छत्तीसगढ़ पेसा नियम 2022 : संवैधानिक प्रावधानों पर नासमझी या शातिराना छल !
-बिजय पांडा
छत्तीसगढ़ पेसा नियम, 2022 पर चर्चा करने से पहले जरुरी है कि हम एक बार पेसा कानून के सैद्धांतिक परिक्षेत्र को समझ लें, ताकि छत्तीसगढ़ पेसा नियमों का केंदीय पेसा कानून की रोशनी में विश्लेषण कर पाये।
‘पेसा’ कानून का सैद्धांतिक परिक्षेत्र
‘पेसा’ कानून, “पंचायत कानून (भाग 9) का विस्तार होते हुए भी पंचायत कानून से बहुतांश भिन्नता रखता है क्योंकि पेसा कानून की धारा 4 “किसी राज्य का विधान मंडल”, ऐसे “अपवादों और उपान्तरणों” के अधीन रहते हुए सुसंगत विधि बनाने की अनिवार्यता पर जोर देती है।
[पंचायत कानून (भाग 9) राज्य विधान मंडल को विकल्प का आधार (may, by law) लेने की इज़ाज़त देता है, लेकिन ‘पेसा’ के संबंध में वह विकल्प नहीं है। स्पष्ट निर्देश है, अर्थात ‘shall’ शब्द उपयोग किया गया है]
‘अपवादों और उपान्तरणों’ वाक्य खण्ड संविधान के विशेष प्रावधानों में ही उल्लेख किया गया है, जैसे पांचवीं अनुसूची का पैरा- 5 (1), जिस बात को भाग- 9 का अनुच्छेद 243 ड (4)(ख) में स्पष्ट उल्लेख किया गया है। पेसा कानून की धारा 4 ‘अपवादों और उपान्तरणों’ का लक्षणीय बातों को चिन्हित किया है-
1. प्रत्यक्ष लोकतंत्र (भारत की संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली का मौलिक पायदान; (कार्यपालिका का कार्य, संसद का निर्णय का पालन) ग्रामवासियों के सामूहिक निर्णय द्वारा ग्राम का गठन); [धारा 4 (ख)]
पंचायत कानून में ग्राम, राज्यपाल द्वारा लोक अधिसूचना से अर्थात कार्यपालिका द्वारा बनता है। [अनुच्छेद 243 (छ)]
2. सक्षम एवं स्वशासी ग्राम सभा या ग्राम-राज्य का निर्धारित शासन एवं प्रशासनिक क्षमता (पारंपरिक आधार पर चयनित जनसंख्या, ग्राम संसद, सामुदायिक संसाधन का सरंक्षण एवं परिरक्षण की क्षमता, पारंपरिक न्याय व्यवस्था की मान्यता) संविधान (अनुच्छेद 12) सम्मत ग्राम राज्य– ग्राम सरकार का ढांचा [धारा 4 (घ)] राज्य सरकार के लिए इस प्रावधान का पालन करना अनिवार्य है।
इसके विपरीत पंचायत कानून में ग्राम सभा ‘पंचायत क्षेत्र के भीतर समाविष्ट किसी गांव (अनुच्छेद 243 ख) तथा ‘ऐसी शक्तियों का प्रयोग और ऐसे कृत्यों का पालन कर सकेगी ‘…जो ….राज्य विधान मंडल द्वारा उपबंधित किये जाएं’ [अनुच्छेद 243 (क)]
3. ग्राम सभा द्वारा संविधान की प्रवेशिका सम्मत (क) रूढ़िजन्य– विधि का सरंक्षण; (ख) सांस्कृतिक पहचान का परिरक्षण का अधिकार (सामाजिक और धार्मिक प्रथाओं) [धारा 4 (घ )]
जिला सरकार : अनुसूचित क्षेत्रों में जिला स्तर पर प्रशासनिक व्यवस्था (छठी अनुसूची पैटर्न का अनुसरण) की अनिवार्यता का परिपालन करते हुए राज्य विधान मंडल द्वारा पंचायत कानूनों में संशोधन, अर्थात विद्यमान जिला पंचायत के बदले स्वशासी जिला परिषद् (जिला सरकार) का गठन, जिसकी स्वयं विधायिका– कार्यपालिका तथा न्यायपालिका की क्षमता होगी। [धारा 4 (ण)] (जिसके संबंध में भूरिया समिति ने अपनी सिफारिशों (Annexure-D) में ज़िक्र किया है।
स्वायत्त ढांचा : ऐसे स्वशासी ढ़ांचें में उच्चतर संस्थाएं, निम्न स्तर की पंचायतें या ग्राम सभा की शक्तियां और प्राधिकारों का उपयोग नहीं कर सकती हैं। [धारा 4 (ढ)]
