बलात कब्जायी जमीनें, अपनाया साम-दाम-दण्ड-भेद का आजमाया तरीका! सरकार एवं कम्पनियों का विकास को तेज करने का नया अंदाज़ !!
छत्तीसगढ़ राज्य में 69000 एकड़ जमीन (जो कृषि भूमि है) को गैर कृषि कार्यों हेतु स्थानांतरित कर दिया गया। सड़क के किनारे की लगभग सारी की सारी जमीनों का मालिकाना अब किसानों का नहीं रह गया है। आज किसानों की भूमि हड़पने की तिकड़म अपने शबाब पर है। आज छत्तीसगढ़ में भूमि हड़पने की साजिशें सबसे बड़ी चुनौती है।
रायगढ़ जनपद की रायगढ़, तमनार एवं घरघोड़ा तहसील में किसी भी तरीके से तथाकथित विकास पर आमादा कम्पनियां अपने मकसद को अंजाम देने के लिए धन बल, बाहुबल, घिनौनी करतूतों का इस्तेमाल करते हुए इस तरह धड़ल्ले से मनमानी कर रही हैं मानो शासन-प्रशासन-सरकार उनकी चेरी हों और सरकारी आदेश, न्यायालय के निर्देश, नियम-कायदे-कानून उनके ऊपर लागू नहीं होते।
ऐसी कुछ घटनायें आगे दी जा रही हैं जिनको पढ़कर आप समझ सकते हैं कि जिंदल स्टील एण्ड पावर लिमिटेड कम्पनी और इसकी अगुआई में अन्य कम्पनियां किस तरह किसानों की जमीनें बलात कब्जा कर रही हैं।
छत्तीसगढ़ की ‘‘आदिवासी केन्द्रित अर्थव्यवस्था’’ मुनाफाखोरों के निशाने पर
नदी घाटी मोर्चा – छत्तीसगढ़ के संघर्षशील साथी गौतम बन्दोपाध्याय का मानना है कि आज के इस अंधकार के दौर में गांधी , बिनोवा और जय प्रकाश के विचार ही एकमात्र प्रकाश है। उनका मत है कि छत्तीसगढ़ में मौजूद प्रचुर पानी, खनिज और वन को देशी-विदेशी पूँजीपति ललचायी निगाह से देख रहे हैं। वे इस बात को जानते हैं कि उन्हें कामयाबी तभी मिलेगी जब वे इस क्षेत्र में एक लम्बे दौर से कायम ‘आदिवासी केन्द्रित स्थानीय अर्थव्यवस्था’ को नष्ट कर डालें। आज जमीनों, नदियों, खनिज पदार्थों तथा वनों पर कब्जा तेज कर दिया गया है। पहले छत्तीसगढ़ के दक्षिणी और उत्तरी भाग को निशाने पर लिया गया और अब छत्तीसगढ़ का केन्द्रीय भू-भाग निशाने पर आ चुका है। अपने वनों, नदियों, वृक्षों और कृषि की तबाही तथा पर्यावरण विनाश के खिलाफ लोग लड़ रहे हैं, आवाज बुलंद कर रहे हैं। अफसोस यह है कि संघर्षशील लोगों की जायज बातों को स्वीकार करने के बजाय सरकार छत्तीसगढ़ स्पेशल सिक्योरिटी एक्ट जैसे कानूनों का इस्तेमाल करके उनके दमन पर आमादा है। कानूनों में फेरबदल करके कम्पनियों, कारपेारेट के हित की जुगाड़ में सरकार तत्पर है। जनसुनवाइयां इसी का हिस्सा हैं, जब कार्यवाहियां पहले से तय हैं तो इस नाटक की जरूरत क्या है?
