नर्मदा जल-जमीन हक सत्याग्रह का पांचवां दिन : मध्य प्रदेश सरकार का 55 गाँवों के 15900 परिवारों के पुनर्वास के साथ खिलवाड़
पिछले 36 साल से देश के सबसे बड़े विस्थापन के शिकार नर्मदा बांध के विस्थापित पुनर्वास और पुनर्स्थापन की लड़ाई लड़ रहे है। मोदी सरकार ने सरदार सरोवर बांध का कार्य भी अब पूरा कर दिया है । गेट्स लगाकर बांध की उंचाई 138.68 मीटर्स तक पहुंचाई गयी है। अब गेट्स लगाना बाकी है। 45000 से अधिक आदिवासियों को जलसमाधि देने की यह साजिश एक बेरहम अन्याय है। इसके विरोध में 30 जुलाई से राजघाट (बडवानी) पर अनिश्चितकालिन नर्मदा जल जमीन हक सत्याग्रह जारी है अपना समर्थन देने आप जरुर पहुंचे;
नर्मदा जल-जंगल-जमीन हक सत्याग्रह का 3 अगस्त 2016 को आज पाँचवां दिन था, राजपुर विधानसभा के विधायक बाला बच्चन व बड़वानी के विधायक रमेश पटेल (कांग्रेस) राजघाट पहुँच कर सत्याग्रह में शामिल होते हुए, आन्दोलन की मांगों को पूर्ण समर्थन देने का एलान किया।
सरदार सरोवर का डूब क्षेत्र पूर्ण जलाशय स्तर, उसके उपर अधिकतम जलस्तर (बाढ़ की स्थिति में) और बॅक वॉटर लेवल यानि सबसे बड़ी बाढ़ में पानी का स्तर तय करने की जिम्मेदारी नर्मदा ट्रिब्यूनल के फैसले के अनुसार केन्द्रीय जल आयोग की रही है। 1970 के दशक में धरातल पर सर्वेक्षण करके जो बॅक वॉटर स्तर केंद्रीय जल आयोग ने तय किया था, उसके आधार पर कुल परिवारों की संख्या निश्चित हुई तथा उस स्तर की संपत्ति का भू-अर्जन किया गया। बॅक वॉटर से प्रभावित खेती का नहीं पर घरों का भू-अर्जन हुआ।
लेकिन अचानक 2008 में एक नई समिति, नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण के अधिकारियों की, केवल एक केन्द्र जल आयोग के अधिकारी को लेकर, बनायी गयी और अलग गणितीय मॉडल लागू करके, बिना सर्वेक्षण, केवल कागजातों पर नये स्तर (6 फीट से कम) दिखाकर 55 गाँवों का डूब क्षेत्र कम दिखाना शुरू किया। कई परिवारों को डूब से बाहर होने का दावा करके म. प्र. शासन ने शिकायत निवारण प्राधिकरण को भी प्रशासनिक स्तर से वही बताया।
सच तो केन्द्र शासन के, पर्यावरण मंत्रालय की विशेष जानकार समिति ने इस रिपोर्ट और निर्णय को अवैज्ञानिक बताकर नकार दिया। ट्रिब्यूनल के अनुसार 30.7 लाख क्युसेक्स बाढ़ (पानी की मात्रा) मानकर बॅक वॉटर लेवल तय करती थी। लेकिन नयी समिति ने आज तक अनुभव में आयी 24.5 लाख क्युसेक्स ही अधिकतम पानी की मात्रा मानकर स्तर कैसे तय किया, यह सवाल भी समिति ने उठाया। यह पानी भी अंत में 16.9 लाख क्युसेक्स ही माना, क्योकि इंदिरा सागर बांध से मर्यादित / नियंत्रित 10 लाख क्युसेक्स पानी ही छोड़ा जाएगा, यह भी आधार बनाया गया। यह सब ट्रिब्यूनल फैसला यानि कानून के खिलाफ है।
इस स्थिति में बॅक वॉटर स्तर पर विवाद जारी होते हुए भी, म. प्र. ने स्तर कम मानकर बॅक वॉटर स्तर पर कईयों को शिकायत निवारण प्राधिकरण से भी आदेश दिलवाया कि ‘‘बांध से डूब प्रभावित नहीं होने” से आपको पुनर्वास के लाभ नहीं मिल सकते। शिकायत निवारण प्राधिकरण ने उनकी सुनवाई तक नहीं की। इसकी संख्या बाकी म.प्र. शासन ने कभी नहीं दिखाई थी, लेकिन अब सर्वोच्च अदालत में प्रस्तुत किये शपथ पत्र में अचानक 15900 परिवारों की संख्या डूब से बाहर बतायी।
इस के बावजूद म.प्र. शासन ने कुल संख्या 15900 परिवारों को सूची से निकाल कर कम करके अब राज्य शासन दावा कर रही है, कि सभी के सभी परिवारों को बसा दिया। इनमें से कई परिवारों को आधे अधूरे लाभ दिये हैं, लेकिन अब पूरे लाभ देने से शासन कतरा रही है।
गुजरात और म.प्र. सरकार के बॅक वॉटर के आंकड़े अलग कैसे?
सबसे गंभीर बात यह है कि गुजरात की वेबसाईट पर, आपदा प्रबंधक योजना के तहत म.प्र. की हर गांव के बांध 122 मी. होते हुए 2013 में संभावित बॅक वॉटर स्तर लिखे गये है, जो कि अलग है। म.प्र. के बांध की पूरी उंचाई पर (138.68 मी.) संभावित नये बॅक वॉटर स्तर से भी अधिक है। उदाहरण के तौर पर खलघाट, सेमल्दा, छोटा बड़दा, पिछोड़ी, धनोरा और राजघाट भी। तो क्या पानी पुराने स्तर तक चढ़ सकता है या नए स्तर तक ही रूकेगा, यह निश्चित म.प्र. सरकार को करनी है। म.प्र. शासन, जवाब दो।
इस खेल में इन हजारों परिवारों की संपत्ति भूअर्जित करके नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के नाम किया गया लेकिन अब इन्हें अप्रभावित बताया गया। क्यों वंचित किया इन हजारो परिवारों को? चन्द रूपये मुआवजा के रूप में पाकर अपनी आज के हिसाब से करोड़ो रूपयों की कीमत रखने वाली संपत्ति इन परिवारों से क्यों छीनी गयी है? नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण ने आज तक इसकी खबर तक हमें लिखित में क्यों नहीं दी?
नर्मदा बचाओ आंदोलन का कहना है, कि हममें से ऐसे सभी 15900 परिवारों की संपत्ति हमारे नाम वापस की जाए तथा हमारे घर बांध की पूरी उंचाई पर भी डूबेंगे नहीं यह आश्वासन राजपत्र तथा व्यक्तिगत पत्र के द्वारा हमें दी जाए। वह भी तत्काल।