मध्य प्रदेश सरकार जब विस्थापितों के सवालों का जवाब ही नहीं दे पा रही है तो पुनर्वास कहाँ से करेगी ?
मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले के राजघाट पर पिछली 30 जुलाई 2016 से अनिश्चितकालीन नर्मदा जल जंगल जमीन हक सत्याग्रह आठ दिनों से जारी है, राजघाट बड़वानी में पानी का लेवल लगातार बढ़ रहा है, अभी 119 मीo तक आ चुका है। इंदिरा सागर बांध और औकारेश्वर बांध के क्षेत्र में अलर्ट जारी किया गया है। सत्याग्रहियों ने नर्मदा बचाओ आंदोलन के बैनर तले 5 अगस्त 2016 को नर्मदा घाटी विकास कार्यालय का घेराव किया जहाँ पर उनके सवालों का कोई जवाब नहीं दिया गया। कार्यपालन यंत्री को ज्ञापन दे सत्याग्रही वापस राजघाट लौट आए;
दिनांक 05/08/2016
प्रति,
कार्यपालन मंत्री,
लो.नि.वि.न.घा.वि.प्रा.
सरदार सरोवर परियोजना,
पुनर्वास संभाग बडवानी (म.प्र.),
महोदय,
हम नर्मदा घाटी के निवासी सरदार सरोवर के प्रभावित गांवों के आदिवासी, किसान, मजूदर, मछुआरे, सभी आपकी ओर से थोपी गई डूब की आपदा से प्रभावित हो रहे है। यह आपदा मानव और शासन निर्मित है। इससे हमारी संपत्ति ही नहीं, हमारी जिन्दगी खतरे में है, हमारी संस्कृति खतरे में है। हमारे खेत-खलिहान कई लाख वृक्ष डूब में आने वाले है।
सरदार सरोवर का डूब क्षेत्र पूर्ण जलाशय स्तर, उसके उपर अधिकतम जलस्तर और बैक वॉटर लेवल यानि सबसे बड़ी बाढ़ में पानी का स्तर तय करने की जिम्मेदारी नर्मदा ट्रिब्यूनल के फैसले के अनुसार केन्द्रीय जल आयोग की रही है। 1970 के दशक में धरातल पर सर्वेक्षण करके जो बैक वॉटर स्तर आयोग ने तय किया था, उसके आधार पर कुल परिवारों की संख्या निश्चित हुई तथा उस स्तर की संपत्ति का भू-अर्जन किया गया। बैक वॉटर से प्रभावित खेती का नहीं पर घरों का भू-अर्जन हुआ।
लेकिन अचानक 2008 में एक नई समिति, नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण के अधिकारियों की, केवल एक केन्द्र जल आयोग के अधिकारी, को लेकर बनायी गयी और अलग गणितीय मॉडल लागू करके बिना सर्वेक्षण, केवल कागजातों पर नये स्तर (6 फीट से कम) दिखाकर 55 गांवों का डूब क्षेत्र कम दिखाना शुरू किया। कई परिवारों को डूब से बचने का /बाहर होने का दावा किया गया है।
इस स्थिति में बैक वॉटर स्तर पर विवाद जारी होते हुए भी म. प्र. शासन ने डूब से बाहर कियें परिवारों की संख्या कभी नहीं दिखाई थी, लेकिन अब सर्वोच्च अदालत में प्रस्तुत किये शपथ पत्र में अचानक 15,900 परिवारों की संख्या डूब से बाहर बतायी।
गुजरात और म.प्र. सरकार के बॅक वॉटर के आकडे अलग कैसे?
सबसे गंभीर बात यह है कि गुजरात की वेबसाईट पर, आपदा प्रबंधक योजना के तहत म. प्र. के हर गांव के बांध 122 मी. होते हुए 2013 में संभावित बैक वॉटर लेवल लिखे गये है, जो कि अलग है। म.प्र. के बांध पूरी उंचाई पर (138.68 मी.) संभावित नये बैक वॉटर लेवल से भी अधिक है। उदा. खलघाट, सेमल्दा, छोटा बर्दा, पिचोड़ी, कसरावद, धनोरा, पिपरी और राजघाट भी। तो क्या पानी पुराने लेव्हल तक चढ़ सकता है नदी लेवल तक ही रूकेगा इसकी निश्चिती म.प्र. सरकार ने करनी है।
इस खेल में इन हजारों परिवारों की संपत्ति भूअर्जित करके न.घा.वि.प्रा. के नाम किया गया लेकिन अब इन्हें अप्रभावित बताया गया। क्यों वंचित किया इन हजारों परिवारों को? चन्द रू. मुआवजा के रूप में पाकर अपनी आज के हिसाब से करोड़ों रू. की कीमत रखने वाली संपत्ति इन परिवारों से क्यों छीनी गयी है? न.घा.वि.प्रा. ने आज तक इसकी खबर तक हमें लिखित में क्यों नहीं दी?
सरदार सरोवर परियोजना के विस्थापितों को बसाने के लिए म.प्र. मे 88 पुनर्वास स्थल बनाये गये थे, इसमें से सभी में मूलभूत सुविधाएं आज तक भी नही चल रही है। आज भी विस्थापित मूल गांव में ही रह रहे है, वही मूलभूत सुविधाएं चल रही है।
88 पुनर्वास स्थलों पर भी गैर विस्थापित बड़ी संख्या में बस गये है, वहाँ वास्तविक विस्थापितों को आज भी घर-प्लॉट मिलना बाकी है, उस पर भी कोई रोक आपके द्वारा नहीं लगायी गई है। न.घा.वि.प्रा. के द्वारा 88 पुनर्वास स्थलों पर निगरानी भी नहीं की जा रही है।
न.घा.वि.प्रा. के अधिकारीयो के द्वारा ही नाली व रोड बनाये जाने का ठेका लिया गया था, उसमें करोड़ों रू. खर्च किये गये है, परन्तु आज तक नहीं बनाये गये है, इसके उपर कोई भी कार्यवाही विभाग द्वारा नहीं की गई वह आज तक भी पदस्थ है। इनके नाम घोषित करें।
झा आयोग के द्वारा ‘‘मानीत भोपाल ने भी 88 पुनर्वास स्थलों की पूरी जांच की गई है, उनके द्वारा लिखा गया है कि यह पुनर्वास स्थल रहने योग्य भी नहीं है, मूल भूत सुविधाएं भी नही है, हजारों हेण्डपम्प लग गये थे, परन्तु पानी नहीं है, कोई जांच किये बिना लगाये है। रोड बनाये के लिए घर-प्लॉट से मिट्टी निकाल कर बनाये गये है अब विस्थापितों को लाखों रू. खर्च कर रोड के लेवल में जाने के लिए कोई पैसा नहीं है। जो भवन बनाये गये थे, वह भी गुणवत्ता पूर्ण नहीं बनाये है, इसमें भी करोड़ों रू. का भ्रष्टाचार हुआ है, जिसके कारण न.घा.वि.प्रा. के 30 अधिकारीयों को निलंबित करना पड़ा है।
इस पर कार्यपालन मंत्री लो.नि.वि.न.घा.वि.प्रा. जवाब दो।
विनीत
भगवती पाटीदार, पवन यादव, केसर कनेरा, पुष्पा प्रजापति, देवराम कनेरा
संपर्क: 9179617513