छत्तीसगढ़ सरकार की तानाशाही चरम पर : वेदांता कम्पनी को 1300 एकड़ वनभूमि व स्थानीय निवासियों को जेल
छत्तीसगढ़ के बलौदाबाजार जिला स्थित बारनवापारा अभ्यारण क्षेत्र से लगी 1300 एकड़ भूमि को भाजपा सरकार ने वेदांता कम्पनी को सोना निकालने के लिए दे दिया है। जहाँ से आदिवासियों को जबरन विस्थापित किया जा रहा है। विरोध कर रहे दलित आदिवासियों पर पुलिस-वनविभाग का भयंकर उत्पीड़न जारी है। जन संघर्ष समिति बारनवापारा के अगुवाकर राजकुमार को जेल में डाल दिया गया है। जबरन विस्थापन और सरकारी दमन के विरोध में स्थानीय लोग पिछले 12 दिनों से अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे है। पढ़िए रिपोर्ट;
छत्तीसगढ़ 3 फ़रवरी 2018। बारनवापारा अभ्यारण क्षेत्र के कसडोल ब्लाक में स्थित ग्राम गया में रामपुर के आदिवासी ग्रामीण के साथ मारपीट करने वाले वन अधिकारी संजय रौतिया पर कार्यवाही करने कि मांग पर 71 गांव के ग्रामीण अथवा अथवा जन संघर्ष समिति बारनवापारा, और दलित आदिवासी मंच के द्वारा पिछले 12 दिन से अनिश्चितकालीन धरना पर बैठे हुए है। जहा छत्तीसगढ़ क्रान्ति सेना, सर्व आदिवासी समाज,छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा, छत्तीसगढ़ बचाओ आन्दोलन अथवा आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ताओ ने भी अनिश्चितकालीन धरने को पूर्ण समर्थन दिया है।
गौरतलब हो कि बारनवापारा विस्थापन प्रभावित क्षेत्र ग्राम रामपुर के आदिवासी ग्रामीण राजकुमार कौंध को दिनांक 15 जनवरी को बारनवापारा अभ्यारण्य के ग्राम रामपुर में वन विभाग के रेंजर संजय रौतिया ने वन अमले के साथ मिलकर आदिवासी राजकुमार कौंध के साथ मारपीट करने का आरोप हैl यहाँ तक कि महिला और छोटे बच्चो के साथ भी मारपीट की गईl मारपीट की शिकायत लिखाने पीड़ित परिवार सहित आसपास के ग्रामीण जब थाने पहुचे तो रेंजर के खिलाफ मामला पंजीबद्ध करने की बजाये पीड़ित परिवार के खिलाफ ही वन विभाग के इशारे पर अपराध कायम किया गयाl पुलिस और वन विभाग दोनों ही रेंजर पर कार्यवाही करने की बजाये उसे बचाने का प्रयास रहे हैंl जानकारी के अनुसार पीड़ित आदिवासी ग्रामीण राजकुमार जो पहले से वन अधिकारी के मारपीट के दर्द से तड़प रहे थे, उन्हें इलाज के लिए रायपुर ले जाते वक्त पुलिस विभाग के द्वारा 4 गाड़ियों में आकर ग्राम झलप के पास गाड़ी को रोककर जबरन अपने साथ ले गए।
ग्रामीणों ने बताया कि पुलिस प्रशासन द्वारा वन विभाग के रेंजर संजय रौतिया जो रामपुर के आदिवासीओ के साथ मार पीट किया है उसको पुलिस द्वारा बचाने का खेल चल रहा है पीड़ित जेल में बंद है जो मारने वाले रेंजर संजय रौतिया मजे से घूम रहे है 2013 में रामपुर को विस्थापित किया गया था लेकिन 10 परिवार विस्थापन नही होना चाह रामपुर में ही रहना चाहते है लेकिन आये दिन 4 साल से वन विभाग द्वारा धमकिया दिया जाता राहा है।
रामपुर से भागने के नाम पर वन विभाग द्वारा रामपुर के10 परिवार को न काम देते है उल्टा उन परिवारो को भगाने के लिये पुराने नोटिश को चस्पा कर भागने का नया नया पैतरा अपनाते रहते है सरकारी योजनाओं का लाभ भी नही मिलता है स्कूल एवम आदिवासियों के आस्था का देव स्थल को तोड़ दिया गया है रामपुर के बच्चे आज शिक्षा से वंचित है 15 तारीख को वन विभाग के रेंजर संजय रौतिया अपने दल बल के साथ व बया चौकी पुलिस वालो को फोन करके बुलाकर पुलिस के साथ मिला कर गली गलौज करते हुए रामपुर के आदिवासी परिवार वालो के साथ मार पीट व जान से मारने का कोशिश किया गया और पीड़ित परिवार के राजकुमार के खिलाफ छूटे केस दर्ज करवा कर 25 तारिक को घायल राजकुमार को इलाज हेतु मेकाहारा ले जाते समय पुलिस अपने दल बल के साथ गिरफ्तार कर पुलिस रोब दिखाया गया जबकि राजकुमार सिर पर गंभीर चोट है और सिने मे दर्द है जबकी राजकुमार को इलाज का सकता जरूरत है वन विभाग के रेंजर संजय रौतिया को बचाने का प्रयास पुलिस प्रशासन द्वारा कर रहे है।
