आप आंदोलन में हैं, तो दमन का सामना करने के लिए तैयार रहें : अभय साहू
गुजरी 30 अगस्त 2014 को डॉ सुनीलम की पोस्को प्रतिरोध संग्राम समिति के अगुआ अभय साहू से दिल्ली में मुलाकात हुई. इस मुलाकात में अभय साहू से पोस्को आंदोलन को लेकर विस्तार से चर्चा हुई. सरकारी गठजोड आज जिस शातिर तरीके से आंदोलनकारियों की आवाज़ चुप कराने में लगा है उसकी बानगी आपको पोस्को विरोधी आंदोलन में देख सकते है. यहाँ पर 2005 से 2014 के बिच 1565 लोगो पर 230 से अधिक मुकदमे दर्ज किए जा चुके है। पेश है अभय साहू की बातचीत पर आधारित डॉ सुनीलम की यह रिपोर्ट;
देश के प्रमुख आंदोलनों में पॉस्को विरोधी आंदोलन प्रमुख है। पॉस्को प्रोजेक्ट से सात गांव धनकिया, गोविंदपुर, नुआगांव, नुडियासाई, पोलांग, मुडिया पाडा, बायानड कंधा के 22 हजार ग्रामवासी प्रभावित हो रहे है। प्रोजेक्ट के लिए कुलमिलाकर 4004 एकड जमीन का अधिग्रहण किया जाना था। लगातार जनआंदोलन के बाद पॉस्को के प्रबंधकों ने माना कि उन्हे केवल 2700 एकड की आवष्यकता है। प्रबंधकों ने आंदोलन को बाटने की जीतोड कोशिष की। कई बार टकराव भी देखने मिला। लेकिन ज्यों ज्यों समय निकलता गया ग्रामिणों को अहसास होने लगा की प्रोजेक्ट का समर्थन करना बेकार है तथा उन्हे प्रबंधकों द्वारा गुमराह किया जा रहा है।
हालहीं में प्रोजेक्ट के समर्थक और विरोधी एकजुट दिखलाई पडे। उन्होने 4 माह पहले पॉस्को ट्राजिंट कार्यालय को जला दिया तथा 180 फिट की जो दिवार बनाई गई थी उसकों तोड दिया। एकजुटता इतनी तगडी थी की प्रबंधकों की हिम्मत मुकदमा दर्ज कराने की भी नही हुई। अब जिन्हे प्रोजेक्ट समर्थक माना जा रहा था वें हर हालत मे प्रबंधकों द्वारा प्रभावितों को रोजगार देने के आष्वासन को लागू करने पर आमादा है। वे चाहते है कि पुर्नवास तथा प्रभावित इलाकों को विकसित करने के लिए जो कमेटी बनाई गई थी वह प्रंबंधकों द्वारा दिए गए आष्वासन को लागू कराए।
सरकार नें दावा किया कि उन्होने 2700 एकड जमीन का अधिग्रहण पूर्ण कर लिया है। लेकिन वास्तविक स्थिति यह है कि 2700 एकड में ग्रामवासीयों ने पान की खेती फिर से षुरू कर दी है। सरकार द्वारा 32 लोगो पर केस दर्ज कराए गए है। उल्लेखनीय है कि जून 22, 2005 को सरकार नें पॉस्कों के साथ समझौता किया था। 11 जुलाई 2005 को पॉस्को विरोधी आंदोलन की नीव पडी, भुवनेष्वर में सभा हुई, गिरफतारिया भी हुई। अब तक 2005 से 2014 के बिच 1565 लोगो पर 230 से अधिक मुकदमे दर्ज किए जा चुके है। लेकिन चालान पेष होने के बावजूद कोई भी प्रकरण की ट््राईल न्यायालय में षुरू नही हुई है। केवल आंदोलन के मुखिया पॉस्को प्रतिरोध संग्राम समिति के अध्यक्ष अभय साहु पर हत्या का फर्जी मुकदमा चलाया जा रहा है। अब तक अभय साहु पर 37 मुकदमें दर्ज हुए है। लगातार उनकी गिरफतारियॉ भी होते रही है। एक बार 12 अक्टुबर 2009 से 21 अगस्त 2010 तक 37 प्रकरणों मे जेल में रखा गया। 25 नवबंर 2011 से मार्च 2012 तक 14 प्रकरणों में जेल मे रहे। 10 प्रकरणों में 12 मई 2013 से 30 नवंबर 2013 तक अभय साहु जेल मे रहे।