अनुसूचित क्षेत्र में स्वशासी व्यवस्था को लागू करने की प्रक्रिया में 25.12.1997 तक राज्य में प्रचलित सारे कानूनों में संशोधन कर पेसा सुसंगत करना अनिवार्य है। [धारा 5]
राज्य विधान मंडल द्वारा स्वशासी व्यवस्था को संविधान के 11वीं अनुसूची में सूचीबद्ध विषयों के संबंधित धनराशि, कार्यों तथा कर्मचारियों का हस्तांतरण करने के लिए कानून बनाया जाना। [संविधान अनुच्छेद 243 (छ)]
अनुसूचित क्षेत्रों में स्वशासी निकायों द्वारा कर अधिरोपित करने की शक्तियां और उनकी निधियां राज्य विधान मंडल द्वारा प्राधिकृत करना। [संविधान अनुच्छेद 243 (ज)]
कानून का प्रावधान का अर्थ वही माना जाता है, जो नवीनतम कानून में जैसी परिभाषित की गयी है, अर्थात पेसा कानून का विभिन्न प्रावधानों के संबंध में बाद में किसी कानून में परिवर्तित परिभाषा या व्याख्या हुई है, तो नवीनतम कानून की व्याख्या की मान्यता होगी।
छत्तीसगढ़ पेसा नियम, 2022
9 अगस्त, 2022 विश्व आदिवासी दिवस के पूर्व संध्या पर छत्तीसगढ़ शासन द्वारा अधिसूचित पेसा नियम, 2022 का जब अध्ययन करेंगे, तो पता चलता है कि जो नियम बनाये गए हैं, वह उपरोक्त बातों पर नहीं होते हुए सिर्फ खानापूर्ति, शब्द-वाक्यों की उलझन एवं अंतर्विरोधी (कानूनों का) सरंचना द्वारा सरकारी नियंत्रण (कार्यपालिका द्वारा) का मजबूतीकरण का एक दस्तावेजी पुलिंदा है, जो संविधान– कानून से कोसों दूर है।
पेसा’ नियम सैद्धांतिक परिक्षेत्र पर आधारित नहीं है। छत्तीसगढ़ पंचायत राज कानून को ही सामान्य फेर बदल कर तैयार कर दिया गया है। अनुसूचित क्षेत्र में पंचायत अर्थात स्वशासी व्यवस्था। (लोक-नियंत्रित), लेकिन पूरी प्रक्रिया लोगों के हाथ में न दे कर अधिकारियों के नियंत्रण में है। विद्यमान कानूनों को (पंचातात राज अधिनियम के साथ-साथ अन्य प्रचलित कानूनों) पेसा सम्मत बनाने के लिए संशोधन करने का प्रयास सुझाया नहीं गया है।
नियमों में अंतर्विरोध :
ग्राम : ग्राम की परिभाषा तो पेसा कानून से ली गयी है (नियम 2.2), लेकिन नए ग्राम के गठन की प्रक्रिया (नियम 4.2) राज्य सरकार का कार्यपालिका के अधीन तथा पंचायत की सहूलियत के आधार पर कर दिया गया। पेसा कानून ( धारा 4 ख ) की मंशा थी कि नए ग्राम बनाने का इच्छुक समुदाय सामूहिक प्रस्ताव पारित कर विहित अधिकारी को सूचित करने पर वह अपने कागज़ में दर्ज कर एक सरल प्रक्रिया द्वारा अधिसूचित किया जायेगा। अब उस प्रक्रिया को पंचायत की जनसंख्या आधारित (1/3 या 100 जो अधिक हो) बनाने से पेसा कानून की मंशा के अनुरूप स्वशासी गांव न हो कर सरकारी सुविधा-ग्रहण (बेनीफिसिअरी/हितग्राही) क्षेत्र होगा अर्थात नियम नागरिकों के हक़ अधिकार के बदले कंज्यूमर के समूहों के गठन की दिशा में प्रयत्न कर रहा है।
ग्राम सभा: अध्याय- 1, परिभाषाएं की कंडिका 3 में ग्राम सभा की परिभाषा दी गयी है, “ऐसा निकाय…..जो …ग्राम स्तर पर या उसके ऐसे भाग में, जिसके लिए उसका गठन किया जायेगा”, लेकिन अध्याय- 2, नियम 5(1) में कहा गया है कि “….परन्तु आवश्यकतानुसार ग्राम या ग्रामों के समूह……., के लिए एक से अधिक ग्राम सभाओं का गठन किया जा सकेगा”। यह पेसा कानून के विरुद्ध है। ग्रामों के समूह के लिए कैसे एक से अधिक ग्राम सभाओं का गठन किया जा सकेगा?
