झारखण्ड के आदिवासियों का नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के खिलाफ 25 वर्षों से बहादुराना प्रतिरोध
झारखण्ड के लातेहार एवं गुमला जिले के आदिवासी पिछले 25 वर्षों से केन्द्रीय जन संघर्ष समिति, लातेहार – गुमला के बैनर तले प्रस्तावित नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के खिलाफ संघर्षरत है. इस परियोजना से 245 गांवों के करीब 3 लाख लोगों के विस्थापित होने का अनुमान है। झारखण्ड की राजधानी रांची में प्रभावित आदिवासियों ने 4 मई 2017 को राजभवन के समक्ष सत्याग्रह संकल्प सभा कर एक बार फिर एक इंच भी जमीन नहीं देने का नारा दौहराया. पेश है केन्द्रीय जन संघर्ष समिति, लातेहार- गुमला का ज्ञापन;
सेवामें,
राज्यपाल
झारखण्ड सरकार
मान्यवर,
जोहार!
जैसा कि आपको ज्ञात होगा मैनुवर्स फील्ड फायरिंग एंड आर्टिलरी प्रैक्टिश एक्ट 1938 की धारा 9 के अर्न्तगत 1956 को सरकार द्वारा अधिसूचना जारी कर नेतरहाट पठार क्षेत्र के 308 वर्ग कि.मी. भूभाग को अधिसूचित क्षेत्र घोषित किया एवं 140 वर्ग कि.मी. को संघात क्षेत्र निर्धारित किया था, उक्त अधिसूचना के तहत 1964 से लेकर 1994 तक सेना लगातार हर साल तोप चालन अभ्यास करती रही।
नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज की अधिसूचना रद्दकर सेनाभ्यास बंद किया जाए
उक्त अधिसूचना की अवधि के समाप्त होने की अवधि के पूर्व ही 1991 और 1992 को बिहार गजट असाधारण अंक द्वारा की अधिसूचना जारी कर इसकी अवधि 12 मई 1992 से 11 मई 2002 तक कर दी गई। इस अधिसूचना में सिर्फ अवधि का ही विस्तार नहीं हुआ बल्कि क्षेत्र का भी विस्तार करते हुए 7 गांव से बढाकर 245 गांवों को तोप अभ्यास के लिए अधिसूचित कर दिया गया। इसके तहत 1471 वर्ग कि0 मी0 क्षेत्र प्रभावित होने की बात कही गई। इसके अन्तर्गत 188 वर्ग कि0मी0 का संघात क्षेत्र एवं 9-9 कि0मी0 वर्ग क्षेत्र में दो सैनिक छावनी बनाने का प्रस्ताव है। इन अधिसूचनाओं के तहत 206 वर्ग कि0मी0 भूमि का अर्जन किया जाना था, जिससे 245 गांव के करीब ढाई लाख लोगों के विस्थापित होने का अनुमान है जो अब के समय के अनुसार 3 लाख से ज्यादा होगी। आदिवासियों की जनसंख्या करीब 90 प्रतिशत है, जिसमें विलुप्त होती आदिम जन जाति असुर, कोरवा, विरहोर, बिरजिया शामिल हैं। वर्त्तमान में सैनिक छावनी के लिए 3500 वर्ग कि0 मी0 क्षेत्र लेने का प्रस्ताव किया गया है।
अब, 1991-92 की अधिसूचना की अवधि समाप्त होने के पूर्व ही 1999 में, पुनः बिहार सरकार अधिसूचना संख्या 1005/2-11-1999 जारी कर इसकी अवधि 2002 से 2022 तक कर दी है। जिसके विरोध में हमारा अहिंसात्मक सत्याग्रह जारी है।
छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम और संतालपरगना काश्तकारी अधिनियम में संशोधन –