दृष्टांत-1
एक आदिवासी महिला के नाम पर फर्जीवाड़ा करके उसकी चचेरी बहन को खड़ा करके, एक ऐसे आदिवासी व्यक्ति के नाम से साढ़े चार एकड़ जमीन बेच दी जाती है जिस व्यक्ति का कहीं कोई अस्तित्व ही नहीं है और यह बगैर अस्तित्व वाला व्यक्ति भुक्तभोगी आदिवासी महिला के खिलाफ 8-9 साल से मुकदमा भी लड़ रहा है। इस आदिवासी महिला की जमीन पर कम्पनी ने जबरन रोड भी बना ली है।
एक आदिवासी महिला श्रीमती जानकी सिदार पत्नी श्री भरत लाल, निवासी ग्राम नागरामुड़ा, ग्राम पंचायत- जाँजगीर, पो0- धौराभाँटा, थाना एवं तहसील तमनार, जिला रायगढ़ (छत्तीसगढ़) अपने माँ-बाप की इकलौती औलाद है। उनके पिता पूरन सिंह, ग्राम- मिलुपारा, ग्राम पंचायत- मिलुपारा, थाना-तहसील- तमनार, जिला- रायगढ़ के निवासी थे। उनके पास 22 एकड़ जमीन थी। पिता की मौत के बाद उन जमीनों की वारिस जानकी सिदार हैं।
जानकी सिदार की जमीन का न तो भूमि-अधिग्रहण किया गया और न ही उन्हें कोई नोटिस दी गयी। न हि किसी प्रकार का मुआवजा दिया गया। जानकी बताती हैं कि उनकी जमीन पर मोनेट कम्पनी ने रोड बना लिया है। इस रोड का निर्माण कम्पनी ने 8-9 साल पहले किया। मोनेट इस्पात एनर्जी लिमिटेड, ग्राम- नहरपाली, तहसील खरसिया, रायगढ़ में है। इसी कम्पनी की शाखा मोनेट कोल माइन्स मिलुपारा गांव में है, इसी गांव में जानकी की जमीन पर मोनेट कोल माइन्स ने जबरियन रोड बना लिया है। मोनेट कोल माइन्स के मालिक संदीप जिजोदिया पुत्र महेन्द्र सिंह जिजोदिया हैं। कम्पनी मालिक संदीप जिजोदिया जिंदल कम्पनी के मालिक नवीन जिंदल, जो कांग्रेस पार्टी से सांसद भी हैं- के बहनोई हैं। जानकी बताती हैं कि मिलुपारा गांव के अन्य आदिवासियों जैसे सादराम सिदार आदि की जमीनें भी कम्पनी ने जबरन कब्जा कर रखी हैं।
जानकी सिदार की जमीनें कब्जाने का मोनेट कम्पनी ने नायाब तरीका अपनाया। जानकी बताती हैं कि उसके बड़़े पिता के बेटे दुबराज को पटा करके मेरी चचेरी बहन धनमती को मेरे नाम से खड़ा कराके मेरी साढ़े चार एकड़ जमीन फर्जी तौर पर बेच दी गयी। इसकी जानकारी जब मुझे गांव वालों से मिली तो मैंने इस मामले का विरोध करना शुरू किया। यह मामला वर्ष 2001 का है। जब मैंने इस अन्याय तथा चार सौ बीसी के खिलाफ आवाज उठायी तो मुझे जान से मारने की कोशिश की गयी। मेरे चचेरे भाई दुबराज ने 30-40 अन्य लोगों के साथ मुझे मार डालने के लिए मेरी घेरेबन्दी की। मैं जंगल में भागकर झाड़ियों में छिप-छिपाकर किसी तरह अपनी जान बचा पायी। इसके बाद मैंने कलक्टर के यहां केस किया। 8-9 साल से केस चल रहा है। तहसील स्तर पर तथा एस.डी.एम. स्तर पर मेरे साथ बेइंसाफी की गयी। अभी रायगढ़ के कलेक्टर तथा सिविल जज रायगढ़ के समक्ष मुकदमा चल रहा है।
