संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

ढिंकिया के बाद अब उड़ीसा सरकार के निशाने पर नियामगिरी के आदिवासी : 9 लोगों पर लगाया यू.ए.पी.ए

ढिंकिया के बाद अब उड़ीसा सरकार के निशाने पर नियामगिरी के आदिवासी आ गये है। जिस तरह से ढिंकिया में जेएसडबल्यू के प्रोजेक्ट को स्थापित करने के लिए स्थानीय लोगों को जबरन फर्जी आरोपों में जेल में डाला गया था उसी तर्ज पर अब उड़ीसा सरकार नियमगिरि के आदिवासियों को जेल में पहुंचने की तैयारी कर रही है। 6 अगस्त को दर्ज एक एफ.आई.आर 0087/2023 में लादो सिकाका और ड्रेन्जू कृष्णा (एन.एस.एस के नेता), मनु सिकाका और सांबा हुइका (एन.एस.एस के युवा नेता), लिंगराज आजाद (एन.एस.एस के सलाहकार), ब्रिटिश कुमार (खंडुलामली सुरख्या समिति), लेनिन कुमार (कवि और एकजुटता कार्यकर्ता), गोबिंद बाग (एन.एस.एस से जुड़े ग्रामवासी) और उपेंद्र बाग (एन.एस.एस के सदस्य प्रवक्ता) सहित नियामगिरी सुरख्या समिति (एन.एस.एस) के 9 सदस्यों व समर्थकों के खिलाफ यू.ए.पी.ए (आतंक निरोधक कानून) लगाया गया है। आदिवासी संगठनों ने लगाए गए यूएपीए को वापस लेने की मांग की है। आदिवासी संगठन कालाहांडी और रायगढ़ा जिलों में पर्यावरण के प्रति संवेदनशील नियमगिरि पहाड़ियों में बॉक्साइट खनन के खिलाफ विरोध एक दशक से अधिक समय से प्रदर्शन कर रहे हैं। जन संगठनों का ओडिशा के मुख्यमंत्री के नाम खुला पत्र;

प्रति,
श्री नवीन पटनायक,
मुख्यमंत्री,
ओडिशा सरकार,
भुवनेश्वर

विषय: नियामगिरी सुरख्या समिति के आदिवासी नेताओं और समर्थकों के खिलाफ़ यू.ए.पी.ए – एफ.आई.आर और सभी मनगढ़ंत आरोप वापस लिए जाएं – ओडिशा में प्राकृतिक संसाधनों की कॉर्पोरेट लूट व दमन समाप्त किया जाए

महोदय,

जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय (एन.ए.पी.एम) और कई लोकतांत्रिक संगठनों के साथ-साथ, भारत और दुनिया के चिंतित नागरिकों की ओर से हम हस्ताक्षरकर्ता ओडिशा में हाल के घटनाक्रमों से आक्रोशित हैं, जिसके परिणामस्वरूप आपकी सरकार ने नियामगिरी सुरख्या समिति (एन.एस.एस) के 9 नेताओं और उसके समर्थकों के खिलाफ़ दमनकारी कानून – “गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम – यू.ए.पी.ए और भारतीय दंड संहिता (आई पी सी) के अन्य कड़े प्रावधानों के तहत मामले दर्ज किए हैं।

सामाजिक कार्यकर्ता लिंगराज आजाद, प्रफुल्ल सामंतरा, नरेंद्र मोहंती और विश्वप्रिया कानूनगो द्वारा दिए गए बयान में इन चिंताजनक परिस्थितियों का विस्तार से वर्णन किया गया है। 6 अगस्त को दर्ज एफ.आई.आर 0087/2023 में लाडा सिकाका और ड्रेन्जू कृष्णा (एन.एस.एस के नेता), मनु सिकाका और सांबा हुइका (एन.एस.एस के युवा नेता), लिंगराज आजाद (एन.एस.एस के सलाहकार), ब्रिटिश कुमार (खंडुलामली सुरख्या समिति), लेनिन कुमार (कवि और एकजुटता कार्यकर्ता), गोबिंद बाग (एन.एस.एस से जुड़े ग्रामवासी) और उपेंद्र बाग (एन.एस.एस के सदस्य प्रवक्ता) शामिल हैं और इनके खिलाफ कई आरोप लगाए गए हैं।

हमने एफ.आई.आर का अध्ययन किया है और उपरोक्त 9 व्यक्तियों के खिलाफ़ जिस लापरवाही और गलत तरीके से आरोप लगाए गए हैं, उससे हम हैरान हैं। उदाहरण के लिए, लाठी और कुल्हाड़ी, जो कई डोंगरिया कोंध आदिवासी पारंपरिक रूप से लेकर चलते हैं, को यू.ए.पी.ए के तहत एफ.आई.आर दर्ज करने के लिए आधार के रूप में उद्धृत किया जा रहा है! इसी तरह, एन.एस.एस को ‘वामपंथी उग्रवाद’ से जोड़ने वाले आरोप पूरी तरह से निराधार हैं। हम कानून की प्रक्रिया के इस दुरुपयोग और शांतिपूर्ण प्रतिरोध के लोकतांत्रिक आंदोलन के अधिकार पर हमले की निंदा करते हैं।

