प्रधानमंत्री जी: यह आधारशिला विनाश को न्यौता हैं !
करीब 2 करोड़ की आबादी वाले दिल्ली महानगर से महज 150 कि.मी. की दूरी पर किसी परमाणु संयंत्र (देश का सबसे बड़ा) की स्थापना की कल्पना ही सिरहन पैदा कर देती है । हरियाणा के गोरखपुर गांव में प्रस्तावित परमाणु ऊर्जा संयंत्र इस बात का
उदाहरण है कि किस तरह हमारे नीति निर्माता स्थानीय आबादी को खतरे में डालकर
और कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा कर अपनी नीतियां या
कार्यक्रम लागू करना चाहते हैं । अभी भी समय है कि इस खतरे से बचा जा सकता है । परमाणु ऊर्जा के खतरे एवं ऊर्जा के विकल्पों पर प्रकाश डालता यह आलेख;
जनहित से जुड़े हर मोर्चे पर असफल प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपने कार्यकाल के आख़िरी दिनों में फतेहाबाद के गोरखपुर में परमाणु संयंत्र की आधारशिला 13 जनवरी 2014 को रखी है. महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के साथ परमाणु संयंत्र उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियां हैं ये उन्होंने हाल में खुद कहा है. फतेहाबाद के किसान, ग्रामीण और आम लोग पिछले चार बरसों से इस प्रस्तावित प्लांट का विरोध कर रहे हैं. इस लंबे संघर्ष में तीन किसान साथियों ने अपनी जान भी गंवाई है.
यूक्रेन के चेरनोबिल शहर में हुए विश्व के सबसे खतरनाक परमाणु विध्वंस की 26वीं बरसी और पिछले वर्ष के प्रारंभ में जापान के परमाणु संयंत्र में हुई दुर्घटना, परमाणु संकट की निरन्तरता की गवाह हैं । दोनों घटनाएं हालांकि अलग-अलग समय में हुई हैं लेकिन ये दुनिया को बता रही हैं कि हमें इस क्रूर तकनीक पर रोक लगानी ही पड़ेगी । वास्तविकता यह है कि तकनीकी दृष्टि से पिछड़े या जापान जैसे तकनीकी दृष्टि से विकसित देश दोनों ही इन दुष्ट रिएक्टरों से निपटने का प्रयास में इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि प्रकृति के क्रोध के आगे सभी मनुष्य विवश हैं । सामने मंडराते संकट के मद्देनजर अनेक देशों ने अपने परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम पर रोक लगा दी है ।
जर्मनी ने अपने सात रिएक्टरों को बंद करते हुए अपना निर्णय दोहराया है कि वह भविश्य में परमाणु ऊर्जा से दूरी बना लेगा । चीन, जहां पर विश्व का सबसे विशाल परमाणु रिएक्टर निर्माण कार्यक्रम चल रहा था उसने भी अभी सभी निर्माणों पर रोक लगा दी है और कठोरता से सुरक्षा समीक्षा का आदेश दिया है । अन्य अनेक देशों ने भी ऐसा ही किया है, सिवाए भारत के, जहां पर हमारे प्रधानमंत्री ने जापान में हुई फुकुशिमा दुर्घटना के दो दिन के भीतर ही संसद में बहुत ही लापरवाही से यह घोषणा कर दी कि भारत के सभी परमाणु संयंत्र सुरक्षित है । गौरतलब है कि भारत में परिचालित हो रहे 20 रिएक्टरों (जिसमें से 2 फुकुशिमा जितने ही पुराने हैं और उनका डिजाइन भी अमेरिका के जी.ई. द्वारा आपूर्ति किए गए रिएक्टरों जैसा ही है) और उससे संबंधित अन्य सुविधाओं की समीक्षा क्या मात्र दो दिन में संभव है ? हम लोग हमारे देश के ऐसे निर्दयी परमाणु संस्थानों पर भरोसा कैसे करें ? हमें इस पृष्ठभूमि में भारत सरकार द्वारा तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिए शुद्ध ऊर्जा की आवश्यकता की गुहार को समझना जरूरी है ।