अंग्रेजी शासन काल में 1908 में आदिवासी – मूलवासी हितों के रक्षार्थ छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम बनाये और लागू किये गये। यह अधिनियम आदिवासी-मूलवासी की जंगल और जमीन का सुरक्षा कवच है ।इससे आदिवासी मूलवासी अपनी जमीन जायदाद के साथ ही अपनी संस्कृति, परंपरा आदि की रक्षा करते आ रहे है। 1908 के बाद इस काश्तकारी अधिनियम में 19 बार (1920,1923,1929,1938,1940,1944,1946,1947,1951,1955,1963,1964,1969,1970,1976,1982,1995 और 2016 में ) संशोधन किए गए । इनमें से कई संशोधन आदिवासियों के हित में नहीं है। फिलहाल 2016 में किए गए संशोधन खासकर धारा 21 के तहत कृषि भूमि का गैर कृषि कार्य के लिए इस्तेमाल करने के प्रावधान से तो आदिवासी समाज ही भूमिहीन हो जाएगा। पूरे झारखंड की आदिवासी-मूलवासी जनता इस संशोधन के विरूद्ध है। हमारे क्षेत्र की जनता भी इस संशोधन का पुरजोर विरोध करती है। संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत माननीय राज्यपाल जन जातियों (आदिवासियों) की फ्रेंड फिलोसोफर और गाइड है। अतः केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति स्थानीय जनता के हितार्थ अनुरोध करना चाहती है कि राज्यपाल महोदया छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम और संतालपरगना काश्तकारी अधिनियम के धारा 13 में आदिवासी हित के खिलाफ किए गए संशोधनों में हस्तक्षेप कर उसे निरस्त करने की अनुशंसा करने की कृपा करें।
भू-खतियान भाग 2 एवं भूमि लूट के लिए बनी लैंड बैंक की स्थापना –
झारखंड सरकार द्वारा भूमि संबंधी दस्तावेज को कम्प्यूटरीकृत किया गया और विशेष आर्थिक क्षेत्र यथा औद्योगिकीकरण, यातायात सुविधा, पर्यावरण वगैरह के निर्माण के लिए लैंड बैंक की स्थापना की गई है। पूरे झारखंड में 20.56़ लाख एकड़ भूमि लैंड बैंक में चिन्हित है। इनमें से 10.56 लाख एकड़ भूमि उद्योग लगाने के लिए विभिन्न कंपनियों को देने के लिए चिन्हिम की गई है।जो अधिकतर अनुसूचित क्षेत्र में है। महुँआडांड़ प्रखंड में 3867. 62 एकड़ भूमि लैंड बैंक में चिन्हित है। गुमला जिला में1,05,914 एकड़ भूमि चिन्हित है। इस तरह के चिन्हित भूमि पर सदियों से गांव वालों का दखल-कब्जा रहा है और कुछ भूमि में खेती बारी होती आ रही है। हाल पलामू भू सर्वेक्षण वर्ष 1978- 1992 में अंग्रेज जमाने में किये गये खतियान भाग 2 के अनुसार सर्वेक्षण नहीं किया गया। खतियान भाग 2 गांव की सामूहिक सम्पति – गांव-जंगल ,गांव दस्तूर आदि का जिक्र है। हाल भू सर्वे में खतियान भाग 2 में दिए गए अधिकार हाल भू सर्वे में छीन लिए गए जिस कारण स्थानीय लोगों के मन में भारी असुरक्षा पैदा हो गयी है।यह उनकी जीविका और संस्कृति का प्रश्न है।लैंड बैंक में चिन्हित की गई जमीन में लगभग 11 लाख एकड़ भूमि यानी 80.7 प्रतिशत जमीन अनुसूचित इलाके में है।
दरअसल सरकार 2013 के भूमि अधिग्रहण में पारदर्शिता मुआवजा भुगतान, पुनर्वास पुनसर््थापन अधिनियम को लागू करने के लिए कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रही है। भूमि अधिग्रहण के पूर्व ग्राम सभा की सहमति और पेसा कानून को अवलोकनार्थ ही सरकार कोई फैसले ले सकती है। भूमि अधिग्रहण के लिए सरकार ग्राम सभा से कोई बात नहीं कर रही है। अगर 80 प्रतिशत ग्रामीणों की सहमति नहीं होगी तो भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जा सकता है। लेकिन इसी 2013 कानून के धारा 101 के तहत लैंड बैंक बनाकर राज्य की तमाम जमीन को अपने कब्जे में गैरकानूनी तरीके से हड़प रही है। 2013 कानून को सरकार समग्रता में लागू करे।
