आज के दौर में विकास और सामाजिक न्याय: राष्ट्रीय अधिवेशन – अक्टूबर 31, नवम्बर 1 – 2, 2014
जन आन्दोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (NAPM) का दसवां राष्ट्रीय अधिवेशन “आज के दौर में विकास और सामाजिक न्याय विषय” पर पुणे में तीन -दिवसीय राष्ट्रीय सम्मलेन का आह्वान आगामी 31 अक्टूबर और 1-2 नवम्बर 2014 को किया गया है, जिसका निमंत्रण आपसे साझा किया जा रहा है.
आपसे अनुरोध है कि इस सम्मलेन में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें और अपने सुझाव napmindia@gmail.com पर भेजें।
बीस साल पहले देश के संघर्षशील और प्रगतिशील साथियों और संगठनों ने देश में बढती गैरबराबरी, शोषण और विकास के नाम पर हो रहे विध्वंस को देख कर एक साथ मिलकर उस दिशा को बदलने के लिए जन आन्दोलनों के राष्ट्रीय समन्वय (NAPM) की परिकल्पना की थी. जोश था, उमंग थी, संघर्ष करने की चाहत थी और था संगठन ताकि देश में शांति, न्याय और लोकतंत्र का राज स्थापित हो सके अंतिम जन के लिए. इन दो दशकों में अनेकों संघर्षों में हम साथ चले हैं, जीते हैं, कभी हार का भी सामना करना पड़ा है, लेकिन इन सब में जन मुद्दों को आगे ही बढाया है. समय बदला है, और बड़े तेजी से बदल रहा है. आज नव उदारवादी नीतियों को भी दो दशक से ज्यादा हो चुके हैं और देश में इन नीतियों का भयावह प्रभाव भी दिख रहा है. सभी राजनैतिक पार्टियों इन नीतियों के बारे में एकमत है.
जनता के हकों को आज तेजी से रौंदा जा रहा है, प्राकृतिक संसाधनों का बेतहाशा दोहन हो रहा है, शोषण, अन्याय का बोलबाला हो रहा है, लेकिन जन संघर्षों के बदौलत जनता की समझ भी परिपक्व हुई है. आज शोषण और अन्याय को देश हित में या राष्ट्रवाद के नाम पर जायज नहीं ठहराया जा सकता. जनता उठ खड़ी होती है अपने हकों के लड़ने के लिए. आज बाहर से किसी को आकर उद्वेलित करने की जरूरत नहीं है, गाँव गाँव, क़स्बा क़स्बा, शहर शहर, हर जगह लोग अपने हकों की लडाई के लिए पूंजीवादी और दमनकारी ताकतों के खिलाफ खड़े हैं. लेकिन दूसरी ओर आज धार्मिक उन्माद तेजी से सर उठा रहा है, महिलाओं के प्रति हिंसा बढ़ रही है तो जातिगत हिंसा, भेदभाव और पक्षपात भी उसी भांति बाद रही है. जन विरोधों के कारण ही एक तरफ आज शासक वर्ग संविधान और संसद के द्वारा बनाये गए जन पक्षीय कानूनों को बदलने के लिए आमदा है तो दूसरी तरफ वह समाज में मौजूदा विषमता और हिंसा का राजनैतिक फायदा उठा कर समाज में अपनी पकड़ बनाई रखते है.
आज दो दशक बाद जरूरत महसूस होती है, उन्ही सवालों को आज के दौर में देखने की, जिसे लेकर हम चले थे. हम आपको आमंत्रित करते हैं, NAPM के दशवें दिवार्षिक राष्ट्रीय अधिवेशन में अक्टूबर ३१, नवम्बर १-२ को पुणे में. अगले कुछ दिनों में और विस्तृत जानकारी दी जायेगी, लेकिन यह पहली जानकारी हम आपको दे रहे हैं ताकि आप तारिख नोट कर लें और यात्रा की टिकट भी समय रहते कर लें. यह समय त्योहारों का है, तो बेहतर होगा अगर ट्रेन का रिजर्वेशन पहले कर लें.
आशा है आप जरूर इस महत्वपूर्ण समागम में जरूर शामिल होंगे, ताकि हम फिर उसी उत्साह के साथ मिलकर आगे के संघर्षों की भावी रूप रेखा तय कर सकें और विकास के नाम पर जो मायाजाल बुना जा रहा है जिससे सिर्फ और सिर्फ गैरबराबरी बढ़ रही है और प्राकृतिक संपदाओं का नाश हो रहा है, उसे हम रोकने में कामयाब हो सके. वैकल्पिक विकास की अवधारणा, और एक साम्यवादी समाज की संरचना ही हमारा लक्ष्य है और उसे निर्मित करने के लिए हम कटिबद्ध हैं.
सविनय आपसे मिलने की अपेक्षा में
मेधा पाटकर, प्रफुल्ला सामंतरा, डॉ. सुनीलम, सुनीति सु र, अरुंधती धुरु, गब्रिएले दिएत्रिच, सी आर नीलकंठन, पी चेन्निया, सिस्टर सीलिया, विलास भोंगाड़े, सुहास कोल्हेकर, आनंद माजगओंकर, कृष्णकांत, कामायनी स्वामी, महेंद्र यादव, भूपेंदर सिंह रावत, राजेंद्र रवि, विमल भाई, मीरा, मधुरेश कुमार, कनिका
संपर्क : सुनीति सु र : 09423571784 कनिका : 9818823252 मधुरेश : 9818905316