लघु जल निकाय : “गांव की सीमा…………सरंचनाएं आएगी, जिसकी क्षेत्रफल 10 हेक्टेयर तक होगा”। यह परिभाषा, वन अधिकार (मान्यता) कानून, 2006 में दी गयी अधिकारों का हनन है, जिसमें स्पष्ट लिखा गया कि गांव का पारंपरिक सीमा में आने वाले सारे संसाधन तथा सीमा से “लगा हुआ जलागम क्षेत्र, जलस्रोत” पर अधिकार होगा (सेक्शन 5), उस क्षेत्र को सिमित करना कानून का हनन होगा तथा पेसा कानून की धारा 4 (घ) एवं धारा 4 (ढ) का हनन है।
साहूकार : छत्तीसगढ़ साहूकारी अधिनियम, 1934 को संविधान की पांचवीं अनुसूची पैरा- 5 (2)(क)(ख)(ग) से सुसंगत करते हुए संशोधन करना होगा, अर्थात साहूकारी में समस्त निजी–सरकारी लेन-देन को शामिल करते हुए अनुसूचित क्षेत्र में भू-हस्तांतरण किसी भी हालत में नहीं होगा, यह सुनिश्चित करना है, जो नहीं किया गया है।
अध्याय-2 के संदर्भ में आपत्तियां
नियम 4 (2) तथा नियम 5 (1) के संबंध में पहले चर्चा हुई है।
नियम 5 (2) : “नयी ग्राम सभा गठन हेतु विद्यमान ग्राम सभा के 50% से अधिक कोरम” में संकल्प पारित करने के संदर्भ में ग्राम सभा के महिला सदस्यों का स्थान निश्चित न करना कानून की अवहेलना है।
नियम 5 (5) नयी ग्राम सभा के गठन के संबंध में विहित अधिकारी को “विनिश्चय करने का अधिकार” देना पेसा कानून का स्वशासी चरित्र के विपरीत है। नए गांव के गठन में कोई शिकायत का निराकरण ग्राम सभाओं का सम्मिलित सभा में लिया जा सकता है, जिस के लिए विहित अधिकारी संयुक्त ग्राम सभा का आयोजन करते हुए भूमिका निभाएंगे, जब अधिकारियों के हाथ में निर्णय लेने की क्षमता होगी तो गांव या ग्राम सभा कानून सम्मत स्वशासी नहीं हो सकते।
नियम 6 (क) : इस नियम में जिस भाषा-विन्यास की सरंचना की गयी है, वह पूर्णतः पेसा कानून के विपरीत है। जब पेसा कानून की धारा 4, राज्य सरकार को पेसा असंगत कोई विधि-नियम-आदेश न बनाने के लिए आदेशित किया है, तो राज्य सरकार सुसंगत आदेश पारित नहीं किये तो ग्राम सभा कैसे उस गलत आदेश को मान्य करेगा? इसलिए छत्तीसगढ़ पंचायतराज अधिनियम, 1993 को पहले पेसा सुसंगत करना अनिवार्य है।
नियम 6 (9) : भूमि के अन्य संक्रमण तथा विधि विरुद्ध संक्रमित भूमि का प्रत्यावर्तन के संबंध {भू-राजस्व संहिता की धारा 170 (ख)} में विद्यमान नियम के अनुसार ग्राम सभा भूमि प्रत्यावर्तन के लिए अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) को आदेशित करेगा एवं ग्राम सभा के आदेश के 3 महीने के अंतराल में अनुविभागीय अधिकारी को उस आदेश का पालन करते हुए कार्यवाही करना अनिवार्य है।
विद्यमान नियम में जब अनिवार्यता का प्रावधान है, तब इस नियम में परामर्श शब्द का उपयोग करना कानून के विरुद्ध है।
नियम 6 (11) : “योजना बना सकती है” के स्थान पर, बनाएगी जो कानून सम्मत होते हुए सरकारी विभागों के द्वारा पालन किया जायेगा।
