदीय पैनल को बताया कि भारत यूरेनियम की कमी का सामना कर रहा था और कनाडा, कज़ाकिस्तान और जापान से यूरेनियम के आयात पर निर्भरता बढ़ रही थी।
वर्तमान समय में यूरेनियम के घरेलू उत्पादन का एक बड़ा हिस्सा झारखंड की जादुगुड़ा खानों से निकाला जा रहा था। लेकिन क्योंकि यूरेनियम को काफी गहराई से निकाला जा रहा है ऐसे में खुदाई की लागत ने इस प्रक्रिया को अव्यवहारिक बना दिया है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना ऐसे राज्य हैं जहां यूरेनियम के भंडार पाए गए हैं। तेलंगाना के कुडप्पा बेसिन में उच्च श्रेणी के और विशाल यूरेनियम भंडार पाए गए हैं।
डीएई की एक ईकाई खनिज विभाग की नजर अमराबाद टाइगर रिज़र्व पर है। ये रिज़र्व अविभाजित आंध्र प्रदेश में भारत के सबसे बड़े बाघ अभ्यारण्य नागार्जुनसागर श्रीसेलम टाइगर रिज़र्व का एक हिस्सा था। नागार्जुनसागर अभी भी सबसे बड़ा टाइगर रिज़र्व है और अमरबाद टाइगर रिज़र्व इसी से अलग किया गया है जो भारत का दूसरा सबसे बड़ा टाइगर रिज़र्व है।
अमराबाद रिज़र्व 18 से अधिक बाघों और जंगली जानवरों की विशाल विविधता वाला स्थान है। खनिज विभाग मानता है कि अमराबाद रिज़र्व के भीतर उच्च श्रेणी के यूरेनियम है।
अमराबाद टाइगर रिज़र्व नल्लामाला पहाड़ियों में स्थित है और ये चेंचू जनजाति का निवास स्थल है जो पहले मुख्य रूप से शिकार किया करते थे और वन की उपज को इकट्टा करके अपनी आजीविका चलाते थे। वे अब महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (एमजीएनआरईजीए) कार्यक्रम के तहत काम करके अपनी आजीविका चला रहे हैं।
वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाले हैदराबाद टाइगर कंजर्वेशन सोसाइटी के सह-संस्थापक इमरान सिद्दीकी कहते हैं कि किस तरह उन्होंने एक्टिविस्ट के एक समूह के साथ खनिज विभाग द्वारा पेडडकट्टू-लैंबापुर खनन क्षेत्र में खनन करने के मूल प्रस्ताव का विरोध किया था। यह स्थल नागार्जुनसागर जलाशय से मात्र 1.6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित था। उन्हें पता था कि ध्वनि और प्रदूषण इसके वन्यजीवों और इसके जलाशयों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेंगे।
सिद्दीकी कहते हैं, “लोगों के विरोध के बावजूद इस खनन परियोजना को हर तरफ से मंजूरी मिल गई।” सौभाग्य से उस समय वाईएस राजशेखर रेड्डी के नेतृत्व में आंध्र प्रदेश में कांग्रेस की सरकार ने पेड्डगट्टू- लाम्बापुर खनन क्षेत्र में खनन की अनुमति देने से इनकार कर दिया।
खनिज विभाग ने वैकल्पिक स्थलों की तलाश शुरू की। इस क्रम में अमराबाद टाइगर रिज़र्व पर नजर पड़ी क्योंकि यह पेड्डगट्टू-लाम्बापुर खनन क्षेत्र के नज़दीक था।
सिद्दीकी ने कहा, “मेरा खुद का मानना है कि खनिज विभाग ने सोचा कि इस रिज़र्व के अंदर खनन करना ज्यादा आसान है क्योंकि पशु बोलकर अपना विरोध व्यक्त नहीं कर सकते हैं।”