जानकी ने बताया कि चूंकि हमारे इलाके में आदिवासी की जमीन आदिवासी ही खरीद सकता है। अतएव मेरी जिस जमीन को फर्जी तरीके से मेरी चचेरी बहन को मेरे नाम पर खड़ा कराके बिकवाया गया उसको खरीदने वाला एक अमरसिंह नामक आदिवासी बताया गया। जबकि अमरंिसंह नामक वह व्यक्ति है ही नहीं। हमारे निवेदन पर पुलिस ने यह लिखकर भी दिया है कि अमर सिंह नामक उस व्यक्ति का कोई अस्तित्व नहीं है। जानकी कहती हैं कि वास्तव में अमर सिंह नाम के व्यक्ति के नाम पर मोनेट कम्पनी के एक मैनेजर सुरेन्दर दुबे दस्तखत करते हैं। और मेरे खिलाफ एक ऐसी पार्टी 8-9 साल से मुकदमा लड़ रही है जिसका अस्तित्व ही नहीं है। जानकी बड़े दुःख के साथ कहती हैं कि यह कैसा न्याय तथा कोर्ट-कचहरी है जहां पर एक ऐसा आदमी मेरे खिलाफ मुकदमा लड़ रहा है जिसका अस्तित्व ही नहीं है। वे कहती हैं कि वास्तव में यह जमीन कम्पनी ने ही अमर सिंह नामक फर्जी आदिवासी के नाम फर्जी तौर पर खरीदी है। इस पूरी साजिश में मोनेट कम्पनी के मैनेजर सुरेन्दर दुबे शामिल हैं जिन्होंने लालच देकर इस कारनामे में मेरे चचेरे भाई दुबराज तथा चचेरी बहन धनमती को भी शामिल कर लिया है। जानकी बताती हैं कि जब मैं तारीख पर कचहरी जाती हूं तो कम्पनी के मैनेजर सुरेन्दर दुबे तथा मेरा चचेरा भाई दुबराज गुण्डों के साथ 30-40 की संख्या में आते हैं तथा गुण्डों के द्वारा धमकी दी जाती है कि मेरे पति, ससुर, बच्चों समेत मेरा कतल करवा दिया जायेगा।
जानकी का कहना है कि इन सब परेशानियों की वजह से मेरे पति जो एक स्कूल में टीचर थे, को अपनी नौकरी छोड़ने को मजबूर होना पड़ा। अब मेरे सामने अपनी, अपने पति, अपने बच्चों तथा अपने ससुर की जान का खतरा नजर आ रहा है। मैं अपने ससुराल के गांव वासियों की मदद से किसी प्रकार अभी तक जीवित बची हूं तथा कम्पनी की जोर-जबर्दस्ती के खिलाफ लड़ रही हूँ। बेनामी खरीद-फरोख्त कम्पनियों के लिए की जा रही है
आदिवासी मजदूर किसान एकता संगठन के जुझारू नेता हरिहर पटेल जो इलाके में डाक्टर के नाम से जाने जाते हैं का स्पष्ट कहना है कि किसानों की जमीनों पर न केवल जबरन कब्जा किया गया है बल्कि जिंदल कम्पनी एवं मोनेट कम्पनी बेनामी लोगों के नाम से जमीनें खरीद रही है। राज्य तथा कम्पनी दोनों की हिंसा का हम सामना कर रहे हैं। यहां पर कम्पनियों ने एलान कर रखा है विरोधियों को पहले ‘खरीदो’ अगर वे नहीं बिकते हैं तो उन्हें ‘फँसाओ’ और इसके बाद भी न माने तो रास्ते से ‘हटाओ’। हमारी प्राणदायिनी नदी केलो पूर्णतया प्रदूषित कर दी गयी है। भू-जल बहुत नीचे गिर गया है, नयी-नयी बीमारियां फैल रही हैं, पशुओं का बांझपन तथा महिलाओं का अकस्मात गर्भपात, वृक्षों में फल न लगना, फसल का उत्पादन घटना, शराब की बेइंतहा बिक्री तथा वायु-प्रदूषण के कारण श्वाँस रोग – जैसी तमाम समस्याओं से हम घिरे हैं, जूझ रहे हैं, लड़ रहे हैं और आगे भी लड़ेंगे। अपनी जमीन, नदी तथा वन हम किसी कीमत पर नहीं छोड़ेंगे।
दृष्टांत-2
श्रीमती हरि प्रिया पटेल की कुल 50 एकड़ जमीन में से 45 एकड़ जमीन का भू-अधिग्रहण कर लिया जाता है। वे अधिग्रहण के विरोध में मुआवजा लेने से इंकार कर देती हैं। उनकी शेष बची जमीन पर (लगभग 5 एकड़) जिंदल कम्पनी बलात कब्जा करके अपनी टाउनशिप-कालोनी आदि बना लेती है। प्रतिरोध करने पर उनकी तथा उनके पूरे परिवार की कम्पनी के लोगों द्वारा पिटाई की जाती है और उलटे उन पर पुलिस केस भी दर्ज करा दिया जाता है।