नियम 7 (1) : “ग्राम सभा अपने अध्यक्ष का निर्वाचन करेगी”, जब ग्राम सभा अपनी पारंपरिक व्यवस्था को अनुशरण करते हुए कार्य करेगी, जहां चुनाव की कोई व्यवस्था नहीं है, तो निर्वाचन शब्द उपयोग न करते हुए पारंपरिक व्यवस्था को मान्य करना कानून सम्मत है। {पेसा धारा 4 (क) एवं 4 (घ)}
नियम 7 (4) : बहुमत शब्द, ग्राम सभा स्तर पर उपयोग करना पेसा कानून का हनन है।
नियम 7 (5) : जब पेसा कानून ग्राम स्तर पर पारंपरिक व्यवस्था को मान्य करने की बात करता है, अध्यक्ष का पद चक्रानुक्रम करने की कोई औचित्य नहीं है। यह राज्य सरकार द्वारा ग्राम सभा (ग्राम सरकार), जैसे संवैधानिक प्राधिकारी का अधिकार क्षेत्र पर अतिक्रमण है, जो गैर कानूनी है।
नियम 8(1) : ग्राम पंचायत का सचिव जब ग्राम सभा का सचिव होगा, तो ग्राम सभा कैसे संविधान सम्मत [पेसा धारा 4 (घ)] स्वशासी एवं संप्रभु होगी? अतः यह प्रावधान गैर-संवैधानिक है। ग्राम सभा, ग्राम संसद है। भारत का संवैधानिक “संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था” में संसद का व्यवस्था स्वशासी है, अतः ग्राम संसद स्वयं अपनी व्यवस्था करेगी। यह नहीं होगा, तो ग्राम सभा के ऊपर कार्यपालिका का नियंत्रण ही होगा, जो पेसा कानून इज़ाज़त नहीं देता है।
ग्राम पंचायत का सचिव सरकार नियुक्त कर सकती है, जिसका काम होगा कि ग्राम सभा के सचिव के साथ समन्वय स्थापित कर कार्य करेगा/करेगी।
नियम 9 : भारत का ‘संसदीय लोकतांत्रिक ढांचा’ में विधानसभा-संसद का कार्यालय ‘सचिवालय’ में न होकर स्वतंत्र होता है। संविधान का ‘शक्ति का विभाजन’ (सेपरेशन ऑफ़ पॉवर) सिद्धांत को अनुशरण नहीं किया गया।
नियम 10 (कंडिका 5); ग्राम सभा की वार्षिक बैठक ग्राम पंचायत के मुख्यालय में होने से ग्राम सभा का प्रतिनिधात्मक चरित्र होगा (पेसा कानून का प्रत्यक्ष लोकतंत्र), जो पेसा कानून के विपरीत है।
नियम 11 (कंडिका 3) : दो स्थगित बैठक के बाद ‘कम से कम 25 प्रतिशत कोरम पूर्ति’ वन अधिकार (मान्यता) कानून के आवश्यक कोरम के विपरीत होगा, अतः गैर-कानूनी है।
नियम 12 (कंडिका 3) : ‘बहुमत द्वारा गुप्त मतदान’ व्यवस्था पारंपरिक न होने के कारण ‘अपवादों और उपान्तरणों’ सिद्धांत का हनन होने से पेसा सम्मत नहीं हो सकता है।
नियम 13 (कंडिका 2) : कार्यवाही पंजी एवं उपस्थिति पंजी अलग-अलग किये जाने से कार्यपालिका की शक्ति, विधायिका (ग्राम सभा) पर निर्णायक होने की आशंका है, जो प्रक्रियागत गलत है।