लगान रसीद-
जति प्रमाण पत्र, आवासीय प्रमाण पत्र तथा अन्य विधि मामलों के लिए हाल लगान रसीद की आवश्यकता होती है। आम रैयतों को अंचल कार्यालय से तत्काल लगान रसीद कटवाने में बहुत परेशानी हो रही है। कारण – भूमि की जो सूचना सरकार द्वारा कम्प्यूटर में चढ़ाई गई है वह वास्तविक हक एवं दखल-कब्जा के मुताबिक नहीं है। रैयतों के भूमि की जानकारी सर्वे खतियान एवं अंचल के रजिस्टर 2 में रहती है। बहुत से रैयतों के अंग्रेज जमाने के पुराने खतियान कट-फट गए एवं अपठनीय हो गए हैं। ऐसी स्थिति में हक के कागजी प्रमाण में दिक्कत हो रही है और इसके लिए कर्मचारियों द्वारा नाजायज रकम की मांग की जाती है। केन्द्रीय जन संघर्ष समिति मांग करती है कि निर्देश दिए जाएं कि हल्का कर्मचारी भूमि के कम्प्यूट्री डाटा की जांच रजिस्टर 2 एवं (Correction Slip) से करके लगान रसीद निर्गत करें।
स्थानीयता नीति –
स्थानीय नीति के तहत 1985 को आधार वर्ष बनाए जाने से झाड़खंडी युवक युवतियां नौकरी से वंचित हो रहे हैं।1985 के कट ऑफ इयर होने से स्थानीय लोगों की उपेक्षा हो रही है। झारखंड सरकार द्वारा अधिसूचित स्थानीय नीति का विरोध पूरे झारखंड की आदिवासी-मूलवासी जनता कर रही है। केन्द्रीय जन संघर्ष समिति लातेहार गुमला भी उनके साथ इस नीति के विरोध में खड़ी है और मांग करती है कि स्थानीय नीति पर पुनर्विचार किया जाए। ताकि जमीन लूटने के साथ झाड़खंडियों को नौकरी से भी वंचित न किया जा सके।नेतरहाट इलाके में लोहार, बड़ाईक और भुइंहर को अनुसूचित जनजाति सूची से हटा दिया गया है। भूमि के कम्पयूटराइजेशन से खतियान निकालना सुदूर देहात के लोगों और पाठ क्षेत्र के लोगों के लिए कठिन हो गया है।अंग्रेजी शासन काल के केडेस्ट्ल सर्वे जिसमें रांची 1932, पलामू प्रमंडल 1918 से 1922 तें हुए सर्वे को ही स्थानीय नीति का आधार बनाया जाना चाहिए और खतियानधारियों को ही झाड़खंडी मानने की स्थानीय नीति बनाई जानी चाहिए।
लाखों भूईहार मुण्डाओं को जाति प्रमाण पत्र जारी नहीं
लातेहार एवं गुमला जिलों के पठारी क्षेत्र में काफी संख्या में भूईहार-मुण्डा परिवार वास करते हैं। बिहार राज्य में रहते इस जाति के सदस्यों को अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र मिल जाया करता था, किन्तु झारखंड बनने के बाद इस समाज की परेशानी बढ़ गई है। जिस भूईहार व्यक्ति का खतियान में जात मुण्डा दर्ज है उसे अनुसूचित जन जाति का प्रमाण पत्र निर्गत किया जा रहा है किन्तु जिनके खतियान में सिर्फ भूईहार दर्ज है उन्हें जन जाति का प्रमाण पत्र नहीं दिया जा रहा है। भूईहारी सर्वे रिपोर्ट 1927 एवं 1935 में बंदोबस्त पदाधिकारी श्री टेलर द्वारा स्पष्ट रूप से दिया गया है। भूईहार और भूईहार मुण्डा दोनों एक ही मुण्डा जाति है किन्तु एक को अनुसूचित जन जाति का प्रमाण पत्र मिल रहा है दूसरे को नहीं मिल रहा और न ही उसे किसी दूसरे जाति विशेष में शामिल किया गया है। यह एक विचित्र स्थिति है। केन्द्रीय जन संघर्ष समिति, लातेहार-गुमला सादर अनुरोध करती है कि इस समस्या के यथाशीघ्र समाधान की दिशा में कारवाई की जाए।