संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

छत्तीसगढ़ : कुसमुंडा खदान भू-विस्थापित 40 वर्ष बाद भी रोजगार के लिए भटक रहे हैं; आंदोलन जारी

कुसमुंडा में कोयला खनन के लिए 1978 से 2004 तक कई गांवों के हजारों किसानों की भूमि का अधिग्रहण किया गया था। लेकिन अधिग्रहण के 40 वर्ष बाद भी भू-विस्थापित रोजगार के लिए भटक रहे हैं और एसईसीएल दफ्तरों का चक्कर काट रहे हैं। पढ़िए न्यूज़क्लिक से साभार रिपोर्ट;

कोयला खनन के लिए दशकों पूर्व भूमि अधिग्रहण में अपनी जमीन खोने वाले भू-विस्थापित आज भी मुआवजे और रोजगार की लड़ाई लड़ने के लिए मजबूर है। खेती-किसानी करने वाले किसान भूमिहीन होकर दर-दर भटक रहे हैं, न्याय की गुहार लगा रहे हैं, लेकिन उनके पुनर्वास की चिंता अब न तो एसईसीएल को है और न ही राजनेताओं को। चुनाव में हर बार उन्हें आश्वासन दिया जाता है, लेकिन चुनावों के बाद कोई पार्टी, कोई नेता भू-विस्थापितों के दुख-दर्द को सुनने नहीं आता।

यही हाल छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले के कुसमुंडा खदान के प्रभावित गांव बरकुटा का है। जहाँ सालो पहले भूमि अधिग्रहण किया गया था। कोरबा पुराने लंबित प्रकरणों में भू-विस्थापितों को रोजगार दिए जाने की मांग को लेकर कल कुसमुंडा क्षेत्र के विस्थापन प्रभावित ग्रामीणों ने एसईसीएल प्रबंधन पर अचानक हल्ला बोल दिया। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और छत्तीसगढ़ किसान सभा भी इस आंदोलन में उनके साथ थी, जो लगातार कोयला क्षेत्र में विस्थापन प्रभावित गांवों की समस्याओं को लेकर आंदोलन कर रही है।

माकपा ने अपने एक लिखित बयान में कहा है कि ग्रामीणों को माकपा और किसान सभा का साथ मिलने से उनके हौसले बुलंद थे और वे कुसमुंडा खदान के अंदर घुस गए और उन्होंने उत्पादन ठप्प कर दिया। सुबह 5 बजे से जारी शाम 5 बजे तक चला, जिसके चलते प्रबंधन को 50 करोड़ रुपयों से ज्यादा का नुकसान उठाना पड़ा है।

उल्लेखनीय है कि कुसमुंडा में कोयला खनन के लिए 1978 से 2004 तक जरहा जेल, बरपाली, दूरपा, खम्हरिया, मनगांव, बरमपुर, दुल्लापुर, जटराज, सोनपुरी, बरकुटा, गेवरा, भैसमा सहित कई गांवों के हजारों किसानों की भूमि का अधिग्रहण किया गया था। लेकिन अधिग्रहण के 40 वर्षों बाद भी भू-विस्थापित रोजगार के लिए भटक रहे हैं और एसईसीएल दफ्तरों का चक्कर काट रहे हैं।

एसईसीएल के इस रवैये से गुस्साए ग्रामीणों ने रोजगार एकता संघ बनाकर राधेश्याम कश्यप, प्रभु दामोदर, रेशम यादव, पुरषोत्तम, रघु, राजेश, मोहनलाल, केशव पांडे, अशोक, दीपक, रामप्रसाद आदि ग्रामीणों के नेतृत्व में खदान में घुस गए तथा उत्पादन को ठप्प कर दिया। माकपा जिला सचिव प्रशांत झा, किसान सभा नेता जवाहर सिंह कंवर, दीपक साहू, जय कौशिक आदि भी आंदोलन स्थल पर पंहुच कर धरने पर बैठ गए। कांग्रेस के पार्षद अमरजीत सिंह, शैलेंद्र सिंह, शाहिद कुजूर, अजय प्रसाद तथा विनय बिंझवार भी अपने समर्थकों के साथ ग्रामीणों के साथ आ डटे।

माकपा ने कहा कि तीन-चार दौर की वार्ता विफल होने पर आंदोलनकारी ग्रामीण उग्र हो गए, जिसके बाद प्रबंधन ने एक माह के भीतर समस्या हल करने का लिखित आश्वासन दिया है। लेकिन ग्रामीणों ने कुसमुंडा कार्यालय पर एक माह तक धरना देने तथा समस्या का निवारण न होने पर और उग्र आंदोलन की चेतावनी दी है।

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