संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

भारत छोड़ो आंदोलन की 75वीं साल और विश्व आदिवासी दिवस पर : भूमि अधिकार आंदोलन का राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन

भारत छोड़ो आंदोलन की 75वीं साल और विश्व आदिवासी दिवस पर
भूमि अधिकार आन्दोलन का राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन  
9 अगस्त को कॉर्पोरेट परस्त, सांप्रदायिक व तानाशाह सरकार के खिलाफ़ आक्रोश प्रदर्शन

नई दिल्ली/ देश में कॉर्पोरेट परस्त, पूंजीवादी, बहुसंख्यक सम्प्रदायवादी व जातिवादी सरकार की आदिवासी, किसान, मजदूर व गरीब विरोधी नीतियों के खिलाफ भूमि अधिकार आन्दोलन के राष्ट्रव्यापी आव्हान पर आज 9 अगस्त को लगभग चार सौ जन संगठनों ने महाराष्ट्र, दिल्ली, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, तमिलनाडू, आंध्र प्रदेश, झारखण्ड, बिहार, गुजरात, छत्तीसगढ़ और बाकी राज्यों में अपने अपने क्षेत्रों में आदिवासी दिवस और भारत छोड़ो आंदोलन की 75वी सालगिरह मानते हुए इन मुद्दों पर आक्रोश प्रदर्शन किया. वन अधिकार मान्यता कानून के प्रति मौजूदा केंद्र सरकार व विभिन्न राज्यों में सत्तारूढ़ भाजपा सरकारों का नकारात्मक नज़रिया आज आदिवासियों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा करने और उनके साथ हुए ऐतिहासिक अन्याय का समाधान देने में जानबूझकर पीछे हट रहीं हैं और जंगल आधारित परंपरागत अर्थव्यवस्था को ख़त्म कर जंगल के संसाधन कार्पोरेट्स को दे रहीं हैं. किसानों और किसानी की जो दुर्दशा इस भाजपा प्रणीत सरकारों ने कि है वह इतिहास में कहीं देखने नहीं मिलती.

किसान आज क़र्ज़ के बोझ से दबा है, फसल के सही दाम न मिलने और लागत में बेतहाशा वृद्धि के कारण खेती से एक परिवार पालना मुश्किल हो रहा है और ऐसे में क़र्ज़ नहीं चुका पाने से उसकी बची-खुची सामजिक प्रतिष्ठा भी नष्ट हो रही है यह किसान किसानों के शोषण पर यहीं नहीं रुकी बल्कि पशुओं की खरीद-बिक्री पर बैन भी थोप दिया इससे किसान की अपनी आजीविका आज इतिहास के सबसे बुरे दौर में है. फसल बीमा का लाभ एक भी किसान को नहीं मिला बल्कि बीमा कम्पनियां रातों –रात मालामाल हो गयीं. बीमा कंपनियों से हिसाब लेने और निगरानी करने तक की कोई व्यवस्था इस सरकार ने नहीं बनाई. आज ग्रामीण रोजगार की हालत बदतर स्थित में है, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून के तहत जो रोजगार के अवसर ग्रामीण खेतिहर किसान व मजदूर परिवारों के पास थे उन्हें भी इस सरकार ने पूरी तरह निगल लिया है. प्रधानमंत्री ने शुरू से ही इस कानून के प्रति हिकारत व उपेक्षा का भाव रखा. गौरक्षा के नाम पर सरकार समर्थित व संरक्षित गौ-रक्षकों की खुलेआम गुंडागर्दी व भीड़ द्वारा एक विशेष मज़हब व दलित समुदायों के ऊपर जो अमानवीय अत्याचार हो रहे हैं उसके असंगठित क्षेत्र के रोजगार के अवसर बुरी तरह ख़त्म हुए हैं.

कॉर्पोरेट घरानों और अपनी पार्टी को फायदा पहुँचाने के उद्देश्य से देश पर नोटबंदी थोपी गयी जिसने भी ग्रामीण मजदूर व छोटे-मझोले उद्योगों कि कमर तोड़ दी है, असंगठित क्षेत्र का मजदूर आज भुखमरी कि हालात में पहुँच गया है और जीएसटी थोपा गया है जिससे तमाम कामगार व छोटे व्यापारियों, कारीगरों, व दैनिक मजदूरी करने वालों के सामने आजीविका चलाने का संकट खड़ा हुआ है. इन सारी परिस्थितियों में आज देश में चारों तरफ असुरक्षा और हताशा का वातावरण और अपने अपने स्तर पर हर वर्ग के लोग अपना असंतोष और आक्रोश व्यक्त कर रहे हैं. इसी असंतोष को संगठित स्वरूप देते हुए भूमि अधिकार आंदोलन के बैनर तले आज अन्याय शोषण व गुलामी के खिलाफ आदिवासियों के संघर्ष व भारत छोड़ो आंदोलन की विरासत को साथ लेकर यह देश व्यापी आन्दोलन किया गया. हाल ही में नर्मदा बचाओ आन्दोलन की २ लाख परिवारों की डूब को लेकर चल रहे सत्याग्रह पर हुए पुलिस दमन और मध्य प्रदेश सरकार के तानाशाही रवैये के खिलाफ भी इस राष्ट्र व्यापी आंदोलन ने अपना विरोध प्रकट किया.

केन्द्रीय नेतृत्व में कामरेड हन्नान मुल्ला (अखिल भारतीय किसान सभा), मेधा पाटकर (नर्मदा बचाओ आन्दोलन), डॉ सुनीलम (एनएपीएम), अशोक चौधरी व रोमा मलिक (एआईयूएफडब्ल्यूपी), कॉम सत्यवान (अखिल भारतीय किसान खेत मजदूर संघ), प्रतिभा शिंदे (लोक संघर्ष मोर्चा), प्रेम सिंह (अखिल भारतीय किसान महासभा), सुनीत चोपड़ा (आल इण्डिया ऐग्रीकल्चर वर्कर्स यूनियन), राघवेन्द्र (जनसंघर्ष समन्वय समिति), वीरेन्द्र विद्रोही (इन्साफ), अशोक श्रीमाली (एम एम पी) और तमाम जनसंगठनों के आह्वान पर विभिन्न राज्यों में भूमि अधिकार आंदोलन से संबद्ध लगभग तीन सौ जन संगठनों, यूनियनों ने निम्नलिखित मांगों को लेकर प्रदर्शन किये-  
 स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिश के मुताबिक़ फसल लागत का डेढ़ गुना मूल्य सुनिश्चित किया जाए.

  1. किसानों का कर्ज माफ़ किया जाये.
  2. ग्रामीण रोजगार सुनिश्चित करने के लिए मनरेगा का बजट बढ़ाया जाए. 
  3. सभी किसानों की कम से कम 5000 रुपया/प्रतिमाह आय तय की जाए.
  4. पशु व्यापार के ऊपर लगे प्रतिबंध को पूरी तरह हटाया जाए. 
  5. वन अधिकार मान्यता कानून का समुचित व तीव्रता से क्रियान्वयन हो

इस राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन के बाद भूमि अधिकार आन्दोलन शीघ्र ही महाराष्ट्र में एक राष्ट्रीय सम्मलेन आयोजित करने जा रहा है जिसमें देश भर के संबद्ध जन संगठन भाग लेंगे.

मधुरेश, जीतेन्द्र, कॉम कृष्णा प्रसाद, व श्वेता
(भूमि अधिकार आन्दोलन की ओर से)

इसको भी देख सकते है