ग्राम टपरंगा, ग्राम पंचायत धौराभाटा, तहसील- तमनार, जिला रायगढ़ की निवासिनी श्रीमती हरि प्रिया पटेल की उपजाऊ कृषि योग्य भूमि का अधिग्रहण तमाम विरोध के बावजूद भी भूमि-अधिग्रहण अधिनियम के तहत कर लिया गया। अधिग्रहीत की गयी भूमि लगभग 45 एकड़ है। इस भूमि का मुआवजा अत्यधिक कम होने के नाते इन्होंने विरोध स्वरूप मुआवजा लेने से इंकार कर दिया। इस बीच इनकी शेष बची कृषि भूमि लगभग 5 एकड़ पर जिंदल कम्पनी ने जबरन कब्जा कर लिया तथा उस पर अपनी कम्पनी की टाउनशिप, कालोनी आदि बना ली। इसका विरोध करने के लिए श्रीमती हरि प्रिया पटेल के बेटे योगेन्द्र पटेल तथा अन्य परिवार के लोग जब गये तो कम्पनी के लोगों ने उन पर हमला किया, परिवार के लोगों को मारापीटा तथा उल्टे योगेन्द्र पटेल एवं परिवार के अन्य लोगों पर मुकदमा भी दर्ज करा दिया गया।
यह विवरण देते हुए योगेन्द्र पटेल ने बताया कि इसके अलावा मेरे गांव के नारायन पटेल तथा जीवन पटेल की भी जमीनों पर जिंदल कम्पनी ने जबरियन कब्जा कर रखा है। हमारी कहीं पर भी नहीं सुनी जा रही है। कम्पनी के मालिक नवीन जिंदल अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके हमारे साथ न्याय नहीं होने दे रहे हैं। श्री योगेन्द्र दुःखी होकर कहते हैं कि न तो हमारी इस जमीन का अधिग्रहण किया गया और न हमने यह जमीन कम्पनी को बेची, हम यह किससे पूछें कि हमारी जमीन किस हैसियत से जिंदल कम्पनी ने कब्जा रखी है?
छत्तीसगढ़ राज्य के अस्तित्व में आने से पहले ही मध्य प्रदेश राज्य ने शिवनाथ नदी का 23.5 किमी. हिस्सा रेडियस वाटर कम्पनी लिमि. को लीज पर दे दिया था और अब केलो, खरून, हसदेव तथा सबरी नदियां भी कम्पनियों के नियंत्रण में हैं- पानी लेने तथा कचड़ा डालने के लिए। – रमेश अग्रवाल, जन चेतना मंच, रायगढ़
दृष्टांत-3
जिंदल पावर लिमिटेड कम्पनी ने किया जमीन पर कब्जा जबकि न तो हुआ भूमि का अधिग्रहण, न भूमि की बिक्री, न मिला मुआवजा, न गुजाराभत्ता। तहसीलदार के आदेश के बावजूद भी जमीन से कम्पनी को बेदखल करके किसान को उसकी जमीन पर कब्जा दिलाने के लिए आज तक कोई कार्यवाही नहीं। सदमे से किसान की पत्नी की हृदयाघात से मौत।
ग्राम सलिहाभॉटा, ग्राम पंचायत सलिहाभाटा, तहसील-तमनार, जिला रायगढ़ के 60 वर्षीय किसान रघुनाथ चौधरी जो एक छोटी सी दुकान चलाकर अपना गुजर-बशर कर रहे हैं बताते हैं कि उनके पास 11 एकड़ जमीन थी। उसमें से 9 एकड़ जमीन पर जिंदल पावर लिमिटेड कम्पनी ने जबर्दस्ती कब्जा कर रखा है।
श्री चौधरी कहते हैं कि न तो मैंने अपनी जमीन जिंदल कम्पनी को बेची, न मुझे कभी भी लिखित या मौखिक रूप से भूमि-अधिग्रहण आदि के बारे में कोई जानकारी दी गयी, न तो मुझे कोई मुआवजा दिया गया और न मैंने मुआवजा आदि लिया है। मैं जब अपनी भूमि के बारे में कोई जानकारी मांगता हूं तो मुझे कोई जानकारी भी नहीं दी जाती है। फसल की क्षतिपूर्ति के लिए जब मैं अधिकारियों या कम्पनी के प्रबंधकों से सम्पर्क करता हूं तो मुझे भगा दिया जाता है, कोई जवाब नहीं दिया जाता।
