निरमा सीमेंट कम्पनी तथा भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलन
गुजरात के भावनगर जिले में एक सीमेंट कारखाना लगाने के फैसले के विरोध में 12 गांवों के 5000 से अधिक किसानों की पदयात्रा 350 किमी. लम्बी दूरी तय करके 17 मार्च 2011 को गांधीनगर पहुंची। जल-जमीन एवं जंगल बचाओ पदयात्रा 3 मार्च 2011 को महुवा क्षेत्र के धोलिया गांव से शुरू की गयी थी।
इस पदयात्रा में शामिल किसानों को एक बड़ी सफलता 12 मार्च 2011 को तब मिली जब केन्द्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय ने 19.1 लाख टन सालाना क्षमता वाले इस सीमेंट संयंत्र का निर्माण कार्य तत्काल प्रभाव से रूकवा दिया। महुवा क्षेत्र के 12 गांवों के किसान पादारिका गांव के पास बन रही इस सीमेंट फैक्ट्री के विरोध में पिछले एक साल से आंदोलन कर रहे हैं। किसानों का आरोप है कि सीमेंट फैक्ट्री, कैप्टिव पॉवर संयंत्र और कोक ओवन संयंत्र प्राकृतिक पानी पर कब्जा कर रही है। केन्द्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय ने निरमा कंपनी को जो नोटिस जारी किया है, उस में कहा गया है कि उसने सीमेंट फैक्ट्री के निर्माण में पर्यावरण नियमों का कथित तौर पर उल्लंघन किया है। अतः निरमा कंपनी अपनी तीन परियोजनाओं पर तत्काल प्रभाव से निर्माण कार्य रोक दे। इसके साथ ही मंत्रालय ने कहा कि क्यों न कंपनी को दिसम्बर 2008 में प्रदान की गई पर्यावरणीय मंजूरी को खत्म कर दिया जाए। मंत्रालय ने यह निर्णय विशेषज्ञ आकलन समिति की उस रिपोर्ट के आधार पर किया है जिसमें पाया गया कि भावनगर में लगाई जा रही परियोजनाओं से पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के नियमों का उल्लंघन हो रहा है।
ज्ञात हो कि गुजरात सरकार ने सन् 2008 के इनवेस्टर समिट में निरमा डिटरजेंट प्रा. लि. को सीमेंट प्लांट लगाने के लिए 4500 हेक्टर भूमि के अधिग्रहण की घोषणा की थी। सरकार ने निरमा कंपनी को 200 एकड़ ऐसी भूमि भी आवंटित कर दी है जो गोचर की भूमि है जिस पर तालाब बना है। यह हाल तब है जबकि देश के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने 28 जनवरी 2011 के एक फैसले के अनतर्गत सार्वजनिक भूमि, तालाब, चारागाह आदि के हस्तान्तरण पर रोक लगा दी है। देखना यह है कि गुजरात सरकार सर्वोच्च न्यायालय से ऊपर है या उसके अधीन। इस तालाब से स्थानीय किसान सिंचाई एवं पीने का पानी प्राप्त कर रहे थे, परंतु अब कंपनी इस पानी से सीमेंट प्लांट, कैप्टिव व बिजली संयंत्र और कोक ओवन संयंत्र का संचालन करके मुनाफा कमाने की योजना बना चुकी है। अगर निरमा कंपनी का यह अभियान सफल रहा तो लगभग 40 हजार किसानों को पलायन करना होगा।
किसानों के इस आंदोलन का नेतृत्व सत्ताधारी दल भाजपा के स्थानीय विधायक डा. कनुभाई कलसरिया कर रहे हैं। प्रभावित किसान एवं डा. कनुभाई कलसरिया ने गुजरात उच्च न्यायालय में पिछले साल सीमेंट कारखाने के विरोध में एक जनहित याचिका दायर कर निर्माण कार्य रोकने के लिए प्रार्थना की थी। परंतु न्यायालय ने याचिका को खारिज कर निर्माण कार्य को आगे बढ़ाने की अनुमति दे दी थी, इसके बाद किसानों ने संघर्ष का रास्ता अपनाते हुए ‘‘जल, जमीन तथा जंगल बचाओ’’ पदयात्रा की शुरूआत की।