अब तक अभय साहु पर छः बार जानलेवा हमला हो चुका है। एक बार हमला तब हुआ जब वे चार साल पहले सुबह घुम रहे थे। दुसरी बार हमला सरकार द्वारा पारित सडक के निर्माण के खिलाफ धरना दे रहे 150 लोगो के समक्ष हथगोलो से हुआ। एक बार डेनकिया में बास के गेट पर हुआ जहां सदा मिटिंग होती है। एक बार पटना गांव में जिस घर में मिटिंग चल रही थी वहां हमला हुआ तीन साथी मारे गए, लेकिन अभय साहु बच गए। गोविंदपुर में भी धरने के दौरान गुण्डों द्वारा हमला किया गया। इसी तरह एक और धरने के दौरान टेन्ट में आग लगा दि गई लेकिन अभय साहु बच गए।
पॉस्को विरोधी आंदोलन की खासियत यह है कि इस आंदोलन को सत्तारूढ बीजूजनता दल के अलावा सभी पार्टियों का समर्थन प्राप्त है। यू तो अभय साहु जी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया कि राष्ट््रीय कांउसील के सदस्य है। उनका बेटा भी ऑल इंडिया स्टुडेन्ट फेडरेषन का राज्य का सचिव है तथा सी.पी.आई. के पूर्व महामंत्री एवं वरिष्ठतम नेता ए.बी. वर्धन सदा आंदोलन क्षेत्र में आते रहे है। कॉमरेड डी. राजा तथा एनी भी लगातार पॉस्को क्षेत्र का दौरा करती रही है। परन्तु आंदोलन को सभी दलो का सतत् समर्थन प्राप्त होता रहा है।
नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद यह अंदेषा था की आंदोलन का राजनैतिक समर्थन सिकुड जाएगा लेकिन ऐसा नही हुआ। मोदी मंत्रीमंण्डल मे आदिवासी क्षेत्रों के मंत्री जुबेल ओराम आज भी आंदोलन का समर्थन कर रहे है। पॉस्कों प्रोजेक्ट के लिए खण्डाधार खदानों से माल प्राप्त होना है। जुबेल ओराम कह चुके है कि खण्डाधार की खदानों से वे खनिज नही निकलने देंगे, चाहे पॉस्को बने या न बने। ऐसा कहना और करना उनकी स्वेच्छा नही राजनैतिक मजबूरी है। यदि वे पॉस्को का समर्थन करते है तो चुनाव नही जीत सकतें, उनकी राजनीतिक मौत होने का अंदेषा है इस कारण वे आंदोलनकारियों के साथ मैदान में डटे हुए है।
प्रोजेक्ट का भविष्य केवल भूमि अधिग्रहण पर निर्भर नही है, प्रोजेक्ट के लिए यदि खदाने नही मिल पाती तथा पारादीप पोर्ट के पास नया पोर्ट नही बन पाता तो प्रोजेक्ट कामयाब नही हो सकता। वस्तुस्थिति यह है कि सभी मिलकर पारादीप के नजदिक पॉस्को पोर्ट बनाने का विरोध कर रहे है। पहले जो लोग उत्साहित हुआ करते थे वे भी अब ठण्डे पड गए है। पॉस्को आंदोलन की खासियत यह है कि यहां जिस जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है वह निजी जमीन नही है। वह षासकीय जमीन है जिसपर लंबे अरसे से ग्रामीण खेती करते आ रहे है। जो लोग आंदोलन को नही जानते उन्हे यह गलत फहमी है कि यह आंदोलन आदिवासीयों की जमीन से संबंधीत है। जबकि वास्तविकता यह है कि जहां ज्यादातर ग्रामिण पिछडी जातियों- खण्डाईत, चौसा, मछुआरा समाज, नुडिया जाति के है।
