भूमि अधिकार आंदोलन का राष्ट्रव्यापी आह्वान : 9 अगस्त को कॉर्पोरेट परस्त, सांप्रदायिक व तानाशाह सरकार के खिलाफ़ आक्रोश प्रदर्शन
साथियों,
हम एक समय के गवाह बन रहे हैं जिसमें शोषण और दमन ही सत्ता व सरकार की एकमात्र नीयत व मंशा बनती जा रही है. किसी भी रास्ते यह सरकार ऐसा कोई मौक़ा नहीं छोड़ रही है जिसके मार्फ़त ग़रीबों, किसानों, मजदूरों व आम मेहनतकश नागरिक को ज़बरन शोषण की चक्की में न धकेला जा रहा हो. वर्षों से जो सवर्ण वर्चस्व की हिंदूवादी व ब्राह्मणवादी सत्ता व्यवस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मन में पनपती रही उसे साकार करने के इस सरकार के मंसूबे अब हम सभी के सामने हैं. मामला चाहे ज़बरन लोगों के हाथों से उनके आजीविका के संसाधन हड़पने का हो, किसानों की आत्महत्या के लिए परिस्थितयां तैयार करने का हो, मजदूरों के लिए अनिश्चित रोजगार का माहौल बनाने का हो, सभी मोर्चों पर यह सरकार कई मामलों में ब्रिटिश साम्राज्य से बदतर होती जा रही है. तमाम चुनावों में मिलती हुई बढ़त ने इस सरकार के घमंड को बढ़ा दिया है. साम- दाम -दंड -भेद किसी भी तरह से यह सरकार, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, भाजपा और अपने कुकुरमुत्तों की तरह उग आये हज़ार हज़ार अन्य आनुषांगिक संगठनों के माध्यम से हिन्दुस्तान को साम्प्रादायिक व कॉर्पोरेट परस्ती की दिशा में ले जा रहे हैं. जिनकी राजनैतिक विरासत दलालों की है और जिनका पूरा इतिहास देश व देशवाशियों के साथ मात्र गद्दारी करने का रहा है वो आज न केवल पूरे देश को देशभक्ति का पाठ पढ़ा रहे हैं, बल्कि इसकी आड़ में हिन्दुस्तान को पुन: गुलामों के देश में बदल देना चाहते हैं. यह भूल गए हैं कि इतिहास में इनकी तमाम गद्दारियों के बावजूद हिन्दुस्तान के सभी जाति-सम्प्रदाय के मेहनतकशों, किसानों, विद्यार्थियों, कलाकारों व राजनैतिक रूप से सजग आम जनता ने दो सौ साल की गुलामी की जंजीरों से मुक्ति हासिल की थी, ये तब भी थे और देश कि जड़ें खोदने में अंग्रेजों का साथ दे रहे थे.
साथियो, हम इन देशद्रोहियों, गद्दारों के हाथों अपने देश की नियति नहीं सौंप सकते. हम अपना सक्रिय राजनैतिक हस्तक्षेप इसमें करेंगे. बीते सत्तर सालों में हमने टुकड़े- टुकड़े क्षेत्रों को एक गणराज्य का स्वरूप दिया, एक महान संविधान को अंगीकृत किया, समानता, न्याय और बंधुत्व की बुनियाद पर अपने लोकतंत्र को रचा और सभी को गरिमापूर्ण जीवन देने का संकल्प लिया और इसके लिए हमारे पूर्वजों ने कुर्बानियां दीं. हम इन कुर्बानियों को यूं ही इन गद्दारों के मनोरंजन का साधान नहीं बनने देंगे. हम अपने लोकतंत्र का इस तरह खुलेआम अपहरण नहीं होने देंगे. इतिहास गवाह है जब- जब देश में ऐसे क्रूर, असंवेदनशील और तानाशाह शासकों को सत्ता मिली है तब- तब देश की आम मेहनतकश जनता ने इसके खिलाफ विद्रोह के स्वर पैदा किये हैं और हर समय ऎसी ताकतों को धूल चटाकर एक वृहत मानवीय समाज के निर्माण की नींव रखी है.
साथियो, आप जानते हैं 2014 के आम चुनाव के बाद केंद्र की सत्ता में जब से एक कार्पोरेट्स के ज़रखरीद गुलाम और अपनी छवि में तानाशाह दिखने वाले नरेन्द्र दामोदर दास मोदी आये हैं, इन्होने ग़रीबों के हाथ से रोटी और उनका आत्मसम्मान छीनने की कोशिश की है. किसानों से उसकी ज़मीनें, उनकी मेहनत से उगाई फसलों के दाम, मजदूरों के हाथ से काम और युवाओं से उनके सपने. आज देश में बेरोजगारी इतिहास में सबसे भीषण रूप में पहुँच गयी है, किसानों की बेबसी का आलम यह है कि इतनी किसान आत्महत्याएं पहले कभी दर्ज नहीं हुईं हैं, नोटबंदी और जीएसटी जैसे अविवेकी फैसलों से रोजगार याफ्ता लोगों की आजीविका छीन ली है, नए रोजगार तो पैदा नहीं हुए. देश के तमाम बौद्धिक संस्थानों पर विद्वेषपूर्ण हमले व उनकी साख को चोट पहुंचाई गयी. दलितों व अल्पसंख्यकों (विशेष रूप से मुसलामानों) पर अमानुषिक अत्याचार को घोषित तौर पर राजकीय संरक्षण दिया जा रहा है.