नियम 14 (कंडिका 1) : पुनर्विचार हेतु इस कंडिका में ‘30 दिवस’ का प्रावधान, नियम 12 कंडिका 4 में ‘अगली बैठक’ का प्रावधान का ही उलंघन है। प्रक्रिया एक ही सुझाया जाना चाहिए। नियम 14 (कंडिका 2) में अपीलीय अधिकारी, ‘अनुविभागीय अधिकारी’ को बनाना विधायिका (ग्राम सभा) पर कार्यपालिका का हस्तक्षेप है, जो भारत के संसदीय लोकतंत्र का हनन है। कार्यपालिका, न्यायपालिका का भूमिका लेना गैर-लोकतांत्रिक पहचान है। इसके बजाए अपील अधिकारी पारंपरिक न्याय सरंचना को मान्य करते हुए निहित करना चाहिए।
नियम 15 : विहित अधिकारी, कार्यपालिका से सलग्न होने के कारण, उचित कार्यवाही हेतु ‘ग्राम सभा निर्देशित करेगी’, न की ‘सूचित कर सकेगी।’
नियम 16 : (कंडिका 1) ग्राम सभा की संयुक्त बैठक : संयुक्त ग्राम सभा हर हालत में प्रतिनिधात्मक होने के कारण न वह सभा पेसा सम्मत हो सकती है न पारंपरिक हो सकती है। (कंडिका 3): सभा का अध्यक्ष चुना जाना पेसा का पारम्परिकता- सिद्धांत का हनन होगा। (कंडिका 4): इस सभा में कोरम ‘33 % अथवा 30 सदस्य’ का प्रावधान वन अधिकार (मान्यता ) कानून के विपरीत है, अतः गैर-कानूनी है।
नियम 17 : जब कंडिका 1 में कहा गया की पंचायत, ग्राम सभा की कार्यपालिका होगी, तब कंडिका 5 का ‘सामानांतर समिति ग्राम पंचायत/ग्राम सभा के स्थायी समितियां के अधीन गठित की जा सकेगी’ ऐसा कहना पेसा कानून की धारा 4ढ के सिद्धांत के विपरीत होने से गैर-कानूनी हो जाती है। ग्राम पंचायत, ग्राम सभा का कार्यपालिका होने से ग्राम सभा का स्थायी समिति का निर्णय का पालन करना आवश्यक है।
नियम 18 : विशेष सभा कौन करवाएंगे, निश्चित न होने की स्थिति में महत्वहीन है।
नियम 19 : कंडिका 4 ग्राम सभा के अध्यक्ष RPMC के पदेन अध्यक्ष का प्रावधान, संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्थागत सिद्धांत के विपरीत होगा।
नियम 20 : ( कंडिका 3) इस प्रावधान में पेसा कानून की धारा 4 (घ ) में परिभाषित ग्राम सभा का संप्रभु चरित्र का हनन है, न ऐसी व्यवस्था पारंपरिक है, न पारंपरिक न्याय-व्यवस्था सम्मत है। धारा 4 (घ) से प्रदत्त स्वायत्त अधिकार का राज्य सरकार द्वारा स्पष्ट हनन है। वही रवैया कंडिका 4 में भी वर्णित है।
नियम 21 : क्या यह बजट की उपलब्धता संविधान के अनुच्छेद 243 छ तथा अनुच्छेद 243 झ के तहत की जाएगी स्पष्ट न होने के कारण, प्रचलित तरीके से की जाएगी तो पेसा सम्मत ‘आर्थिक स्वायत्तता’ का अभाव से कार्यपालिका का वर्चस्व से निरर्थक साबित होते हुए गैर-संवैधानिक होगा। वही बातें नियम 22 के लिए भी लागू होगी।
नियम 23 : कंडिका 3 ग्राम सभा एवं ग्राम पंचायत का कोष का संचालन सरपंच-सचिव के संयुक्त हस्ताक्षर से की जाएगी तो कार्यपालिका की शक्ति, विधायिका (ग्राम सभा) की क्षेत्राधिकार पर अतिक्रमण भारत का संसदीय लोकतांत्रिक सरंचना का उलंघन है।
नियम 24 : जब ग्राम पंचायत, ग्राम सभा की कार्यपालिका है, तो ग्राम सभा निर्देश देगी, न की ‘परामर्श’ देगी।
