-महिबुल
संभवत: देश के सबसे घने जंगल में से एक, हसदेव अरण्य में अडानी को कोयला खदान की मंजूरी दे कर छत्तीसगढ़ सरकार ने साबित किया है कि वो भी भाजपा की केंद्र सरकार के नक़्शे कदम पर चल रही है। खनन परियोजना से प्रभावित आदिवासी समुदाय ने यह आरोप लगाया हैं। दिल्ली के प्रेस क्लब में हसदेव अरण्य क्षेत्र के स्थानीय प्रतिनिधि मंडल और सामाजिक कार्यकर्ताओ ने संवाददाताओं को संबोधित करते हुए कहा कि अडानी को कोयला खदान आवंटित कर केंद्र और राज्य सरकार ने संविधान की अवमानना करके आदिवासियों की जीवन शैली के साथ साथ पर्यावण को खत्म करने का काम किया हैं।
हसदेव अरण्य क्षेत्र के मदनपुर दक्षिण, गिधमुडी पटुरिया, केते एक्सटेंशन और परसा कोयला ब्लॉक के लिए भूमि अधिग्रहण के लिए अधिसूचना जारी की है। अनुसूची 5 के अंतर्गत आने वाले इस क्षेत्र में पेसा, वन अधिकार और भूमि अधिग्रहण कानून के तहत ग्राम सभाओं की “सैवधानिक भूमिकाओं को दरकिनार करते हुए पिछले दरवाजे” से अडानी ग्रुप को खनन की लीज दी जा रही है।
केंद्र सरकार ने जिन सार्वजनिक उपक्रमों को कोयला ब्लॉक आवंटित किए गए हैं, उन्होंने बड़े कॉरपोरेट घरानों के साथ “माइन डेवलपर कम ऑपरेटर” (एमडीओ) अनुबंध पर हस्ताक्षर किए हैं, जिससे उन् कॉर्पोरेट घरोनो को वास्तविक रूप से कोयला खदानों पर मालिकाना हक मिल जायेगा।
हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन एवं संयुक्त किसान मोर्चा ने अपने प्रेस विज्ञप्ति में बताया है कि “अकेले छत्तीसगढ़ में, 2015 और 2020 के बीच 7.6 करोड़ टन सालाना (एमटीपीए) की राशि के 7 कोयला ब्लॉक इस मार्ग के माध्यम से अडानी को सौंपे गए हैं ताकि अडानी इन ब्लॉकों का खनन करके मुनाफा कमा सकें।”
अडानी इंटरप्राइजेज जो ये दावा करती है कि एमडीओ सिस्टम को उन्होंने भारत में सबसे पहले प्रस्तुत किया, इस मॉडल के अन्दर उनकी कंपनिया छत्तीसगढ़ की परसा ईस्ट एंड कांता बसन, परसा, कांटे एक्सटेंशन, गिधमुरी पटुरिया, गारे पेलमा-I, गारे पेलमा-II और गारे पेलमा- III कोयला ब्लॉक के माध्यम से कुल 132.71 वर्ग किलोमीटर में खदान संचालित करती है। इसके अलावा अडानी कम्पनी का ओडिशा के तालाबिरा II & III कोयला ब्लॉक और मध्य प्रदेश के सलयारी कोयला ब्लॉक के “खादान संचालक” पर नियंत्रण रहेगा।
प्रतिनिधि मंडल ने कहा कि राज्य सरकार अडानी को फ़ायदा पहुँचाने के लिए परसा कोयला ब्लॉक के आवंटन में जो फारेस्ट एडवाइजरी समिति की स्टेज II निकासी दी गयी है, उस प्रक्रिया में ग्राम सभाएं न बुलाते हुये फर्जी ग्राम सभाएं के प्रस्ताव सलंगन किये गए है।
एमडीओ प्रक्रिया के अलावा भी अडानी समूह 2020 में हुए पहली व्यावसायिक कोयला खदान नीलामी में 12 खदानों के लिए बोली लागा के व्यक्तिगत क्षेत्र में सबसे ज्यादा बोली लगाने वाली कंपनी बनी थी। तब से कई कोयला खदान अडानी की झोली में गए है।
ज्ञात रहे कि अडानी समूह की कम्पनियों को हवाई अड्डा, बंदरगाह जैसे जरुरी सार्वजनिक प्रतिष्ठानों का मालिकाना हक नीलामी के रस्ता मिल रहा है।
‘वनांचल नहीं तो आज़ादी नहीं’
फत्तेहपुर गाँव की रहने वाली शकुंतला एक्का ने कहती है कि अगर उनका जंगले कट गया तो उनकी आज़ादी भी ख़त्म हो जाएगी। वे आगे कहती है कि हसदेव वनांचल 1,70,000 हक्टर में फैला एक विशाल जीवन शैली को समेटे हुए है, इसमें जैव विविधता, आदिवासी जीवन प्रणाली व संस्कृति फूलती-पलती है। “यह जंगल इन्सान, जानवर, पर्यावरण आदि के बीच एक कड़ी के रूप में है।
एक्का आगे कहती है कि अपनी ज़िंदगी में जिंदा रहने के लिए जो भी हमे चाहिए वो जंगल हमे देता आया है। हम यहाँ बिना डर के कभी भी आ-जा सकते है। हम यहाँ के जीवन चक्र का हिस्सा है और यही हमारी आज़ादी है। अगर हमें यहाँ से जबरन विस्थापित कर दिया जाता तो यह हमारी आज़ादी को भी खत्म करना ही होगा।
एक्का अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहती है कि अगर परसा कोयला ब्लॉक में खनन शुरू होता है तो फत्तेहपुर, सेल्ही, हरिहरपुर यह तीन गाँव में रहने वाले हजारों स्थानीय लोगों के घर उजड़ जायेंगे।
रामलाल करियम जो सल्ही गाँव के रहने वाले है, वह बताते है कि परसा ईस्ट कोयला ब्लॉक से होने वाले पानी प्रदुषण से कई जानवरों की जान चली गयी है। पहले जो नदियों में साफ़ पानी बहता था वह अब कला पानी हो कर बहता है और प्यास भुजाने वाले पशु आपनी जान भी इस से खो बैठते है।
ग्लोबल वार्मिंग और मौसम के अनियमित व्यवहार के बीच अडानी कम्पनी द्वारा आदिवासियों को विस्थापित कर कोयला जैसे जीवाश्म, ऊर्जा स्रोतों का इस्तेमाल करने के लिए जंगल उजाड़ने की संभावना डरावना भविष्य को इंगित करती है। रामलाल के भाव भी कुछ ऐसे ही है, “जब धन काटने का समय होता है तब बारिश हो रही जिससे फसल बर्वाद हो जाती है, जब जंगल से हाथियों को उजाड़ा गया तो अब वह गाँव में उपद्रव करते है, इसके आगे भी अगर जंगल काटा जाता है तो भविष्य खाने का संकट पैदा हो जायेगा”।