ऐसे लोगों की तादाद वहो लाखों में है। जाति प्रमाण पत्र. नहीं मिलने से वे तमाम सरकारी योजनाओं से वंचित हैं और वनाधिकार कानून के तहत वन भूमि का पट्टा क लिए भी आवेदन नहीं दे पा रहे हैं।
विद्यार्थी छात्रवृति से वंचित/ आधार कार्ड की मांग गलत
राज्य में जनजातीय उपयोजना के तहत बजट में राशि का कम निर्धारण किया गया है। इसकी वजह से आदिवासी छात्र छात्राओं को मिल रही छात्रवृति में भारी कटौती की गई है। बीएड के लिए छात्रों को 50 हजार के बजाए 15 हजार रू. ही प्राप्त हो रहे है। लातेहार- गुमला जिला के प्रभावित क्षेत्र के विद्यार्थी छात्रवृति से वंचित हो गए हैं। उन्हें पुस्तक, पोषाक एवं अन्य सूविधाएं भी नहीं मिल रही है। इससे सरकारी विद्यालयों में बच्चों की उपस्थिति बहुत कम हो गई है। पूछ-ताछ करने पर अधिकारियों द्वारा कहा जाता है कि सब ऑन लाईन हो गया है पर किसी को इसके बारे पता नहीं चलता है।
छात्रवृति के लिए आधार कार्ड अनिवार्य नहीं है। लेकिन बिना आधार कार्ड के छात्रवृति नहीं दी जा रही है।
इससे गरीब आदिवासी बच्चों को शिक्षा प्राप्त करना बहुत ही मुश्किल हो रहा है।वे शिक्षा से वंचित हो रहे हैं ।
ऑन लाईन सुविधा –
सभी विकास कार्यों के लिए ऑन लाईन सुविधा उपलब्ध कराना सराहनीय है। किन्तु इसके लिए सुदूर इलाकों में संरचना की कमी है। प्रज्ञा केन्द्रों और प्रखंड के पदाधिकारियों कर्मचारियों द्वारा समय पर आधार कार्ड, आय प्रमाण पत्र, जाति प्रमाण पत्र, अवासीय/स्थानीयता प्रमाण पत्र समय पर उपलब्ध नहीं कराये जाने के कारण आम जनता को विशेषकर विद्यार्थियों को कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। विकास योजनाओं का सामाजिक अंकेक्षण भी एक छलावा है। सही मायने में विकास का लाभ सही लोगों को नहीं मिल पाता है। कारण-जन प्रतिनिधियों की लापरवाही, सरकारी कर्मचारियों का भ्रष्टाचार, सरकार फंड उपलब्ध कराने में विलम्ब तथा एक ही बैंक से पूरे प्रखंड का कारोबार।
पेसा कानून के तहत ग्राम सभाओं को सम्मान और 11 अनुसूची के अधिकारों की रक्षा
अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभाओं की अनुमति के बिना विकास का कोई काम नहीं किया जा सकता है।
लेकिन अनेक उदाहरण ऐसे हैं जब प्रशासन बिना ग्राम सभा के अन ुमति के विकास के कार्यो यहां तक कि भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई को भी ग्राम सभा की बिना अनुमति के अंजाम दे रही है। पेसा कानून की के सेक्शन 4 ए बी सी डी ….. को लागू नहीं किया जा रहा है। लातेहार और गुमला के ग्राम सभाओं की मांग के अनुरूप फायरिंग रेंज रद्द किया जाए। 11 अनुसूची के तहत उल्लिखित अधिकारों का लाभ मिलना चाहिए।
अहिंसात्मक सत्याग्रहियों पर प्रशासन द्वारा मुकदमा