नियम 25 : ग्राम सभा एवं ग्राम पंचायत की स्थायी समितियां गठित कर कार्य करने से विधायिका एवं कार्यपालिका के बीच शक्ति का अंतर्विरोध होगा (जो गैर-संवैधानिक है), इसलिए ग्राम सभा का स्थायी समितियों के निर्णय पर कार्यवाही ग्राम पंचायत करेगी, कहना ही उचित तथा पेसा कानून सम्मत होगा।
नियम 26 : कंडिका 1 का सीमित क्षेत्रफल (10 हेक्टेयर) पेसा कानून धारा 4 (घ) तथा वन अधिकार मान्यता कानून की धारा 5 का घोर उलंघन है। साथ ही ‘परामर्श’ शब्द उपयोग कर उक्त धाराओं का मजाक बना दिया गया है, जो गैर-संवैधानिक होते हुए गैर-कानूनी भी है। कंडिका 2 में वर्णित व्यवस्था कार्यपालिका का विधायिका पर अतिक्रमण तो है ही, साथ ही पेसा कानून की धारा 4 (घ) एवं धारा 4 (ढ) तथा वन अधिकार मान्यता कानून की धारा 5 का घोर उलंघन है।
नियम 27 : कंडिका 1 ग्राम सभा ही करेगी, न की ग्राम सभा के परामर्श से की जाएगी। कार्यपालिका का कार्य, ग्राम सभा के निर्णय का पालन करना है। परामर्श शब्द उपयोग से प्रक्रिया उलट जाती है। कार्यपालिका निर्णय लेने के समय ग्राम सभा से परामर्श करेगी, जो बाध्यकारी नहीं होगा। कंडिका 2 में वर्णित प्रक्रिया कार्यपालिका (कलेक्टर) के हाथ में जाने से वह प्रक्रिया न पेसा सम्मत है, न संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था सम्मत है। विवाद की स्थिति में पारम्परीक न्याय व्यवस्था की उपयोगिता ही पेसा सम्मत होगी।
नियम 30 : कंडिका 2 में वन अधिकार मान्यता नियम, 2008 के नियम 2 (1) (घ) के साथ स्पष्टीकरण (1), (2), (3) का ज़िक्र होना आवश्यक है। कंडिका 4 : ‘लघु वनोपज के प्रसंस्करण’ के लिए स्वयं (जोड़ा जाना चाहिए) या कोई भी इकाई स्थापित करने की सहमति दे सकेगी।
नियम 31 : लघु वनोपज को राष्ट्रीयकृत एवं अराष्ट्रीयकृत रूप में विभाजन करना पेसा कानून की धारा 4 ड (ii) तथा वन अधिकार मान्यता कानून की धारा नियम 2 (1) (घ) तथा स्पष्टीकरण (1), (2), (3) का उलंघन है ।
नियम 32 कंडिका 1 : स्पष्ट नहीं है। यह कहना कानून सम्मत होगा कि वन अधिकार मान्यता कानून की धारा 2 (क); 3 (1)(झ) एवं धारा 5 एवं पेसा कानून की धारा 4 (घ) के अनुसार होगी। यह इसलिए महत्वपूर्ण है कि यह धाराएं ग्राम सभा को न सिर्फ प्रबंधन का अधिकार देता है बल्कि गवर्नेंस (प्रशासकीय) शक्ति तथा क्षमता संपन्न इकाई के रूप में प्रस्तापित करता है।
नियम 33 पेसा (घ) तथा वन अधिकार मान्यता कानून का धारा 5 एवं नियम 4 (1)(e) एवं नियम 4 (1)(f) के विपरीत है। कानून का तकाजा है कि वन विभाग अपने वर्किंग प्लान को ग्राम सभा द्वारा बनायीं गयी वर्किंग प्लान के अनुरूप बनाएगा। इस हेतु वन विभाग को अपने कानून एवं नियम में संशोधन करना अनिवार्य आवश्यकता है।