सिद्दीकी का मानना है कि वर्तमान प्रस्ताव रिज़र्व के मूल क्षेत्र में स्थित 83 वर्ग किमी में तलाश शुरू करना है जो इससे होकर गुजरने वाली वाली डिंडी नदी और नालवागु नदी के तट पर है। ये दोनों नदियां कृष्णा नदी में मिल जाती हैं।
दिसंबर 2015 में अमराबाद टाइगर रिज़र्व में खनन करने का एक प्रस्ताव लाया गया था जिसमें दावा किया गया था कि यह एक नॉन-इनवेसिव एक्सप्लोरेशन होगा जिसमें पेड़ों की कटाई या जंगलों में प्रवेश की आवश्यकता नहीं होगी।
लेकिन फिर भी वन सलाहकार समिति के सदस्यों ने चेतावनी दी थी कि इस प्रस्ताव में कई कमियां और खामियां थीं। बड़ी कमी 4,000 गहरे कुओं की खुदाई थी जो कृष्णा नदी और नागार्जुनसागर जलाशय दोनों को प्रदूषित करेगी। यह देखते हुए कि भारत कई जिलों में सूखे की स्थिति का सामना कर रहा है ऐसे में ताजा जल स्रोतों की रक्षा करना राज्य और केंद्र सरकार दोनों के लिए प्राथमिकता होनी चाहिए।
हालांकि एक्टिविस्ट का मानना है कि 4,000 गहरे कुओं की खुदाई से अमराबाद टाइगर रिज़र्व नष्ट हो जाएगा जो भिन्न प्रकार के वन्यजीवों का निवास स्थल है। खोजी कार्य से नागार्जुनसागर बांध का पानी, भूजल और जलीय खनिज प्रदूषित हो जाएंगे और इसमें खतरनाक रसायन मिल जाएंगे। एक्टिविस्ट ने आगे चेताया है कि सड़कों का निर्माण वनों को विखंडित और बेकार कर देगा जो बड़े पैमाने पर काम करने के बाद कभी ठीक नहीं हो सकता है।
सिद्दीकी ने आश्चर्य व्यक्त किया कि किस तरह तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव की बेटी पूर्व सांसद कविता ने 2014 में यूरेनियम खनन शुरू करने के इस कदम का विरोध किया था जो अब इस कदम के खिलाफ बोलने के लिए तैयार नहीं हैं।
हालांकि वे चाहते थे कि प्रस्ताव में कमियों को दूर किया जाए और राज्य सरकार को सभी आवश्यक दस्तावेज प्रस्तुत करने के लिए कहा गया जिसके बाद एमईएफसीसी के उप महानिरीक्षक नरेश कुमार ने सभी दस्तावेजों की मांग करते हुए तेलंगाना राज्य सरकार को पिछले महीने लिखा था कि जो खोदे जाने वाले कुओं जिनकी पहचान कर ली गई है उसके दस्तावेज पर्यावरण मंत्रालय को सौंपा जाए।
लेकिन जब एमओईएफसीसी के दिग्गजों ने हस्तक्षेप किया तो स्थानीय वन अधिकारियों ने इस कदम के खिलाफ चेतावनी दी कि वनस्पतियों और जीवों की दुर्लभ, लुप्तप्राय और अनोखी प्रजातियां नष्ट हो जाएंगी। इस निवास स्थान में जानवरों की संख्या को सूचीबद्ध करते हुए उन्होंने बाघों, पैंथर्स, स्लॉथ-बीयल, जंगली कुत्तों, जंगली बिल्लियों, लोमड़ियों, भेड़ियों, पैंगोलिन, मोर, बोनेट मैकाक, अजगर, कोबरा, नीलगाय, चित्तीदार हिरण और सांभर के नामों का उल्लेख किया। ये सभी यहां सदियों से रह रहे हैं।
अमराबाद टाइगर रिज़र्व के फील्ड डायरेक्टर की साइट इनसेप्शन रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि ये भंडार अपनी समृद्ध जैव विविधता के साथ जलवायु परिवर्तन और तेज़ गर्मी के इस दौर में कैसे नाला के रूप में काम करते हैं जो गर्मी को अवशोषित कर सकते हैं।
