बंधुआ मजदूरी में धकेले जा रहे हैं मध्य प्रदेश के युवा आदिवासी
बंधुआ मजदूरी में धकेले जा रहे हैं मध्य प्रदेश के युवा आदिवासी;
मध्य प्रदेश सरकार की उदासीनता का फायदा उठा रहे महाराष्ट्र– कर्नाटक के ठेकेदार एवं शक्कर फ़ैक्टरियों के मालिक;
सिर्फ 2 हफ्तों में महाराष्ट्र और कर्नाटक में 250 से ज्यादा आदिवासियों के बंधुआ मजदूरी में फंसे होने की शिकायतें;
जागृत आदिवासी दलित संगठन के प्रयासों से शनिवार तक सभी मजदूरों की सुरक्षित वापसी
मजदूरों की वापसी में पुलिस का सक्रिय सहयोग, पर दोषी ठेकेदार – फ़ेक्ट्री पर कानूनी कार्यवाही में उदासीनता
गहराते कृषि संकट, बेरोजगारी और महंगाई के कारण अपना गुजारा निकालने के लिए म.प्र. के आदिवासियों को शक्कर कारखानों के ठेकेदारो से भारी कर्ज़ ले कर, कर्ज़ को चुकाने के लिए महाराष्ट्र और कर्नाटक में बंधुआ मजदूर बन कर काम करना पड़ रहा है । दशेरा के बाद गन्ने के खेतों में इन आदिवासी परिवारों को पहुंचाया जाता है, जहां कभी 13 घंटे तो कभी 16 से 20 घंटों तक भी काम करवाया जाता है । बहुत छोटे बच्चों के अलावा सभी काम करते हैं । इस कमर तोड़ मेहनत के लिए उन्हें न कोई मजदूरी दी जाती है और न कोई हिसाब, उन्हें बस तब तक काम करना है, जब तक सेठ न तय करे कि उनका कर्ज़ चुकाया जा चुका है ।
18 जनवरी से लगातार आदिवासी बाहुल्य पाटी ब्लॉक के थाने में कर्नाटक और महाराष्ट्र में फसे मजदूरों और उनके परिजन द्वारा शिकायते की गई थी कि इन मजदूरों को बिना कोई हिसाब दिये काम करवाया जा रहा है, दिन रात काम करवाया जा रहा है और जब मजदूर हिसाब मांगते हैं या वापस जाने की बात करते हैं तो उन्हें धमकाया जा रहा है । यहाँ तक कि बेलगावी (कर्नाटक) के ‘निरानी शुगर्स’ नामक फ़ेक्ट्री में हिसाब करने गए तीन मजदूर को बंधक बनाया गया और प्रशासन से लगातार कार्यवाही की मांग पर ही 6 दिन बाद उन्हें छोड़ा गया । बेलगावी, बागलकोट, कोल्हापुर और सातारा में मजदूरों के फोन छीने गए, ताकि वे किसी को अपनी परिस्थिति के बारे में बता न सकें । बेलगावी में मजदूरों द्वारा कानूनी कार्यवाही नहीं करने के लिए दबाव बनाने के लिए उन्हें गाँव से बाहर कर दिया गया, सातारा में ठेकेदारों ने मजदूरों को घर जाने से रोकने के लिए भूइंज थाना पर हंगामा किया था । लगातार प्रयासों के बाद, शनिवार 12 फरवरी तक, जागृत आदिवासी दलित संगठन तथा बेलगावी और पुणे के सामाजिक कार्यकर्ताओं के प्रयास और बड़वानी पुलिस की सक्रिय सहयोग से शिकायत करने वाले लगभग 250 मजदूर ग्राम शिवनी, उबड़गड़, कंडरा, सेमली, बोरखेड़ी में अपने घर लौट गए हैं – परंतु अभी कानूनी कार्यवाही बाकी है ।
बंधुआ मजदूरी, बेगारी : सभी मजदूर एक जैसे अनुभव बयान किए; ठेकेदार एक नौजवान आदिवासी जोड़ी को गर्मियों मे लगभग 40,000 रु के कर्ज़ देते हैं और बताते हैं कि दशेरा से उन्हें तीन माह काम करना पड़ेगा और कर्ज़ चुका जाने के बाद वे तगड़ी रकम कमा पाएंगे । परंतु, वहाँ पहुँचने पर उन्हें कोई हिसाब दिये बिना, भोर से शाम के लगभग 5 – 7 बजे तक गन्ना कटाई में लगाया जाता है जिसके बाद वे देर रात तक, कभी 1 बजे रात तक भी, कटे गन्ने को गाड़ियों पर भरते हैं । कई बार रोटी खाने के लिए भी समय नहीं मिलता और न ही उनकी नींद पूरी हो पाती है । गर्भवती और नवजात शिशु वाली महिलाएं और बच्चे भी काम करते हैं । तीन माह होने पर जब मजदूर हिसाब माँगते हैं, उन्हें डरा धमकाया जाता है और बताया जाता है कि जब तक सेठ चाहे, उन्हें काम करना पड़ेगा । यह कानून अनुसार बंधुआ मजदूरी है । पर एक भी मामले में बड़वानी के पुलिस या प्रशासन ने कोई भी कानूनी कार्यवाही नहीं की है ।