नियम 34 : जब सारे अपराध (नॉन-कग्नीजिब्ल अपराध) पर पेसा कानून की धारा 4 (घ) ग्राम सभा की पारंपरिक न्याय प्रणाली को क्षमता प्रदान करती है, तो संबंधित वन अपराध कानूनों तथा नियमों में आवश्यक संशोधन करते हुए पेसा सुसंगत बनाना पड़ेगा, अन्यथा पेसा कानून लागू नहीं किया जा सकता है। वन विभाग, अनुसूचित क्षेत्र में स्वशासी व्यवस्था की कार्यपालिका के रूप में कार्य करेगा न की विधायिका की भूमिका में होगा।
नियम 35 : कंडिका 3 ‘शासकीय अथवा सामुदायिक भूमि’ वाक्य खण्ड का उपयोग पेसा धारा 4 (घ) तथा वन अधिकार मान्यता कानून का धारा 5 द्वारा ग्राम सभा के क्षेत्राधिकार में आने के कारण इस हेतु छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता, 1958 तथा संबंधित वन कानूनों में संशोधन आवश्यक है, नहीं तो प्रचलित कानूनों के प्रावधानों को ऐसे ही रखते हुए पेसा सुसंगत नियम बनाना असंभव है। इस हेतु छत्तीसगढ़ सरकार अनुसूचित क्षेत्र की भूमि संबंधित कानून को पेसा सुसंगत करने के लिए ‘आंध्र प्रदेश अनुसूचित क्षेत्र भू-हस्तांतरण विनियम अधिनियम (संशोधित 1 /1970)’ के अनुरूप कानून बनाना अनिवार्य है। अन्यथा नियम 35 में लिखी गयी विभिन्न कंडिकाओं का कोई अर्थ नहीं होगा। कानून में संशोधन करने के बाद आंध्र प्रदेश राज्य जैसे ‘लैंड कंसोलिडेशन फण्ड’ (संविधान के अनुच्छेद 275 परंतुक के तहत) का गठन किया है, वैसे छत्तीसगढ़ सरकार को प्रावधान करने से ही होगा।
नियम 36 : भूमि-अधिग्रहण शासकीय क्रय/हस्तांतरण से पहले ग्राम सभा की सहमति; इसमें राज्य सरकार अनुसूचित क्षेत्र तथा अनुसूचित जनजाति के साथ भद्दा मजाक किया है। नियम का हैडिंग ‘ग्राम सभा की सहमति’ लिखकर कंडिका 1 में ‘प्रचलित सभी कानून/निति के अंतर्गत’ ‘ग्राम सभा से परामर्श’ लिखना झूठ है। तथा कंडिका 5 में कलेक्टर को अपीलीय अधिकारी (जो प्रचलित कानून से भू-अर्जन अधिकारी) बनाना, पेसा कानून धारा 4 (घ) तथा वन अधिकार मान्यता कानून की धारा 5 का एवं संवैधानिक लोकतांत्रिक व्यवस्था का घोर उलंघन है।
नियम 37 : भूमि की वापसी (कंडिका 3) की भाषा ‘सूचना’ के स्थान पर धारा 170 ख -2 (क) में उपयोग किया गया शब्द ‘निर्देशित करेगी’ तो ग्राम सभा की गरिमा के साथ न्याय होगा।
नियम 38 : परियोजना प्रभावित व्यक्तियों का पुनर्वास : इस हेतु प्रचलित कानूनों एवं नियमों में पेसा सुसंगत संशोधन न करते हुए लागू करने से गैर-कानूनी प्रक्रिया होगी। वन अधिकार मान्यता कानून की धारा 4 (2)(ख)(ग)(घ ) का ढांचा तथा LARR कानून की धारा 41-42 के अनुरूप पुनर्वास नियम बनाना चाहिए।
नियम 39 : कंडिका 4 में ‘प्राप्त राजस्व’ को किस अनुपात से ग्राम सभा तथा त्रि-स्थरिय पंचायतों में बंटवारा होगा, निश्चित न होने से कार्यपालिका का अधिकार क्षेत्र का निर्णायक भूमिका गैर-संवैधानिक होगा।