यह अच्छा सौदा नहीं है
हरियाणा के गोरखपुर गांव में प्रस्तावित परमाणु ऊर्जा संयंत्र इस बात का उदाहरण है कि किस तरह हमारे नीति निर्माता स्थानीय आबादी को खतरे में डालकर और कृषि आधारित अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा कर अपनी नीतियां या कार्यक्रम लागू करना चाहते हैं। गोरखपुर गांव हरियाणा के फतेहाबाद जिले में स्थित है और यह दिल्ली से 210 कि.मी. (सीधी रेखा में 150 कि.मी.) की दूरी पर स्थित है। प्रस्तावित परमाणु ऊर्जा संयंत्र परियोजना में 700 मेगावाट क्षमता के 4 रिएक्टर होंगे जो कि भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम (एनपीसीआईएल) द्वारा विकसित देशी डिजाइन पर आधारित होंगे। अब तक भारत में इतना बड़ा परमाणु ऊर्जा संयंत्र निर्मित नहीं हुआ है। वैसे महाराष्ट्र स्थित जैतापुर में प्रस्तावित संयंत्र इससे भी विशाल है। परमाणु संयंत्र हेतु कुल 1500 एकड़ जमीन का अधिग्रहण होना था। परंतु इसमें से 1304 एकड़ जमीन का ही अधिग्रहण हो पाया है ।
वैसे भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम ने स्थान चयन हेतु वर्ष 2010 के आरंभ में क्षेत्र का भ्रमण किया था। लेकिन सैद्धांतिक तौर पर इसकी सहमति अक्टूबर 2009 में दी जा चुकी थी। शुरुआत में कुछ ग्रामीणों ने इस आशा के साथ इस परियोजना का समर्थन किया था कि इससे उनकी जमीनों के भाव बढ़ जाएंगे। लेकिन अगस्त 2010 के बाद उन्होंने इसका तीव्र विरोध प्रारंभ कर दिया। ऐसा लोगों को धीरे-धीरे परमाणु ऊर्जा संयंत्र के खतरे मालूम पड़ने के बाद हुआ। परिणामस्वरूप एक किसान संघर्ष समिति का गठन किया गया जो कि 17 अगस्त 2010 से लगातार दो वर्ष तक फतेहाबाद जिला मुख्यालय स्थित लघु सचिवालय के समक्ष धरने पर बैठी रही।
2012 में जिस हफ्ते हज़ारों लोगों ने प्लांट को पर्यावरणीय मंजूरी देने के लिए आयोजित फर्जी सरकारी जनसुनवाई का मुखर विरोध किया और अफसरों को गाँव छोडने पर मजबूर किया, उसी समय मुट्ठी-भर भूस्वामियों को डरा-धमका और फुसला कर सरकार जमीन अधिग्रहीत करने में सफल रही और इस बात को ऐसे प्रचारित किया कि इस परियोजना को इलाके के लोगों का समर्थन हासिल है. सरकारी दमन और कानूनी दांवपेंच का सहारा लेकर खड़े किए गए इस जनसमर्थन के दावे की पोल इस बात से खुल जाती है कि पिछले एक साल में इलाके में आंदोलन का और विस्तार हुआ है – गोरखपुर के आस-पास के तीस ग्राम-पंचायतों ने परियोजना के खिलाफ प्रस्ताव पारित किए हैं, पिछले साल गर्मी में नहर सूखने से लोगों का ध्यान इस खतरे की और आकृष्ट हुआ और हज़ारों की संख्या में लोग फिर से गोलबंद हुए. इन आन्दोलनों में जनरल वी के सिंह, एम जी देवासहायम, जस्टिस बी जी कोलसे-पाटिल, संदीप पाण्डेय, के एन रामचंद्रन, अचिन वनायक और मेनका गांधी जैसे कई राष्ट्रीय स्तर के समाजकर्मियों ने भी शिरकत की और अपना समर्थन दिया है.
