खतरों के बावजूद सरकार हम पर परमाणु संयत्र थोप रही है -चुटका परमाणु संघर्ष समीति
विकास के नाम पर बने बांध से विस्थापन का दंश झेल चुके चुटका, टाटीघाट, कुण्डा और अन्य गांवो के बहादूर और विस्थापन – विरोधी संघर्ष की प्रेरणा से लैस लोगो ने सरकार की साजिश को अच्छी तरह समझ लिया है। यही वजह है कि पिछले कई सालों से वे लगातार परियोजना का विरोध कर रह है। लेकिन वैशिव्क पूंजी के हितों को आगें रखने वाली सरकार धूर्ततापूर्ण और तेज कदम बढ़ा रही है। इन गावों का तबाह करने की पूरी योजना सरकार बना चुकी है और इसे लागू करने के लिए आखिर औपचारिकता के नाम पर 24 मई 2013 को चुटका गांव में जन सुनवाई करने जा रही है। गांव के लोग इस चाल को समझते हैं और उन्होने साफ ऐलान कर दिया है कि वे इस जन – सुनवाई को नही होने देगें क्योंकि उन्हे यह परियोजना नामंजूर है।
विकास के नाम पर कॉपरेंट लूट और प्रकृति के विनाश को बढावा देने वाली सरकारें, परमाणु ऊर्जा के खतरों और देश की जनता के जबरदस्त विरोंध के बावजूद, एक के बाद परमाणु ऊर्जा संयत्रों को हमारे ऊपर थोपने की साजिश रच रही हैं। कुडनकुलम और जैतापुरा में संघर्षरत जनता का दमन सरकार की मंशा की साफ दिखाता है कि मुनाफाखोर पूंजी के पक्ष में सरकार किस हद तक बर्बर हो सकती है। यही नही परमाणु ऊर्जा के मसले पर देश के सर्वोच्च न्यायलय ने भी स्पष्ट कर दिया है कि वह मुनाफाखोर पूंजी के साथ है न कि देश की जनता के साथ! ठसी जन-विरोधी मंशा के चलते मध्य प्रदेश में चुटका परमाणु संयत्र की स्थापना के लिए केंद्र और राज्य की सरकारें मिलकर तमाम हथकंडे अपना रही है।
यह सब तब हो रहा है जबकि –
मार्च 2011 में जापान में आये भूकम्प व सुनामी के बाद फुकुशिमा स्थित परमाणु रिएक्टरो के दुर्घटनाग्रस्त होने से परमाणु संयत्रों के सुरक्षित होने का भ्रम तार – तार हो गया । इससे पहलें अब तक के परमाणु ऊर्जा इतिहास में चेनौंबिल (पूर्व सोवियत यूनियन अब उक्रेन,1986) थ्री माइल आइलैण्ड (अमेंरिका 1979) के अलावा सैकड़को छोटी – बड़ी दुर्घटनांए हो चकी है। इन परमाणु दुर्घटनाए से हाने वाली मौंतों की संख्या, मानव स्वास्थ पर खतराक दूरगामी प्रभावों और पर्यावरण (हवा, मिट्टी, पेड़-पौधे व जीव – जंतु) को होने वाले नुकसान के बारे में कभी भी सच्चाई को जग-जाहिर नही हाने दिया जाता है।
- भारत में ही परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के शुरू होने से अबतक 300 से भी ज्यादा दुर्घटनाएं हो चुकी हैं लेकिन सरकार ने कभी इनके पूरे प्रभावों के बारे में जनता को नही बताया हैं। यह भी सच्चाई है कि किसी भी परमाणु संयत्र से बिना किसी दुर्घटना के भी लगातार विभिन्न माध्यमांे से खतरनाक विकिरिण पर्यावरण में निकलता रहता है।
- परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से निकलने वाले रेडियोएक्टिव कचरे के सुरक्षित निवारण का हल दुनिया में अब तक कही भी नही खोजा जा सका है। यह जहरीला कचरा हजारों – लाखों सालों तक साबुत रहता है और कभी भी भीषण बरबादी का कारण बन सकता है।
- यह एक मिथक है कि परमाणु ऊर्जा सस्ती और स्वस्छ होती हैं। सच तो यह है कि शोध, खनन, रेडियोएक्टिव कचरे के निवारण, सुरक्षा और स्वास्थ के नाम पर तमाम तरह की सरकारी (यानी जनता के पैसे से) दी जाने वाली छूट के बावजूद यह मंहगी ही होती है।
- यूरेनियम के लिए किए जाने वाले खनन के भयावह दुष्प्रभाव होते है जिसका उदाहरण है झारखंड के जादुगुडा गांव के गरीब आदिवासी लोग, उनके बच्चे ( और आने वाली पीढ़िया भी ) जो कैसर, अपंगता और अन्य खतरनाक बीमारियों से जूझ रहे है।
- जनता के भारी दबाव के चलतें अमेरिका मंे पिछले 30 सालों में कई भी नया परमाणु संयत्र नही लगाया गया है। फुकुशिमा दुर्घटना के बाद युरोप के कई देशों और जापान में परमाणु संयत्रो का निष्क्रि किया जा रहा है।
इन खतरों के बावजूद सरकार हम पर परमाणु संयत्र थोप रही है आखिर क्यों?