नेतरहाट फील्ड फायरिंग के विरोध में आंदोलन कर रहे लोगों पर प्रशासन द्वारा 107 धारा के तहत मुकदमा दर्ज किए जाने और तरह तरह से प्रताड़ित किए जाने की कार्रवाई पर रोक लगाई जाए। सत्याग्रह आंदोलन गत 25 सालों से शांतिपूर्ण तरीके से चलाए जा रहे है। लेकिन आज तक प्रशासन द्वारा ऐसी कोई कारईवाई नहीं की गई थी। ऐसा पहली बार हुआ है कि प्रशासन ने 22 और 23 मार्च 2017 के अहिंसात्मक सत्याग्रह कार्यक्रम के बाद सत्याग्रहियों पर मुकदमा दायर कर दिया है। प्रशासन के द्वारा दमनात्मक कार्रवाई कर तमाम ग्रामीणों को परेशान कर दबाया जा रहा है।इससे इलाके के लोग आक्रोशित हैं।
नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज के प्रमुख मुद्दे
1. क्षेत्र में सेना द्वारा गोलाबारी अभ्यास एवं पायलट प्रोजेक्ट फील्ड फायरिंग नेतरहाट रेंज
- 00 फीट चौड़ी राष्ट्रीय उच्च पथ के पीछे छिपी कार्यसूचि
- पायलट प्रोजेक्ट फील्ड फायरिंग नेतरहाट रेंज क्षेत्र में 25 सीआरपीएफ कैंप
- नेतरहाट के मोनापाठ में हवाई अड्डा का निर्माण
- प्रभावित क्षेत्र में डैम का निर्माण
- बूढ़ा नदी पर सुगा बांध डैम
- संख नदी पर टूडरमा
2. सीएनटी एक्ट एवं एसपीटी एक्ट में संशोधन एवं आदिवासी जमीन
- खदान, खनिज, उद्योग, आधारभूत संरचना, डैम, सेज एवं उद्योग के लिए जमीन की प्रकृति का बदलाव
- भूमि बैंक और उसके प्रभाव
- नए संशोधित सर्वे खतियान में गडबड़ी एवं नए एवं पुराने लगान रशीद में गलतियाँ
- खतियान पार्ट 2 और गाँव जंगल व् ग्रामीणों के अधिकार
- भुइंहर मुंडा को अनुसूचित जन जाति की सूचि से बाहर करना .
- लगान रशीद काटने के लिए रिश्वत
- प्रज्ञा केंद्र में इन्टरनेट दिक्क्त एवं अत्यधिक फीस की मांग
3. स्थानीय नीति एवं आवासीय प्रमाण पत्र में दिक्कत
- प्रज्ञा केंद्र एवं ब्लॉक के बीच तालमेल का न होना
- वर्तमान स्थानीय नीति के कारण सुरक्षित विधान सभा, लोकसभा सिट, शिक्षा एवं नौकरी में आरक्षण पर प्रभाव
4. छात्रों के मुद्दे –
- आवासीय, आय, जाति, एवं चरित्र प्रमाण पत्र मिलने में कठिनाई
- छात्रवृति, पोशाक, किताब, साइकल एवं मध्यान भोजन से वंचित
5. पंचायत राज अधिनियम, पेसा एवं पंचायत प्रतिनिधि
- पंचायत प्रतिनिधि के अधिकार एवं कर्तव्य
- ग्राम सभा, परम्परागत पंचायत व्यवस्था एवं पड़हा व्यवस्था
- ग्राम प्रधान का परम्परा के अनुसार सही चयन न होना, जिसके कारण पावर का सही इस्तेमाल न होना, एवं सही तरीके से ग्राम सभा की बैठक का न होना
- प्रतिनिधियों पर जनता का पकड़ न होना
6. गाँव विकास योजना ,कार्यान्वयन एवं भ्रष्टाचार
- गाँव विकास योजना के कार्यान्वयन में लोगों की सहभागिता एवं प्रशासन की भूमिका
- दलाल
- पंचायत एवं ग्राम सभा में जन सुनवाई का अभाव
- बीपीएल एवं जनवितरण प्रणाली में गड़बड़ी
- गरीबों और किसानों का लोन के कारण शोषण
- आर्थिक अनुदान एवं बैंक से परेशानी
- वृद्धा एवं विकलांग पेंशन के लिए ग्रामीण बैंक का अभाव
7. सामाजिक,सांस्कृतिक, आर्थिक एवं धार्मिक परेशानियाँ
- सरना एवं गैर सरना के नाम पर समुदाय में विभाजन
- नशा, पलायन एवं मानव तस्करी
- बाजार संस्कृति का प्रभाव
- आद्योगिक नीति
- पर्यावरण को नुकसान