16वें शहीद किसान सम्मेलन में मुलताई घोषणा-पत्र 2014 जारी
मध्य प्रदेश के मुलताई में गुजरी 12 जनवरी 2014 को देश भर के जन आंदोलनों के साथी, शिक्षाविद, अधिवक्ता, सामाजिक कार्यकर्ता और आस-पास के गांवों से हजारों किसान ‘किसान संघर्ष समिति’ के आंदोलन को समर्थन देने पहुचें। गौरतलब है कि 12 जनवरी 1998 को मुलताई में किसानों के ऊपर हुए गोलीकांड में 24किसान मारे गए थे आज उस घटना के 16 साल पूरे हुए । इस मौके पर किसान महापंचायत में मुलताई घोषणा-पत्र जारी किया गया. पेश है किसान संघर्ष समिति का यह मुलताई घोषणा-पत्र 2014;
भारत में किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्या की घटनाओं में निरंतर वृद्धि हो रही है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 1995 से 2012 के दौरान 3 लाख से अधिक किसानों ने आत्महत्या की । मध्यप्रदेश में लगभग 28 हजार किसानों ने आत्महत्याएं की और आत्महत्या करने वाले प्रति पांच किसानों में एक महिला किसान होने का रिकार्ड मध्यप्रदेश के खाते में दर्ज है, जो देश में सर्वाधिक है। भारत में किसानी के संकट के पीछे मुख्य रूप से तीन कारण हैं –
- खेती किसानी में लागत अधिक लगना और इसके अनुपात में मूल्य कम प्राप्त होना।
- कृषि ऋण पर बैंककारी विनियमन अधिनियम की धारा-21(क), जो मूलधन से अधिक ब्याज न लेने के प्रावधान को बाधित करती है।
- सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी को निरंतर घटाया जाना।
कृषि की घेराबन्दी से उपजी परिस्थिति –
- ऋणग्रस्त किसानों द्वारा बड़ी संख्या में आत्महत्या;
- जबरिया भूमि अधिग्रहण;
- भूमि कार्पारेटरों के हाथ;
- भ्रष्टाचार की अन्धड़;
- कृषि क्षेत्र में मजदूर का अभाव;
- विचार शून्यता की स्थिति;
- विकल्प विहीनता की स्थिति;
- परिवार का विखण्डन;
- यौन अराजकता;
- छिनैती में भारी वृद्धि;
- शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा का बढ़ता बाजारीकरण;
- भूख, कुपोषण, बीमारी में वृद्धि;
- बढ़ती भ्रुण हत्या, महिला हत्या;
- जन शक्ति में बिखराव;
- उत्पीड़ित वर्गों में बढ़ता मनमुटाव;
- सामाजिक तनाव में वृद्धि;
- वर्ग संगठनों में गिरावट;
- विस्थापन, पलायन, पुनर्वास का संकट;
- हत्या और आत्महत्या में वृद्धि;
- दरिद्रीकरण में फैलाव;
- कर्ज का मकड़जाल और नागफाश;
- चक्रव्यूह में किसान;
- पेयजल, सिंचाई, खाद, बीज का संकट;
- आवासीय भूमि का संकट;
- राजनीति के केन्द्र से किसान की बेदखली;
- जी.डी.पी. में किसानी का घटता योगदान;
- किसान विरोधी शासन नीति में वृद्धि;
- किसान विरोधी कानून में वृद्धि;
- किसान विरोधी शासकीय योजनाएं;
- किसानी की सुविधाओं में कटौती;
- ऋण, विपणन, उपकरण की दिक्कतें;
- कृषि का उत्तरोत्तर अलाभकारी बनना;
- कृषि लागत में वृद्धि, मूल्य में कमी;
- किसान पुत्रों की कृषि में बढ़ती अरूचि;
- कृषि क्षेत्र की आन्तरिक उपनिवेश में तब्दीली;
- शादी, ब्याह, दवा, पढ़ाई के खर्च में वृद्धि;
- नौकरशाही का खुला खेल और ताण्डव;
- आरक्षण द्वारा वर्ग चेतना का विलुप्तिकरण;
- नारीवाद, दलितवाद, पिछड़ावाद, पर्यावरण वाद द्वारा योजनाबद्ध विकास में बाधा और सामाजिक विखंडन;
- साम्राज्यवाद की आपसी एकता में वृद्धि;
- भारतीय बड़ी पूंजी और साम्राज्यवाद के बीच नापाक गठजोड़।
किसानी को संकट से मुक्त करने के लिए किसान संगठनों का यह घोषणा-पत्र दावा करता है कि किसानों के लिए…..