श्री चौधरी बताते हैं कि मैंने वर्ष 2005 में आजिज आकर जिंदल पावर लिमिडेड कम्पनी के प्रबंधन पर केस किया तथा तहसीलदार तमनार से निवेदन किया कि मुझे मेरी जमीन पर कब्जा दिलाया जाय तथा कम्पनी द्वारा की जा रही जोर-जबर्दस्ती को रोका जाय। तहसीलदार तमनार ने 19-03-2007 को एक आदेश पारित करते हुए स्थानीय पुलिस थाना तथा राजस्व निरीक्षक को आदेश दिया कि मुझे मेरी जमीन पर कब्जा दिलाया जाय। परंतु आज तक इस आदेश का पालन नहीं किया गया। तहसीलदार इस आदेश के बाद मेरे द्वारा दायर किये गये मुकदमे पर आगे कोई कार्यवाही करने के बजाय 3 वर्षों से लगातार तारीखें देते जा रहे हैं।
चौधरी बड़ी गंभीरता से बताते हैं, इसके बाद मैं उच्च न्यायालय की शरण में न्याय पाने की उम्मीद से गया। उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने मेरा वाद निरस्त कर दिया, पुनः मैंने ‘फुल बेंच’ में अपील कर रखी है जो पिछले दो सालों से लंबित है और कम्पनी का मेरी 9 एकड़ जमीन पर नाजायज कब्जा जोर-जबर्दस्ती के बल पर कायम है।
श्री चौधरी अपनी व्यथा को सुनाते हुए कहते हैं कि तहसीलदार के आदेश का पालन न होना तथा उच्च न्यायालय में वाद लम्बित रहते हुए भी कम्पनी प्रबंधन ने बिना किसी की परवाह किये वर्ष 2009 में मेरी हरी-भरी खड़ी फसल को बर्बाद करते हुए मेरी जमीन पर मिक्सिंग प्लांट बना डाला। हमारी इस बर्बादी का आलम मेरी 54 वर्षीया पत्नी मुंगरा बाई बर्दाश्त न कर सकीं और हृदयाघात का शिकार हुईं और उनकी मौत हो गयी। श्री चौधरी कहते हैं कि इस मौत के लिए जिम्मेदार लोगों पर कौन कार्यवाही करेगा? क्या इस मौत की किसी मुआवजे से भरपाई की जा सकती है? मेरी समझ में नहीं आता कि यह सवाल किसके सामने रखूं, यह सवाल मेरे लिए तब और मुश्किल हो जाता है जब मैं पाता हूं कि आज दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक (?) देश की सर्वोच्च पंचायत (?) लोकसभा के सदस्य श्री नवीन जिंदल की अगुआई में यह सब जोर जबर्दस्ती हो रही है।
श्री रघुनाथ चौधरी बताते हैं कि इस तरह का अन्याय और गुण्डागर्दी इलाके के तमाम आदिवासियों, किसानों के साथ कम्पनी ने किया है। अकेले सलिहाभाटा, तमनार तथा रेगाँव गांवों के कम से कम 27 किसानों की जमीनों पर कम्पनी ने बलात कब्जा करके उन्हें 10-20 हजार रुपया एकड़ की दर से मुआवजे के लिए सहमत होने को बाध्य किया और अब 10-20 हजार रुपये देने के बाद बाकी रकम के लिए उन्हें दौड़ाया जा रहा है। वे कहते हैं कि जिंदल पावर प्लांट के मलवे के लिए बनाये गये ‘‘डम्पिंग डैम’ की वजह से रेगाँव और पाता गांवों के किसान भूमिहीन तथा अपने जमीनों से बेदखल हो गये हैं।
अन्त में चौधरी कहते हैं कि भाग-दौड़, धरना, प्रदर्शन से कुछ नहीं हो पा रहा है। कौन सुनेगा हमारी- सरकार, नेता सभी कम्पनी के साथ हैं। मुआवजा तो दूर रहा कम्पनी मुझे गुजारा देने को भी तैयार नहीं है। अब तो केवल उच्च न्यायालय में मुकदमे का ही सहारा बचा है।