यौन शोषण : बेलगावी में ग्राम सेमलकोट (जिला खरगोन) के मजदूरों से न सिर्फ बंधुआ मजदूरी करवाया गया, बल्कि 3 महिलाओं और 3 नाबालिग लड़कियों का ठेकेदारों द्वारा कई बार यौन शोषण एवं बलात्कार किया गया । किसी तरह अपनी जान बचा कर लौटे मजदूरों की शिकायतों पर हफ्तों तक खरगोन पुलिस द्वारा एफ़आईआर नहीं दर्ज की गई । आखिरकार, जब मामला दर्ज किया गया, तो बंधुआ मजदूरी एवं अत्याचार अधिनियम के अंतर्गत धाराएँ नहीं लगाई गई । इसी तरह, बड़वानी लौट चुके सभी मजदूरों द्वारा उनकी बकाया मजदूरी दिलवाने कार्यवाही करने, एवं उनसे बेगारी करवाने वाले ठेकेदारों एवं फ़ैक्टरी मालिकों पर कार्यवाही की मांग शासन प्रशासन से की जा रही है, जिस पर शासन प्रशासन मौन एवं निष्क्रिय है ।
कई कानूनों का उल्लंघन : किसी भी व्यक्ति को, कर्ज के बदले अनिश्चित समय तक, बिना मजदूरी दिए, या शासकीय न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी देते हुए, बेहिसाब काम करवाना बंधुआ मजदूरी कहलाता है, जो कि एक संज्ञेय अपराध है [बंधित श्रम पद्धति (उत्सादन) अधिनियम, 1976 ] । आदिवासियों द्वारा बंधुआ मजदूरी अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989 के अनुसार एक अत्याचार है । अंतरराजीय प्रवासी कामगार अधिनियम, 1979 के अनुसार भी कारख़ाना ओर ठेकेदार की ज़िम्मेवारी है कि वे दूसरे राज्य से आए सभी मजदूरों को नियमित समय पर न्यूनतम मजदूरी दें और और उनके रहने के लिए बुनियादी व्यवस्था भी करें (यह सभी मजदूर, खेतों में प्लास्टिक शीट तले रहने को मजबूर हैं ) । इस कानून के अनुसार, ठेकेदारों के पास लाइसेन्स होना चाहिए और वे दोनों राज्यों में मजदूरों का पंजीयन कर, उन्हें उनके मजदूरी के हिसाब एवं विवरण युक्त एक ‘पासबूक’ भी प्रदान किया जाना चाहिए— इन सभी प्रावधानों का पूरा उल्लंघन हो रहा है । मजदूरों के ये हालात भारतीय दंड संहिता के धारा 370 एवं 374 के अनुसार मानव तस्करी , बेगारी और शोषण है और संज्ञेय अपराध है ।
बेलगावी में 20 मजदूरों के एक समूह के शिकायत पर बंधुआ मजदूरी, बाल श्रम और न्यूनतम मजदूरी नहीं मिलने संबन्धित कुछ मामले दर्ज़ किए गए हैं, पर किसी अन्य समूह के ऐसे शोषण के संबंध कोई भी कार्यवाही नहीं हुई है ।
माननीय सूप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रिय मानव अधिकार आयोग को बंधित श्रम पद्धति (उत्सादन) अधिनियम के क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है । आयोग द्वारा सभी जिलों के जिला कलेक्टर तथा राज्य सरकारों को बंधुआ मजदूरी में फंसे हुए मजदूरों को छुड़ाने तथा उनके पुनर्वास के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश दिये है ।
शासन-प्रशासन को यह भी सुनिश्चित करने का दायितव है कि किसी मजदूर के साथ अत्याचार निवारण अधिनियम, पोसको अधिनियम, अंतरराजीय प्रवासी कामगार अधिनियम, बाल मजदूरी अधिनियम तथा भारतीय दंड संहिता के तहत किसी भी प्रकार का अपराध न हुआ हो – मजदूरों के साथ अत्याचार तथा अपराध प्रतीत होने पर, शासन-प्रशासन कार्यवाही करने बाध्य है । इसके बावजूद, मजदूरों द्वारा की गई शिकायतों पर मध्य प्रदेश शासन एवं जिलों के प्रशासन द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है । शासन-प्रशासन की इस निष्क्रियता का फायदा उठाते हुए, अवैध ठेकेदार एवं फेकटरी मालिकों द्वारा आदिवासियों का हिंसक शोषण जारी रहेगा ।
एक ओर मध्य प्रदेश शासन आदिवासियों को लुभाने के लिए प्रधान मंत्री और मुख्य मंत्री अंग्रेजों के शोषण के खिलाफ लड़े बिरसा मुंडा, टंटिया भील, भीमा नायक जैसे योद्धाओं के सम्मान में ज़ोर शोर से कार्यक्रम कर रहे हैं, और भोपाल में हाल ही में प्रधान मंत्री के बिरसा जयंती कार्यक्रम में आदिम जाति कल्याण विभाग के 23 करोड़ रुपए फूंके गए । वहीं दूसरी ओर, इन योद्धाओं के वंशज वही अन्याय और शोषण से अभी भी जूझ रहे है, हजारों की संख्या में बंधुआ मजदूर बन रहे हैं, कर्ज़ और कुपोषण में झुलस रहे हैं । इसी निमाड में एक हफ्ते के अंदर पुलिस प्रताड़णा से हुई दो आदिवासियों के मौत पर आज 5 माह बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हुई है !
जागृत आदिवासी दलित संगठन द्वारा इन सभी मामले में दोषियों पर कानूनी कार्यवाही के लिए अभियान शुरू किया जा रहा है।