क्योकि भारत परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम हमारे देश की जरूरतों के लिए नही बल्कि अमेरिका और युरोप के सामाज्यवादी देशों की परमाणु ऊर्जा से जुड़ी कंपनियों के मुनाफे को बचाने और बढाने के लिए चलाया जा रहा है। 2008 में भारत – अमेरिका परमाणु समझौता इसी साजिश के तहत किया गया था। परमाणु ऊर्जा के खिलाफ जनता के दबाव और आर्थिक मंदी से जूझ रही अमेरिका और यूरोप की कंपनियांे की मुनाफखोरी के लिए इस समझौतें ने बेरोकटोक दरवाजे खोल दिए। सच्चाई यह है कि हमें एक बार फिर विकास के नाम पर बलि का बकरा बनाया जा रहा है और इसीलिए यह समय है साफ कहने का –
हमे नही चाहिए परमाणु ऊर्जा के छलावे में एक और भोपाल हत्याकाण्ड!
चुटका परमाणु परियोजना के खिलाफ जनता के संघर्ष को हमारा सलाम
विकास के नाम पर बने बांध से विस्थापन का देश झेल चुके चुटका, टाटीघाट, कुण्डा और अन्य गांवो के बहादूर और विस्थापन – विरोधी संघर्ष की प्रेरणा से लैस लोगो ने सरकार की साजिश को अच्छी तरह समझ लिया है। यही वजह है कि पिछले कई सालों से वे लगातार परियोजना का विरोध कर रह है। लेकिन वैशिव्क पूंजी के हितों को आगें रखने वाली सरकार धूर्ततापूर्ण और तेज कदम बढ़ा रही है। इन गावों का तबाह करने की पूरी योजना सरकार बना चुकी है और इसे लागू करने के लिए आखिर औपचारिकता के नाम पर 24 मई 2013 को चुटका गांव में जन – सुनवाई करने जा रही है। गांव के लोग इस चाल को समझते हैं और उन्होने साफ ऐलान कर दिया है कि वे इस जन – सुनवाई को नही होने देगें क्योंकि उन्हे यह परियोजना नामंजूर है।
हम इस जज्बे को सलाम करते हैं और साथ ही चुटका और आसपास के गांवों की संघर्षशील जनता के फैसले का पूरा समर्थन करते हुए यह मांग करते हैं कि –
- चुटका परमाणु ऊर्जा परियोजना सहित अन्य सभी प्रस्तावित परियोजनाओं को तत्काल रद्द किया जाएः
- भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम पर रोक लगाई जाए और सभी परमाणु संयंत्रों को बंद कर सुरक्षित तरीके से हटाया जाएः
- युरेनियम खनन पर तत्काल रोक लगाई जाएः
- परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम से संबधित हर जानकारी का सार्वजनिक किया जाएः
- वर्तमान ऊर्जा उत्पादन के अनावश्यक व विलासितापूर्ण उपभोग पर रोक लगाई जाए और ऊर्जा समतामूलक वितरण व उपयोग की व्यव्स्था की जाएः और
- प्रदूषण – मुक्त ऊर्जा विकल्पों को बिना किसी भी तरह की मुनाफाखोरी या व्यवसायीकरण के जन – भागीदारीपूर्ण से विकसित किया जाए।
साथियों, यह समझने की जरूरत है कि परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम अपने असल चरित्र में मुनाफे के लिए प्रकृति के अबाध दोहने पर आधारित विकास के मॉडल की पैदाईश है जो आज पूरी तरह दिवालिया सिद्व हो चुकी है। यह सवाल सिर्फ किसी गॉंव, प्रांत या देश का नही बल्कि पूरी दुनिया का, मानव सभ्यता का, समूची धरती और जीवन के अस्तित्व का है। यह समय है कि हम सब एक साथ और एकजूट स्वर में पूरी हढ़ता के साथ देश और दुनिया के हुक्मरानों का साफ – साफ कह दे हमें विकास के नाम पर यह विनाश लीला मंजूर नही है।
परमाणु ऊर्जा के खिलाफ देशभक्त, प्रगतिशील, जनवादी ताकतें एकजूट हों!
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