लोकतन्त्र का चौथा स्तंभ कही जाने वाली मीडिया की यह स्थिति है कि प्रमुख क्षेत्रीय समाचार पत्र स्वयं माइनिंग, स्टील तथा पावर प्लांट बनाने की ओर बढ़ रहे हैं। नवभारत (स्टील प्लांट), हरिभूमि (स्टील प्लांट), दैनिक भास्कर (पावर प्लांट तथा कोयले की माइनिंग) की तरफ बढ़ रहे हैं। ऐसी स्थिति में सहज कल्पना की जा सकती है कि इन समाचार पत्रों की भूमिका जनसंघर्षों के संदर्भ में क्या होगी। फिर भी आशा की किरण के रूप में छोटे – स्थानीय समाचार पत्र- सिंहघोष, जनकर्म, केलो विहार, समाचार दूत, नवीन कदम, रायगढ़ संदेश, हैं जो आंदोलनकारियों की आवाज को स्थान देते हैं। – जयंत बहिदार, रायगढ़
दृष्टांत-4
जिंदल पावर लिमिटेड कम्पनी द्वारा जमीन पर जबरियन कब्जा, शिकायत दर्ज करने के बजाय पुलिस तथा तहसीलदार समझाते रहे कि जमीन कम्पनी को दे दो, उच्च न्यायालय में वाद 4 साल से लंबित अभी तक कोई तारीख नहीं पड़ी, भुक्तभोगी के वकील ने भी उसे दिया धोखा।
इस वक्त तमनार बस स्टैण्ड के पास फोटो कापी, स्टेशनरी तथा पीसीओ की दुकान चलाकर अपनी जीविका चला रहे 46 वर्षीय कृष्णलाल साव की 2 एकड़ जमीन जिंदल पावर लिमिटेड के पावर प्लांट के लिए जबरियन कब्जा कर ली गयी है। श्री कृष्णलाल साव बताते हैं कि मुझे वर्ष 2003-2004 में सूचना मिली कि मेरे खेत पर जिंदल कम्पनी की तरफ से 10-12 फीट मोटी मिट्टी की तह लगायी जा रही है तथा कम्पनी के डम्पर यह काम कर रहे हैं। मैं अपने गांव वालों के साथ अपने खेत पर पहुंचा और वहां पर मिट्टी डाल रहे डम्पर्स को काम करने से रोका और भगा दिया। इसके बाद मैं इस संदर्भ में पुलिस थाना-तमनार में कम्पनी की ज्यादती के खिलाफ रिपोर्ट लिखाने गया, मेरी रिपोर्ट नहीं लिखी गयी, उलटे मुझे थानेदार यह समझाते रहे कि मैं अपना खेत कम्पनी को दे दूं। कुछ दिनों बाद कम्पनी फिर से मेरे खेतों पर मिट्टी डालने लगी। मैं एक बार फिर से थाने गया, इसबार भी मेरी रिपोर्ट नहीं लिखी गयी।
आगे अपनी आप बीती बताते हुए श्री साव कहते हैं कि मैं तहसील गया और तहसीलदार के सामने अपना प्रतिवेदन किया। उस वक्त बंजारे साहब तहसीलदार थे। वे भी मुझे समझाते हुए बोले कि कम्पनी पहाड़ की तरह है उससे मत टकराओ। अपनी जमीन कम्पनी को दे दो। मगर मैंने उनकी बात मानने से इंकार कर दिया। तहसीलदार के यहां अपने मुकदमे की पैरवी करता रहा। अन्ततः 24 मार्च 2007 को तहसीलदार ने मेरे पक्ष में आदेश पारित करते हुए स्थानीय पुलिस तथा राजस्व निरीक्षक को आदेश दिया कि वे मेरे खेत पर मुझे कब्जा दिलवायें। परंतु तहसीलदार का यह आदेश आज तक लागू नहीं हो सका है।
श्री साव का कहना है कि मुझे मेरी जमीन के अधिग्रहण के बारे में कभी कोई सूचना नहीं दी गयी और न मेरी जमीन का अधिग्रहण किया गया है। न तो मुझे कोई मुआवजा दिया गया और न मैंने कोई मुआवजा लिया है और न ही मैंने अपनी जमीन किसी को बेची है। फिर भी मेरी जमीन पर आज भी जिंदल पावर लिमिटेड कम्पनी ने जबरियन कब्जा कर रखा है।
श्री साव कहते हैं कि इस अन्याय तथा गुण्डागर्दी के खिलाफ मैंने हाईकोर्ट में मुकदमा कर रखा है। हाईकोर्ट में लगभग 4 साल से मुकदमा विवादित है। हाईकोर्ट में मेरे मुकदमे की पैरवी कर रहे वकील को भी कम्पनी ने अपनी तरफ मिला लिया। अतएव मुझे मजबूर होकर अपना वकील भी बदलना पड़ा। इन सब झंझटों से निपटने के लिए मुझे अपनी नौकरी भी छोड़नी पड़ी और मौजूदा समय में अपनी जीविका के लिए एक स्टेशनरी की दुकान चला रहा हूं।
