संघर्ष संवाद
Sangharsh Samvad

उड़ीसा : ढिंकिया में जेएसडबल्यू के प्रोजेक्ट पर एनजीटी ने लगाई रोक, प्रदर्शनकारियों को राहत

ओडिशा के जगतसिंहपुर जिले में दिसंबर 2021 से विरोध-प्रदर्शन जारी था। तब प्रशासन ने पान की बेलों को गिराकर गांव की जमीन का अधिग्रहण शुरू किया था। राष्ट्रीय हरित अधिकरण यानी एनजीटी ने अपने आदेश में माना कि जेएसडब्ल्यू परियोजना में भारी निवेश हुआ है, लेकिन टिकाऊ विकास के सिद्धांत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। ओडिशा उच्च न्यायालय ने भी परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण पर तब तक रोक लगा दी, जब तक कि वन अधिकारों का मुद्दा हल नहीं हो जाता। मोंगाबे से साभार मीना मेनन की रिपोर्ट;

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने ओडिशा के जगतसिंहपुर जिले के पारादीप बंदरगाह पर जिंदल स्टील वर्क्स की सहायक कंपनी जेएसडब्ल्यू उत्कल की परियोजना को दी गई पर्यावरण मंजूरी (ईसी/EC) पर इस साल 20 मार्च को रोक लगा दी। इस अदालती आदेश से पीड़ित समुदायों को कुछ राहत मिली। वहीं 24 मार्च को ओडिशा उच्च न्यायालय से एक और आदेश आया। इसमें वन अधिकारों से जुड़े मुद्दे हल होने तक भूमि अधिग्रहण पर रोक लगाई गई।

एनजीटी का आदेश कई अपील पर आया। इन अपील में जेएसडब्ल्यू उत्कल की आपस में जुड़ी दो परियोजनाओं के लिए पिछले साल 11 और 12 अप्रैल को मिली पर्यावरणीय मंजूरी को चुनौती दी गई थी। इसमें एक एकीकृत इस्पात संयंत्र (सीमेंट और बिजली संयंत्रों के साथ) है। वहीं दूसरी परियोजना पारादीप बंदरगाह के पास जेटी के निर्माण से जुड़ी है।

जेएसडब्ल्यू परियोजना के लिए प्रस्तावित जमीन पहले दक्षिण कोरियाई इस्पात कंपनी पोस्को की एक परियोजना के लिए ली गई थी। समुदायों के दशक भर लंबे विरोध के बाद साल 2017 में पोस्को ने परियोजना वापस ले ली थी। हालांकि, ओडिशा सरकार ने अधिग्रहित 1,253 हेक्टेयर जमीन वापस नहीं की। उसने जेएसडब्ल्यू उत्कल को 1,083 हेक्टेयर जमीन सौंप दी। कंपनी यहां पर 65,000 करोड़ रुपए निवेश करके परियोजना शुरू करने वाली थी। इसमें 10 एमटीपीए सीमेंट ग्राइंडिंग यूनिट के साथ 13.2 मिलियन टन प्रति वर्ष (एमटीपीए) एकीकृत स्टील प्लांट और 900 मेगावाट कैप्टिव पावर प्लांट के साथ-साथ 52 एमटीपीए की क्षमता वाली ऑल वेदर कैप्टिव जेटी शामिल है।

दशक भर लंबे आंदोलन के बाद भी समुदायों का संघर्ष जारी

धिनकिया गांव में अक्टूबर 2022 में पान की खेती को नष्ट करने आए एक पुलिसकर्मी को चुनौती देने वाली एक छोटी लड़की का वीडियो समुदाय के संघर्ष का प्रतीक है। ऐसा लगता है कि यह प्रतिरोध एक प्रतीक है, जिसके चलते पोस्को को अपने पैर वापस खींचने पड़े थे। समुदायों ने अब भी जेएसडब्ल्यू उत्कल का विरोध करना जारी रखा है। पुलिस जेसीबी से धिनकिया गांव में पान की बेल गिराने आई थी। पुलिस लड़की के पिता की तलाश कर रही थी। तभी छोटी लड़की पुलिस वाले से भिड़ गई। उस लड़की ने पुलिस वाले से पूछा कि वे उसके गांव में क्यों आए हैं। फिर उन्हें उल्टे पांव लौटने को कहा।