हम 5 अगस्त से इस घटनाक्रम पर चिंतित हैं, जब एन.एस.एस के दो युवा नेता (कृष्णा सिकाका, गांव पतंगपदर और बारी सिकाका, गांव लखपदर) संदेहास्पद तरीके से ‘लापता’ हो गए थे। उन्हें कथित तौर पर सादे कपड़ों में पुलिसकर्मियों ने लांजीगढ़ से अगवा कर लिया था, जहां वे 9 अगस्त को आगामी मूलवासी जन दिवस (इन्डिजिनस पीपल्स डे) के बारे में लोगों के साथ बातचीत करने आए थे। कई अनुरोधों के बावजूद, यहां तक कि वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने भी उनके बारे में कोई भी जानकारी नहीं दी। उनकी चिंताओं को दूर करने के बजाय, विरोध प्रदर्शन के दौरान कुछ पुलिस द्वारा आदिवासी लोगों का मजाक उड़ाया गया। इसके अलावा, जब पुलिस ने एन.एस.एस के नेता ड्रेंजू क्रिसिका को हिरासत में लेने की कोशिश की, तो लोगों की एकता ने इसे विफल कर दिया।

6 अगस्त को कल्याणसिंहपुर पुलिस स्टेशन के सामने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन और उच्च न्यायालय में दायर एक रिट याचिका के बाद, बारी सिकाका को पुलिस द्वारा ‘लौटा’ दिया गया था, लेकिन कृष्णा को 5 साल पुराने बलात्कार के मामले में ‘आरोपी’ के रूप में दिखाया गया। यह हमें हैरान करता है कि कृष्णा को अगस्त, 2023 में अचानक क्यों उठाया गया, अगर एफ.आई.आर 2018 में दर्ज की गई थी, और वह हमेशा सार्वजनिक कार्य में सामने रहे हैं, खुली बैठकों में भाग लेते रहे हैं। पता चला है कि जुलाई में, एक अन्य स्थानीय व्यक्ति बाली करकरिया (डेंगुनी गांव) को भी इसी तरह की परिस्थितियों में निराधार आरोपों में अपहरण कर लिया गया था और जेल में बंद कर दिया गया था।

पारिस्थितिक रूप से जैव-विविध कालाहांडी और रायगढ़ क्षेत्रों में वेदांता कंपनी द्वारा बॉक्साइट खनन के खिलाफ डोंगरिया कोंध नियामगिरी आदिवासियों के ऐतिहासिक संघर्ष को दुनिया भर में जाना जाता है। यहां तक कि माननीय उच्चतम न्यायालय ने भी 18 अप्रैल, 2013 के अपने ऐतिहासिक निर्णय में आदिवासी ग्राम सभाओं के अधिकारों को बरकरार रखा है। हम विचलित हैं कि य यू.ए.पी.ए जैसे दमनकारी कानून का इस्तेमाल आंदोलन पर शिकंजा कसने के लिए किया जा रहा है, इससे शीर्ष अदालत के फैसले की भावना का भी उल्लंघन किया जा रहा है। इस भयावह स्थिति के संदर्भ में;

हम ओडिशा सरकार से मांग करते हैं कि वह तुरंत:

  • नियामगिरी सुरख्या समिति के आदिवासी नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों के खिलाफ यू.ए.पी.ए -एफ.आई.आर सहित सभी आरोपों और एफ.आई.आर को वापस लिया जाए.
  • शांतिपूर्ण प्रतिरोध के लिए नियामगिरी के लोगों और ओडिशा के सभी आंदोलनों के लोकतांत्रिक अधिकारों को बनाए रखें।
  • 2018 में कृष्णा सिकाका के खिलाफ संदिग्ध एफ.आई.आर की निष्पक्ष जांच की जाए और जांच लंबित रहने तक उन्हें जेल से रिहा किया जाए।
  • वानाधिकार कानून, 2006, पेसा अधिनियम व ग्राम सभाओं के अधिकारों का, उच्चतम न्यायालय का निर्णय का उल्लंघन करते हुए वन संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 के तहत कोई भी मनमानी कार्रवाई ना करें।

उच्चतम न्यायालय के निर्णय के एक दशक बाद भी यह अत्यंत दुख:द है कि नियामगिरि के आदिवासियों को अपने वनों और पहाड़ों को कारपोरेट लूट से बचाने के लिए संघर्ष जारी रखना पड़ रहा है। ओडिशा सरकार को अपने आम लोगों के लिए काम करने का जनादेश है, न कि बड़े उद्योगपतियों की मुनाफाखोरी के लिए। हमें उम्मीद है कि आप आदिवासी मूलवासी समुदायों के इस उत्पीड़न को समाप्त करने में सच्ची राजकौशल दिखाएंगे, जो उनके जल, जंगल, ज़मीन और जमीनी संप्रभुता के लिए लड़ रहे हैं।

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