नियम 40 शांति एवं सुरक्षा तथा विवाद समाधान : इस नियम में वर्णित ढांचा एवं विवरण पेसा कानून धारा 4 (घ) का स्वशासी अधिकार का उलंघन करता है। इसमें न पारंपरिक न्याय व्यवस्था–सरंचना की मान्यता है, न ग्राम-न्यायलय के गठन का कोई रूप-रेखा है। अतः सम्पूर्ण रूप से कानून का स्वशासी चरित्र का हनन है।
नियम 41 ग्राम सभा द्वारा दंड : जब नियम परिशिष्ट-2 अनुसार दंड देने का प्रावधान रखेगा, तो पारंपरिक न्याय व्यवस्था का औचित्य को नकारना ही होता है।
नियम 42 गिरफ़्तारी की कार्यवाही : पुलिस कानून में संशोधन के बिना पेसा लागू होना निरर्थक प्रयास है। सारे नॉन-काग्निजिब्ल अपराधों को पारंपरिक न्याय-व्यवस्था के अंतर्गत करने से ही न्याय व्यवस्था सरल एवं सफल होगी। इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीशों द्वारा बार-बार आग्रह की जा रही है। नागालैंड का कानूनी सफलता दिग्दर्शक है।
नियम 49 : इस संबंध में छत्तीसगढ़ साहूकारी अधिनियम, 2010 का संशोधन आवश्यक है जिसके तहत किसी भी स्थिति में अनुसूचित जनजाति की ज़मीन, नीलामी या कुड़की से हस्तांतरित नहीं हो। यह प्रावधान संविधान की पांचवीं अनुसूची पैरा- 5 (2)(क)(ख)(ग) में वर्णित है। अन्यथा इस नियम का कोई अर्थ नहीं होगा।
नियम 50 : जैव-विविधता संबंधित कानूनों को पेसा तथा वन अधिकार मान्यता कानून की धारा 5 के तहत सुसंगत करने के लिए राज्य सरकार को पांचवीं अनुसूची के तहत विनियम (रेगुलेशन) की अनुशंसा करते हुए संशोधन करना पड़ेगा, नहीं तो निरर्थक साबित होगा। इसलिए कि संघीय सरकार इस संबंध में विद्यमान कानून में जैव-विविधता को निजी हाथों में देने के लिए जो संशोधन कर रही है, वे पेसा कानून के विपरीत है।
2018 के चुनाव से पहले छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के साथ कांग्रेस ने जो वादा किया था कि सरकार में आने के बाद हम राज्य पेसा नियम बनाकर राज्य में आदिवासियों की प्राकृतिक संपदा की लूट को रोकेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। राज्य कांग्रेस सरकार ने पेसा नियम तो बनाकर लागू कर दिये, परंतु नियमों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं किया, जिससे आदिवासियों की प्राकृतिक संपदा की लूट को रोकने का अधिकार ग्राम सभा को मिला हो। ग्राम सभा की स्वायत्तता खत्म करके उसे कार्यपालिका के अधीन कर दिया है। कहा जा सकता है कि एक तरह से आदिवासियों की संपदा की लूट को राज्य पेसा नियमों के द्वारा कानूनी जामा पहना दिया गया है। राज्य के आदिवासी अपने अधिकारों को आंदोलनों के दम पर भले ही हासिल कर लें, लेकिन इस राज्य पेसा नियम से तो कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है। राज्य पेसा नियम जल-जंगल-जमीन की लूट को और तीव्र ही करेगा, क्योंकि कानूनी लड़ाई में राज्य पेसा नियम आदिवासियों की कोई मदद नहीं करेगा।