- कृषि आपदा कोष का गठन किया जाये;
- भूमि सुधार कानून और भूमि हद बन्दी कानून लागू किया जाये;
- किसानों को भूमि पास बुक उपलब्ध कराया जाये;
- अतिरिक्त भूमि पर सहकारी कृषि की जाय;
- खेत मजदूरों को रोजगार गारन्टी सुनिश्चित किया जाये;
- कृषि क्षेत्र में सार्वजनिक पूंजी का प्रवेश सुनिश्चित किया जाये;
- समुचित जल प्रबंधन, जल संचयन, जल वितरण द्वारा अनावृष्टि, अति वृष्टि से निजात दिलाया जाये;
- कृषि ऋण की दर 3 प्रतिशत से कम होे;
- कृषि ऋण पर चक्रवृद्धि ब्याज खत्म होे और ब्याज की कुल राशि मूलधन से अधिक न हो;
- कृषि क्षेत्र में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों पर रोक लगे;
- किसान की न्यूनतम आय की गारंटी हो;
- कृषि क्षेत्र का प्रबंधन किसान कल्याण केन्द्रित हो, न कि बाजार केन्द्रित;
- फसल बीमा लागू हो;
- कृषि उपज का मूल्य लाभकारी हो;
- कृषि पर आधारित उद्योग लगें;
- बीज पर विदेशी घुसपैठ बन्द हो;
- वन संरक्षण अधिनियम बनाने में आदिवासी जनता की भागीदारी हो;
- कृषि क्षेत्र में भण्डारण, खाद्य प्रसंस्करण, विपणन की व्यवस्था हो;
- पशुपालन को राजकीय सहायता उपलब्ध हो;
- गन्ना किसानों का बकाया सूद के साथ दिया जाये;
- हर प्रखण्ड में बीज, खाद, ट्रैक्टर, पम्प, हारवेस्टर मिस्त्री की उपलब्धता हो;
- किसान को कुशल कारीगर का दर्जा देकर कृषि को लाभकारी बनाया जाए;
- स्वयं के खेत में मजदूरी को राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना में शामिल किया जाये;
- संसद में किसान वर्ग परिलक्षित होना चाहिए;
- लैंगिक, जातीय, धार्मिक, नस्लीय भेद-भाव समाप्त हो;
- ठेकेदारी प्रथा बन्द हो;
- ग्रामीण सर्वहारा को तकनीकी ज्ञान दिया जाए ताकि वह कुशल प्रशिक्षित कारीगर बन सके;
- रोजगार गारन्टी मुकम्मल हो;
- बटाईदारी का निबंधन हो;
- पंचायतों को न्यायपालिका, कार्यपालिका, विधायिका की सारी शक्तियां उपलब्ध हों।
किसानी के संकट से देश को उबारने के लिए तत्काल यह कदम उठाये जाना चाहिये –
- खाद्यान्न का समर्थन मूल्य इतना तय किया जाय कि सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान बढ़कर 45 फीसदी हो जाये।
- यह सुनिश्चित किया जाए कि किसान की न्यूनतम आमदनी छठे वेतन आयोग में निर्धारित तृतीय श्रेणी सरकारी कर्मचारी के वेतन के बराबर हो जाये।
- अधिक लागत और कम मूल्य की चक्की में पिसते किसान को राहत देने खेती किसानी की समस्त लागत शासन द्वारा लगाई जाए तथा किसान को संगठित वर्ग के समतुल्य श्रम मूल्य दिया जाए।
- बैंककारी विनियमन अधिनियम की धारा-21(क) को भूतलक्षी प्रभाव से समाप्त किया जाये।
- कृषि क्षेत्र को विकास प्रक्रिया के केन्द्र में रखकर उसमें सार्वजनिक विनिवेश बढ़ाया जाये और उद्योगों की भूमिका कृषि कार्यों में सहायक के रूप में रखी जाये।
- खेती किसानी में लागत को घटाने के लिए रसायन मुक्त जैविक/प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जाये तथा एग्री बिजनेस को बढ़ावा देने की नीति का परित्याग किया जाए।
किसानी को खत्म करके कृषि कार्य को कार्पोरेट घरानों को हस्तांतरित करने की सभी राजनीतिक पार्टियों की नीति की मुलताई में सम्पन्न यह किसान सम्मेलन भर्त्सना करता है और संविधान विरोधी होने के कारण इस पर तत्काल रोक लगाने की संविधान के रक्षकों से अपील करता है।