संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

छत्तीसगढ़ : बस्तर में जमीन अधिग्रहण करने पहुंचे अफसरों को आदिवासियों ने पढ़ाया ‘कानून का पाठ’

भारत के संविधान में ऐसी व्यवस्था है कि पांचवी अनुसूची वाले क्षेत्र में प्रवेश करने से पहले पारम्परिक ग्राम सभा की अनुमति लेना जरूरी होता है.

बस्तर। “किसकी अनुमति से गांव में घुसे? क्या आप भारतीय संविधान को मानते हो? भारतीय संविधान को मानते हो तो संविधान के विपरीत क्यों काम कर रहे हो? पेसा कानून,पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में प्रवेश से पहले या जाने से पहले पारंपरिक ग्राम सभा की अनुमति लेना अनिवार्य होता है क्या आपके द्वारा अनुमति लिया गया है?”

ये सवाल 4 जून २०१९ को एनएमडीसी सैलेरी पाइप लाइन बिछाने के लिए सीमांकन करने आए प्रशासनिक कर्मचारियों से बस्तर के मावलीभाठा अन्तर्गत चितापुर के ग्रामीणों ने इकट्ठा होकर पूछ दिया!

ग्रामीणों ने कहा पहले संविधान पढ़ कर आओ, आदिवासी कानून जानते हैं, उन्हें न सिखाओ, आदिवासी अपनी जमीन नहीं देंगे! यह सुनकर आदिवासियों के इन सवालों से वहां मौजूद तमाम प्रशासनिक अधिकारियों के चेहरे से पसीना आना चालू हो गया। अफसर ग्रामीणों को मनाने में लगे रहे लेकिन ग्रामीणों के सवाल से अफसर वहां से चलता बने।

मामला छत्तीसगढ़ के बस्तर अन्तर्गत मावलीभाठा के चतीतापुर गांव में एनएमडीसी के सैलेरी पाइप लाइन के सीमांकन का था जिसके लिए मंगलवार को एनएमडीसी के कर्मचारी और प्रशासनिक अधिकारी इलाके में पहुंचे थे। क्षेत्र के आदिवासियों ने इकट्ठा होकर सड़क पर उतर कर कहा कि बिना अनुमति के आप इस गांव में घुस कैसे गए? पांचवीं अनुसूचित क्षेत्र में किसी भी कार्य को करने और उसके लिए घुसने से पहले पारंपरिक ग्राम सभा की अनुमति लेना अनिवार्य रहता है। आप बिना अनुमति के हमारी जमीनों का सीमांकन कैसे कर सकते हैं?

आदिवासी समुदाय के सदस्य नरेंद्र कर्मा ने बताया कि हमारा गांव गणराज्य मावलीभाटा है, (परगना चीतापुर) में सैलरी पाइप लाइन सीमांकन के लिए अधिकारी आए हुए थे। अधिकारियों को गांव के पुजारी गायता मांझी एवं क्षेत्र की जिला पंचायत सदस्य श्रीमती रुकमणी कर्मा, ग्राम सभा सदस्यों के द्वारा संविधान का पाठ पढ़ाया गया है। नरेंद्र कर्मा ने आगे बताया कि यदि ग्राम सभा एवं क्षेत्र के लोग जमीन नहीं देना चाहते हैं तो जबरिया गांव में घुस कर जमीन नापने संबंधित कार्य प्रशासन कैसे कर सकता है। ग्रामीणों ने ग्राम सभा मे प्रस्ताव ला दिया है कि जमीन नहीं देंगे। नरेंद्र कर्मा आगे कहते हैं कि यदि ग्रामीण जमीन देना भी चाहते हैं तो भी उनके-उनके पक्ष में खड़े रहेंगे।

गौरतलब है कि इसके पूर्व तोकापाल स्थित परपा में भी महिलाओं के द्वारा पारंपरिक वेशभूषा के साथ आपत्ति दर्ज किया गया था। आज भी ग्राम सभा के सदस्य एवं गणमान्य नागरिकों के द्वारा विधि के विरुद्ध सीमांकन करने आए अधिकारियों को उल्टा पांव लौटाया गया है।

ग्रामीणों ने बताया कि इस विधि के विरोध में सीमांकन करने वाले संबंधित अधिकारी कर्मचारियों के विरुद्ध आगामी दिनों में ग्राम सभा आयोजित कर संबंधित अधिकारी कर्मचारियों के खिलाफ प्रस्ताव पारित कर कार्यवाही करने के लिए शिकायत किया जाएगा।

बता दें कि बस्तर में पेसा कानून लागू है और यहां पांचवीं अनुसूची क्षेत्र भी है। भारत के संविधान ने ऐसी व्यवस्था की है कि पेशा कानून, पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में प्रवेश से पहले या जाने से पहले पारंपरिक ग्राम सभा की अनुमति लेना अनिवार्य होता है लेकिन स्लरी पाइप लाइन के लिए भारतीय संविधान के निर्देशों का पालन ही नहीं किया गया है और बिना अनुमति के ही सर्वे के लिए अफसर यहां आ गए। ऐसे में इलाके के लोग पारंपरिक हथियारों के साथ सड़क पर उतर आए।

अफसरों से आदिवासियों ने पूछे ये सवाल:

1) आप अपना शुभ नाम बताइए?

2) आप कौन से विभाग से हैं, अपने पद का नाम बताइए?

3) आप गांव में किससे पूछ कर आये हैं, यदि अनुमति लिए हैं तो लिखित दस्तावेज दिखाइए?

4) क्या आपने ग्राम सभा से अनुमति ली है? यदि ली गयी है तो लिखित दस्तावेज दिखाइए?

5) क्या आप भारतीय संविधान को मानते हैं?

6) भारतीय संविधान को मानते हैं तो संविधान के विपरीत क्यों काम कर रहे हैं?

7) पेशा कानून,पांचवीं अनुसूची, क्षेत्र में प्रवेश से पहले या जाने से पहले पारंपरिक ग्राम सभा की अनुमति लेना अनिवार्य होता है क्या आपके द्वारा अनुमति लिया गया है?

8) पूर्व में पारंपरिक ग्राम सभा के संकल्प प्रस्ताव के द्वारा सैलरी पाइपलाइन को जमीन नहीं देने का प्रस्ताव पारित किया गया था, क्या आप ग्राम सभा को मानते हैं या नहीं?

9) यदि आप लोग संविधान नहीं पढ़ कर आए हैं तो भारतीय संविधान की धारा 244(1), 19(5),19(6),13(3)क को पढ़ कर आइए और हम जमीन नहीं देंगे।

इसको भी देख सकते है