बाघ संरक्षण के समर्थक, वाइल्डलाइफ कंजरवेशन सोसाइटी ऑफ इंडिया (डब्ल्यूसीएसआई) के कार्यकारी निदेशक बिलिंदा राइट टाइगर रिज़र्व से छेड़छाड़ न करने की आवश्यकता पर जोर देते हैं। वे कहते हैं, “हमें अपने वन्यजीव अभयारण्यों और बाघ अभयारण्यों का संरक्षण करना चाहिए अन्यथा हम अपनी समृद्ध प्राकृतिक विरासत को खो देंगे। ये अभयारण्य विशेष रूप से ऐसे समय में बेहतर स्थान हैं जब जलवायु परिवर्तन से लड़ने का एकमात्र तरीका ज़्यादा से ज़्यादा वनों का संरक्षण और विकास करना है।”
डब्ल्यूसीएसआई के सदस्य टीटो जोसेफ का मानना है कि टाइगर रिज़र्व विकसित करने का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि पशु संरक्षित स्थान में रह सकें। टीटो जोसेफ ने कहा, “अगर हम अपने रिज़र्व को खोलना शुरू करते हैं तो हम अपने पिछले कुछ अखंड वन स्थलों को खो देंगे।”
राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के सदस्य सचिव रहे डॉ. राजेश गोपाल जो वर्तमान में ग्लोबल टाइगर फोरम के महासचिव हैं उनका मानना है कि ये ऐसे विशेष क्षेत्र हैं जिनकी सुरक्षा की आवश्यकता है क्योंकि वे जीन पूल का भंडार होने के अलावा पारिस्थितिकी तंत्र को बेहतर करते हैं।
यूरेनियम खनन की एक और समस्या है। इन खदानों से निकलने वाले विकिरण से इसके आसपास रहने वाले लोगों के ज़िंदगी को नुकसान पहुंचता है जैसा कि झारखंड के जादुगुड़ा में हुआ है। इस क्षेत्र में रहने वाले लगभग 50,000 ग्रामीण गंभीर विकिरण संबंधी स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हैं और पर्याप्त सुरक्षा उपायों के बिना पूर्वी सिंहभूम ज़िले में खदानों से खनन कार्य जारी है।
जादुगुडा में खनन यूरेनियम कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड द्वारा किया जा रहा है और जिन शोधकर्ताओं ने खनन के प्रभाव का अध्ययन किया है उन्होंने बड़ी संख्या में ग्रामीणों में जन्मजात विकृति, बांझपन, कैंसर और स्वतः गर्भपात का मामला पाया है। ये मामला चेंचू जनजाति के साथ भी हो सकता है जो अमराबाद टाइगर रिज़र्व में रह रहे हैं।
वन्यजीव संरक्षणवादियों का यह भी कहना है कि धन और संसाधनों के बड़े निवेश के बावजूद परमाणु ऊर्जा भारत की ऊर्जा प्रक्रिया में एक मामूली हिस्सा है जो देश में उत्पादन किए जा रहे बिजली का मुश्किल से 3% ही पैदा करता है। दुर्लभ जलाशयों और पूरे पारिस्थितिक तंत्रों को नष्ट करके यूरेनियम खनन से बमुश्किल क्षतिपूर्ति की जा सकती है। यूरेनियम के लिए देश के अन्य हिस्सों में भी खुदाई की जा सकती है।
परमाणु ऊर्जा प्राप्त करने के लिए इसके मामूली योगदान के बावजूद परमाणु ऊर्जा हमारे सरकार के दिमाग में बड़ी तेजी से पनपती है जो दुर्लभ वन और जैविक संसाधनों का बलिदान देने को तैयार हैं। ये जैविक संसाधन भारत के भूभाग का मात्र 2% है।
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