दिसंबर 2021 से, इस क्षेत्र में विरोध शुरू हो गया। तब प्रशासन ने पान की बेल गिराने और जमीन अधिग्रहण की कोशिश की। पुनर्गठित एंटी-जिंदल एंटी-पोस्को संग्राम समिति के प्रवक्ता प्रशांत पैकरे का कहना है कि तब से, पोस्को विरोधी प्रदर्शनों में शामिल 78 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इनमें से कुछ के ऊपर गैर-जमानती वारंट लंबित थे। देबेंद्र स्वैन जैसे पोस्को विरोधी आंदोलन के कुछ नेता एक साल से ज्यादा समय से जेल में हैं।

पोस्को प्रतिरोध संग्राम समिति (पीपीएसएस) की अगुवाई में परियोजना से पीड़ित समुदाय पोस्को के खिलाफ एक दशक लंबे आंदोलन का हिस्सा था। साल 2005 में दक्षिण कोरियाई इस्पात कंपनी ने कुजांग तहसील में विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाने और इस्पात संयंत्र लगाने का प्रस्ताव रखा था। जगतसिंहपुर जिले की कुजांग तहसील के छह गांवों में 22 हजार से अधिक परिवार परियोजना से प्रभावित होते। पोस्को परियोजना से प्रभावित होने वालों में ज्यादातर अनुसूचित जातियों के भूमिहीन परिवार थे। साथ ही मछुआरों का बड़ा समुदाय भी इससे प्रभावित होता। हालांकि, आंदोलन और अन्य कारकों ने 2017 में पोस्को को कदम पीछे खींचने पर मजबूर कर दिया।

एनजीटी ने अपने आदेश में क्या कहा

राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) के 20 मार्च, 2023 के अपने आदेश में कहा कि ट्रिब्यूनल को पता है कि परियोजना में भारी निवेश हुआ है। लेकिन वह टिकाऊ विकास के सिद्धांत को भी नजरअंदाज नहीं कर सकता है। एनजीटी ने इस पर भी गौर किया कि संचयी पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए/ EIA) प्रस्तुत करने से पहले सार्वजनिक सुनवाई हुई। इसके अलावा, एनजीटी ने परियोजना के स्थान पर भी आपत्ति जताई, जो प्रदूषित क्षेत्र [पारादीप बंदरगाह] के करीब था। साथ ही प्रस्तावित जेटी अनावश्यक रूप से पहले से काम कर रहे बंदरगाह के करीब था।

एनजीटी ने अपने फैसले में कहा कि परियोजना के लिए महानदी से बड़ी मात्रा में पानी का इस्तेमाल स्थानीय निवासियों की पीने के पानी की जरूरतों को प्रभावित कर सकता है। साथ ही नदी के प्रवाह पर भी असर डाल सकता है। ये कुछ ऐसे अहम मुद्दे थे जिन पर स्पष्ट विचार करने की जरूरत थी। एनजीटी ने इस मामले पर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) की पर्यावरण मूल्यांकन समिति द्वारा नए सिरे से विचार करने और तीन महीने के भीतर फैसला देने की जरूरत बताई।

आदेश में कहा गया है कि परियोजना के लिए संचयी ईआईए नवंबर 2021 और जनवरी 2022 को हुआ था। वहीं अनिवार्य सार्वजनिक सुनवाई इससे पहले 20 दिसंबर, 2019 को ही हो गई थी। इसके अलावा राज्य सरकार ने जोबरा बैराज पर महानदी में पानी की कमी होने के बावजूद 10,000 घन मीटर/घंटा पानी आवंटित किया था, जिसका उचित मूल्यांकन नहीं किया गया।

प्रस्तावित जेटी पारादीप बंदरगाह से 500 मीटर की दूरी पर बनना था, जो अनावश्यक था (जैसा कि 2010 में डॉ. मीना गुप्ता की अध्यक्षता वाली एक पूर्व आधिकारिक रिपोर्ट में कहा गया था)। यह क्षेत्र भी गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्र था। सामाजिक प्रभाव का आकलन बाद में किया गया था और जन सुनवाई का हिस्सा नहीं था। एनजीटी ने कहा कि उसने पहले पोस्को परियोजना पर प्रतिकूल टिप्पणी की थी (और 2012 में पर्यावरण मंजूरी पर भी रोक लगा दी थी) जो बाद में परियोजना से हट गई थी।

