संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

डीआरडीओ के विरोध में मेवात के किसानों की दस्तक : भाग दो


हम बेजुबान जानवरों की लड़ाई लड़ रहे हैं. हमने इस शहर के हर नेता से अपील की कि वो हमारे साथ आएं पर आप देख रहे हैं कोई आया क्या? हमें पता है कि हमें अपनी लड़ाई खुद लड़नी पड़ेगी. मैं पूछता हूँ आखिर क्या कसूर था खोया बास के  मोरमल का. वो इतने बुजुर्ग हैं कि ठीक से चल भी नहीं पाते. उन्हें आधा किलोमीटर भगा कर पकड़ा. इनको बुरी तरह से मारा गया. ये पहाड़ हमारा है. हमारे बाप-दादा यहां जानवर चराते आए हैं. ये लोग हमें हमारे पहाड़ पर जाने से रोक रहे हैं. हमें पीट रहे हैं. पुलिस हमसे रिहाई के बदले पैसे वसूल कर रही है. ये सोचते हैं कि गरीब मोवों को दोनों तरह से मारो लाठी से भी और पैसे से भी.हमारे पुरखों चुहड़ सिद्ध,अंधु पीर और उल्ली पीर की मजारें इस पहाड़ पर हैं. हम आपको बता दें चाहे हमारी जान चली जाए हम अपना पहाड़ नहीं देंगे. पेश है विनय सुल्तान की रिपोर्ट का दूसरा भाग; 


पहला भाग यहाँ पर पढ़े,


पहाड़ का अर्थशास्त्र….

अरावली के पहाड़ भारत के सबसे उम्रदराज पहाड़ माने जाते हैं. जजोर के पहाड़ बोल्डर से बने हुए हैं. ये पहाड़ लगभग 10 से 15 किलोमीटर की त्रिज्या में तमाम जल स्त्रोतों को रिचार्ज करता है. इसके अलावा इस पहाड़ में दर्जनों जल स्त्रोत हैं. इनमें से कई जल स्त्रोतों का जीर्णोद्धार महानरेगा के तहत गांव के लोगों ने किया है.  मजे की बात यह है कि जिला प्रसाशन ने अपनी रिपोर्ट इसे डीग्रेडेड फारेस्ट बताया है. भारत सरकार की एमपॉवर्ड कमिटी की इस मसले पर हुई बैठक के मिनिट्स के अनुसार इस परियोजना के चलते कुल 484340 पेड़ काटे जाएंगे. पर्यावरण मंत्रालय ने इस DRDO को निर्देश दिए हैं कि कुल आवंटित भूमि के 5 फीसदी भाग पर ही निर्माण कार्य हो सकता है. शेष भूमि को बफर जॉन की तरह इस्तेमाल में लिया जाए. माने कुल जमा 42.5 हैक्टेयर भूमि से लगभग पांच लाख पेड़ काटे जाएंगे. अब समझने लायक बात यह है कि इसे डीग्रेडेड फारेस्ट कैसे मान लिया जाए? इसके अलावा DRDO के लिए 1700 हैक्टेयर भूमि पर वन विकसित करने आवश्यक होंगे. यानी व्यावहारिक रूप से 2550 हैक्टेयर भूमि DRDO के पास चली जाएगी.

पिछली रबी की फसल के वक़्त ओले गिरने से हुए खराबे के बाद राजस्थान के हाड़ौती क्षेत्र में बड़े पैमाने पर किसानों की मौत होना शुरू हो गई. इसमें से ज्यादातर मामले दिल का दौरा पड़ने से किसानों की मौत के थे. उस समय किसानों की मौत की खबरों को प्राकृतिक बताते हुए मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ने कहा था कि राजस्थान में किसान आत्महत्या कर ही नहीं सकते क्योंकि यहां पर किसान कृषि के साथ ही पशुपालन का काम भी करते हैं.

सरकारी गिरदावरी के अनुसार पिछले मार्च में अलवर के 31 गांवों में 50 फीसदी से ज्यादा रबी की फसल खराब हो गई थी. पड़ोस के ब्रज क्षेत्र में जहां किसान लगातार आत्महत्या कर रहे थे इन गांवों में इस किस्म की एक भी घटना नहीं हुई. हालांकि मुख्यमंत्री के राजस्थान में किसान आत्महत्या नहीं करते के दावे से असहमति रखते हुए भी यह स्वीकार करना होगा कि उस कृषि समाजों में आत्महत्या कम होती हैं जहां पशुपालन अब भी बचा हुआ है.

2012में हुई 19वीं पशु जनगणना के मुताबिक अलवर जिले में कुल 206865 गायें, 1060734 भैंस, 379776 बकरियां, 52166 भेड़ें हैं. जजोर के आसपास रहने वाले मेव सदियों से पशुपालन में लगे हुए हैं. मेव बड़ी संख्या में गायें पालते आए हैं. ये खुद को कृष्ण भगवान का वंशज कहते हैं. इस पहाड़ के अलावा यहां कोई गौचर भूमि नहीं है. सदियों से वो इस पहाड़ को चारागाह की तरह इस्तेमाल में लेते रहे हैं.