प्रस्तावित विद्युत संयंत्र की रहवासी बस्ती बड़ोपाल गांव जिसकी आबादी करीब 20000 है, में निर्मित की जाएगी। यह परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड के मानकों की घोर अवहेलना है जिसके अनुसार किसी भी परमाणु ऊर्जा संयंत्र की सीमा से 6.6 किलोमीटर के भीतर 10000 लोगों से अधिक की बसाहट नहीं होना चाहिए। पास ही स्थित नगर फतेहाबाद, रातिया और तोहाना में इससे कहीं अधिक जनसंख्या है। यहां से महज 30 कि.मी. दूर स्थित हिसार की जनसंख्या तो 2 लाख से भी अधिक है। चूंकि प्रस्तावित स्थल दिल्ली से महज 150 कि.मी. की दूरी पर स्थित है ऐसे में किसी भी बड़े परमाणु रिसाव की स्थिति में हवा की प्रवृत्ति से ये रेडियोधर्मिता आसानी से दिल्ली के मुहाने पर पहुंच सकती है। यह कहना ही बेमानी है कि इससे स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा और भयानक हादसे का डर लगातार बना रहेगा। फतेहाबाद जिले की अर्थव्यवस्था कृषि पर निर्भर है एवं कृषि आधारित अनेक उद्योग इसकी समृद्धि में योगदान करते हैं। गेहूं, सरसों, चावल एवं कपास यहां के मूल कृषि उत्पाद हैं। कम वर्षा वाला क्षेत्र (औसतन 400 मि.मी., जबकि दिल्ली में 615 मि.मी. बारिश होती है) होने के बावजूद भाखड़ा नहर की वजह से यहां वर्ष में तीन फसलें ली जाती हैं।
परमाणु ऊर्जा से संकट में कृषि और लोग
विकल्पों के होते परमाणु ऊर्जा क्यों?
हमसे बार-बार यह प्रश्न पूछा जाता है कि हमें बिजली की आवश्यकता तो है लेकिन वह कहां से आएगी। यह एक वैध प्रश्न है परंतु इसके परमाणु ऊर्जा के अलावा अन्य वैध एवं गैर विध्वंसकारी जवाब दिए जा सकते हैं। वर्तमान में हरियाणा में बड़ी मात्रा में, करीब 5000 मेगावाट की स्थापित क्षमता है और अगले दो वर्षों में 2500 मेगावाट अतिरिक्त क्षमता बढ़ने की संभावना भी है। किसी भी अतिरिक्त आवश्यकता को पुर्नचक्रित या बायोमास (कृषि अपशिष्ट) आधारित अतिरिक्त विद्युत उत्सर्जन से पूरा किया जा सकता है। हरियाणा रिन्यूबल ऊर्जा विकास एजेंसी जो कि एक सरकारी उद्यम है, का अनुमान है कि प्रदेश कृषि के बचे हुए भाग एवं घरों में उपलब्ध बायोमास से 1100 मेगावाट बिजली तैयार कर सकता है। घरों एवं गन्ने से बचा हुआ बायोमास 8416.47 हजार टन के करीब बैठता है जिससे कि 1019 मेगावाट विद्युत तैयार की जा सकती है।
जब ऐसे विकल्प मौजूद हैं तो हरियाणा को खतरनाक परमाणु संयंत्र जैसे विकल्पों पर विचार करने की आवश्यकता ही क्या है? लाभ केंद्रित विद्युत उत्सर्जन की अंधी दौड़ हमें केवल विध्वंस की ओर ही ले जाएगी। हमें ऊर्जा के न्यायोचित उपयोग की ओर ध्यान देने के साथ ऊर्जा समता और ऊर्जा सुरक्षा की ओर ध्यान देना चाहिए, बजाए ऊर्जा के अनैतिक उपयोग के।
(जीतेन्द्र कुमार स्वतंत्र पत्रकार हैं और न्यूक्लियर विरोधी आंदोलनों के साथ साथ देश भर के जनवादी आंदोलनों से संवाद स्थापित करते रहे हैं।)