महिलाएं ही नर्मदा आंदोलन की धुरी : नर्मदा महिला सम्मेलन
सरदार सरोवर परियोजना से प्रभावित डूब प्रभावित गांवों की महिलाओं द्वारा एकत्रित होकर बड़वानी स्थित अर्जुन कारंज भवन में महिला संगठन द्वारा 22 जुलाई 2018 नये स्वरूप में कार्य करने का निर्णय लिया है।
सम्मेलन में कमला यादव ने कहां कि आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी के बिना आंदोलन अधुरा है। हमारे आंदोलन में चाहे कानूनी लड़ाई हो या मैदानी लडाई में महिलाओं की अहम भागीदारी रही है। भारत की सुप्रीम कोर्ट का आदेश 08 फरवरी 2017 में कहां गया था कि 31 जुलाई 2017 तक संपूर्ण गांव खाली किये जायेगें परंतु कोर्ट के इस निर्णय को चुनोती देने हेतु पिछले साल के संघर्ष के कारण माननीय मुख्यमंत्री की घोषणाऐ करना पड़ा ओर आज भी गांव जैसे के वैसे ही रहे है।
केशरबाई ने कहां कि हम हर गांव में जाकर महिला संगठन को और अधिक मजबूर करने की कोशिश जारी है आज भी हम संघर्ष के लिये तैयार है।
शीतल दुबे ने कहां कि हम पिछले 9 माह से सेंचुरी के सामने संघर्ष कर रहे है व आज भी जारी है। एवं आज भी सैकडो महिलाओं के सामने आजीविका चलाने में बहुत कठिन हो रहा है। सरकार व सेंचुरी कार्पोरेट किस प्रकार से महिला मजदूरो को उनका अधिकार आज तक नही दे रही है।
सुश्री मेधा पाटकर ने महिला सम्मेलन में कहां कि आंदोलन में महिलाए की भागीदारी के बिना आंदोलन चलाना मुश्किल है, महिलाओं के सामने सरकार को भी झूकना पड़ता है। आज भी हजारो महिलाओं का पुनर्वास करना बाकी है। हमारे आंदोलन में हर वर्ग की महिलाओं को संगठित करने का कार्य जारी है। निमाड़ की महिलाओं ने पहली बार अनशन, सत्याग्रह, जल सत्याग्रह, एवं आमरण अनशन तक संघर्ष किये है। महिलाओं के कारण आंदोलन का नाम उचाईयों तक पहुचाया है। सरकार हर बार आकड़ो का खेल खेल रही है। विधवा महिला व महिला खातेदारो को 08 फरवरी के आदेश अनुसार 60 लाख की पात्रता होते हुये भी कुछ हजार महिलाओं को मिलना बाकी है इस पर सरकार खामोश रहती है। इसके अतिरिक्त कही महिलाओं को घरप्लाट अनुदान मिलना बाकी है। एक गीत गया तोड दो तोड़ दो देखो बहना आयी है।
निर्मल सोलंकी, गायत्री पाटीदार, डिम्पल सेन, श्यामा कहार, रूकमणी पाटीदार, सनोवर बी मंसूरी