आदिवासी नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरविन्द नेताम ने धरने स्थल में उद्बोधन के दौरान कहा है कि जहा आदिवासी है वहा जंगल है वहा खनिज संपदा है जिसका दोहन किया जा रहा है और आदिवासियों को खदेड़ा जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने कहा था अच्छे दिन आएंगे? लेकिन आदिवासियों के लिए कब अच्छा दिन आएगा ये पता नही। सरकार अडानी-अम्बानी जैसे पूंजीपतियों के साथ मिलकर आदिवासियों को जल-जंगल जमीन से बेदखल कर रही है।
आप को बता दे कि छत्तीसगढ़ प्रदेश के महासमुंद जिला अंतर्ग्रत स्थित बारनवापारा अभ्यारण, क्षेत्र से लगे 1300 एकड़ भूमि को वेदान्त कम्पनी को सोना निकालने के लिए दे दिया गया है। जहा से आदिवासियों को जबरन विस्थापित किया जा रहा है।
जन संघर्ष समिति बारनवापारा ने प्रेस वक्तव्य में बताया कि अभ्यारण क्षेत्र में आदिवासियों को प्रताड़ित करने का यह कोई पहला मामला नही है बल्कि वन विभाग के द्वारा अभ्यारण्य में बसें ग्रामीणों को अलग अलग तरीको से लगातार प्रताड़ित किया जाता रहा हैं। विभाग द्वारा लघु वनोपज, सूखी जलाऊ लकड़ी आदि लाने पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाता हैं, ग्रामीणों के आवागमन में परेशानी पैदा की जाती हैं, निर्माण कार्यो में स्थानीय ग्रामीणों को जानबूझ कर काम नहीं दिया जाता है।
ग्रामीण बताते है कि क्षेत्र में दहशत का माहौल निर्मित कर जंगल जमीन को छिनने का साजिशन चाल चल रहे है। आज भी वन विभाग अंग्रेजो के बनाये कानूनों के आधार पर चलते हुए आदिवासियों का शोषण कर रहा हैं। यह दुखद हैं कि इस देश की संसद ने वनाधिकार मान्यता कानून 2006 बनाया जिसका उद्देश्य हैं आदिवासियों के साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय को खत्म कर जंगल, जमीन पर उनके वन अधिकारों को मान्यता देकर आजीविका को सुरक्षित करना। वन संसाधनों का संरक्षण और प्रवंधन ग्रामसभाओं को सौंपना। इतने मबत्वपूर्ण एतिहासिक कानून का छत्तीसगढ़ में पालन नही हो रहा।
दलित आदिवासी मंच से देवेन्द्र ने कहा कि शासन एक तरफ बड़े बड़े रिसोर्ट और होटल बनाकर पर्यटकों को बुला रही हैं और पीढ़ियों से बसे आदिवासियों को बेदखल कर रही हैं। 3जनवरी को ही राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने स्पष्ट आदेश जारी किया हैं कि किसी भी उधान या टाइगर रिजर्व से सहमती के बिना पूर्व पुनर्वास के विस्थापित नहीं किया जा सकता हैं। इसी प्रकार वनाधिकार मान्यता कानून2006 में स्पष्ट प्रावधान हैं की किसी भी संरक्षित क्षेत्र से विस्थापन के पूर्व वैज्ञानिक अध्ययन पश्चात् यह निर्धारण आवश्यक हैं की वह क्षेत्र संकट पूर्ण वन्यजीव आवास क्षेत्र हैं। इसके बाद ही सहमती से गाँव को विस्थापित किया जा सकता हैं।
बारनवापारा अभ्यारण्य के अन्दर अभी तक इस प्रावधानानुसार संकट पूर्ण वन्य जीव आवास घोषित ही नहीं हुआ हैं फिर विस्थापन किस आधार पर किया जा रहा हैं ?बारनवापारा अभ्यारण्य के ग्राम रामपुर जिसे अभ्यारण्य से बाहर विस्थापित किया गया हैं। गांव के 15 से 20 परिवार आज भी अपने पुराने गांव में बसे हैं और उन्होंने विस्थापन को स्वीकार नही किया था। वन विभाग के द्वारा लगातार ग्रामीणों को प्रताड़ित कर जबरन हटाने का प्रयास किया जा रहा हैं। आज वन विभाग के रेंजर ने बया थाने के पुलिस वालों को लेकर ग्रामीणों के साथ मारपीट की यहां तक कि महिलाओं को भी पीटा गया। इसके बाद ग्रामीणों के विरुद्ध ही बया थाना जिला कसडोल में मामला पंजीवद्ध कर दिया गया। इस मामले का पता चलते ही अभ्यारण्य के अन्य गांव और संगठन के लोग पीड़ितों के बया थाने पहुँचकर रेंजर के खिलाफ एफआईआर लिखवाने के लिए थाने में बैठे हैं परंतु उनकी और से एफआईआर नही लिखी जा रही हैं।