श्री साव अफसोस जाहिर करते हुए कहते हैं कि मेरी जमीन पर जबरियन कब्जा कर लिया गया, कोई नोटिस भी नहीं दी गयी, न भूमि-अधिग्रहण किया गया, न मुआवजा दिया गया – न तो सरकार और न तो कम्पनी द्वारा, तहसीलदार का आदेश कूड़ेदान में पड़ा है और हाईकोर्ट में सालों से तारीख ही नहीं लग रही है। मेरी समझ में नहीं आता कि अब मैं क्या करूँ? फसलों की क्षतिपूर्ति के लिए जब मैं कम्पनी से सम्पर्क करता हूं तो कम्पनी के लोग क्षतिपूर्ति करने का वादा तो करते हैं परंतु उसे निभाते नहीं। जिंदल कम्पनी के एक मैनेजर दिनेश भार्गव- जो कम्पनी की तरफ से जमीन की खरीद-फरोख्त का काम देखते हैं मुझसे कहते हैं कि तुमने तो मुकदमा कर रखा है, जाओ जो करते बने कर लो, तुम्हें कोई मुआवजा या क्षतिपूर्ति नहीं दी जायेगी।
श्री कृष्णलाल साव कहते हैं कि इधर 3-4 महीनों (जुलाई 2010) से यह प्रचार किया जा रहा है कि मेरी जमीन वर्ष 2008-09 में भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 के अन्तर्गत अधिग्रहीत कर ली गयी है। परंतु इस संदर्भ में मुझे आज तक लिखित या मौखिक तौर पर कोई सूचना नहीं दी गयी। तहसील से इस संदर्भ में जब मैंने जानकारी लेने की कोशिश की तो मुझे कोई जानकारी नहीं दी गयी।
दृष्टांत-5
एक सरकारी स्कूल के अध्यापक की जमीन पर नाजायज ढंग से कब्जा कर लिया जाता है और उसे सरकारी अधिकारी धमकी देते हैं कि यदि उसने कम्पनियों का या भूमि-अधिग्रहण का विरोध किया तो उसे नौकरी से भी हाथ धोना पड़ेगा।
ग्राम तमनार, थाना-तहसील तमनार, जिला रायगढ़ के निवासी 48 वर्षीय प्रफुल्ल कुमार पटनायक की कुल जमीन 1.35 एकड़ का अधिग्रहण जिंदल पावर प्लांट के लिए भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 के अन्तर्गत कर लिया गया। भूमि अधिग्रहण के बाद वर्ष 2004 में उन्हें इसकी सूचना दी गयी। इन्हें सुने बिना तथा इनकी आपत्तियों को जाने बगैर यह अधिग्रहण किया गया।
श्री पटनायक बताते हैं कि हमारी बेहद उपजाऊ जमीन को खार जमीन दिखाकर मुआवजा भी बहुत कम देने की पेशकश की गयी, अतएव मैंने विरोध स्वरूप मुआवजे की राशि नहीं लिया। मैंने मुआवजा बढ़ाकर देने तथा मेरी कृषि भूमि का सही मूल्यांकन करने का प्रतिवेदन राजस्व विभाग के समक्ष कर रखा है। मैं मुआवजे के तौर पर कम्पनी का शेयर चाहता हूं। परंतु मेरी बातें कहीं भी सुनी नहीं जा रही हैं।
श्री पटनायक पिछले 25 वर्षों से सरकारी प्राइमरी स्कूल में शिक्षक हैं। श्री पटनायक का कहना है कि मुझे सरकारी अधिकारियों द्वारा यह धमकी भी दी गयी कि अगर कम्पनी के खिलाफ होने वाली जन सुनवाइयों में मैं गया तो मुझे सरकारी नौकरी से भी हाथ धोना पड़ेगा।
यह दृष्टांत यह बताते हैं कि भूमि अधिग्रहण अधिनियम तथा सेज हेतु प्रस्तावित संशोधनों, जो जमीनों के अधिग्रहण के संबंध में हैं, के अन्तर्गत यदि कम्पनियों, परियोजना संचालकों को यह छूट दी गयी कि वे 70-75 फीसदी जमीनों का इंतजाम स्वयं कर लें तथा बाकी 25-30 फीसदी जमीनें सरकार अधिग्रहीत करके दे देगी, तो किस तरह के तरीके कम्पनियाँ अपनायेंगी और किसानों पर क्या बीतेगी?