पीपुल्स मूवमेंट्स के राष्ट्रीय गठबंधन में शामिल आंदोलनकारी और अन्य लोगों ने जेएसडब्ल्यू को दी गई पर्यावरणीय अनुमति को चुनौती देते हुए कहा कि परियोजना से प्रदूषण के मौजूदा स्तर बढ़ेगा। इससे वन क्षेत्र, वनस्पतियों और जीवों और जल स्रोतों पर असर पड़ेगा। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि पर्यावरणीय अनुमति अवैध थी, क्योंकि जन सुनवाई से पहले कोई संचयी ईआईए नहीं हुआ था।

स्थानीय लोगों का आरोप, कंपनी ने नौकरी का वादा किया पर दी नहीं

कंपनी ने दलील दी कि इस परियोजना से केंद्र और राज्य सरकार को 13 सालों में करों के रूप में 5,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का लाभ होगा। उन्होंने यह भी कहा कि परियोजना पर काम होने के दौरान 15,000 श्रमिकों को रोजगार मिलेगा। साथ ही 12,000 लोगों को सीधे और 45,000 लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार देगी। हालांकि, स्थानीय समुदाय इस तरह के वादों से सावधान थे क्योंकि वे पहले की परियोजनाओं का हश्र देख चुके थे जिन्होंने नौकरियों का वादा किया था, लेकिन इसे पूरा नहीं किया।

प्रस्तावित जेएसडब्ल्यू परियोजना के लिए लगभग 1,083 हेक्टेयर भूमि की जरूरत थी। इसे अक्टूबर 2019 में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा स्थानांतरित कर दिया गया था। इसे साल 2022 में परियोजना से प्रभावित व्यक्तियों द्वारा दायर एक रिट याचिका में चुनौती दी गई थी। इसमें कहा गया था कि इसने वन अधिकारों के मूल उद्देश्य को खत्म कर दिया है। इसने वन अधिकार कानून, 2006 के तहत ग्राम सभाओं की सहमति के प्रावधानों को दरकिनार कर दिया। उन्होंने अदालत को दिए गए नक्शों और अन्य दस्तावेजों के साक्ष्य के आधार पर अन्य पारंपरिक वनवासियों के रूप में मान्यता की मांग की। ओडिशा हाईकोर्ट ने कहा कि जब तक जमीन के बंदोबस्त की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती, तब तक इस मामले पर रोक रहेगी। यह आदेश अहम है, क्योंकि समुदाय जिस जमीन पर खेती करता था, उसमें से अधिकांश वन भूमि 75 सालों से उनके प्रथागत अधिकारों के बावजूद उनके नाम पर नहीं है। याचिका में वन अधिकार कानून, 2006 की धारा 4 (5) के तहत कहा गया है, “अन्यथा प्रदान किए जाने के अलावा, वन में रहने वाले अनुसूचित जनजाति या अन्य पारंपरिक वनवासी के किसी भी सदस्य को उसके कब्जे वाली वन भूमि से तब तक बेदखल या हटाया नहीं जाएगा जब तक कि मान्यता और सत्यापन प्रक्रिया पूरी न हो जाए।” इसे उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा था।

‘पेड़ काटे जा रहे हैं, विरोध की अनुमति नहीं‘

समिति ने एक अन्य मुद्दे को उठाते हउए आरोप लगाया था कि कंपनी और जिला प्रशासन प्रस्तावित वन क्षेत्र में पेड़ काट रहे थे। जब स्थानीय लोग इसका विरोध कर रहे थे, तो उन्हें गिरफ्तार किया जा रहा था। पैकरे ने कहा कि पुलिस ने धिनकिया, गढ़कुजंग और नुआगांव पंचायतों के तहत परियोजना से प्रभावित गांवों को एक तरह से सील कर दिया था और लोकतांत्रिक विरोध की अनुमति नहीं दे रही थी। उन्होंने कहा, “कुछ घबराहट थी, क्योंकि लोग गिरफ्तारी के डर से छिपे हुए थे और स्थिति सामान्य नहीं थी। मकान तोड़े जा रहे थे। पुलिस ने धिनकिया में शिविर लगाए थे और इलाके में नियमित रूप से गश्त कर रही थी।

