बंजर जमीने दिखाकर प्रताड़ित किया जा रहा है विस्थापितों को
सर्वोच्च न्यायलय ने 11 मई 2011 को अपने आदेश में स्पष्ट निर्देश दिया था कि विस्थापितों को उनकी मूल जमीन जैसी एवं बिना अतिक्रमण की जमीन दी जाएगी. गत 2 जून से 19 जून के बीच ओम्कारेश्वर बांध प्रभावित ग्राम घोगलगाँव, एखंड, टोकी, कामनखेड़ा, केलवाखुर्द व् पालडी गाँव के 92 किसानों को धार जिले के शिकारपुरा, गुन्हेरा, कराडीया, डोरमारियापुरा, आमला, गरडावद व् छोटा उमरिया आदि में जमीने दिखाने ले जाया गया. जमीन जाँच में सभी जमीने बंजर, पहाड़ी व् उबड़ खाबड़ पाई गयी. कहीं जमीन पर तालाब मिला तो कहीं ईंट का भट्टा. इससे स्पष्ट है कि यह जमीने दिखाना सर्वोच्च न्यायलय के आदेश का स्पष्ट उल्लंघन है.पेश है नर्मदा बचाओ आन्दोलन की विज्ञप्ति;
गत एक पखवाड़े में ओम्कारेश्वर बांध प्रभावितों को धार जिले के गावों में ले जाकर जमीने दिखाई जा रही है, जाँच पर प्रभावितों ने पाया कि ये जमीने पूरी तरह से बंजर हैं, पहाड़ी है, इन पर तालाब है, ईंट का भट्टा और उबड़ खाबड़ है. सरकार द्वारा जानबूझकर इस प्रकार की जमीने दिखाकर न सिर्फ सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन किया जा रहा, वरन प्रभावितों को प्रताड़ित भी किया जा रहा है.
सर्वोच्च न्यायलय के आदेशों का उल्लंघन
ओम्कारेश्वर परियोजना के विषय में माननीय सर्वोच्च न्यायलय के 11 मई 2011 के आदेश में स्पष्ट निर्देश हैं कि प्रभावितों को उनकी मूल जमीन जैसी एवं बिना अतिक्रमण की जमीन दी जाएगी. गत 2 जून से 19 जून के बीच ओम्कारेश्वर बांध प्रभावित ग्राम घोगलगाँव, एखंड, टोकी, कामनखेड़ा, केलवाखुर्द व् पालडी गाँव के 92 किसानों को धार जिले के शिकारपुरा, गुन्हेरा, कराडीया, डोरमारियापुरा, आमला, गरडावद व् छोटा उमरिया आदि में जमीने दिखाने ले जाया गया. जमीन जाँच में सभी जमीने बंजर, पहाड़ी व् उबड़ खाबड़ पाई गयी. कहीं जमीन पर तालाब मिला तो कहीं ईंट का भट्टा. इससे स्पष्ट है कि यह जमीने दिखाना सर्वोच्च न्यायलय का स्पष्ट उल्लंघन है.
उल्लेखनीय है कि सर्वोच्च न्यायलय के आदेश के बाद भी जमीन न दिए जाने पर सन 2012 में विस्थापितों ने ग्राम घोगलगाँव में एतिहासिक जल सत्याग्रह किया था. इस जल सत्याग्रह के बाद सरकार ने पानी कम करते हुए जमीन देने की घोषणा की थी. इसके बाद सैकड़ो प्रभावितों ने अपनी जमीन का आधा मुआवजा वापस कर दिया है. परन्तु गत एक साल में लगातार बंजर जमीने ही दिखाई जा रही है. कई जगह तो विस्थापितों को अतिक्रमणकारियों के कड़े विरोध का सामना भी करना पड़ा था.
जल सत्याग्रह के बाद बनी मंत्रियों की समिति की अनुशंसा के आधार पर ओम्कारेश्वर प्रभावितों को 225 करोड़ का पॅकेज दिया गया था, परन्तु ये वो सैकड़ों प्रभावित हैं जिन्होंने पॅकेज स्वीकार न करते हुए पुनर्वास नीति के अनुसार जमीन के बदले 5 एकड़ जमीन की मांग की है और डूब के गाँव में डटें हुए हैं.
नर्मदा आन्दोलन मांग करता है कि प्रभावितों को प्रताड़ित न करते हुए, पुनर्वास नीति व् सर्वोच्च न्यायलय के आदेश के अनुसार सभी प्रभावितों को 5 एकड़ सिंचित व् उपजाऊ जमीन तत्काल उपलब्ध करायी जाये.