यात्रा के आखिरी दिन चिराना गांव के पास यात्रा रुक जाती है. असर की नमाज का वक़्त हो चला था. मेवों का बड़ा हिस्सा नमाज अदा करने के लिए गांव कि मस्जिद में चला गया. बाकी बचे हिन्दू और कुछ मुसलमान बस स्टैंड पर चाय की दुकानों पर चाय पी रहे थे. मेरी मुलाकात ऐसी ही एक चाय की दूकान पर 65 साल के रूह्दार से हुई. उनके पास 54 बकरियां हैं. 9 बीघा के काश्तकार रूह्दार मुझे बताते हैं कि मेवात में सूखा बहुत आम है. इस बार भी खरीफ की फसल में 50 फीसदी के लगभग का नुक्सान उन्हें भुगतना पड़ रहा है. ऐसे में बकरियां उनके बुरे दिन की लाठी हैं. रूह्दार के मुताबिक उन्हें हर बकरी से सालाना 5 से 7 हजार की आमदनी हो जाती है. इसके आलवा एक से डेढ़ साल का खस्सी(बकरा) 10 से 15 हजार रूपए दे कर जाता है. परेवा मीट शॉप के मालिक राहुल परेवा मुझे बताते हैं कि यहां ईद से पहले मुंबई के दलाल ट्रक ले कर आते हैं और बकरे भर कर ले जाते हैं. 40 किलो तक के बकरे का 15 हजार रूपया मिल जाता है. वो रूह्दार की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं कि इनका एक खस्सी इस बार 28 हजार में बिका है. अगर खस्सी को अच्छा चराया जाए तो कीमत अच्छी मिलती है. इस बीच रूह्दार बोल पड़ते हैं-

“पहाड़ हमारा शाह-सेठ है साहब. हम इसके भरोसे ही जिंदा हैं. वरना खेती में क्या रखा है. इस बार भी बाजरा सूख गया. अब सरसों खेत में डाली है देखो उसका क्या होता है. अब ये पहाड़ भी जा रहा है. 7 साल का था तब से बकरियां चरा रहा हूँ. ऊपर वाले के करम से कभी घर में टोटा नहीं पड़ा. अब इनको बेच दूंगा और दूसरा कुछ देखूंगा. जब चराने की जगह ही नहीं रहेगी तो रख कर करूँगा भी क्या? मजूरी करने की उम्र रही नहीं अब.”

यात्रा अपने आखिरी पड़ाव पर है. पहाड़ा गांव बाहर अलग-अलग जगह से आए हुए 200 से ज्यादा ग्रामीण इकठ्ठा हो चुके हैं. माइक में कुछ गड़बड़ आई गई है. लगातार कूं-कूं की आवाज करता स्पीकर ग्रामीणों के लिए मजाक का विषय बना हुआ है. स्पीकर की कूं-कूं का जवाब पहाड़ भी उसी अंदाज में दे रहे थे. सब व्यवस्थित करने में आधे घंटे का वक़्त लग जाता है. सूरज ढल चुका है. दिन के रात बनने की प्रक्रिया का संक्रमण काल है. यहां मौजूद हर बड़े ध्यान से अपने नेताओं की बात सुन रहा है. सबसे आखिर में खुर्शीद अनवर बोलने आते हैं. खुर्शीद ग्राम पंचायत कीथूर के सरपंच हैं. पिछले पांच दिन से लगातार 55 किलोमीटर की पैदल यात्रा के बाद भी उनका जोश ठंडा नहीं पड़ा है. शारीरिक रूप से सुस्त से दिखने वाले खुर्शीद उम्मीद के विपरीत गजब के वक्ता निकले. अपनी तक़रीर को वो कुछ इस तरह से खत्म करते हैं.

“हम बेजुबान जानवरों की लड़ाई लड़ रहे हैं. हमने इस शहर के हर नेता से अपील की कि वो हमारे साथ आएं पर आप देख रहे हैं कोई आया क्या? हमें पता है कि हमें अपनी लड़ाई खुद लड़नी पड़ेगी. मैं पूछता हूँ आखिर क्या कसूर था खोया बास के  मोरमल का. वो इतने बुजुर्ग हैं कि ठीक से चल भी नहीं पाते. उन्हें आधा किलोमीटर भगा कर पकड़ा. इनको बुरी तरह से मारा गया. ये पहाड़ हमारा है. हमारे बाप-दादा यहां जानवर चराते आए हैं. ये लोग हमें हमारे पहाड़ पर जाने से रोक रहे हैं. हमें पीट रहे हैं. पुलिस हमसे रिहाई के बदले पैसे वसूल कर रही है. ये सोचते हैं कि गरीब मोवों को दोनों तरह से मारो लाठी से भी और पैसे से भी.हमारे पुरखों चुहड़ सिद्ध,अंधु पीर और उल्ली पीर की मजारें इस पहाड़ पर हैं. हम आपको बता दें चाहे हमारी जान चली जाए हम अपना पहाड़ नहीं देंगे. “

खुर्शीद की तकरीर खत्म होते ही 55 साल के एक मेव ने खड़े हो कर एलान किया, “तू चल जहां भी जाना है. तेरे से पहले हम मरने को तैयार हैं.” इसके बाद जलसे में मानों विस्फोट सा हो गया. भयंकर तालियों और पहाड़ हमारे आपका, नहीं किसी के बाप का.’ के नारे लगाते मेव पास ही खड़े ट्रेक्टरों और मोटरसाइकिलों पर लद रहे थे.

जारी……
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