मंगलवार, 20 मई को बिजोलिया की ज़मीन पर इंसाफ की एक आवाज़ गूंजी – एक ऐसी जनसुनवाई हुई जिसमें सिलिकोसिस से पीड़ित श्रमिकों और उनके परिवारों ने वर्षों की पीड़ा, उपेक्षा और अन्याय को शब्दों में ढाला.
इस आयोजन को सूचना एवं रोजगार का अधिकार अभियान के तत्वावधान में आयोजित किया गया था। इसमें स्वास्थ्य विभाग से जिला क्षय रोग अधिकारी (DTO), एसडीएम बिजोलिया, खान विभाग के माइनिंग इंजीनियर, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के उप निदेशक, थानाधिकारी बिजौलिया और राजस्थान भर से आए सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हुए।
जनसुनवाई का उद्देश्य सिलिकोसिस पीड़ितों की समस्याओं को सुनना, उनकी पहचान करना और समाधान की दिशा में निर्णायक पहल करना था। लेकिन जो सामने आया, वो केवल शिकायतें नहीं, बल्कि टूटे हुए विश्वास, मुरझाए जीवन और एक अनदेखे संघर्ष की तस्वीर थी-
1. दिनेश पुत्र चित्रर – “मेरे पिता की मौत सिलिकोसिस से हुई, लेकिन हमें सिर्फ ₹2 लाख मिले। क्या मौत की कोई पूरी कीमत होती है?”
2. देवकरण यादव, ग्राम सुखपुरा – जिनका 2015 में बना सिलिकोसिस प्रमाण पत्र आज तक ऑनलाइन नहीं हो पाया। योजनाएं सिर्फ कागजों तक सीमित रहीं।
3. प्रकाश भील, खादीपुर – पालनहार योजना के लिए मेहनत की, पर लाभ से वंचित रहे। “बीमारी ने शरीर तोड़ा, सिस्टम ने हौसला।”
4. रमेश, अरोली – डूंगर सिंह नाम के दलाल ने 1 लाख रुपए की ठगी की। यह सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि मानवीय शोषण था।
5. विमला – पति की मौत के बाद डूंगर सिंह ने 1.2 लाख रुपए की अवैध वसूली की। “हमारे आँसू भी उसके लिए मुनाफा बन गए।”
जनसुनवाई में कुल 259 मामलों को अधिकारियों के सामने रखा गया – जिनमें मदद की राशि में कटौती, लंबित आवेदन, ऑनलाइन प्रक्रिया में देरी, पेंशन और पालनहार योजना से वंचित रहना प्रमुख मुद्दे थे। सबसे गंभीर बात यह थी कि बिजौलिया जैसे श्रमिक बहुल क्षेत्र में अब तक सिलिकोसिस की जांच के लिए कोई स्थानीय सुविधा नहीं है। उप जिला अस्पताल में जांच नहीं होती, श्रमिकों को भीलवाड़ा जिला अस्पताल जाना पड़ता है – जहाँ पहुंचना, बार-बार जाना और जाँच करवाना खुद में एक महंगी लड़ाई है।
विरोध - प्रतिरोध
22 श्रमिकों ने बताया कि 2015-16 में उन्हें ऑफलाइन प्रमाण पत्र मिले, लेकिन आज तक ऑनलाइन नहीं हुए। 168 बच्चे पालनहार योजना और 36 महिलाएं विधवा पेंशन से वंचित हैं।
इस जनसुनवाई में दलाल तंत्र की सच्चाई भी उजागर हुई – डूंगर सिंह जैसे लोगों ने पीड़ितों से लाखों रुपये की दलाली वसूली। जब कोई अपनी आखिरी सांसें गिन रहा हो, और कोई उस सांस को भी बेचने लगे – यह सबसे क्रूर शोषण का रूप है।
थानाधिकारी बिजौलिया ने कहा- “ये मामले अत्यंत गंभीर प्रकृति के हैं। हम इन्हें नजरअंदाज नहीं कर सकते। संबंधित प्रकरणों में कानूनी कार्यवाही अनिवार्य रूप से की जाएगी।”
अतिरिक्त मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी ने भरोसा दिलाया-“जांच बोर्ड बनाना हो या अन्य व्यवस्थाएं करनी हों, हम आज से ही इस दिशा में कदम उठाएंगे। पीड़ितों को जांच और इलाज की सुविधा दिलाना हमारी जिम्मेदारी है।”
एस.डी.एम. बिजौलिया ने जनसुनवाई के समापन पर कहा- “आप लोगों ने जिन तकलीफों को हमारे सामने रखा है, वे केवल आँकड़े नहीं, इंसानी पीड़ा की पुकार हैं। मैं सभी मामलों की शीघ्र जांच और आवश्यक कार्यवाही का आश्वासन देता हूँ। हमारी कोशिश रहेगी कि एक भी पीड़ित न्याय और योजना से वंचित न रहे। हम इस दिशा में जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से कार्य करेंगे।”
सूचना एवं रोजगार अधिकार अभियान से जुड़े निखिल ने सभी से आह्वान किया- “हमें मिलकर बिजौलिया को सिलिकोसिस मुक्त बनाना है। यह अकेले सरकार का नहीं, हम सबका काम है। एकजुट होकर ही इस लड़ाई को जीता जा सकता है।”
यह जनसुनवाई एक चेतावनी और एक उम्मीद दोनों बनी – चेतावनी उन तंत्रों के लिए जो शोषण की नींव पर टिके हैं, और उम्मीद उन आवाज़ों के लिए जो अब चुप नहीं रहेंगी। यह आयोजन यह दिखाने में सफल रहा कि जब पीड़ा को मंच और समर्थन मिल जाता है, तो बदलाव की पहली दस्तक सुनाई देने लगती है।
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यह रिपोर्ट लेखक भंवर मेघवंशी की फेसबुक पोस्ट से साभार लिया गया है
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