पॉस्को का भविष्य इस बात पर जरूर निर्भर करेगा कि खण्डाधार में प्रोजेक्ट को खदाने मिल पाती है की नही। फिलहाल तो उम्मीद दिखती है कि खदान मिलना मुष्किल है लेकिन यदि मिल जाती है तब स्थिति अत्यंत गंभीर हो सकती है। पॉस्को पोर्ट का निर्माण होना भी कठिन दिखलाई पडता है ऐसी स्थिति में आंदोलन के चलते मित्तल कंपनी को भागना पडा उसी तरह यदि कोरिया की कंपनी को भागना पड जाए तो कोई आष्चर्य नही होगा।
असल में यह माहौल का असर है पटनागढ में 12 टन का समझौता 3 साल पहले हुआ था, लेकिन जन आंदोलन के चलते 1 इंच जमीन का भी अधिग्रहण नही किया जा सका। जबकि पॉस्को जगतसिंगपुर जिले मे हैै तथा पटनागढ 400 किमी दूर क्योझर जिले में। आंदोलन का असर सुन्दरगढ जिले, खण्डाधार में भी स्पष्ट दिखलाई पडता है। जो पॉस्कों इलाके से 600 किमी दूर है। नियमगिरी तथा वेदांत ;पुरीद्ध में जनआंदोलन के चलते अदालत के फैसले से लडाईयां जीती जा चुकी है।
पॉस्को विरोधी आंदोलन के साथ साथ ओडिषा में रायगढा, क्योझर, कालाहांडी, सुन्दरगढ, जगतसिंहपुर, पुरी, जांजपुर, नाराज़ जिलों में तीव्र जनआंदोलन चल रहे है। देखना यह है कि नरेन्द्र मोदी की केन्द्र सरकार और नवीन पटनायक की ओडिषा सरकार जनआंदोलनों के प्रति क्या रूख अपनाती है। उम्मीद तो यह है कि आने वाला समय जनआंदोलनों के लिए कठिन समय होगा। सरकारें दमनकारी रूख अपनाएगी क्योकि चुनाव कारपोरेट के पैसे से अर्थात कारपोरेट के सीधे हस्तक्षेप से लडा और जीता गया है। ऐसी स्थिति में भीषण टकराव से इंकार नही किया जा सकता है। आज जो आंदोलन चल रहे है वे अहिंसक है। केवल कंलिगनगर के आंदोलन के माओंवादियों से संबंध होने का आरोप सरकार द्वारा लगाया जाता है। उल्लेखनीय है की कलिंगनगर की पुलिस फायरिंग में 13 निर्दोष एवं निहत्थे नागरिक मारे गए थे तथा 5 वर्षो से अन्ना रेड्डी और उनके 3 साथी जेल में है।
सरकार पॉस्को विरोधी आंदोलन के प्रति दमनकारी तथा बदनाम करने वाले रवैया षुरू से अपनाती रही है। मोदी सरकार बनने के बाद जो इंटेलिजेंस ब्यूरो की रिपोर्ट लीक की गई, उसमें पॉस्को विरोधी आंदोलन का नाम विदेषी धन लेकर देष की आर्थिक तरक्की में बाधा पैदा कर विकास दर को 2 से 3 प्रतिषत तक कम करने वाले जनआंदोलनों में षामिल किया गया है। पॉस्को विरोधी आंदोलन के नेता अभय साहु का कहना है कि कभी भी पॉस्को प्रतिरोध संग्राम समिति ने विदेषी धन नही लिया। 2005 से अब तक आंदोलन प्रभावितों के पैसो से ही चल रहा है।