करछना पॉवर प्लांट का भूमि अधिग्रहण रद्द किसानों के आंदोलन के आगे नहीं टिक पाया जेपी ग्रुप
करछना में पॉवर प्लांट के लिए भूमि अधिग्रहण का विरोध कर रहे किसानों को अंततः जीत हासिल हुई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज न्यायमूर्ति अशोक भूषण और सुनीता अग्रवाल की खंडपीठ ने करछना में प्रस्तावित जेपी ग्रुप के थर्मल पॉवर प्लांट के लिए भूमि का अधिग्रहण रद्द कर दिया है। न्यायालय ने कहा है कि किसानों को मुआवजा लौटाना होगा, इसके बाद उनकी जमीनें वापस कर दी जाएं।
यह अदालती फैसला पुनर्वास किसान कल्याण सहायता समिति के अनवरत अनशन के 604 वें दिन आया। इससे करछना के देवरीकला, कचरी, कचरा, मेरड़ा, टोलीपुर, देलही, भगेसर, भिटार और खई गांवों के किसानों को बड़ी राहत मिली लेकिन यह उन किसानों के लिए बड़ी आफत भी है जिनसे मुआवजे का पैसा खर्च हो चुका है। समिति के अध्यक्ष राजबहादुर पटेल मुआवजा लौटाये जाने की शर्त को किसानों के साथ ज्यादती मानते हैं। इसलिए कि अधिग्रहण के बाद से अब तक किसान खेती नहीं कर सके हैं।
करछना में भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना 23 नवंबर, 2007 को अधिग्रहण अधिनियम की धारा 4, 17(1) और 17(4) के तहत जारी की गई थी। तत्कालीन प्रदेश सरकार ने अधिग्रहीत जमीन को थर्मल पॉवर प्रोजेक्ट के लिए जेपी ग्रुप को हस्तांतरित कर दिया था। स्थानीय किसान इसका शुरू से ही विरोध कर रहे थे।
अदालती फैसले से करछना का पॉवर प्लांट तो रुक गया लेकिन बारा प्लांट को हरी झंडी मिल गयी। अदालत ने करछना का करार इसलिए रद्द किया कि वहां प्लांट का निर्माण अब तक शुरू नहीं हो सका, जबकि बारा का करार इस आधार पर जारी रखा कि वहां प्लांट का निर्माण काफी आगे बढ़ चुका है।
करछना प्लांट में मामले में अदालत ने सरकार की इस दलील को खारिज कर दिया कि किसानों के आंदोलन के ही कारण निर्माण कार्य शुरू नहीं हो सका था। कोर्ट ने माना कि भूमि का अधिग्रहण मनमाने तरीके से नहीं किया जा सकता। वैसे, सरकार को नये सिरे से भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई करने की छूट भी रहेगी। मतलब कि करछना के किसानों के सर पर मंडराते बादल अभी पूरी तरह छंटे नहीं हैं।
करछना में किसानों के संघर्ष का सिलसिला कुछ इस तरह शुरू हुआ। सन् 2007 के आखिर में उत्तर प्रदेश सरकार ने करछना (इलाहाबाद) के आठ गांवों की जमीन को अधिग्रहीत किये जाने की अधिसूचना जारी हुई। इसी के साथ किसानों को उनकी जमीन के एवज में नौकरी, घर, मुआवजा, बेहतर सुविधाएं वगैरह दिये जाने का लालच दिया जाना शुरू हुआ। हालांकि दूसरी तरफ कचरी के राजबहादुर पटेल की अगुवाई में दर्जनों किसानों ने अधिग्रहण के खिलाफ प्रशासनको आवदेन सौंपने में तनिक देरी नहीं की। लेकिन इसे अनदेखा करते हुए अधिग्रहण संबंधी प्रशासनिक कार्रवाइयां जारी रहीं। आखिरकार अप्रैल 2008 में सात किसानों की ओर से इलाहाबाद हाईकोर्ट में भू-अधिग्रहण की योजना को चुनौती दी।
इसके दो दिन बाद ही अदालत ने अधिग्रहण पर स्थगन आदेश दे दिया। किसानों के लिए यह पहली जीत थी लेकिन फौरी थी। प्रशासन ने तारीखों का फर्जीवाड़ा करते हुए बिना किसानों को सूचना दिये भूमि अधिग्रहण की प्रक्रियाएं जारी रखीं। इस तरह किसानों की आपत्तियों को अनदेखा करते हुए लक्षित आठ गांवों की 17 सौ हैक्टेयर खेती की सिंचित जमीन को कागजों में बंजर और असिंचित बता दिया गया और फरवरी 2009 में उसे जेपी पॉवर प्लांट के नाम कर दिया।
सरकार की इस कंपनी परस्ती से असंतोष और गुस्से की आग सुलगती रही। अप्रैल 2010 को करछना में इस बावत पहली किसान सभा का आयोजन तय हुआ लेकिन पुलिसिया फौजफाटे ने भय का डंडा चला कर कार्यक्रम को तहस-नहस कर दिया और एक कार्यकर्ता को भी धर दबोचा जिसे भारी विरोध के बाद रिहा किया गया। इस घटना ने किसानों के विरोध को और गाढ़ा कर दिया।
यहीं से आंदोलनरत किसानों और अड़ियल प्रशासन के बीच जोर-आजमाइश का सिलसिला शुरू हुआ। आंदोलित किसानों ने क्रमिक अनशन का सहारा लिया तो प्रशासन पुलिस से लेकर गुंडों तक की सेवाएं लेने में पीछे नहीं रहा। प्रशासन ने विभिन्न तरीकों से किसानों को फंसाने की कोशिश की जिसे जुझारू किसानों ने हर बार नाकाम कर दिया। नतीजे में जबरन अधिग्रहित की जमीन पर निर्माण कार्य नाम भर के लिये भी शुरू नहीं हो सका। किसानों के पक्ष में हुआ हाईकोर्ट का फैसला का यही सबसे बड़ा आधार था। – राज बहादुर पटेल