पोस्को विरोधी आंदोलन के दौरान भी, परियोजना से प्रभावित लोगों की राय अलग-अलग थी। इनमें से कुछ ने परियोजना का समर्थन किया था। समिति के अनुसार, पुलिस और जेएसडब्ल्यू का समर्थन करने वाले लोगों द्वारा कार्यकर्ताओं के खिलाफ कई मामले दर्ज कराए गए थे। प्रदर्शनकारियों ने पुलिस द्वारा प्रताड़ित किए जाने की शिकायत भी दर्ज कराई।

फरवरी 2022 में वकीलों की एक समिति और ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क (एचआरएलएन) की राज्य निदेशक सरिता बरपांडा ने कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन की जांच के लिए धिनकिया का दौरा किया। यह दौरा ओडिशा उच्च न्यायालय में एचआरएलएन की याचिका के जवाब में हुआ था। समिति के सदस्य मारपीट के गवाह थे। वहीं बरपंडा ने उस व्यक्ति को बचाने की कोशिश की, जिसे जेएसडब्ल्यू समर्थक पीटे रहे थे। इस दौरान उनका एक अंगूठा टूट गया और कई जगहों पर चोटें भी आई। बरपंडा और अन्य, जिन्हें बुरी तरह पीटा गया था, अस्पताल ले जाना पड़ा।

समिति की रिपोर्ट में कहा गया कि धिनकिया में कानून-व्यवस्था बनाए रखने के नाम पर पुलिस और जेएसडब्ल्यू के समर्थकों एक साथ आ गए थे और वे प्रदर्शनकारियों को दबा रहे थे। इसके अलावा, उन्होंने ग्रामीणों को प्रेस से बात नहीं करने या विरोध करने के अपने अधिकार का प्रयोग न करने की चेतावनी देने में पुलिस की कार्रवाई की निंदा की और सिफारिश की कि पुलिस को क्षेत्र से हटा लिया जाए। रिपोर्ट में तत्काल पुलिस तबादलों और लोगों को डराने-धमकाने और हिंसा करने वालों के खिलाफ कार्रवाई का भी सुझाव दिया गया।

वहीं इस साल जनवरी में नियुक्त जगतसिंहपुर के पुलिस अधीक्षक राहुल पीआर ने इन आरोपों के जवाब में मोंगाबे-इंडिया को बताया कि अगर कानून के मुताबिक गिरफ्तारी जरूरी है और अगर अपराध संज्ञेय हैं, तो उचित प्रक्रिया का पालन किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इलाके में गश्त होना असामान्य बात नहीं है। उन्होंने कहा कि कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक होने पर ही पुलिस विशेष परिस्थितियों में टीमों के साथ जाती है। उन्होंने कहा कि क्षेत्र में अब कोई विरोध नहीं हो रहा है और इस तरह की कोई विशेष तैनाती नहीं है। अभय चांदपुर पुलिस स्टेशन के तहत केवल एक ‘सामान्य पुलिस उपस्थिति‘ रखी गई थी, जिसका अधिकार क्षेत्र परियोजना प्रभावित क्षेत्र पर था।

मोंगाबे-इंडिया ने जेएसडब्ल्यू को ईमेल के जरिए कुछ सवाल भेजे थे। लेकिन खबर लिखे जाने तक इन सवालों का कोई जवाब नहीं मिला था।

जहां कई गिरफ्तारियों और पुलिस की मौजूदगी के चलते जेएसडब्ल्यू के खिलाफ विरोध कम हो गया है, वहीं अदालत के आदेशों ने परियोजना का विरोध कर रहे लोगों को कुछ राहत दी है। हालांकि, बरपांडा ने कहा कि जमीनी स्तर पर चीजें अब भी वैसी ही हैं और वहां अभी भी बड़ी संख्या में पुलिस मौजूद है। “लोग डरे हुए हैं और पहले के आंदोलन के मुख्य नेताओं में से एक देबेंद्र स्वैन अभी भी हथियार से जुड़े मामले में जेल में हैं, हालांकि उन्हें 43 मामलों में जमानत मिल गई है।”

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