इन्हीं सब अत्याचारों व तानाशाहीपूर्ण अविवेकी चरित्र की सरकार के मंसूबों पर नकेल कसने के लिए 2015 में भूमि अधिकार आन्दोलन का गठन हुआ और इस सरकार के पहले ही कॉर्पोरेट परस्त भूमि-अध्यादेश को चुनौती दी और सरकार को पीछे हटना पड़ा. लेकिन इस बीच इस सरकार ने अपने ऐतिहासिक चरित्र के अनुकूल देश के अन्दर मज़हबी बंटवारा करने के कुकृत्य को वैधानिकता देने की भी पुजोर कोशिश की. आज देश गाय, गोबर और ऐसे ही कुतर्कों में उलझा है और उधर चुनिन्दा कॉर्पोरेट घरानों के मुनाफे व संपत्तियां बढ़ती जा रहीं हैं. हाल ही में मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र में उभरे किसान आन्दोलन व उन पर हुए राजकीय दमन ने देश की आम जनता की चेतना को जगाया है. किसानों और मेहनतकशों के इस आन्दोलन को तीव्र करने व देश के कोने -कोने में ले जाने के लिए भूमि अधिकार आन्दोलन 9 अगस्त यानी विश्व आदिवासी दिवस पर सभी मूलनिवासियों /आदिवासियों के साथ अन्याय के खिलाफ अपनी प्रतिबद्धतता का इज़हार करते हुए राष्ट्रव्यापी आन्दोलन का आव्हान करता है. इस आन्दोलन में अपने –अपने क्षेत्रों की प्रमुख मांगों के साथ निम्नलिखित सामान्य मांगे रखीं जायेंगीं-
- स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिश के मुताबिक़ फसल लागत का डेढ़ गुना मूल्य सुनिश्चित किया जाए.
- किसानों का कर्ज माफ़ किया जाये.
- ग्रामीण रोजगार सुनिश्चित करने के लिए मनरेगा का बजट बढ़ाया जाए.
- सभी किसानों की कम से कम 5000 रुपया/प्रतिमाह आय तय की जाए.
- पशु व्यापार के ऊपर लगे प्रतिबंध को पूरी तरह हटाया जाए.
साथियो, साम्राज्यवाद,पूंजीवाद, साम्प्रदायवाद, जातिवाद और सत्ता के मद में चूर तानाशाही ऎसी प्रवृत्तियां हैं जिनके खिलाफ हम हरदम खड़े हुए हैं, और भविष्य में इनके खिलाफ खड़े होंगे. भूमि अधिकार आन्दोलन आप सभी का आह्वान करता है कि यह समय कुर्बानियों से हासिल हुए इस महान लोकतंत्र को बचाने का समय है. हम सभी 9 अगस्त को भारत छोड़ो आन्दोलन की विरासत को साथ लेकर, किसानों, मजदूरों, अल्पसंखयकों, दलितों, आदिवासियों के पक्ष में खड़े होकर इस तानाशाह सरकार को जड़ से उखाड़ने के लिए सड़कों पर आयेंगे…
हाल ही में केंद्र व राज्य में बैठी भाजपा सरकारों ने नर्मदा बचाओ आन्दोलन के साथियों पर अमानुषिक अत्याचार किया है, गौरक्षा के नाम पर मुसलमानों पर प्रायोजित व राजकीय संरक्षण में भीड़ की हिंसा की घटनाओं में और तेज़ी आई है, मध्य प्रदेश में किसानों के अहिंसक व शांतिमय आन्दोलन पर गोली चलवाकर किसानों की हत्यायें की हैं और नोटबंदी व जीएसटी थोपकर करोड़ों लोगों के रोजगार ख़त्म किये हैं… 9 अगस्त को भूमि अधिकार आन्दोलन के बैनर तले हम इस सरकार की भर्त्सना करेंगे और इसके मंसूबों को चकनाचूर करेंगे. आप सभी से अपील है कि इस अवसर पर अपनी एकजुटता दिखाएँ और अपने-अपने तरीके से अपना आक्रोश दर्ज कराएं..
इंक़लाब ज़िंदाबाद
(भूमि अधिकार आन्दोलन द्वारा प्रसारित)